जीएसटी (GST) कानून बनने के बाद कई राज्य सरकारों ने कई फिल्मों को टैक्स फ्री किया है. इसमें 'कश्मीर फाइल्स' और 'केरला स्टोरी' भी शामिल हैं. इस संबंध में पहली बात तो यह है कि GST के कानून में टैक्स फ्री करने का जो प्रावधान है, उसके लिए जीएसटी परिषद की सिफारिश जरूरी है. अक्षय कुमार ने अपनी फिल्म 'पैडमैन' को 2018 में टैक्स फ्री करने के लिए जीएसटी परिषद का शुक्रिया अदा किया था.
कौन करता है फिल्मों के टैक्स फ्री का ऐलान?
राज्यों के मुख्यमंत्रियों द्वारा फिल्मों के लिए जो टैक्स फ्री करने की घोषणा की जाती है, वह वास्तव में टैक्स से प्राप्त राजस्व को खर्च करने का फैसला होता है. सिनेमा के मालिक GST के उस हिस्से को वापस करने का दावा करते हैं, जो कि किसी राज्य के हिस्से का होता है.
फिल्म टिकट पर कितना प्रतिशत GST?
किसी सिनेमा हॉल या मल्टीप्लेक्स में फिल्म देखने के टिकट का दाम 100 रुपये से अधिक है, तो उस पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगता है और अगर टिकट की कीमत 100 से कम होती है, तो जीएसटी की दर 12 प्रतिशत हो जाती है. इसमें किसी भी राज्य का हिस्सा आधा होता है.
दूसरा कि राज्यों द्वारा सिनेमा मालिकों को टैक्स का पैसा वापस करने के फैसले में समाज में आम लोगों के हितों का ध्यान नहीं रखा जाता है, बल्कि जिन फिल्मों को राजनीतिक लाभ का जरिया समझा जाता है, उसे ही सरकारों द्वारा टैक्स का पैसा वापस किया जाता है. कश्मीर फाइल्स और केरला स्टोरी उनमें शामिल है.
यह विश्लेषण किया जा सकता है कि BJP शासित राज्यों ने किस तरह की फिल्मों को टैक्स का पैसा वापस करने की अधिसूचना जारी की. इससे पहले सर्जिकल स्ट्राइक के भी उदाहरण को शामिल किया जा सकता है.
यह देखना दिलचस्प होगा कि समाज की आधी आबादी की मानसिक शारीरिक समस्याओं पर केंद्रित अक्षय कुमार की फिल्म के लिए दर्शकों को रियायत देने में उन सरकारों ने दिलचस्पी नहीं दिखाई, लेकिन महिलाओं के धर्म परिवर्तन की काल्पनिक कहानी 'केरला स्टोरी' के लिए BJP की राज्य सरकारें धड़ाधड़ 'टैक्स फ्री' करने की घोषणा के लिए एक-दूसरे के पीछे खड़ी हो गई.
लेकिन जब टैक्स फ्री के लिए अधिसूचना जारी की तो उसमें टैक्स फ्री की कोई चर्चा नहीं थी. बल्कि सिनेमा मालिकों से राज्य सरकारों को 'केरला स्टोरी' के लिए दिए गए GST के पैसों को वापस लौटाने के फैसले की जानकारी दी गई है. यह मामला, तब सरकारी खाते से पैसे खर्च करने के मामले में तब्दील हो जाता है.
हिंदी मीडियम भी ऐसी फिल्मों में शामिल हैं, लेकिन हिन्दी भाषा के लिए नहीं बल्कि ‘हिंदी’ के राजनीतिकरण के उद्देश्य को ध्यान में रखकर जीएसटी के पैसे के बराबर की राशि को वापस करने की घोषणा की गई.
इस लेखक ने हाल के सालों में पढ़ने और लिखने के स्तर पर हिन्दी एक भाषा के तौर पर किस तरह से सिमटी है, उस पर कई शोध किए हैं. जिन दूसरी राजनीतिक पार्टियों ने फिल्मों के लिए सिनेमा मालिकों को टैक्स का पैसा वापस करने का फैसला किया है, वे भी दरअसल सांप्रदायिकता की चुनावी राजनीति की होड़ में शामिल होने का ही नतीजा माना जा सकता है.
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