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Droupadi Murmu:राष्ट्रपति चुनाव में JMM गठबंधन धर्म निभाएगा या आदिवासी धर्म?

President Election: Hemant Soren के धर्मसंकट पर झारखंड के BJP, JMM, कांग्रेस नेताओं ने क्या कहा?

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बीते मंगलवार की दोपहर विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति (President) पद के लिए यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) के नाम का एलान किया गया. शाम होते होते एनडीए ने इस पद के लिए द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) के नाम की घोषणा कर दी. यशवंत सिन्हा झारखंड (Jharkhand) के हजारीबाग निवासी और वाजपेयी सरकार में वित्त और विदेश मंत्री रह चुके हैं. वहीं द्रौपदी मुर्मू साल 2015 से 2021 तक झारखंड की राज्यपाल रह चुकी हैं.

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इस घोषणा से ठीक एक दिन पहले यानी बीते 20 जून को द्रौपदी मुर्मू ने अपना 64वां जन्मदिन मनाया है. द्रौपदी मुर्मू का एक सशक्त परिचय यह भी है कि वह संताल आदिवासी हैं. वहीं झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन भी संताल आदिवासी हैं. एनडीए के पास मौजूद संख्याबल के लिहाज से द्रौपदी मुर्मू को भले ही हेमंत सोरेन के समर्थन और वोट की जरूरत न हो, लेकिन ये सवाल उठता है कि क्या हेमंत गठबंधन धर्म निभाएंगे या फिर आदिवासी होने के नाते एक आदिवासी प्रत्याशी को अपना समर्थन देंगे.

हेमंत सोरेन क्या बोले?

बुधवार 22 जून को रांची में मीडिया को दिए बयान में सीएम हेमंत सोरेन ने कहा कि, अभी सिर्फ प्रत्याशी की घोषणा हुई है. चुनाव में किसे समर्थन देना है इसपर पार्टी निर्णय लेगी.

वहीं राजमहल लोकसभा क्षेत्र से झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के सांसद विजय हांसदा क्विंट से कहते हैं, ‘’एक आदिवासी होने के नाते व्यक्तिगत तौर पर मुझे बीजेपी का निर्णय अच्छा लगा. आदिवासी समाज भी इस निर्णय से खुश होगा.’’

‘’जहां तक बात हमारी पार्टी की है, तो विपक्ष की ओर से बुलाई गई बैठक में जिन बातों पर चर्चा हुई, उससे मैंने गुरूजी (शीबू सोरेन) और हेमंत सोरेन को अवगत करा दिया है. जल्द ही केंद्रीय कमेटी की बैठक बुलाई जानी है, जहां तय होगा कि किसे समर्थन देना है.’’

बता दें कि राष्ट्रपति पद पर विपक्ष की ओर से प्रत्याशी तय करने के लिए पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने बैठक बुलाई थी. उसमें हेमंत सोरेन के प्रतिनिधि की तौर पर विजय हांसदा ही शामिल हुए थे.

झारखंड में बीजेपी विधायक दल के नेता और पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी कहते हैं, ‘’हेमंत सोरेन को बिना देर किए समर्थन कर देना चाहिए. पहली बार कोई आदिवासी इस पद पर पहुंच रही हैं. एक तो वो संताली हैं, यहां की राज्यपाल रही हैं, हमारे पड़ोसी राज्य की हैं, महिला हैं. आजाद भारत में पहली बार ऐसा हो रहा है. हमने तो पूरे यूपीए से इसका समर्थन करने की अपील की है.’’

झारखंड के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने कहा कि, ‘’यशवंत सिन्हा विपक्ष के साझा प्रत्याशी हैं. ऐसे में हमारा काम है उनकी जीत सुनिश्ति करना. जहां तक बात द्रौपदी मुर्मू और जेएमएम को उनका समर्थन को लेकर है, तो हम ये मानते हैं कि यह विचारधारा की लड़ाई है. इसमें देखना होगा कि कौन किसके तरफ खड़ा है. किसको वोट करना है, यह जेएमएम का इंटरनल मैटर है. वैसे भी 24 जून को यशवंत सिन्हा रांची आ रहे हैं. फिर तय हो जाएगा कि जेएमएम किसको समर्थन करेगी.’’

हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री पद की शपथ साल 2019 में द्रौपदी मुर्मू ने ही दिलाई थी. याद रहे, 12 जुलाई 2021 को जब द्रौपदी मुर्मू झारखंड से विदा हो रहीं थी, उनका कार्यकाल खत्म हो चुका था, हेमंत सोरेन, पत्नी कल्पना सोरेन सहित लगभग पूरी कैबिनेट उन्हें विदा करने एयरपोर्ट पहुंचे थे. यहां बीजेपी के नेता नदारद थे. फिर भी सवाल है कि जेएमएम खुलकर समर्थन करेगी?

झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र सोरेन कहते हैं, ‘’जेएमएम की पूरी राजनीति ही संताल समुदाय पर टिकी हुई है. अगर इस वक्त उन्होंने द्रौपदी मुर्मू का समर्थन नहीं किया तो यह संदेश साफ जाएगा कि एक संताली को मौका मिला और उन्होंने साथ नहीं दिया. ऐसे में जेएमएम के लिए असमंजस की स्थिति बनी हुई है.’’

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देशभर के आदिवासी नेताओं ने जताया समर्थन

मेघालय के सीएम कोनार्ड संगमा ने अपने पार्टी नेशनल पिपुल्स पार्टी की ओर से द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने की घोषणा कर दी है.

कोनार्ड राष्ट्रपति पद के लिए पहले आदिवासी प्रत्याशी रहे पीएम संगमा के बेटे भी हैं.
वहीं अरुणाचल प्रदेश के पूर्व सीएम मुकुट मिथी ने क्विंट को बताया, ‘’देश अगर एक ट्राइबल को मौका दे रहा है, तो ये अच्छी बात है. लेकिन मेरा ये भी मानना है कि सबसे बड़े पद पर केवल योग्यता के लिहाज से चयन होना चाहिए. बतौर आदिवासी मेरे लिए यह खुशी की बात है कि एक आदिवासी को इस पद पर पहुंच कर देश की सेवा करने का मौका दिया जा रहा है.’’

छत्तीसगढ़ के निवासी और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम कहते हैं, ‘’बीजेपी के इस फैसले को मैं किसी राजनीतिक चश्मे से नहीं देख रहा हूं. देश के सर्वोच्च पद पर जाना हमारा अधिकार नहीं है, लेकिन हमें अवसर मिलना चाहिए. बीजेपी ने अवसर दिया, इस फैसले का हम स्वागत करते हैं. इससे एक मैसेज जाएगा. द्रौपदी मुर्मू इस पद को डिजर्व भी करती हैं.’’
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साल 2012 में हुए राष्ट्रपति चुनाव का जिक्र करते हुए नेताम ने बताया कि, ‘’उस वक्त मैं कांग्रेस में था. लेकिन विपक्ष एनडीए की ओर से पीए संगमा को उम्मीदवार बनाया गया. एक आदिवासी होने के नाते मैंने व्हीप के खिलाफ जाकर संगमा के लिए न केवल कैंपेन किया, बल्कि वोट भी दिया. जिसके बाद कांग्रेस पार्टी ने मुझे निकाल दिया.’’

वहीं गुजरात के भारतीय ट्राइबल पार्टी के अध्यक्ष और विधायक छोटूभाई वासवा का मत कुछ अलग है. वो कहते हैं, ‘’झारखंड में उनके रहते ही बड़ी संख्या में आदिवासियों पर देशद्रोह का मुकदमा किया गया. हालांकि बाद में उन्होंने जरूर सीएनटी-एसपीटी संसोधन बिल वापस कर दिया. मैं उम्मीद करता हूं देशभर में चल रहे आदिवासियों के खिलाफ फर्जी मुठभेड़, उन्हें जेल में बंद करने की घटनाओं पर द्रौपदी मुर्मू का दखल होगा.’’

वहीं उनके बेटे दिलीप छोटूबाई वासवा ने कहा कि संताल एक मजबूत आदिवासी समुदाय हैं, उम्मीद है द्रौपदी मुर्मू के आने से आदिवासी परंपराओं को देशभर में अलग पहचान मिलेगी.

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आखिर बीजेपी ने एक आदिवासी को राष्ट्रपति का उम्मीदवार क्यों बनाया?

बीते 5 जून को रांची में बीजेपी ने बिरसा मुंडा विश्वास रैली का आयोजन किया. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि देशभर के 29 राज्यों में ऐसी रैली आयोजित की जाएगी.

बीजेपी का आदिवासियों के प्रति रवैये को बताते हुए उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी के शासन काल में 8 केंद्रीय मंत्री, 36 लोकसभा सांसद, 8 राज्यसभा सांसद, 190 एमएलए, एक गवर्नर, एक डिप्टी सीएम आदिवासी हैं.

इसके अलावा उन्होंने बताया कि 1.30 करोड़ आदिवासियों के घर नल जल योजना, 1.50 करोड़ आदिवासियों के शौचालय, 50 लाख आदिवासियों को आयुष्मान कार्ड, 29 लाख को पीएम आवास, 3.12 करोड़ आदिवासियों को किसान क्रेडिट कार्ड का लाभ दिया जा चुका है. इसके अलावा 36,428 आदिवासी बहुल गांवों को आदर्श ग्राम बनाने की योजना शुरू की गई है.

जाहिर है बीजेपी ने दूसरी बार राष्ट्रपति पद पर आदिवासी को उतारा है. अगर सबकुछ सही रहा और कोई बड़ा उलटफेर नहीं हुआ तो देश को पहला आदिवासी राष्ट्रपति भी बीजेपी और एनडीए के खाते में जाना तय है.

इसका असर आनेवाले समय में गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनाव होने हैं, जहां आदिवासी मतदाता बड़ी संख्या में हैं. संभावना ये जताई जा सकती है कि पार्टी के इस फैसले का असर उन राज्यों में देखने को मिल सकता है. 2024 भी दूर नहीं है.

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