नोएडा में रहने वाले मेरे एक दोस्त विनयशील के दो बेटे हैं. बड़े बेटे का स्कूल गाजियाबाद में है, लेकिन छोटे का नोएडा में. रविवार शाम जैसे ही गाजियाबाद वाले स्कूल से 12 जनवरी तक स्कूल बंद रहने का एसएमएस आया, मित्र के घर में कोहराम मच गया. छोटा बेटा चीख-चीखकर सवाल कर रहा था कि भैया स्कूल नहीं जाएगा तो वो क्यों जाए? भैया का स्कूल बंद है तो उसका स्कूल क्यों नहीं? गाजियाबाद में ठंड पड़ रही हो और नोएडा में नहीं, ये कैसे हो सकता है? रो-चीखकर छोटे बेटे ने पूरा घर सिर पर उठा लिया.
आखिरकार, उसे दिलासा दिया गया कि जब तक भैया स्कूल नहीं जाएगा, तब तक तुम भी स्कूल नहीं जाओगे. तब कहीं जाकर घर में शांति और अमन-चैन का राज स्थापित हो सका.
ये कहानी प्रशासनिक अमले को सुनाई जाए, तो जानते हैं वो क्या कहेंगे? ‘बच्चे तो बच्चे हैं...बच्चों की जिद तो माता-पिता को ही झेलनी पड़ती है.’ एक तजुर्बेकार अभिभावक की तरह नसीहत की डोज भी मिल जाएगी– ‘माता-पिता को चाहिए कि बच्चों को समझाएं. उनकी हर जिद पूरी ना करें. इससे बच्चों में गंदी आदत घर कर जाती है.’ वगैरह वगैरह.
स्कूल की छुट्टियों के मुताबिक विंटर हॉलीडेज
अब उन घरों की भी बात करते हैं जहां शिकायत तो है, लेकिन लबों पर नहीं आती. बच्चों की सर्दियों की छुट्टियां हुईं. कई परिवारों ने छुट्टी मनाने का फैसला कर लिया. इन दिनों गोआ, केरल जैसी कम ठंड वाली जगह पसंदीदा हॉलीडे डेस्टिनेशंस होती हैं. लेकिन छुट्टी मनाने की योजना स्कूल की छुट्टियों के मुताबिक होती है. अक्सर स्कूल की तारीख का ख्याल रखते हुए कड़ाके की ठंड में ही वापस लौटना पड़ता है. लौटकर वापस आ गए, तो स्कूल से एक मैसेज आ जाता है कि ठंड को देखते हुए जिला प्रशासन के आदेश पर छुट्टियां बढ़ा दी गई हैं.
ये सिलसिला हर साल चलता रहता है. दिल्ली-एनसीआर में हर साल 5-6 जनवरी के आसपास आने वाले ऐसे एसएमएस पढ़कर माता-पिता को कोई खास सुकून नहीं मिलता. दिल में एक कसक ज़रूर उठती है कि काश समय रहते पता चल जाता, तो कुछ दिन और छुट्टियां मना लेते. हालांकि दिल की ये शिकायत कहां करें, किससे करें, कैसे करें, ये बात किसी की समझ में नहीं आती.
चक्रवात की भविष्यवाणी
समय चक्र को थोड़ा पीछे घुमाते हैं. पिछले साल सितम्बर महीने में ओडिशा और आन्ध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्रों में ले चलते हैं. भयानक चक्रवात आया था. लेकिन मौसम विज्ञान ने कुछ दिन पहले ही चक्रवात आने की चेतावनी दे दी थी. उस समय मौसम विभाग की चेतावनी हर रोज अखबारों, इंटरनेट साइट और मीडिया का हिस्सा बनती थी. चक्रवात से होने वाली तबाही से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन विभाग ने कमर कस ली थी.
उस चक्रवात से माल-असबाब को कुछ नुकसान जरूर पहुंचा. लेकिन सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, सिर्फ दो लोगों की जान गई. निश्चित रूप से ये संख्या 2004 की सुनामी में मारे गए 10000 से ज्यादा लोगों की तुलना में कुछ भी नहीं.
दरअसल, 2004 की सुनामी मौसम विभाग के लिए एक सबक थी. इसके बाद मौसम विभाग ने किसी भी प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए विस्तृत योजना बनाई. मौसम विभाग के फैसलों को अंजाम तक पहुंचाने के लिए इसरो ने एक के बाद एक, कई सैटेलाइट अंतरिक्ष में छोड़े. मौसम की सटीक भविष्यवाणी के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों में कई जगहों पर स्टेशन बनाए गए.
'विज्ञान ने अपनी जिम्मेदारी काफी हद तक पूरी कर दी है'
आज की तारीख में सैटेलाइट से मिलने वाले और जमीनी केन्द्रों के मिले आंकड़ों की मदद से न सिर्फ अपने देश, बल्कि आसपास के देशों और खासकर दक्षिण-पूर्व एशिया को भी मौसम से जुड़ी जानकारियां दी जाती हैं. ओडिशा और आन्ध्र प्रदेश के तटीय इलाकों में चक्रवात की सटीक भविष्यवाणी इन्हीं आंकड़ों के विश्लेषण का नतीजा था. इससे पहले भी कई बार मौसम विभाग सही भविष्यवाणी करने में कामयाब रहा है. कह सकते हैं कि विज्ञान ने अपनी जिम्मेदारी काफी हद तक पूरी कर दी है. आज की तारीख में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग को अमेरिका के बाद दुनिया का दूसरा सबसे सटीक जानकारी देने वाला महकमा माना जाता है.
यानी विज्ञान ने खाना परोस दिया है. अब हाथ से कौर बनाकर खाना खाने की जरूरत है.
DM क्यों न लें मौसम विभाग से मदद?
मौसम की वजह से फैसले लेने के लिए प्रशासन को यही काम करना है. ज्यादा कुछ नहीं, आदेश देने से पहले इंटरनेट पर www.imd.gov.in से जानकारी हासिल कर लेनी है. और अगर वेबसाइट में दी हुई जानकारी समझ में न आए, तो मौसम विभाग को फोन घुमाने की जहमत उठानी है. मौखिक रूप से जानकारी प्राप्त करनी है.
ये काम कोई रॉकेट साइंस नहीं. इस काम के लिए किसी विशेषज्ञता की जरूरत नहीं. जरूरत है तो सिर्फ इच्छाशक्ति की.
‘मैं जिले का मालिक हूं’- जनता पर ये रौब झाड़ने और अपनी ताकत का अहसास कराने का इरादा त्याग दिया जाए. समय रहते मौसम पर आधारित आदेश जारी किये जाएं, यानी अपने कामों में थोड़ी नरमी शामिल की जाए, तो यकीन मानिए विनयशील जैसे दोस्तों के घर बिना वजह हंगामे के शिकार नहीं होंगे. छुट्टियां मनाने वाले कई परिवार अपनी छुट्टियों की सटीक योजनाएं बना सकेंगे. बच्चों के चेहरों की मुस्कान अपने-आप खिल उठेगी और सालों तक वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम को कुछ और सम्मान मिल सकेगा.
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