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हिंदू हृदय सम्राट की नजर में गाय उपयोगी जानवर, पर भगवान नहीं

विनायक सावरकर ने यहां तक कहा था कि जरूरत पड़ने पर गाय को खाया भी जा सकता है.

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क्‍या आप जानते हैं ‘हिंदुत्‍व’ शब्‍द विनायक दामोदर सावरकर ने दिया था? क्‍या आप जानते हैं कि ‘हिंदू हृदय सम्राट’ शब्‍द सर्वप्रथम उन्‍हीं के लिए प्रयोग किया गया था? क्‍या आप जानते हैं कि वे हिंदुत्‍व राष्‍ट्रवादी नेता थे, जो कई मुद्दों पर आरएसएस से सहमत नहीं थे? और क्‍या आप जानते हैं कि उन्‍होंने गाय को एक ‘उपयोगी जानवर’ कहा था, जिसे जरूरत पड़ने पर खा भी सकते हैं?

21वीं सदी के लोगों को यह बात सुनने में अटपटी लगे, तो सोचिए कि आज से 100 साल पहले लोगों ने इस पर कैसी प्रतिक्रिया दी होगी. उनके अनुयायी उनके हिंदू राजनैतिक विचारों से प्रेरित थे, लेकिन उनमें से ज्‍यादातर सावरकर के हिंदू धर्म को लेकर उनके ‘वैज्ञानिक’ और ‘प्रगतिवादी’ विचारों से असहमत थे.

आज, जब देश के सामने गाय और उसकी सुरक्षा से जुड़े मसले सबसे महत्‍वपूर्ण हैं, तो हिंदुत्‍व के प्रतीक, वीडी सावरकर के बारे में जानिए, जिन्‍होंने कहा था कि गाय का उपयोग आर्थिक प्रगति के लिए होना चाहिए.

विनायक सावरकर ने यहां तक कहा था कि जरूरत पड़ने पर गाय को खाया भी जा सकता है.
विनायक दामोदर सावरकर (फोटो: http://www.savarkar.org)
अपने ‘विज्ञान निष्‍ठा निबंध’ में, सावरकर लिखते हैं कि गाय की सुरक्षा इसलिए होनी चाहिए कि वह मानव के लिए उपयोगी है न कि वो भगवान है.

सावरकर ने लिखा-  ‘किसी जानवर के प्रति धन्‍यवाद की भावना का होना हमारे लिए बहुत उपयोगी है और यह हिंदू धर्म में सभी जीव-जंतुओं के प्रति दया भाव के रूप में विशेष रूप से निरंतर जुड़ा रहा है. जानवर, जैसे गाय और भैंस तथा पौधे जैसे, केला और पीपल मनुष्‍य के लिए उपयोगी हैं और वे हमें पसंद भी हैं. उस सीमा तक तो हम उन्‍हें पूजा के योग्‍य मान सकते हैं.

लेकिन उनसे जुड़े धार्मिक गुण इन्‍हें भगवान का दर्जा प्रदान करते हैं. इस तरह का अंधविश्‍वास राष्‍ट्र के बौद्धिक विकास को तबाह कर देगा. गाय का अत्‍यधिक संरक्षण नहीं होना चाहिए. आज के समय में जब दलितों को गाय संरक्षण के नाम पर खुलेआम पीटा जा रहा है, उस समय सावरकर का गाय के अत्‍यधिक संरक्षण के संबंध में बयान महत्‍वपूर्ण है. जब मानवीय जरूरतें पूर्ण न होती हों और वास्‍तव में गाय से उन्‍हें नुकसान पहुंचता हो और जब मानवता शर्मसार हो जाए, तो स्‍वयं का पराजित करने वाले गाय के इस चरम संरक्षण को त्‍याग देना चाहिए.’

सावरकर गाय को आर्थिक प्रगति के साधन के तौर पर देखते थे, न कि दैवीय जीव के रूप में

मैं गाय की पूजा करने में लगे उन झूठे लोगों की आलोचना करता हूं जिनका उद्देश्‍य उसे भूसा खिलाने से बचना और गाय के संरक्षण से जुड़े विचारों को फैलाना है, जिससे बेहतर तरीके से गाय का संरक्षण हो सके. सुरक्षा के लिए पूज्‍य वस्‍तु घोषित करना एक बेहतर तरीका है. लेकिन इसमें गाय सुरक्षा जुड़े कर्तव्‍यों को भूलकर मात्र उसकी पूजा में तल्‍लीन हो जाना गलत है. यहां ‘मात्र’ शब्‍द का प्रयोग महत्‍वपूर्ण है. पहले गाय को बचाओ और फिर बाद में उसकी पूजा करो यदि आपकी इच्‍छा हो तो. बिना कोई धार्मिक अंधविश्‍वास फैलाए, गाय बचाओं आंदोलन स्‍पष्‍टत: आर्थिक प्रयोगात्‍मक और वैज्ञानिक नियमों पर आधारित एवं प्रसारित होना चाहिए. सिर्फ तब ही हम अमेरिकियों के समान गाय को वास्‍तविक सुरक्षा प्रदान कर सकेंगे. 
विनायक दामोदर सावरकर

‘गाय हिंदू राष्‍ट्र का प्रतीक नहीं है’

सावरकर हिंदू राष्‍ट्रवाद के विजेता थे, लेकिन उन्‍होंने कभी भी गाय को इसका प्रतीक नहीं माना. गाय हिंदू राष्‍ट्र में दूध का प्रतीक है. लेकिन इसे किसी भी रूप में हिंदू राष्‍ट्र का मानक प्रतीक स्‍वीकार्य नहीं किया जाना चाहिए.

पूज्‍य वस्‍तु सदैव पूजा करने वालों से बड़ी होनी चाहिए. कम से कम कल के हिंदू राष्‍ट्र में इस प्रकार का कोई छोटा प्रतीक नहीं होना चाहिए. इसी प्रकार, राष्‍ट्र का प्रतीक‍, राष्‍ट्र के उदाहरणीय साहस, बुद्धिमत्‍ता, आकांक्षाओं को जाग्रत करे और इसके लोगों को महामानव बनाने की ओर अग्रसर करने वाला होना चाहिए.

गाय का शोषण होता है और उसे इच्‍छानुसार खाया भी जाता है, यह हमारी वर्तमान (1936) में निर्बलता का उचित प्रतीक है. हिंदुत्‍व का प्रतीक गाय नहीं, बल्कि भगवान विष्‍णु का अवतार नरसिम्‍हा है, यदि गाय को दैवीय मानकर और उसकी पूजा की गयी, तो सम्‍पूर्ण हिंदू राष्‍ट्र गाय की भांति ही विनम्र हो जाएगा. यह गाय की तरह चरने लगेगा. यदि हमें किसी जानवर में ही अपने राष्‍ट्र का प्रतीक तलाशना पड़े तो वह जानवर शेर ही होना चाहिए.

विनायक सावरकर ने यहां तक कहा था कि जरूरत पड़ने पर गाय को खाया भी जा सकता है.
(फोटो: http://www.savarkar.org)

अपने नुकीले पंजों से शेर एक ही वार में बड़े जंगली जानवरों के मस्‍तक को घायल करके उन्‍हें मौत की नींद सुला देता है. हमें नरसिम्‍हा की पूजा करने की जरूरत है. शेर के नाखून हिंदुत्‍व का प्रतीक हैं न कि गाय के खुर.

क्‍या सावरकर लोगों को समझाने में असफल रहे?

सावरकर की गाय के प्रति उनकी सोच को उस समय किसी ने भी नहीं अपनाया था, आज, उनके कुछ मुट्ठीभर अनुयायी उनकी सोच को आगे बढ़ा रहे हैं. उनकी सोच वैज्ञानिक है. यहां तक कि वेदों ने भी गाय को भगवान नहीं कहा है. आज, हिंदुओं में चलन है कि किसी भी उपयोगी और महान वस्‍तु को भगवान का नाम दे दिया जाए. सावरकर नें हिंदुओं को प्रगतिशील बनाने का प्रयास किया, लेकिन वह सफल नहीं हो सके, यह एक धीमी प्रक्रिया है और एक व्‍यक्ति के जीवनकाल में पूरी नहीं की जा सकती. वह कहा करते थे कि भविष्‍य में उनके विचार मान्‍य होगें.
मिलिंद जोशिराव, अभिनव भारत (सावरकर के विचारों को प्रसारित करने में प्रयत्‍नशील एक संस्‍था)

वरिष्‍ठ पत्रकार और भूतपूर्व राज्‍यसभा सांसद भरतकुमार राउत मानते हैं कि सावरकर ने हिंदू धर्म के बारे में स्‍वयं के प्रयोगवादी विचारों का पालन नहीं किया. सावरकर हिंदुत्‍ववादी थे, लेकिन वे सभी प्रकार के धार्मिक कर्मकाण्‍डों के खिलाफ थे.

सावरकर की स्‍वयं की हिंदू महासभा में कई नेता उनके प्रगतिशील विचारों, विशेषत: गाय के प्रति विचारों, से सहमत नहीं थे. और सचमुच, सावरकर ने भी हिंदू धर्म के प्रति अपने वैज्ञानिक विचारों का पालन नहीं किया.

विनायक सावरकर ने यहां तक कहा था कि जरूरत पड़ने पर गाय को खाया भी जा सकता है.
(फोटो: textas.lt)

गाय: संवेदना बनाम उपयोगिता

सावरकर राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के साथ भी असहज बंधन में जुड़े थे, जो कि स्‍वयं भी एक हिंदू राष्‍ट्रवादी संगठन है. आरएसएस, अपनी कई शाखाओं के जरिए गाय से जुड़ी योजनाओं में कार्यरत रही है.

आज जब बीजेपी और आरएसएस के कई नेता सावरकर के बारे में बढ़-चढ़ कर गुणगान करते हैं, वे सामान्‍यत: सावरकर के हिंदू धर्म के प्रति बौद्धिक दृष्टिकोण के बारे में बात करने से बचते हैं. वरिष्‍ठ आरएसएस विचारक एम जी वैद्य के मुताबिक,

सावरकर के पास स्‍वयं के विचार होने का अधिकार था. वह बौद्धिकता में विश्‍वास करते थे. उन्‍होंने संवेदनाओं के ऊपर उपयोगिता को महत्‍व दिया. लेकिन उस समय भी, यहां तक कि गांधी तक ने भी लोगों की भावनाओं की कद्र की थी.
विनायक सावरकर ने यहां तक कहा था कि जरूरत पड़ने पर गाय को खाया भी जा सकता है.
(फोटो:Twitter/@VijaysinhpTOI)

आज, सावरकर महाराष्‍ट्र के मध्‍यमवर्गीय परिवारों में बहुत ही लोकप्रिय हैं, जो इस क्रांतिकारी स्‍वतंत्रता सेनानी के सम्‍मान में ज्‍यादातर पोर्ट ब्‍लेयर स्थित सेल्‍यूलर जेल जाते रहते हैं.

वे सावरकर की देशभक्ति, साहस और हिंदू विचारधारा से काफी प्रभावित हैं. लेकिन उनमें से अधिकतर सावरकर के धार्मिक‍और सामाजिक सुधारों पर विचारों से या तो अनजान हैं या फिर असहमत दिखते हैं.

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