बांग्लादेश के खिलाफ भारत ने टेस्ट सीरीज (India vs Bangladesh) जरूर जीती, पर भारतीय क्रिकेट (Indian Cricket) की समस्याएं वैसी ही मुंह बाए खड़ी हैं. शुरुआती बल्लेबाज चल नहीं रहे हैं. दरअसल, गेंदबाज ही बाल्लेबाजी के जौहर दिखाकर मैच को जीता रहे हैं. टेस्ट क्रिकेट के हिसाब से बांग्लादेश एक फिसड्डी टीम है.
भारत और बांग्लादेश के बीच मैच में लगता था मुकाबला शेर और बकरी के बीच है, लेकिन बांग्लादेश ने भारत को वन-डे सीरीज में हरा दिया. अगर टेस्ट सीरीज जीते तो कोई तीर नहीं मार लिया. चयनकर्ताओं और टीम प्रबंधन की सोच ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं.
चोटिल खिलाड़ियों की समस्या का कोई उपाय नहीं?
राहुल द्रविड़ अपने समय के महान बल्लेबाज जरूर रहे, पर ये जरूरी नहीं है कि शराफत और अनुशासन के बलबूते ही आप अच्छे प्रशिक्षक भी साबित हों. बांग्लादेश के खिलाफ दूसरे टेस्ट में पिछले मैच के मैन ऑफ द मैच कुलदीप यादव (Kuldeep Yadav) को निकाल कर जिस तरह उनादकट को लिया, उससे जानकारों की भौहें तन गयी और ये सोच का विषय बन गया है. स्पिन लेती पिच पर स्पिनर को निकाल कर तेज गेंदबाज को लेने का क्या ही तुक था? भारत दूसरा टेस्ट लगभग हारते-हारते बचा.
दूसरी समस्या खिलाड़ियों के लगातार घायल होते रहने की है. बुमराह, शमी, चाहर, जडेजा और रोहित शर्मा जैसे खिलाड़ी अगर बार-बार घायल होकर बाहर बैठे रहे हैं, तो फिर बांग्लादेश जैसी मामूली टीम भी आपको आंखें दिखाएंगी.
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) इतना पैसा खर्च कर रहा है. फिजियो है, रीहैबिलिटेशन की सारी व्यवस्थाएं हैं, पर इस समस्या का निदान नहीं निकल रहा है. क्या नियमित क्रिकेट खिलाड़ियों की शारीरिक क्षमता की परीक्षा ली जा रही है? साल भर क्रिकेट हो रहा है. क्रिकेट भी गंभीर व प्रतिस्पर्धा वाला क्रिकेट, जिसमें शारीरिक क्षमता ही मानसिक दृढ़ता की भी परीक्षा होती है. क्रिकेट के जरिए अर्थलाभ व थकान के बीच कहीं संतुलन बैठाने की जरूरत नहीं है?
क्या सिर्फ IPL में ही सारी ऊर्जा लगा रहे खिलाड़ी?
ये सही है कि अर्थशास्त्र के मुताबिक, आर्थिक मजबूती सफलता का आधार होती है. आदमी रुपये को चलाए ठीक है, पर जब रुपया आदमी को चलाने लगे, तो वो चिंता की बात बन जाती है. अब आईपीएल खेला जाएगा. घायल होने के कारण, नेशनल खेलने के लिए उपलब्ध न होने वाले कई खिलाड़ी अचानक आईपीएल में ठीक होकर खेलने लगेंगे.
प्रतिभाओं की बाढ़ तो आई है, लेकिन देश के लिए खेलने की प्रतिबद्धता को झटका लगा है. दुनिया भर के कितने ही खिलाड़ी आईपीएल के धन की ओर आकर्षित होकर अपनी पूरी ऊर्जा यहीं लगा देते हैं.
कई बार तो लगता है कि प्रतिभाओं को देख कर भारतीय चयनकर्ता नाराज हो जाते हैं. रविचंद्रन अश्विन को अपनी तमाम प्रतिभा के बावजूद अपना स्थान बनाए रखने के लिए कठिन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. तमिलनाडु का ये स्पिनर अपनी ऑफ स्पिन और कैरम बॉल के लिए पूरे जगत में प्रसिद्ध है. आपको ये जाकर हैरानी होगी कि अश्विन टेस्ट क्रिकेट में 18 बार मैन ऑफ द मैच चुने गए, जो कि सचिन तेंदुलकर से एक नंबर ही कम है.
अश्विन को कपिल देव जैसा ऑलराउंडर क्यों नहीं कहा जाता? ये हैरानी का विषय है! कपिल देव ने हर क्रिकेट मैच में करीब 29.65 रन दिए, जबकि अश्विन ने 25.21 रन ही दिए हैं. अभी तक वो 449 विकेट ले चुके हैं, जो कि कपिल देव से 15 विकेट ज्यादा हैं और 3000 रन भी बना चुके हैं, और 400 विकेट लेने वाले पहले भरतीय खिलाड़ियों की सूची में भी आ चुके हैं.
रविचंद्रन अश्विन ने कई मैचों में भारत को दिलाई जीत
बल्लेबाजी से भी कई बार अश्विन ने भारत को ऐतिहासिक जीत दिलाई है. पिछली बार जब भारत ऑस्ट्रेलिया गया था, तब सीरीज जीतने में आश्विन ने प्रमुख भूमिका निभाई थी. इंग्लैंड के खिलाफ चेपॉक पर उन्होंने शतक लगाकर भारत को जीत दिलाई थी. ये जीत उस पिच पर थी, जिसे इंग्लैंड के खिलाड़ी खराब कह रहे थे और अभी बांग्लादेश के खिलाफ 42 रन की नाबाद पारी खेलकर हार के मुंह से भारत को निकाला.
दरअसल, 36 साल के अनुभवी बुद्धिमान और चालक अश्विन को तो भारतीय कप्तानी का दावेदार होना चाहिए, लेकिन भारतीय क्रिकेट में इतना ऊपर जाने के लिए क्या केवल प्रतिभा ही काफी होती है.
50-50 ओवरों में हाल ही में हम न्यूजीलैंड और बांग्लादेश में हारे हैं. साल 1983 और 2011 के इतिहास को फिर दोहराने की आकांक्षा रखने वाली भारतीय टीम के लिए ये अच्छे संकेत नहीं हैं.
(सुशील दोषी पद्म श्री से सम्मानित लेखक और हिंदी के पहले टीवी कमेंटेटर हैं. वे 500 से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय मैचों के साथ ही 12 विश्व कप में कमेंट्री करने का अनुभव रखते हैं. उनके 500 से ज्यादा लेख अलग-अलग अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं. उनका ट्विटर हैंडल @RealSushilDoshi है. आर्टिकल में लिखे विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इससे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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