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देश में असंगठित क्षेत्र का आकार घटने के पीछे नोटबंदी की कितनी भूमिका?

Demonetisation के 6 साल बाद- सवाल है कि इसने अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के आकार को कितना कम किया

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स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) की रिसर्च टीम के एक पब्लिकेशन Ecowrap के एक हाल के एडिशन में दावा किया गया है कि भारत की असंगठित अर्थव्यवस्था 2017-18 के 52.4 फीसदी से बड़ी मात्रा में घटकर 2020-21 में 15 से 20 फीसदी के बीच आ गई है. एसबीआई की रिसर्च टीम (SBIRT) का ये दावा अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के आकार के मामले में भारत को यूरोप के बराबर खड़ा करता है.

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SBIRT का अनुमान दिखाता है कि निर्माण और आवास व खाद्य सेवाएं और व्यापार, इन दो सेक्टरों की अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के हिस्से में सबसे ज्यादा कमी आई. निर्माण और आवास के क्षेत्र में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा 2017-18 के करीब 75 फीसदी से घटकर 2020-21 में 35-40 फीसदी तक पहुंच गया है.

वहीं फूड सर्विसेज और व्यापार के क्षेत्र में और भी ज्यादा कमी आई है, ये करीब 87 फीसदी से घटकर 40-45 फीसदी के बीच आ गया है.

रिअल एस्टेट और घरों की खरीद बिक्री के मामले में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा 53 फीसदी से घटकर 25 फीसदी हो गया है. SBIRT के मुताबिक कृषि जिसमें अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा 2017-18 में 91 फीसदी से ज्यादा था, उसमें करीब 30 फीसदी की कमी आई है.

रिपोर्ट असंगठित अर्थव्यवस्था को परिभाषित नहीं करती

रिपोर्ट के मुताबिक 2016 के बाद या दूसरे शब्दों में कहें तो नोटबंदी के बाद सरकार के द्वारा की गयी कई नीतिगत पहलें और दूसरे कदमों का साथ आना भारतीय अर्थव्यवस्था में इस बड़े बदलाव का कारण बना, इसके लिए दो कदमों का अहम योगदान बताया गया.

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के वेतन दिए जाने के आंकड़े का इस्तेमाल करते हुए SBIRT ने अनुमान लगाया था कि अगस्त 2021 तक 36.6 लाख नौकरियां पक्की हुई हैं. लेकिन यह कम महत्वपूर्ण नहीं, अंसगठित क्षेत्र के कामगारों के आंकड़े रखने के लिए अगस्त 2021 में लॉन्च ई-श्रम पोर्टल में रजिस्ट्रेशन को अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में कामगारों को औपचारिक रूप देने का श्रेय दिया गया है.

इस तरह से निष्कर्ष निकालना कितना विश्वसनीय है, ये देखते हुए कि रिपोर्ट में भारतीय अर्थव्यवस्था के औपचारिक होने की कथित वृद्धि के लिए संकेतकों का एक अलग सेट प्रस्तुत करते समय “अनौपचारिक अर्थव्यवस्था” को परिभाषित नहीं किया गया है.

इस रिपोर्ट की सबसे बड़ी खामी ये है कि इसमें अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को ये कहते हुए परिभाषित करने से बचने की कोशिश की गई है कि अनौपचारिक अर्थव्यवस्था की गतिविधि विशेष तौर पर परिभाषित नहीं है.

जब अच्छी स्थापित परिभाषाएं उपलब्ध हैं, तो भी SBIRT ने क्यों परिभाषा के मुद्दे से किनारा करने की कोशिश की? ये शायद अपने तर्क का समर्थन करने के लिए कि अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में गिरावट आई है, मनमाने संकेतकों को सामने रखने के लिए किया गया था.

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शैडो इकनॉमी को सटीक रूप से नहीं नापा जा सकता

हम तर्क देंगे कि एक बार परिभाषा का मुद्दा सुलझ जाए, जैसा कि हम इस चर्चा में करेंगे. ये सवाल कि क्या भारतीय अर्थव्यवस्था सच में औपचारिक हुई है या नहीं. इसे आसानी से समझा जा सकेगा.

जैसा कि सभी जानते हैं इनफॉर्मल इकोनॉमी शब्द के दो वैचारिक आधार हैं. पहला शैडो इकोनॉमी को संदर्भित करता है और दूसरा अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा समझाया गया है. इसका उपयोग उत्पादन और रोजगार संबंधों दोनों को कवर करने वाली वैचारिक संपूर्णता को इंगित करने के लिए किया जाता है.

भारतीय अर्थव्यवस्था का डिजिटलीकरण, जीएसटी की शुरूआत और किसान क्रेडिट कार्ड के बढ़ते उपयोग शैडो इकोनॉमी को कम करने की दिशा में सबसे अच्छे कदम हैं.

हालांकि शैडो इकोनॉमी को बहुत सटीकता के साथ नहीं मापा जा सकता, ये अनुमान लगाना मुश्किल है कि इन तीन कदमों का कितना योगदान भारतीय अर्थव्यवस्था के औपचारिक होने की वृद्धि में है.

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SBIRT ने तर्क दिया है कि इकोनॉमी का आकार घटाने में सबसे ज्यादा योगदान रोजगार का है. इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक इनफॉर्मल अर्थव्यवस्था में अनौपचारिक क्षेत्र के मजदूर और अनौपचारिक क्षेत्र के बाहर के अनौपचारिक मजदूर शामिल हैं. बाद वाली श्रेणी यानि अनौपचारिक क्षेत्र के बाहर के अनौपचारिक मजदूर खास कर भारत के लिए प्रासंगिक है, जहां औपचारिक या संगठित क्षेत्र में अनौपचारिकता के बढ़ते प्रमाण श्रम बाजार की एक महत्वपूर्ण खासियत है.

गिग इकॉनमी इसका कारण नहीं है

International Conference of Labour Statisticians श्रम सांख्यिकीविदों के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन ने अनौपचारिक रोजगार को सभी लाभकारी कार्य (स्वरोजगार और मजदूरी रोजगार दोनों) के रूप में परिभाषित किया था, जो मौजूदा कानूनी या नियामक ढांचे द्वारा पंजीकृत, विनियमित या संरक्षित नहीं है. साथ ही आय में किए गए गैर-लाभकारी कार्य भी हैं.

अनौपचारिक श्रमिकों के पास सुरक्षित रोजगार अनुबंध, श्रमिकों के लाभ, सामाजिक सुरक्षा या श्रमिकों का प्रतिनिधित्व नहीं होता है.

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इस प्रकार, अनौपचारिक से औपचारिक में परिवर्तन के लिए आवश्यक रूप से श्रमिकों के अधिकारों की कानूनी सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक है. ये अनौपचारिक श्रमिकों की लंबे समय से चली आ रही मांगें हैं, जिन्हें लगातार सरकारों ने नजरअंदाज किया है.

इसलिए यह तर्क देना गलत है, कि गिग इकोनॉमी के उद्भव ने भारतीय अर्थव्यवस्था को औपचारिक रूप दिया है. दो महीने से भी कम समय पहले, ऐप-आधारित परिवहन और वितरण श्रमिकों का प्रतिनिधित्व करने वाले Indian Federation of App-Based Transport Workers (IFAT) और कैब एग्रीगेटर्स के साथ काम करने वाले दो व्यक्तिगत ड्राइवरों ने एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की थी.

सुप्रीम कोर्ट ने तर्क दिया कि गिग श्रमिकों को असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 के तहत असंगठित श्रमिक या मजदूरी श्रमिक के रूप में पंजीकृत किया जाना चाहिए. उन्होंने तर्क दिया कि ऐसा करने में उनके काम, आजीविका, सभ्य अधिकारों का उल्लंघन होगा. श्रमिकों ने आगे तर्क दिया कि सामाजिक सुरक्षा से इनकार करने के परिणामस्वरूप संविधान के अनुच्छेद 23 के अनुसार जबरन श्रम के माध्यम से उनका शोषण किया गया था.

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बिना लाभ के ई-श्रम पर मात्र पंजीकरण

इस साल की शुरुआत में यूनाइटेड किंगडम के सुप्रीम कोर्ट ने उबर ड्राइवरों द्वारा कंपनी के खिलाफ लाभ से इनकार करने के लिए लाए गए एक मामले में अपना फैसला सुनाया.

एक ऐतिहासिक फैसले में, कोर्ट ने कहा कि कैब एग्रीगेटर को ड्राइवरों को प्लेटफॉर्म वर्कर के रूप में पहचानना चाहिए और न्यूनतम वेतन व अवकाश वेतन सुरक्षा का भुगतान करना चाहिए. जब तक भारत में गिग वर्कर्स के पक्ष में इसी तरह का फैसला नहीं आता, तब तक एसबीआईआरटी के लिए इन कामगारों को औपचारिक क्षेत्र में शामिल करने का कोई औचित्य नहीं है.

श्रम बाजार के दृष्टिकोण से एसबीआईआरटी का दावा है कि अनौपचारिक श्रमिकों के पंजीकरण के लिए ई-श्रम पोर्टल की शुरूआत की वजह से पिछले तीन वर्षों में श्रम बल के फॉर्मलाइजेशन में योगदान हुआ है. यह दो कारणों से त्रुटिपूर्ण है, पहला- अगस्त 2021 में ई-श्रम पोर्टल का अनावरण किया गया था.

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दूसरा- यह समझना असंभव है कि पोर्टल पर केवल पंजीकरण कैसे अनौपचारिक क्षेत्र में एक कार्यकर्ता को औपचारिक क्षेत्र का कार्यकर्ता बना देगा. जब तक कि वह पोर्टल पर सूचीबद्ध सभी सामाजिक सुरक्षा लाभों को अधिकार के रूप में प्राप्त करने में सक्षम न हो.

(बिस्वजीत धर सेंटर फॉर इकोनॉमिक स्टडीज एंड प्लानिंग, स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)

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