क्विंट की रिपोर्ट सनसनीखेज है. यानी सरकार झूठ बोल रही है. सरकार लोगों से धोखा कर रही है. वो कहती कुछ है, करती कुछ है. ऐसी सरकार पर यकीन कैसे किया जाये, आज ये सवाल इस रिपोर्ट के बाद उठ रहा है. इलेट्रोरल बांड लाते समय सरकार ने भरोसा दिलाया था कि किसी को ये पता नहीं चलेगा कि किसने किस पार्टी को कितना फंड दिया, ताकि दानदाता बिना किसी भय या दबाव के अपनी पसंद की पार्टी को फंड दे सके. उसे इस बात की चिंता न हो कि सरकार उसका किसी प्रकार का उत्पीड़न कर सकती है. क्विंट की रिपोर्ट से साफ है कि सरकार ये जानना चाहती है कि किस ने किस पार्टी को कितना पैसा दिया. ये जानकर वो क्या करेगी, ये सवाल बड़ा है?
क्विंट ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि हर इलेक्टोरल बॉन्ड में ऊपर की तरफ कुछ नंबर लिखे हैं. ये नंबर नंगी आंखों से नहीं दिखते. क्विंट ने स्टेट बैंक आफ इंडिया से हजार हजार रुपये के दो बॉन्ड खरीदे.
इन दोनों बॉन्ड को ऊपर से देखने पर कोई भी नंबर या कोड नहीं दिखाई दिया. पर जब एक प्रतिष्ठित लैब से जांच कराई गई तो कोड का राज खुला. जो कोड नंगी आंखों से नहीं पकड़ में आया वो अल्ट्रा वॉयलट किरणों की रोशनी में साफ दिख गया.
यानी ये नंबर हकीकत में एक ट्रैकिंग डिवाइस है और इससे सरकार के पास पूरा डेटा होगा कि किसने किसको कितना पैसा दिया. हैरानी की बात ये है कि जब ये बॉन्ड जारी करने की बात आई थी तब देश के वित्त मंत्री ने जोर-शोर से कहा था कि ये जानकारी गुप्त रहेगी. हालांकि तब भी कुछ विशेषज्ञों ने ये प्रश्न किया था कि सरकार अगर चाहे तो बैंक से पूरी जानकारी ले सकती है, क्योंकि बैंक की जवाबदेही सरकार के प्रति है. तब सरकार ने ऐसी किसी भी खुराफात से इंकार किया था.
दो सवाल खड़े होते हैं? आखिर बॉन्ड के ऊपर गुप्त कोड डालने के पीछे सरकार की मंशा क्या है? बैंक का कहना है कि ये बस सुरक्षा के मद्दे नजर ही किया गया है.
किसकी सुरक्षा और क्यों सुरक्षा ?
पैसे देने वाले और पैसे लेने वाले के बीच अगर सीधा सपाट लेन देन है तो फिर कौन सी सुरक्षा की बात की जा रही है? बैंक का तर्क गले नहीं उतरता. दूसरा सवाल, क्या बैंक ने ये अपने स्तर पर किया है या फिर सरकार के इशारे पर?
अगर बैंक ने अपने स्तर पर किया है तो ज्यादा चिंता की बात नहीं है, लेकिन सरकार के कहने पर किया है तो प्रश्न बड़ा है. बैंक सरकार के अधीन आता है. स्टेट बैंक निजी बैंक नहीं है. उसकी जवाबदेही सरकार के प्रति है और मौजूदा सरकार मोदी जी की है, जिसमें किसी की मजाल नहीं कि इतना बड़ा फैसला हो जाये और प्रधानमंत्री कार्यालय को हवा भी नहीं लगे.
ये असंभव है, बैंक के चेयरमैन को जेल जाना है क्या ? यानी बिना सरकार की मर्जी के ये हो नहीं सकता. अब सवाल ये कि सरकार ऐसा क्यों करना चाहेगी ?
सब पर नजर रखती है मोदी सरकार
मोदी सरकार की एक आदत है, वो सब कुछ जानना चाहती है. सारी जानकारी वो अपने पास रखना चाहती है. आज सरकार में कोई भी मंत्री हो या अफसर वो किसी से फोन पर बात नहीं करना चाहते. वो अपने घर पर किसी भी ऐसे व्यक्ति को आने देने से मना करते हैं, जिसका संबंध सीधे या परोक्ष तरीके से मोदी या सरकार विरोधियों से है या वो प्रेस से जुड़ा है.
उसे मालूम है कि सरकार की गुप्त नजर उस पर है और सब कुछ सरकार की फाइल में दर्ज हो रहा है. वो क्यों अपनी जान सांसत में डाले. ये मैं अपने निजी अनुभव से कह रहा हूं. सरकार या बीजेपी के पुराने दोस्त अब मेरा फोन नहीं उठाते. उनसे मिलना होता है तो गुप्त तरीके से ही मिला जाता है.
विपक्ष को चंदा देने वालों पर नजर रखने का मकसद
साफ है सरकार इस उपक्रम के जरिये विपक्षी पार्टियों के फंड पर नजर रखना चाहती है. कोई भी सरकार हो वो ये चाहती है कि कहीं भी कोई गलत काम न हो. गुप्तचरी का तंत्र चाणक्य के समय से राजसत्ता खड़ा करती आई है. अच्छा राजा वो है जिसके गुप्तचर पल-पल की खबर राजा को दें. मोदी जी चाणक्य के बड़े मुरीद हैं. ऐसा उनके कुछ मित्रों ने मुझे बताया है.
सरकार को बॉन्ड की जानकारी क्यों चाहिए?
अब सवाल ये है कि सरकार बॉन्ड की जानकारी का करेगी क्या? वो अचार तो डालेगी नहीं ? उसका कुछ तो मतलब होगा. मैं बताता हूं. आम आदमी पार्टी से बेहतर कोई नहीं जानता कि सरकार अपने विरोधियों को कैसे प्रताड़ित करती है. आम आदमी पार्टी ने राजनीति और चुनावी खर्चे में पारदर्शिता बनाए रखने के लिये ये घोषणा की थी कि वो पार्टी को मिलने वाले पैसे का सारा हिसाब वेबसाइट पर डालेगी. कब किसने कितना पैसा पार्टी को दिया उसका लेखा-जोखा करीने से वेबसाइट पर डाला जाने लगा. देश ने इसकी सराहना भी की. पाई पाई का हिसाब जनता के सामने रहने लगा. आप से पहले ऐसा किसी भी पार्टी ने नहीं किया.
बीजेपी और कांग्रेस के पास कितना पैसा आता है ये जानने का कोई उपाय किसी के पास नहीं है. पार्टियां जो हिसाब देती है, उसको मानने के अलावा कोई और चारा नहीं है. इसमें भी सत्तर से अस्सी फीसदी फंड का कोई हिसाब नहीं दिया जाता, क्योंकि ये कहा जाता है कि ये पैसा पहले के नियम के मुताबिक अगर बीस हजार से कम कैश में दिया गया है तो उसको दिखाने का कोई नियम नहीं था. इसके ऊपर की रकम कैश से नहीं ले सकते थे. अब नियम 2000 रुपये का कर दिया गया है.
‘आप’ को चंदा देने वालों पर छापे
आप ने ये तय किया था कि वो कैश में फंड नहीं लेगी, क्योंकि पार्टियों में काले धन का रास्ता यहीं से खुलता है. हकीकत भी ये है कि बीजेपी, कांग्रेस में ज्यादा से ज्यादा फंड काले रास्ते से ही आता है. आप के पास आने वाला फंड 90% से अधिक चेक के जरिये आता है यानी सारा का सारा पैसे का ट्रांजेक्शन सफेद और कोई भी शख्स उसकी पड़ताल कर पैसों के स्रोत का पता लगा सकता है. हमें लगा था कि बाकी दल भी इसका अनुसरण करेंगे. पर ऐसा हो न सका. मोदी सरकार आने के बाद हमारी ये पारदर्शिता पार्टी के जी का जंजाल बन गई.
हमारे डोनरों को परेशान किया जाने लगा. उनके यहां छापे पड़ने लगे. जब हमने पता किया तो जानकर हम हैरान रह गये कि पार्टी की वेबसाइट से बड़े डोनरों के नाम पते लेकर उनकी लिस्ट बनायी गई और उस लिस्ट के आधार पर हर उस डोनर को टारगेट किया, ये संदेश देने के लिये कि वो अगर आप को पैसे देंगे तो फिर उसके अच्छे दिन तो कभी आएंगे नहीं, बुरे दिन शुरू हो जाएंगे.
ये बात पूरे शहर में फैल गई. इसके दो नतीजे हुए. जो नये डोनर हमें पैसे देना चाहते थे वो डर गये, कौन फंसे? क्यों सरकार से पंगे ले? नये डोनर काफी कम हो गए. पुराने डोनरों में दहशत मच गई. वो पैसे देने से आनाकानी करने लगे और धीरे-धीरे लिस्ट छोटी से छोटी होने लगी. ये वो लोग हैं जो पार्टी से प्रभावित हैं. पार्टी के लिये सबकुछ करने को तैयार है पर इनकम टैक्स, एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट, सीबीआई, फेरा के चक्कर में फंसकर अपना बिजनेस चौपट नहीं करना चाहते.
धमकाने के लिए इनकम टैक्स नोटिस
पार्टी की वेबसाइट से पार्टी की दी हुई जानकारी लेकर उसका उल्टा पुल्टा मतलब निकालकर पार्टी को इनकम टैक्स का नोटिस लगभग रोज आने लगा. यहां तक की एमसीडी चुनाव के समय इनकम टैक्स ने ये भी कह दिया कि आप के फंड में भारी घपले हैं और उसकी मान्यता भी रद्द हो सकती है. मेरे पास इस बात की पुख्ता जानकारी है कि दूसरी पार्टियों के डोनरों को भी इसी तरह से परेशान किया जा रहा है. चूंकि दूसरे दल काला धन खुशी खुशी लेते हैं इसलिये डोनर चेक की जगह ज्यादा पैसे कैश में देने लगे हैं.
जिसका पता लगा पाना काफी मुश्किल है. सरकार का एकमात्र मकसद है विपक्षी दलों के पास फंड आना बंद हो जाये, ताकि चुनाव में वो ठीक से खर्च न कर पाए. चूंकि बीजेपी सत्ता में है इसलिये उसे सरकारी एजेंसियों की कोई परवाह नहीं है. यानी चुनाव में पैसा सिर्फ बीजेपी के पास हो और बाकी पार्टियां ठन ठन गोपाल. ये पूरी चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने का खेल है.
चुनाव आयोग कार्रवाई करे
चुनाव आयोग बार-बार कहता है कि चुनाव में सारे दलों के लिये लेवल प्लेइंग फील्ड होना चाहिए. तभी फ्री और फेयर यानी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हो सकते हैं. बॉन्ड के ऊपर दर्ज गुप्त नंबरों का खेल बीजेपी की साजिश का बड़ा पोल है, जिसकी जितनी निंदा हो उतना ही बेहतर है. कायदे से चुनाव आयोग को इस बात का संज्ञान लेना चाहिये कि क्योंकि ये चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश का हिस्सा हैं. पर वो ऐसा करेंगे, इसमें मुझे पूरा संदेह हैं. अगर संज्ञान लें तो साफ होगा कि आयोग में टी एन शेषन की परंपरा अभी बाकी है. शेषन होते तो जरूर सरकार को नोटिस भेज जवाब तलब करते. पर शेषन बनने के लिये रीढ़ की हड्डी चाहिये.
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