मुझे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो बातें बहुत पसंद हैं. वह निडरता के साथ अपनी योजनाओं का प्रचार करते हैं. उसमें पूरी ताकत झोंक देते हैं. वह लोगों का ध्यान खींचने के लिए इन योजनाओं को स्मार्ट एक्रोनिम भी देते हैं.
योजना सफल हुई, तो उनके परफॉर्मेंस का कहना ही क्या. वर्ल्ड बैंक के EODB (ईज ऑफ डूइंग बिजनेस) इंडेक्स में जब भारत की रैंकिंग 100 से 77 पहुंची, तो उन्होंने इसी अंदाज में जश्न मनाया. मोदी खिले हुए थे. वह ‘भारत को टॉप 50 रैंकिंग’ दिलाने के लक्ष्य के काफी करीब थे, इसलिए आप उनकी खुशी से जल नहीं सकते. उन्होंने कहा, ‘'अब हम देश को 5 लाख करोड़ डॉलर के क्लब में जल्द से जल्द ले जाने की कोशिश करेंगे.’'
बेशक, आपको यह नहीं बताया गया कि जीडीपी (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट) 5 लाख करोड़ डॉलर हो जाए, तब भी देश की प्रति व्यक्ति आय 4,000 डॉलर से कम होगी. यह 10 हजार डॉलर से काफी कम है, जिसे इस मामले में असल मील का पत्थर माना जाता है. प्रति व्यक्ति आय अगर इतनी, तो अपनी पीठ थपथपाई जा सकती है.
EODB पर आंखें खोलने वाला सच
कई और सच नहीं बताए गए. हममें से ज्यादातर लोग समझते हैं कि EODB इंडेक्स इकनॉमिक परफॉर्मेंस का गोल्ड स्टैंडर्ड है, लेकिन यह नादानी है. सच पूछिए तो यह बहुत संकीर्ण और गुमराह करने वाला इंडेक्स है. इस इंडेक्स को जिन इकनॉमिक रूल के हिसाब से तैयार किया जाता है, उनका देश के ज्यादातर लोगों के लिए कोई मतलब नहीं है.
यहां हम इसके बारे में कुछ आंखें खोलने वाले (हो सकता है कि आपकी आंख फटी की फटी रह जाएं) तथ्य दे रहे हैं:
- मुंबई और दिल्ली में बैठे कुछ दर्जन एक्सपर्ट की राय से EODB तय होती है. यह ऑब्जेक्टिव रैंकिंग नहीं है. इसे देश भर से जुटाए गए ठोस आंकड़ों के आधार पर तैयार नहीं किया जाता और इसके नतीजे देश की 5 पर्सेंट आबादी के लिए भी मायने नहीं रखते.
- देश की बिजनेस रैंकिंग में सिर्फ चार रूल की वजह से सुधार हुआ है, जिन्हें वित्तमंत्री ने 26 दिसंबर 2017 को हुई एक मीटिंग में तेजी से बदला था (इसकी ‘कोटा कोचिंग क्लास’ अप्रोच या ‘सिस्टम की कमियों का फायदा उठाने’ वाला बताकर आलोचना भी हुई थी. इनसे कोई बुनियादी बदलाव नहीं हुआ). हम नीचे ये रूल दे रहे हैं, जिन्हें पिछले साल दिसंबर की मीटिंग में झटपट बदला गया था:
- दिल्ली और मुंबई में बिल्डिंग परमिट की मंजूरी के लिए सिंगल विंडो क्लियरेंस सिस्टम लागू हुआ
- एक्सपोर्टर्स को कंटेनरों को इलेक्ट्रॉनिक तरीके से सील करने की इजाजत दी गई, फिजिकल इंस्पेक्शन को 5 पर्सेंट शिपमेंट तक सीमित किया गया
- कंपनी खोलने के लिए सिंगल फॉर्म को लागू किया गया, और
- बिजली कनेक्शन लेने की लागत घटाई गई
मैं फिर से यह बात कहना चाहता हूं. क्या मुंबई और दिल्ली में सिर्फ इन नियमों को बदलने से देश की इकनॉमी में बड़ा बदलाव आ जाएगा? EODB इंडेक्स में तीन अहम पैमानों- टैक्स पेमेंट, इनसॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन और कॉन्ट्रैक्ट पर अमल- पर हमारी रैंकिंग गिरी है. खैर, जब सच की परवाह ही न हो, तो ऐसी बातों का जिक्र क्यों किया जाए.
EODB में आंखें खोलने वाले कई फैक्ट को ‘भाव’ नहीं दिया जाता
इनसे भी बड़ी बात यह है कि EODB इंडेक्स में किन पैमानों को शामिल नहीं किया जाता (आप यह जानकर दंग रह जाएंगे कि इसका दायरा कितना संकीर्ण है) :
- 10 साल से कम समय में इनवेस्टमेंट रेट 37 पर्सेंट से घटकर 27 पर्सेंट हो गया
- जीएसटी कलेक्शन में इस वित्त वर्ष में करीब एक लाख करोड़ रुपये की कमी
- विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने इस साल करीब एक लाख करोड़ रुपये निकाले हैं
- 2019 में बेरोजगारों की संख्या बढ़कर 1.89 करोड़ हुई (आईएलओ यानी इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक)
- मोदी सरकार के चार साल के कार्यकाल में एक्सपोर्ट की सुस्त रफ्तार, यह 2013-14 के रिकॉर्ड 313 अरब डॉलर के आंकड़े को एक बार भी नहीं छू पाया
- बैंकों की बैलेंस शीट पर 130 अरब डॉलर यानी करीब 9 लाख करोड़ रुपये की नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स का बोझ
- टैक्स विवादों को लेकर ग्लोबल आर्बिट्रेशन कोर्ट ने जो फैसले दिए हैं, सरकार उन्हें लागू नहीं कर रही है
गुजरात का इकनॉमिक चैंबर भी तकलीफ में
प्रधानमंत्री मोदी का पुराना इकनॉमिक चैंबर, गुजरात चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (जीसीसीआई) ने EODB पर उन्मादी जश्न से सिर्फ दो दिन पहले (16 नवंबर 2018) गंभीर चेतावनी दी थी. हालांकि अपने उसी बेमिसाल अंदाज में मोदी जीसीसीआई की तबाही की भविष्यवाणी पर खामोश रहे. जीसीसीआई ने जो कहा था, मैं उसे जस का तस यहां दे रहा हूं:
- जीएसटी और दूसरे राज्यों से आए मजदूरों पर हमले से गुजरात के टेक्सटाइल प्रॉडक्शन में इस साल 20-25 पर्सेंट की गिरावट आएगी
- सूरत का सिंथेटिक क्लॉथ प्रॉडक्शन 4 करोड़ से घटकर 2.5 करोड़ मीटर रह गया है
- इस साल जेम्स एंड जूलरी एक्सपोर्ट्स में 4.3 पर्सेंट की गिरावट आई है. इनपुट क्रेडिट रिफंड में देरी से सूरत और सौराष्ट्र में 50 हजार यूनिट बंद हो सकती हैं, जिनमें 2 लाख लोग काम करते हैं
- गुजरात के बड़े शहरों में प्लास्टिक पर पाबंदी की वजह से 2 हजार एसएमई बंद होने की कगार पर हैं
- दिसंबर 2017 में राज्य के 5.38 लाख युवाओं ने अन-एंप्लॉयमेंट रजिस्ट्रेशन कराया था. पिछले दो साल में इनमें से सिर्फ 12,689 को नौकरी मिली है. अहमदाबाद एंप्लॉमेंट एक्सचेंज पर सबसे अधिक 62,608 युवाओं ने रोजगार के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है
- यह पिछले चार साल में सबसे बड़ा स्लोडाउन यानी सुस्ती है
ये सब भूल जाओ, एक और ‘ग्रैंड चैलेंज’ लो
गुजरात की वॉर्निंग EODB के शोर-शराबे में दफन हो गई. इस बीच, मोदी ने एक और बड़ी थीम उछाली. उन्होंने भारत के टेक्नोलॉजी प्रोफेशनल्स को ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, बिग डेटा एनालिटिक्स और ब्लॉक चेक टेक्नोलॉजी और प्रोसेस की रफ्तार बढ़ाने’ स्मार्ट आइडिया पेश करने का ‘ग्रैंड चैलेंज’ दिया, ताकि बिजनेस रैंकिंग इंडेक्स में भारत छलांग लगाकर टॉप 50 में आ जाए. अपनी नई ‘ब्रेन वेव’ का जिक्र करते हुए उन्होंने सारे फैंसी टेक्नोलॉजी टर्म्स का इस्तेमाल किया.
मोदी की यह अपील देश के डरे हुए और लाचार उद्यमी शायद ही सुनें, जिनके पीछे टैक्स अथॉरिटी लगी हुई है. सिर्फ पिछले एक महीने में दो हजार भारतीय स्टार्टअप को कंपनी मामलों के मंत्रालय से नोटिस मिला है. इसमें उनसे इक्विटी फंड जुटाने के लिए ‘प्रीमियम को सही ठहराने’ को कहा गया है. नोटिस में कहा गया है कि जिस कीमत पर उन्होंने शेयर बेचे थे, अगर वे उसे सही साबित नहीं कर पाते हैं, तो जुर्माना भरने और टैक्स चुकाने को तैयार रहें. यह पुराने जख्म पर ताजा नमक छिड़ककर उसे हरा करने का मामला है. यह एक ‘अपराध’ के लिए दूसरी सजा है.
एक और डराने वाला ‘एंजेल टैक्स’
दो साल पहले इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने इसी तरह के नोटिस भेजे थे. उनमें टैक्स की मांग की गई थी और ‘एंजेल टैक्स’ के तहत उनके खिलाफ कार्यवाही शुरू हुई थी. यह अजीब किस्म का टैक्स था. इसमें स्टार्टअप की वैल्यू तय करने का अधिकार वैसे इंस्पेक्टर्स को दिया गया था, जिन्हें इस बारे में कुछ पता नहीं होता. जरा सोचिए, प्राइवेट इक्विटी से लेकर वेंचर कैपिटल फंड के सबसे सफल पेशेवर भी 10 में से एक बार ही सही वैल्यूएशन तय कर पाते हैं. उसकी वजह यह है कि वैल्यूएशन भी खूबसूरती की तरह देखने वालों की आंखों में बसती है!
मिसाल के लिए, अगर पांच निवेशकों ने 2012 में फ्लिपकार्ट की वैल्यू 1 अरब डॉलर, 2 अरब डॉलर, 3 अरब डॉलर, 10 अरब डॉलर या 15 अरब डॉलर लगाई होती, तो उनमें से कौन सही या कौन गलत होता? साफ है कि हर शख्स का वैल्यूएशन उसके:
- तुलनात्मक जोखिम उठाने की क्षमता
- रिटर्न बेंचमार्क
- निवेश की अवधि
- ई-कॉमर्स बिजनेस की समझ
- भारतीय इकनॉमी पर उसके बुलिश होने
- और न जाने क्या-क्या पर निर्भर करता!
देखें वीडियो : ‘डिजिटल डकैती’ के चलते बेदखल होने का इंतजार न करें नए उद्यमी
हर शख्स ने इन इंडिविजुअल फैक्टर को अलग-अलग वेटेज दिया होता और उनमें से हरेक का कंपनी के लिए वैल्यूएशन अलग-अलग हो सकता था. और शायद सबका अंदाजा सही होता, क्योंकि फ्लिपकार्ट आखिरकार 2018 में 20 अरब डॉलर की कीमत पर बिकी.
इसलिए अगर मनमाने ढंग से कोई अधिकारी फ्लिपकार्ट की वैल्यू 0.5 अरब डॉलर तय करता है तो वह ऊपर जिन निवेशकों का जिक्र किया गया है, उन पर क्रमशः 20 करोड़ डॉलर, 60 करोड़ डॉलर, 1 अरब डॉलर, 3.8 अरब डॉलर और 5.8 अरब डॉलर का टैक्स थोप सकता है, वह भी तब जबकि उन्हें एक रुपये तक का कैश न मिला हो!
आपको क्या लगता है? क्या ऐसा टैक्स सिस्टम होने पर किसी भी काल्पनिक निवेशक ने फ्लिपकार्ट में पैसा लगाया होता, जहां उसके साथ अनिश्चित ‘मुनाफे’ पर टैक्स देने के लिए जोर-जबरदस्ती की जाए.
यह टैक्स एक मजाक है, ट्रेजडी है. इसे प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय स्टार्टअप पर थोपा है. यह स्टैंड-अप इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया, डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया और भगवान जाने और कितनी योजनाओं की भावनाओं के खिलाफ है.
एक और EODB का सच
भले ही प्रधानमंत्री मोदी को मुंबई और दिल्ली के इकनॉमिक चैंबरों से EODB पर ‘इंडिया शाइनिंग’ का गुलदस्ता मिला, लेकिन अगर उन्होंने अपने गुजराती भाइयों और देश की पहली पीढ़ी के संस्थापकों से बात की होती, तो उनका एक नए EODB से सामना हुआ होता:
Egregious Officers Destroying Business यानी EODB!
नाकाबिल अफसरों की बिजनेस बर्बाद करने की कहानी
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)