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करों में कटौती शानदार फैसला,लेकिन सीधे लोगों को दिया जाना था फायदा

क्या सरकार के पास इस राहत पैकेज को देने का कोई बेहतर तरीका था?जानें कैसे सरकार इसे लागू कर बेहतर रिजल्ट पा सकती थी

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चलिए. आखिरकार! मोदी सरकार को सरकारी खर्च बढ़ाकर देश के जीडीपी में तेजी लाने की कोशिश के फिजूल होने का अहसास हो गया. पिछले 6 साल में सरकारी खर्च में चक्रवृद्धि दर (कंपाउंडेड एनुअल ग्रोथ रेट) में दहाई अंकों में बढ़ोतरी के बावजूद जीडीपी ग्रोथ खस्ताहाल बनी हुई थी. याद रखिए कि भारत सरकार सिर्फ हमारी 10 पर्सेंट इकॉनमी को निर्देशित कर सकती है और यह काम भी वह अक्सर ढंग से नहीं कर पाती.

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आखिरकार, सरकार ने यह भी मान लिया कि 5 जुलाई 2019 को उसने जो बजट पेश किया था, वह नाकाम नीतिगत दस्तावेज था. उसने यह भी कबूल किया कि देश की आर्थिक ग्रोथ का सबसे ताकतवर इंजन निजी क्षेत्र है, जिसका जीडीपी में 90 पर्सेंट से अधिक योगदान है.

आखिरकार 6 दर्दनाक वर्षों के बाद उसने यह रवैया भी छोड़ दिया कि‘मैं ही सरकार हूं और मैं सब कुछ ठीक कर सकती हूं.’ अंत में उसने यह बात भी मान ली कि‘मैं आपको सशक्त बनाकर और आप पर भरोसा करके एनिमल स्पिरिट्स को आजाद करूंगा.’

सरकार ने जीडीपी के 0.6 पर्सेंट से अधिक का हैरतंगेज फिस्कल पैकेज दिया है. इसमें कोई शक नहीं कि इस दरियादिली से कंपनियों की बैलेंस शीट में 1.45 लाख करोड़ का अतिरिक्त कैश जुड़ेगा. पहली नजर में देखने पर लगता है कि सरकार ने कॉरपोरेट टैक्स रेट में एक झटके में 10 पर्सेंट की कमी की है (इससे पी चिदंबरम के 1997-98 के‘ड्रीम बजट’ की याद ताजा हो गई है- आउच!)

बेशक, मैं इस कदम से खुश हूं, लेकिन खुशी के मारे झूम नहीं रहा. मैं यहां इसकी तीन वजहें दे रहा हूं:

  • देश की बड़ी कंपनियों ने कभी भी 35 पर्सेंट से अधिक के पीक रेट से टैक्स नहीं दिया. इनमें से ज्यादातर कई जटिल रियायतों का फायदा उठाती हैं और हद से हद मुनाफे का 18-29 पर्सेंट टैक्स के रूप में सरकार को देती हैं. इसलिए इस पहल से उनका 2-5 पर्सेंट से अधिक मुनाफा नहीं बचेगा. मान लीजिए कि अगर किसी कंपनी को 50 हजार करोड़ का प्री-टैक्स मुनाफा हो रहा था तो उसके हाथ में अब 1,000-2,500 करोड़ रुपये और बढ़ जाएंगे. यह कोई साधारण रकम नहीं है, पर इसे रिवॉल्यूशनरी कहना भी ठीक नहीं होगा.
  • क्या इससे कंजम्पशन यानी खपत में बूम आएगा? इस मामले में मैं खुद को उन्मादियों की भीड़ से अलग कर रहा हूं. सरकार ने कंपनियों को अतिरिक्त नकदी देने का फैसला किया है, उसने यह रकम सीधे ग्राहकों को नहीं दी है. यह पैसा घुमा-फिराकर आम लोगों तक पहुंचेगा. कंपनियों के सामान की कीमत घटाने, या डिविडेंड देने, या शेयर बायबैक करने या नए प्रोजेक्ट्स में निवेश करने पर यह रकम उन तक पहुंचेगी और इसमें लीकेज से भी इनकार नहीं किया जा सकता. इसके बावजूद इकॉनमी को दिए जाने वाले इस कैश के फैसले की तारीफ होनी चाहिए.
  • क्या सरकार के पास इस राहत पैकेज को देने का कोई बेहतर तरीका था? जी, बिल्कुल. फर्ज कीजिए कि यह रकम सीधे ग्राहकों की जेब में जाती, न कि घुमा-फिराकर उन तक पहुंचती. मैं नीचे बता रहा हूं कि यह काम कैसे किया जा सकता था.


अगर 1.45 लाख करोड़ यूं दिए जाते तो इकॉनमी को कहीं बड़ा बूस्ट मिलता

जरा कल्पना करिए कि कंपनियों को अधिक कैश देने के बजाय सरकार ने नीचे दिए गए टैक्स में कटौती की होती तो इसका आम लोगों को सीधा और तुरंत फायदा मिलताः

  • कार सहित अधिकतर सामानों के लिए 28 पर्सेंट का जीएसटी स्लैब खत्म कर दिया जाता. इससे एक झटके में कई पॉपुलर प्रॉडक्ट्स कहीं सस्ते हुए होते और कंजम्पशन और निवेश का चक्र शुरू होता.
  • शेयरों पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस टैक्स खत्म कर दिया जाता, जैसा कि मोदी सरकार से पहले हुआ करता था लेकिन इस सरकार ने रिस्क कैपिटल का दरवाजा धड़ाक से बंद कर दिया. लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस टैक्स खत्म किए जाने से एक नाइंसाफी दूर होती और शेयरों में पैसा लगाना फिर से आकर्षक हो गया होता.
  • डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स खत्म करना. इससे डिविडेंड पर दो बार टैक्स वसूले जाने का अन्याय मिट गया होता. पहली बार तो डिविडेंड पर कंपनियों को टैक्स देना होता है और उसके बाद शेयरधारकों की आमदनी में इसे जोड़कर टैक्स वसूला जाता है. इस टैक्स को खत्म करने से निवेशकों के हाथ में खर्च व निवेश करने लायक अधिक रकम आती.

मैंने अपनी रिसर्च टीम से पता लगाने को कहा था कि अगर ये तीनों टैक्स खत्म किए जाते तो सरकार को कितना रेवेन्यू लॉस यानी आमदनी का नुकसान होता.अफसोस कि इस लेख के लिखे जाने तक हम भारी-भरकम सरकारी दस्तावेजों से यह आंकड़ा हासिल नहीं कर पाए थे. खैर, मेरा अनुमान है कि इन तीनों टैक्स को खत्म करने से सरकार को 1.50 लाख करोड़ रुपये या इससे कुछ हजार करोड़ कम या ज्यादा का रेवेन्यू लॉस होता, जो इतने व्यापक बदलाव को देखते हुए मायने नहीं रखता.

इतना ही नहीं, मैं शर्तिया कह सकता हूं कि कॉरपोरेट टैक्स में कटौती से कंजम्पशन और निवेश में जितनी बढ़ोतरी होगी, उससे कई गुना अधिक इन पर असर आम लोगों को सीधे नकदी देने से होता. क्या कोई मेरे साथ इस पर शर्त लगाने को तैयार है, खासतौर पर रायसीना हिल का कोई शख्स (जहां वित्त मंत्रालय का ऑफिस है)?


बूंद-बूंद करके नहीं, एक झटके में पेश कीजिए बजट 2.0


मैडम वित्त मंत्री, आप बूंद-बूंद अंदाज में फैसले करके उनके असर को कम कर रही हैं. पॉजिटिवली देखें तो लग रहा है कि आप स्थिति में सुधार न होने पर और हिचक के साथ रियायतें दे रही हैं. वहीं, आलोचनात्मक नजरिये से देखने पर लगता है कि सरकार के पास कोई बड़ी बचाव योजना नहीं है. जैसे-जैसे संकट सामने आ रहे हैं, वैसे-वैसे वह उन्हें दूर करने के उपाय कर रही है.

जरा सोचिए कि सरकार ने एक बयान जारी करके कहा होता,‘हमें ऐसे कई फीडबैक मिले हैं, जिनसे हमें 5 जुलाई 2019 के बजट को और असरदार बनाने की जरूरत महसूस हुई. हमें लगा कि बजट में सुधार, बदलाव और उस पर स्पष्टीकरण की जरूरत है. केंद्रीय बजट 2.0 नाम का नीतिगत दस्तावेज 5 अक्टूबर 2019 को जारी किया जाएगा.’

अब जरा ख्याल कीजिए कि सांसें थाम देने वाली इन नीतियों के साथ आरबीआई गवर्नर उसी दोपहर को रेपो रेट में आधा पर्सेंट की कटौती करते ताकि बॉन्ड यील्ड ऊपर न जा पाए और बॉन्ड मार्केट में शांति बनी रहे.

इसके बाद शाम को इसका पूरा खाका पेश किया जाता कि भारत सरकार न्यूयॉर्क, लंदन और सिंगापुर में 10 अरब डॉलर का सॉवरिन बॉन्ड कैसे बेचने जा रही है.

इसके बाद वित्त मंत्री आर्थिक पत्रकारों के साथ डिनर पर उस दिन का अपना आखिरी ऐलान करतीं,‘हम एक सरकारी कंपनी को दूसरी सरकारी कंपनी को ट्रांसफर करने की प्रैक्टिस बंद कर रहे हैं. हम सही मायने में किसी अन्य पक्ष को इसकी हिस्सेदारी या नियंत्रण देंगे. मुझे आपको यह बताकर खुशी हो रही है कि बीपीसीएल को शेल को बेच दिया गया है और एयर इंडिया को भारतीय और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के एक समूह को. अरे मेरी तरफ क्या देख रहे हैं, सामने पड़े अप्पम का मजा लीजिए.
काश! ऐसा हुआ होता, तो इकॉनमी आखिरकार कुलांचे भरने लगती.

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Tax Cuts Are Terrific, But Should Have Gone Directly to People

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