मेरे बॉस ने मेरी तारीफ की. तारीफ के पीछे की बात का अंदाजा लगाना मेरे लिए मुश्किल होगा. उसी तरह, जैसे बॉस की फटकार कितने बड़े खतरे की घंटी है, इसका भी अनुमान लगाना मेरे लिए आसान नहीं होगा. मैं किसको वोट कर सकता हूं, इसका सही अंदाजा किसी पार्टी को नहीं होगा. मैं अपने रिश्तों में वफादार हूं या नहीं, किसी और के लिए यह पता लगाना काफी मुश्किल है.
लेकिन एक भाई साहब हैं, जिनको मेरे बारे में ये सारी जानकारियां हैं. इसके अलावा भी बहुत कुछ— मेरे बहुत सारे सीक्रेट, बहुत सारी कमजोरियां और शायद कुछ खूबियां भी. भाई साहब जासूस नहीं हैं और न ही कोई डिटेक्टिव एजेंसी चलाते हैं. भाई साहब का नाम गूगल है.
हां, 20 साल पुरानी कंपनी गूगल, जिसने दुनिया बदल दी. 10 साल पहले इसके बारे में मशहूर अखबार गार्डियन में एक लेख छपा था. इसमें एक एक्सपर्ट को कोट करते हुए कहा गया कि 10 साल में गूगल ने दुनिया के लोगों के बारे में इतनी जानकारी इकट्ठा कर ली है, जितना सारी सरकारें मिलकर अब तक नहीं कर पाई हैं. उसमें लिखा गया कि गूगल के डेटा भंडार के सामने स्टासी और केजीबी जैसी खुफिया एजेंसी बौनी लगती हैं. स्टासी कम्युनिस्ट ईस्ट जर्मनी की खुफिया एजेंसी थी और केजीबी सोवियत संघ की. दोनों की जासूसी के कई कारनामे हैं.
गूगल ने बिना जासूसी किए बना लिया बड़ा डेटाबेस
20 साल के सफर में गूगल ने बिना जासूसी किए यूजर्स की जानकारियों का बड़ा डेटाबेस बना लिया. लेकिन गूगल को जासूसी से कोई लेना-देना नहीं है. इसके संस्थापक की तो एक ही मंशा थी कि कैसे इंटरनेट पर सर्च का अनुभव काफी सुखद हो. अमेरिका के स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से मिले ग्रांट से एक प्रोडक्ट बना. इसे बनाने वाले 25 साल के दो युवाओं लैरी पेज और सर्गेई ब्रिन को 1998 में एक कंपनी बनाने की धुन थी. गलती से नाम दे दिया गया गूगल.
कंपनी के रजिस्ट्रेशन और कुछ कंप्यूटर खरीदने के लिए पैसे की जरूरत थी, सो फंड जुटाए गए. पहले कुछ महीने मुश्किल भरे रहे. प्रोडक्ट बन गया, काफी पॉपुलर हो गया. लेकिन जिनको इससे फायदा मिल रहा था, यानी हम और आप, दुनियाभर के कंज्यूमर, उनके लिए तो सारी सुविधाएं मुफ्त. एक ऐसा प्रोडक्ट, जिसमें दुनिया बदलने की ताकत हो, वो सर्वाइव कैसे करे, लोगों तक पहुंचे कैसे, लगातार इनोवेशन से ये प्रोडक्ट और बेहतर कैसे बने. इन सारे सवालों के जवाब नहीं थे.
चूंकि इंटरनेट पर किसी सेवा के लिए फीस लेने का चलन नहीं था, तो बड़ा संकट यही था कि गूगल को जिंदा कैसे रखा जाए.
गूगल सर्च के अनुभव को बेहतर बनाने का जरिया था, इसीलिए यह जरूरी था कि सर्च करने वालों की रुचियों की जानकारी रखी जाए. किसी ने स्पेलिंग गलत लिख दी, किसी को खोजने का सही तरीका पता नहीं, तो किसी को सही की-वर्ड पता नहीं है. गूगल यूजर्स के बिहेवियर की जानकारी इकट्ठा करने लगा, ताकि सर्च के अनुभव को बेहतर बनाया जा सके.
कहा जाता है कि किस कंप्यूटर से मैंने गूगल के जरिए जानकारी ली, उसके आईपी एड्रेस का डेटा 18 महीने तक सुरक्षित रखा जाता है. किन वेबसाइटों पर बार-बार जाता हूं, किस तरह के कंटेंट में मेरी रुचि है, किस तरह का वीडिया देखना पसंद करता हूं- ये सारी जानकारी गूगल के पास है. यही जानकारी गूगल के लिए गोल्डमाइन है, जिसके लगातार दोहन से कमाई लगातार बढ़ती जा रही है.
विज्ञापन से कमाई में गूगल सबसे आगे
यूजर्स की जानकारी के दो फायदे हैं. इसके इस्तेमाल से प्रोडक्ट को लगातार बेहतर बनाया जाए और कंपनियों को ऐसा प्लेटफॉर्म मिले, जिसके जरिए वो सही प्रोडक्ट या सर्विसेज को सही कंज्यूमर ग्रुप तक पहुंचा पाएं. देखते-देखते गूगल एक स्टार्टअप से कुछ ही साल में ग्लोबल जाइंट बन गया. 2004 में जब इसके आईपीओ की बात हुई, तो अनुमान ये लगाया जाने लगा कि यह 20 अरब डॉलर की कंपनी बनने वाली है. फिलहाल यह 600 अरब डॉलर से ज्यादा मार्केट वैल्यू वाली कंपनी है, जल्द ही 1 ट्रिलियन डॉलर की कंपनी बनने की रेस में सबसे आगे है.
2000 में गूगल की विज्ञापन से कमाई कुछ मिलियन डॉलर की थी. 2018 में कंपनी की विज्ञापन से कमाई का अनुमान 172 अरब डॉलर का है. कुछ रिपोर्ट बताती हैं कि पूरी दुनिया में विज्ञापन से कमाई में जो बढ़ोतरी हो रही है, उसका 40 फीसदी से ज्यादा का हिस्सा अकेले गूगल के पास जा रहा है. इसकी बड़ी वजह है कि गूगल के यूजर्स बेस के आगे सारे खिलाड़ी बौने हैं. और सारी कंपनियों को विज्ञापन के लिए गूगल से जुड़ना ‘वैल्यू फॉर मनी’ दिखता है.
ज्यादा यूजर्स, ज्यादा कमाई और इसकी बदौलत ज्यादा ग्रोथ. इसीलिए ज्यादा लोगों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी. बिल्कुल अंडे और मुर्गी वाली कहानी. कंपनियों के लिए 'वैल्यू फॉर मनी' के लिए जुड़ना, यूजर्स का बेहतर प्रोडक्ट के साथ लगातार इंगेजमेंट बनाए रखना. और इसकी वजह से कंपनियों के पास लोगों से जुड़ी जानकारियों का ऐस डेटा बैंक, जिसमें मानवीय सभ्यता से जुड़े कई राज छिपे हैं.
गूगल के पास इतने लोगों के बारे में इतनी जानकारी का इकट्ठा होना किसी इविल डिजाइन से नहीं हुआ है. यह तो जेट की रफ्तार से भी ज्यादा तेजी से बढ़ती कंपनी को अपने आप मिलने वाला फायदा है. इसमें गलती कंपनी की नहीं. यह तो 'वर्ल्ड वाइड वेब' पर कंटेट परोसने के मॉडल में खामी की वजह से हुआ है.
कंटेट बनाना काफी खर्चे का काम
फिलहाल इंटरनेट पर उपलब्ध ज्यादा कंटेंट यूजर्स के लिए मुफ्त हैं. लेकिन हमें ध्यान रहे कि कंटेट बनाना काफी खर्चे का काम है. कंटेट बनाने पर लगातार खर्च होता रहे और आमदनी नदारद हो, तो कंटेंट बनना धीरे-धीरे कम हो जाएगा और फिर बंद हो जाएगा.
कंटेंट के लिए फीस देने के चलन के बाद यूजर्स की प्राइवेसी बचाने की मुहिम तेज हो सकती है
फर्ज कीजिए कि गूगल के पास उसके यूजर्स के बारे में कोई जानकारी नहीं होती. इस सूरत में गूगल के साथ कंपनियां विज्ञापन के लिए नहीं जुड़तीं और शायद गूगल ऐसी कंपनी कभी नहीं बन पाती, जो आज वो बन गई है. संभव है कि गूगल का सफर आगे भी नहीं बढ़ पाता.
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