आखिरकार, दिल्ली को दम घुटने से बचाने (Delhi Air Pollution) के लिए इंद्र देव को आगे आना पड़ा. उन्होंने शहर में छाई धुंध को दूर करने के लिए बारिश की बौछारें कीं, जबकि अरविंद केजरीवाल और उनकी AAP सरकार दिल्ली शराब घोटाले, ईडी, सीबीआई और अन्य मुद्दों पर मोदी सरकार और बीजेपी के साथ आमने-सामने हैं.
यहां तक कि दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ने पर सुप्रीम कोर्ट को भी फटकार लगाने के लिए बाध्य होना पड़ा. दिल्ली की प्रदूषित हवा पर सुनवाई के दौरान जस्टिस संजय कौल ने कहा, ''यह हर समय राजनीतिक लड़ाई नहीं हो सकती. यह पूरी तरह से लोगों के स्वास्थ्य की हत्या है.
फिलहाल, कोर्ट ने पूरे उत्तर भारत में पराली जलाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया है. इसे दिल्ली के प्रदूषण में हर साल नवंबर में वृद्धि के पीछे एक प्रमुख कारक माना जाता है. इसके लागू करने की जिम्मेदारी स्टेशन हाउस अधिकारियों (एसएचओ) दी गयी है. जजों ने कहा कि दीर्घकालिक कार्य योजना (एक्शन प्लान) बाद में अपनाई जा सकती है.
यह देखना बाकी है कि क्या इस तरह के आदेश को जमीन पर लागू किया जा सकता है. ग्राम समूहों में पुलिस स्टेशनों के स्तर पर ऐसी सूक्ष्म जांच के लिए कोई निगरानी तंत्र नहीं है.
प्रदूषण के खतरे के प्रति उदासीन दृष्टिकोण
लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस साल, दिल्ली में केजरीवाल की AAP सरकार और केंद्र में मोदी सरकार, दोनों नवंबर आते-आते बिना किसी तैयारी की खड़ी दिखी. दोनों अपने अंतहीन पावर गेम में इतने तल्लीन थे कि इस मसले पर उनकी नजर ही नहीं थी. शायद इसी का नतीजा यह है कि दिल्ली ने हाल के वर्षों में सबसे खराब प्रदूषण स्तर देखा है.
दिल्ली की हवा को साफ रखने की लड़ाई को जीतने के दो चरण हैं. सबसे पहले अस्थायी उपायों के साथ कार्रवाई शुरू करना है जो समस्या को कुछ हद तक कम कर दें.
कई नए आइडिया पर विचार किया गया और कुछ को वास्तव में पिछले साल लागू किया गया, जिससे 2022-23 की सर्दियों में AQI स्तर को कम करने में मदद मिली. एक था धूल और छोटे प्रदूषकों को हवा में फैलने से रोकने के लिए सड़कों, पेड़ों और फुटपाथों पर वॉटर गन की मदद से पानी का नियमित छिड़काव करना.
दूसरा बीजिंग की मशीन की तर्ज पर दिल्ली में एक स्मॉग टॉवर की स्थापना थी. इस मशीन ने चीन की राजधानी में प्रदूषण के स्तर को काफी कम कर दिया है.
तीसरी योजना डीजल, पेट्रोल और सीएनजी गाड़ियों के लिए कलर-कोडेड स्टिकर लानी थी ताकि AQI का स्तर बढ़ने पर उनके सड़क पर निकलने को नियंत्रित किया जा सके.
चौथा, 2021 में पंजाब में सत्ता में आने वाली AAP सरकार की एक उत्साही घोषणा थी कि वह सस्ते किराये पर मशीन की सुविधा देगी ताकि किसान धान की पराली को जलाने बिना उसे मशीन की मदद से साफ कर सकें.
अब यह जान लीजिये- नवंबर आते-आते दिल्ली की सड़कों पर एक भी वॉटर गन नहीं भेजी गई और दिल्ली की खराब हवा के बारे में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई.
केजरीवाल के एक्शन प्लान में प्रदूषण नियंत्रण की प्राथमिकता कम है
स्मॉग टावर कुछ महीनों से काम नहीं कर रहा है और सरकार में किसी ने भी इसकी मरम्मत के बारे में नहीं सोचा है. जब कोर्ट ने इस बारे में सवाल किया तो दिल्ली सरकार के एक प्रतिनिधि ने कहा कि दोषी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है. कोर्ट ने जवाब को "हास्यास्पद" बताया.
कलर-कोडेड स्टिकर की योजना कागज पर बनी हुई है. और पंजाब के किसानों को धान की पराली जलाने से रोकने में मदद करने की AAP की भव्य योजनाओं के बारे में कुछ भी नहीं सुना गया है.
यह विश्वस करना कठिन है कि AAP जैसी पार्टी, जिसने नागरिकों की भलाई को प्रभावित करने वाले मुद्दों (शिक्षा और स्वास्थ्य इसका ज्वलंत उदाहरण है) पर ध्यान केंद्रित करने के कारण खुद को दिल्ली के लोगों का प्रिय बना लिया है, वह शहर में हवा की गुणवत्ता को नियंत्रित करने के बारे में भूल गई.
यह अब एक पैटर्न है कि अक्टूबर के अंत से दिल्ली-एनसीआर की हवा खराब हो जाती है. निश्चित रूप से, वॉटर गन जैसे अल्पकालिक उपाय समय रहते लागू किए जा सकते थे.
हालांकि, इस साल उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया कथित दिल्ली शराब घोटाले में एक आरोपी के रूप में सलाखों के पीछे थे, और उनके बॉस, अरविंद केजरीवाल, शहर में शासन के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए राजनीति में बहुत व्यस्त थे.
राजनीति, राजनीति और राजनीति
इस साल केजरीवाल के व्यस्त कार्यक्रम पर नजर डालें. उन्हें सिसौदिया की गिरफ्तारी के राजनीतिक नतीजों से निपटना पड़ा. उनके दूसरे राइट हैंड, राज्यसभा सांसद संजय सिंह को भी इसी शराब घोटाले मामले में जेल भेजा गया था. एक अन्य महत्वपूर्ण लेफ्टिनेंट, राघव चड्ढा, फिल्म स्टार परिणीति चोपड़ा से शादी करने में व्यस्त थे, जिससे उनकी मौजूदगी कम हो गई थी.
अपनी पार्टी की समस्याओं और केंद्रीय जांच एजेंसियों के साथ AAP के टकराव के अलावा, केजरीवाल राष्ट्रीय स्तर पर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ाने में व्यस्त थे. उन्हें मोदी विरोधी विपक्षी मोर्चे- I.N.D.I.A में शामिल होने के लिए बातचीत करनी पड़ी.
उन्होंने फैसला किया कि उनकी पार्टी को मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव लड़ना चाहिए, हालांकि इन तीन राज्यों में से किसी में भी इसकी कोई उपस्थिति नहीं है और कांग्रेस ने उनसे अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतारकर बीजेपी विरोधी वोटों में कटौती न करने का अनुरोध किया.
और फिर, आखिरी में उन्हें खुद ED ने कथित शराब घोटाले मामले में पूछताछ के लिए बुलाया था, जिसने उन्हें एक और पेचीदा राजनीतिक स्थिति में झोंक दिया.
वैसे अगर उनकी तरफ से देखें तो दिल्ली जैसे आंशिक राज्य का मुख्यमंत्री केवल इतना ही कर सकता है. और चूंकि नवंबर के प्रदूषण के खतरे को बढ़ाने में पड़ोसी राज्य, विशेष रूप से हरियाणा और पंजाब शामिल हैं, केंद्र सरकार की एक वार्ताकार और निर्णय-निर्माता के रूप में एक महत्वपूर्ण भूमिका है.
दिल्ली की खराब हवा से निपटने के लिए यह दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण कदम है: क्षेत्र के सभी राज्यों को शामिल करते हुए एक दीर्घकालिक कार्य योजना/ एक्शन प्लान बनाना- इसके लिए गेंद मोदी सरकार के पाले में है. लेकिन उसे विपक्षी नेताओं के खिलाफ ईडी और सीबीआई जांच जैसी अन्य व्यस्तताओं से खुद को दूर रखना होगा और टकराववादी दृष्टिकोण के बजाय परामर्शी दृष्टिकोण अपनाने की कोशिश करनी होगी.
शायद तब दिल्ली सर्दी में दम घुटने की बजाय दोबारा सांस ले सकेगी.
(अराती आर जेरथ दिल्ली स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @AratiJ है. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)
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