कायसिर मलिक श्रीनगर की एक छोटी-सी मीडिया कंपनी में मैनेजर है. पिछले महीने के शुरू में उत्तरी कश्मीर के एक गांव में उसने दो अजनबियों को घंटेभर में तीसरी बार सड़क से गुजरते देखा.
उनकी उम्र 20-22 साल रही होगी. दोनों लड़के बदहवास थे, अजनबी थे और गांव में उनकी मौजूदगी शक पैदा कर रही थी. वैसे भी जब पूरा कश्मीर चार हफ्ते से कड़े सुरक्षा बंदोबस्त की छांव में हो, गांव में अजनबियों का दिखना आम बात नहीं थी.
कायसिर ने उनसे पूछा-
“आपलोग किसे ढूंढ़ रहे हैं? आपलोग इस गांव के तो नहीं लगते? आप यहां क्या करने आए हैं?”
लड़के ने जवाब दिया, “हम लोग फल व्यापारी माजिद साहब को ढूंढ़ रहे हैं.” उसने कहा, “उन्होंने मेरे पिताजी को एक चेक दिया था. वो चेक बाउंस कर गया. हमें इसी सिलसिले में उनसे मिलना है.”
कायसिर ने फौरन कहा, “लेकिन इस नाम का कोई शख्स इस गांव में नहीं रहता.” अब उसकी आवाज सख्त हो रही थी, “चालाकी मत करो. सच-सच बताओ. तुमलोग यहां क्या कर रहे हो? वर्ना मुझे पड़ोसियों को बुलाना पड़ेगा.”
‘लगातार दबाव’
आर्टिकल 370 हटने के बाद कश्मीर को सुरक्षा छावनी में तब्दील हुए चार हफ्ते बीत चुके थे. हालात तनावपूर्ण थे. मोबाइल फोन नेटवर्क काम नहीं कर रहा था. ये भी नहीं मालूम था कि वो कब काम करना शुरू करेगा.
हाल में जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने संकेत दिए थे कि ब्रॉडबैंड और मोबाइल इंटरनेट सेवा हाल-फिलहाल शुरू नहीं होने वाली.
सत्यपाल मलिक ने कहा:
“हालात धीरे-धीरे सामान्य हो रहे हैं. पाकिस्तान इंटरनेट का इस्तेमाल युवाओं और कश्मीरियों को भड़काने के लिए करता है.”
‘सामान्य हालात’ और बंद के बीच कश्मीर भारी मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक उथल-पुथल झेल रहा था. कई युवाओं ने संचार ठप होने पर हार नहीं मानी और अपने इरादे अंजाम तक पहुंचाने के लिए संघर्ष जारी रखा.
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कायसिर के घर के पास दिखे दोनों लड़के दक्षिणी कश्मीर के शोपियां से 90 किलोमीटर का सफर करके आए थे. उनमें एक नौजवान श्रीनगर के एक नर्सिंग कॉलेज में पढ़ता था. उसे उत्तरी कश्मीर के इसी गांव में रहने वाली एक लड़की से प्यार हो गया था.
4 अगस्त की रात उसने लड़की से बात की थी. उसी वक्त पूरे कश्मीर में अचानक संचार सेवा बंद हो गई, सुरक्षाबलों की भारी तैनाती हो गई और सभी लोग अपने-अपने घरों में बंद हो गए. अब वो उस लड़की की सिर्फ एक झलक पाने के लिए शोपियां से यहां आया था.
‘मामले ने तूल पकड़ा’
श्रीनगर के बाहरी बाग-ए-महताब इलाके के बाशिंदों ने दोनों अजनबी लड़कों के अक्सर देखे जाने की शिकायत की. उनके साथ मार-पीट हुई. मामले ने तूल पकड़ लिया.
इलाके के एक व्यापारी नवाजदीन ने बताया, “बेवजह तनाव पैदा हो गया. दो बार झगड़ा हुआ और पड़ोसियों ने आकर बीच-बचाव किया.”
मैं आकिब नबी से पार्क में मिला. वो श्रीनगर के एक व्यापारी घराने का सौम्य लड़का है. श्रीनगर के क्लस्टर यूनिवर्सिटी में बैचलर ऑफ कॉमर्स की पढ़ाई कर रहा है. वो एक चिनार के पेड़ की छाया में बेंच पर अकेला बैठा था.
कश्मीर में छात्रों को हो रही परेशानी के बारे में बातचीत हुई. संचार ठप हो जाने के कारण सभी के घरों में बंद हो जाने पर भी चर्चा हुई. फिर उसने एक लड़की के साथ दो साल पुराने अपने संबंधों के बारे में बताया.
एक हफ्ते में तीन बार नाकाम रहने के बाद 29 अगस्त को आकिब ने पत्थर पर एक कागज बांधकर उसके कमरे में फेंका.
“जॉगर्स पार्क में तुम्हारा इंतजार करता हूं. मंगलवार और शुक्रवार को छोड़कर हर रोज 3 बजे.” खत में लिखा था.
ये एक खतरनाक कदम था, जो लड़की और उसके परिवार वालों को परेशानी में डाल सकता था.
“मैं सड़क पर जा रहा था, तभी कुछ लड़कों ने मुझे रोककर पूछा कि मैं वहां क्या कर रहा हूं. मैंने झूठ बोलने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने मेरी पिटाई की.” उसने बताया.
‘नए आविष्कार’
सुरक्षा बंदोबस्त कड़े होने के तीसरे दिन श्री प्रताप कॉलेज के छात्र समीर भट्ट का सम्पर्क अपनी गर्लफ्रेंड से हो पाया. उसकी एक कजन और उसकी गर्लफ्रेंड की दोस्त जवाहर नगर स्थित उसके घर गई और उसके फोन में ‘टॉकी प्रो’ नाम का एक ऐप डाउनलोड कर दिया.
इस ऐप की मदद से बिना इंटरनेट के और वाई-फाई की मदद से सीमित दूरी पर वीडियो कॉल किए जा सकते हैं.
“उनके घर के आसपास सिर्फ कब्रिस्तान में खाली जगह है, जहां मैं तीन-चार दिनों पर एक बार उससे बात करने जाता हूं. हालांकि बाद में पड़ोसियों को मुझ पर शक हो गया. अब मैं एक बेलचा खरीदने और एक दोस्त को साथ ले जाने की सोच रहा हूं.” उसने कहा.
हिलाल अहमद श्रीनगर के अमर सिंह कॉलेज में पढ़ता है. उसने एक इनोवेटिव आइडिया का इस्तेमाल किया. अपनी गर्लफ्रेंड के साथ उसने पहले ही तय कर रखा था कि वो स्थानीय केबल ऑपरेटर से टीवी केबल टूटने की झूठी शिकायत करे. फिर वो राजभाग स्थित लड़की के घर एक ‘असिस्टेंट’ को लेकर पहुंच गया.
घुटनों की सर्जरी के बाद लड़की की मां आराम कर रही थीं. उसके पिता और भाई राज्य सरकार के कर्मचारी हैं और घर से बाहर थे.
“मुझे भरोसा दिलाने के लिए पिलर्स, एक कटर और चिपकने वाली टेप खरीदनी पड़ी. मेरा ‘असिस्टेंट’ केबल दुरुस्त करता रहा. इस बीच मुझे उससे अकेले में दस मिनट बात करने का मौका मिल गया.” उसने बताया.
इसी बीच ‘असिस्टेंट’ आ गया.
जाने का वक्त हो गया है!
चाहत
1 सितम्बर को रविवार की शाम थी. तीन दिन बीत गए थे, लेकिन आकिब की गर्लफ्रेंड पार्क में नहीं आई. क्या खत गलत हाथों में पड़ गया? क्या उसके भाई को इश्क के बारे में पता चल गया? जब से आकिब ने लड़की के कमरे में खत फेंका था, ये खयाल लगातार उसके जेहन में आते रहे.
सूरज ढलने से ठीक पहले उसकी उम्मीद की आखिरी किरण धूमिल पड़ गई. उसने कहा, ''शायद मैंने उसे परेशानी में डाल दिया है. मुझे उसके कमरे में खत फेंकने की हड़बड़ी नहीं करनी चाहिए थी.”
उत्तरी कश्मीर के गांव में कायसिर ने शोपियां के नवयुवक को शांत रहने और पूछे जाने पर 'हां' में सिर हिलाने की ताकीद की. कायसिर लड़की के परिवार को जानता है. वो सीधा उसके घर पहुंचा. कई बार दरवाजा खटखटाने के बाद लड़की के पिता ने दरवाजा खोला.
“कायसिर, सब खैरियत तो है?” उन्होंने पूछा.
“जी, मैं खैरियत से हूं. यहां माजिद साहब नामक कोई फल व्यापारी नहीं रहता है ना? मैंने शोपियां से आए इन नवयुवकों से बार-बार कहा. लेकिन इन्हें मुझ पर भरोसा ही नहीं. इन्हें लगता है कि मैं झूठ बोल रहा हूं.” कायसिर ने कहा.
लड़की के पिता ने भी 'हां' में 'हां' मिलाया कि माजिद साहब नाम का कोई फल व्यापारी गांव में नहीं रहता. लिहाजा, लड़कों के लिए बेहतर है कि वो घर लौट जाएं. उन्होंने मेहमानों से चाय पीने की भी पेशकश की, जिसे कायसिर ने ठुकरा दिया.
उसी वक्त खिड़की पर एक लड़की की झलक दिखी. आश्चर्य से पलभर के लिए वो जड़ हो गई.
गांव की खाली सड़क पर लौटते हुए कायसिर ने कहा, “मैंने लड़की को देख लिया.”
“मैंने ईद का चांद देख लिया.” नौजवान ने जवाब दिया.
(जहांगीर अली श्रीनगर के पत्रकार हैं. उन्हें @Gaamuk पर ट्वीट कर सकते हैं)
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