ADVERTISEMENTREMOVE AD

विपक्ष जैसे वोट मांगने के बजाय,कांग्रेस के घोषणापत्र से सबक ले BJP

कांग्रेस का घोषणा पत्र असली मुद्दों की वापसी और बीजेपी के पास मौका

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

लोकसभा चुनावों के लिए अपना घोषणापत्र जारी करके कांग्रेस ने एक बेहद जरूरी काम तो कर ही दिया. “हम निभाएंगे” का ऐतिहासिक महत्व कुछ जरूरी चीजें याद दिलाने में है. यह याद दिहानी केवल सत्ताधारी दल के लिए ही नहीं, बल्कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रेस के नब्बे फीसदी के लिए भी है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

याद दिहानी इस बात की कि इस देश में हजारों करोड़ के घोटालेबाजों को विदेश से वापस लाना तक टेढ़ी खीर है, और चंद हजार रुपये वापस न कर पाने वाले किसान को पुलिस घसीटते हुए थाने ले जा सकती है. याददिहानी इस बात की कि पकौड़े तलना किसी का शौक और बेचना किसी की मजबूरी हो सकता है, लेकिन नौजवान जिन सपनों को लेकर पढ़ाई करता है, उन सपनों को पकौड़ों की कढ़ाई में तलना ह्रदयहीनता और अहमकपन है.

“हम निभाएंगे”, इस कथन के कई स्तर हैं. आप किसके साथ रिश्ता निभाते हैं, किसे केवल इस्तेमाल की चीज मानते हैं, इससे तय होता है कि आप किस तरह के इंसान हैं. फिर किसान बजट की बात करता, हर परिवार के लिए बारह हजार मासिक की आय सुनिश्चित करने का वादा करता यह घोषणापत्र जताता है कि अपने नये अवतार में कांग्रेस देश की बुनियादी समस्याओं के प्रति सचेत है.
कांग्रेस का घोषणा पत्र असली मुद्दों की वापसी और बीजेपी के पास मौका
सोवियत संघ के विघटन के बाद, 1992 में फ्रांसिस फुकुयामा नामक विद्वान की लिखी पुस्तक ‘एंड ऑफ हिस्ट्री…’ बहुत चर्चित हुई थी.
फोटो:Twitter 

कल्याणकारी अर्थव्यवस्था के प्रति कांग्रेस की प्रतिबद्धता का अर्थ विश्वव्यापी घटनाओं के संदर्भ में और भी गहरा है. जो लोग बारह हजार मासिक की आय सबके लिए सुनिश्चित करने के वादे को असंभव या चिंताजनक मानते हैं, जिन्हें इसमें पुराने पड़ गये समाजवाद की वापसी नजर आती है, उन्हें कुछ चीजें जाननी चाहिए.

सोवियत संघ के विघटन के बाद, 1992 में फ्रांसिस फुकुयामा नामक विद्वान की लिखी पुस्तक ‘एंड ऑफ हिस्ट्री…’ बहुत चर्चित हुई थी. पुस्तक की केन्द्रीय थीसिस यह थी कि लिबरल पूंजीवाद और उस पर आधारित लोकतंत्र ही इतिहास की आखिरी मंजिल है, समाजवाद वगैरह फालतू की बातें हैं.

लेकिन पिछले लगभग तीन दशकों में जो कुछ हुआ है, आवारा पूंजी और अंधे विकास के जो खतरे सामने आए हैं, उन्होंने फुकुयामा को विवश किया है, यह कहने के लिए कि—तानाशाही के अर्थ में नहीं, लेकिन गरीबी दूर करने, रोजगार सुनिश्चित करने, शिक्षा और स्वास्थ्य को राज्यसत्ता की जिम्मेदारी मानने और इस सब को “टैक्सपेयर्स मनी” पर बोझ नहीं ( जैसा अपने टीवी चैनलों पर ज्ञानी और सोशल मीडिया पर अज्ञानी जन चिल्लाते रहते हैं) बल्कि सामाजिक संतुलन की बुनियादी शर्त मानने के अर्थ में “समाजवाद की वापसी” जरूरी है.

याराना पूंजी को वैसी छूट देने से, जैसी कि भारत सरकार पिछले पांच सालों से देती आ रही है, नुकसान सारे राष्ट्र का है, केवल सरकार-विरोधियों का नहींं. इस लिहाज से कांग्रेस के मेनिफेस्टो की एक बात बहुत ही महत्वपूर्ण है, जिस पर उचित ध्यान नहीं दिया जा रहा है. मेनिफेस्टो संचार माध्यमों में मोनोपॉली पर रोक लगाने की बात करता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
कांग्रेस का घोषणा पत्र असली मुद्दों की वापसी और बीजेपी के पास मौका
लगभग पचास फीसदी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और मोबाइल नेटवर्क का एक बहुत बड़ा हिस्सा एक ही औद्योगिक घराने के कब्जे में है
फोटो:Twitter 
याद करें इस वक्त लगभग पचास फीसदी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और मोबाइल नेटवर्क का एक बहुत बड़ा हिस्सा एक ही औद्योगिक घराने के कब्जे में है, बल्कि एक ही व्यक्ति के. कल्पना कीजिए कल को अगर यह व्यक्ति चाहे तो देश की आधी आबादी को सूचना और संचार से वंचित कर सकता है. लोगों के मन को मनमाफिक मोड़ने की ताकत तो उसे हासिल है ही. एकाधिकार सरकार का ही नहीं, व्यापारी घरानों का भी चिंताजनक होता है. उसका नियमन जरूरी है.  

बात सरकारी समाजवाद की नहीं, कल्याणकारी राज्य की है. ध्यान देने की बात है कि ‘गरीबी पर वार, 72 हजार’ की योजना को टॉमस पिकेटी, अमर्त्य सेन और रघुराम राजन जैसे जानकारों का समर्थन प्राप्त है. मामला नोटबंदी के तुगलकी फरमान जैसा नहीं है, जहां इन जैसों के सामने प्रधानमंत्रीजी ने अक्षयकुमार, अनुपम खेर ही नहीं पहलवान खली जैसे उच्चकोटि के ज्ञानियों को अड़ा दिया था; और न ही पंद्रह लाख हरएक के खाते में जैसा, जिसे बाद में स्वयं शाहजी ने ‘जुमला’ बता कर उड़ा दिया था.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
अपने आप को ही राष्ट्र समझने वाले, ड्राइंग रूम में बैठकर पंडित बनाम मौलाना की भिड़ंत को डिबेट और “ हिन्दू अब इस देश में यह भी नहीं कर सकता…” को वक्तव्य समझने वालों में इतनी अक्ल आनी चाहिए कि ‘मनरेगा’ और ‘न्याय’ जैसी योजनाएं सामाजिक संवेदनशीलता का ही नहीं, तार्किक अर्थशास्त्र का भी प्रमाण देती हैं.

गरीब के पास पैसा पहुंचेगा तो वह उसे जमीन में गाड़ कर नहीं रखेगा, बल्कि खर्च करेगा, उसकी परचेजिंग पावर बढ़ेगी तो केवल उसके स्वाभिमान में ही नहीं, मार्केट बायव्रेंसी में भी बढ़ोत्तरी होगी. किसान बजट की बात बहुत पहले होनी चाहिए थी, ताकि किसानों की समस्याओं पर ध्यान दिया जा सके. खैर, देर आयद दुरुस्त आयद.

यह भी पढ़ें: कांग्रेस मेनिफेस्टो की ये 10 बातें साबित हो सकती हैं गेमचेंजर

कांग्रेस का घोषणा पत्र असली मुद्दों की वापसी और बीजेपी के पास मौका
किसान बजट की बात बहुत पहले होनी चाहिए थी, ताकि किसानों की समस्याओं पर केन्द्रित घ्यान दिया जा सके
फोटो:Twitter 

घोषणा पत्र ने नैरेटिव बदलने की शुरुआत कर दी है. एक तरह से, यह बीजेपी के लिए गोल्डन अपॉरच्युनिटी भी है कि वह रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे बुनियादी मुद्दों पर अपनी वैकल्किप सोच पेश करे. ‘पकौड़ानामिक्स’ के मोह से मुक्त होकर अपना इकनॉमिक्स पेश करे. ऐसा न कर पाने पर क्या होगा, इसका उदाहरण दो-तीन दिन पहले एक चैनल के फैक्टचेक कार्यक्रम में देखने को मिला.

सरकारी क्षेत्र में बाइस लाख रिक्तियां होने के राहुल गांधी के दावे को शाहनवाज खान टिपिकल बीजेपियाई अंदाज में खारिज करते दिखे, थोड़ी देर में चैनल में आंकड़े दिखाने शुरू किए तो मालूम पड़ा कि असल में तो रिक्तियां बाइस लाख अस्सी हजार हैं. भगवान जाने, कार्यक्रम का यह हिस्सा शाहनवाजजी ने देखा या नहीं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
कांग्रेस का घोषणा पत्र असली मुद्दों की वापसी और बीजेपी के पास मौका
बीजेपी को कांग्रेस घोषणापत्र ने फिर से मौका दिया है, असली मुद्दों पर ठोस बात करने का लेकिन इस हल्के में बीजेपी अपने जनसंघ दिनों से कमजोर रही है, इन दिनों का तो कहना ही क्या है
फोटो:Twitter 

बीजेपी को कांग्रेस घोषणापत्र ने फिर से मौका दिया है, असली मुद्दों पर ठोस बात करने का लेकिन इस मामले में बीजेपी अपने जनसंघ के दिनों से कमजोर रही है, इन दिनों का तो कहना ही क्या है. अरुण जेटली केवल सेडिशन संबंधी क्लॉज के बारे में गरजने की नाकाम कोशिश करते नजर आए. सच यह है कि इस मामले में मिसाल लागू होती है- देर आयद दुरुस्त आयद.

पहली बात तो यह कि देशद्रोह जुदा चीज है, राजद्रोह जुदा. गांधीजी से लेकर भगतसिंह तक पर इसी कानून के तहत मुकदमे चलाने वाले ब्रिटिश राज के अनुसार ये लोग राजद्रोही थे, और भारतीय जनमानस के लिए इनका राजद्रोही होना इनकी देशभक्ति का प्रमाण था. आज भी यह गलतफहमी किसी को नहीं होनी चाहिए कि मोदीजी या बीजेपी का विरोध करना एंटी-नेशनल होना है.

कांग्रेस का घोषणा पत्र असली मुद्दों की वापसी और बीजेपी के पास मौका
गिरिराज सिंह
फोटो:Twitter 

जिन्हें ऐसी गलतफहमी होती रहती है उन्हें गिरिराज सिंह के मजेदार मामले से सबक लेना चाहिए. महाशय ट्वीट कर रहे थे कि जो भी मोदीजी की रैली में नहीं जाएगा वह देशद्रोही है…और खुदई ना पहुंच पाए बेचारे… दूसरी बात यह कि सशस्र विद्रोह जैसे अपराधों के लिए अब पर्याप्त कानून मौजूद हैं, ऐसे कानून की कोई जरूरत नहीं, जिसके तहत सरकार की क्या, व्यक्तिविशेष तक की जरा सी आलोचना करने के कारण आपको जेल में सड़ाया जा सके.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

लगता यही है कि बीजेपी पांच साल सरकार चलाने के बाद भी विपक्ष के लहजे में ही वोट मांगती रहेगी क्योंकि सरकार की उपलब्धि के नाम पर इवेंट मैनेजमेंट ही ज्यादा है. कांग्रेस के मेनिफेस्टो से नैरिटेव बदलने का डर बीजेपी को सता रहा है, यह इसके नेताओं की बौखलाहट से जाहिर है. फिर से कहें, यह बीजेपी के लिए भी अवसर है, मुद्दों पर बात करने का. लेकिन उनसे गाड़ी पटरी पर लाने की क्या उम्मीद, जिन्होंने उतारी है?

यह भी पढ़ें: चुनाव के चक्कर में भाई-भाई ना रहा, तेजप्रताप से ठाकरे तक की कहानी

(लेखक पुरुषोत्तम अग्रवाल क्विंट हिंदी के कंट्रीब्‍यूटिंग एडिटर हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×