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पाक से गहरी है सऊदी की दोस्ती,भारत ज्यादा उम्मीद न करे 

सऊदी अरब और भारत के रिश्ते अहम हैं लेकिन पाकिस्तान को नजरअंदाज करना मुश्किल

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सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (एमबीएस) के प्रति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने असाधारण गर्मजोशी दिखाई है. एमबीएस न तो राष्ट्र प्रमुख हैं और न ही वहां की सरकार के औपचारिक मुखिया लेकिन मोदी ने उन्हें न केवल राष्ट्र प्रमुख का दर्जा दिया बल्कि उससे भी आगे बढ़ गए. तो इस तरह न केवल एमबीएस को 21 तोपों की सलामी दी गई बल्कि राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में एमबीएस के औपचारिक स्वागत समारोह में राष्ट्रपति ने हिस्सा लिया और उनके सम्मान में रात्रि भोज का आयोजन भी किया. और मोदी खुद एमबीएस से गले मिलने हवाईअड्डे पर मौजूद रहे.

गनीमत ये रही कि मोदी ने एमबीएस का स्वागत पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान और उनके सैन्य प्रमुख की तरह नहीं किया जिनके लिए वे ब्रिटिश उपनिवेश का दौरा कर रहे प्रिंस ऑफ वेल्स की तरह थे.

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भारत को सऊदी क्राउन प्रिंस से उम्मीदें थीं लेकिन पूरी नहीं हुईं

किसी दौरे की अहमियत समारोहों से ज्यादा उस दौरे के उद्देश्यों की होती है. यह जानना जरूरी हो जाता है कि क्या एमबीएस के दौरे ने भारत-सऊदी संबंधों को नई ऊंचाई दी है? क्या सुरक्षा और आतंकवाद पर इसने भारत की चिंताओं का समाधान किया है?

इस बात में कोई संदेह नहीं कि सऊदी अरब भारत को अब ऐसे गरीब देशों में शुमार नहीं करता जो उसको सिर्फ मजदूरों की आपूर्ति करता है और बदले में उससे तेल खरीदता है. पाकिस्तान के साथ उसके करीबी संबंधों के बावजूद सऊदी अरब दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा और उसकी पहुंच को स्वीकार करता है.

यही वजह है कि वह भारत के साथ वास्तविक रणनीतिक साझेदारी विकसित करना चाहता है. इसमें न केवल ऊर्जा का मुद्दा शामिल है बल्कि भारत में महत्त्वपूर्ण सऊदी निवेश भी शामिल है जो 100 अरब डॉलर तक हो सकता है. जिन परियोजनाओं पर विचार किया जा रहा है उनमें 44 अरब डॉलर का तेलशोधन संयंत्र भी शामिल है जो दुनिया का सबसे बड़ा ऐसा संयंत्र होगा.

भारत और सऊदी अरब के बीच रणनीतिक साझेदारी अहम

संयुक्त युद्धाभ्यास सहित दोनों देशों के बीच बड़े स्तर पर रक्षा सहयोग रणनीतिक साझेदारी का हिस्सा होगा. यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि अभी तक सऊदी अरब मूलतः अमेरिकी सुरक्षा संरक्षण प्राप्त करता रहा है और पाकिस्तान यदा-कदा सऊदी शाही परिवार को सुरक्षा मुहैया उपलब्ध कराता रहा है. भारत और सऊदी अरब के बीच खुफिया सूचनाओं के आदान प्रदान को संस्थागत स्वरूप देने का निर्णय एक स्वागत योग्य प्रगति है.

चूंकि एमबीएस ने पुलवामा हमले के तुरंत बाद पाकिस्तान और भारत का दौरा किया है, यह स्वाभाविक है कि भारतीय मीडिया ने सऊदी रुख पर कुछ ज़्यादा अपना ध्यान लगाया है. लोगों उम्मीद कर रहे थे कि सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस पाकिस्तान पर सवाल उठाएंगे. लोग सोच रहे थे

एमबीएस न केवल इस हमले की सीधी निंदा करेंगे बल्कि जैश का नाम लेकर कहेंगे कि वह इस हमले के लिए ज़िम्मेदार है. निंदा तो उन्होंने की पर हमले की जिम्मेदारी लेने वाले जैश-ए-मोहम्मद का नाम लेना तो दूर, किसी भी पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन का नाम लेने से खुद को बचा लिया.आम उल्लेख आसान है; पर विशेष रूप से किसी भी तरह के उल्लेख के लिए स्पष्ट रुख अपनाने की जरूरत होती है पर सऊदी अरब ने ऐसा नहीं किया.
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सऊदी अरब और पाकिस्तान यूएन लिस्ट का राजनीतिकरण कर रहे हैं

इमरान खान-एमबीएस संयुक्त बयान में ‘यूएन की सूची के राजनीतिकरण से बचने की जरूरत को रेखांकित’ किया गया था. भारतीय मीडिया ने इसकी व्याख्या इस तरह से की जैसे सऊदी अरब ने पाकिस्तान के इस दृष्टिकोण का समर्थन किया है कि भारत ने राजनीतिक कारणों से मसूद अजहर को अन्तरराष्ट्रीय आतंकवादियों की सूची में शामिल करवाया है.

यह तो जगजाहिर है कि मसूद अजहर को यूएन की ओर से अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित किए जाने के प्रयास को चीन ने निष्फल किया है. इस बात में कोई संदेह नहीं है कि सऊदी अरब ने पाकिस्तान के कहने पर ही इसे संयुक्त बयान में शामिल किया होगा. जब भारतीय मीडिया ने इस बात से मसूद अजहर को मिल रहे सऊदी अरब के संरक्षण के बारे में प्रश्न किया, तो सऊदी अरब के विदेश राज्यमंत्री अदेल अल जुबेर बगलें झांकने लगे. उन्होंने कहा, “मुझे इस बारे में ज्यादा पता नहीं है और इसलिए मैं इस बारे में कोई राय नहीं दे सकता”. पर यह मंजूर नहीं है.

तथ्य यह है कि मसूद अजहर को इस सूची में शामिल करने के मुद्दे पर राजनीति तो चीन कर रहा है. अजीब बात यह है कि एक ओर तो यह कहा जा रहा है कि यूएन जो सूची बना रहा है उसका राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए, पर सऊदी अरब और पाकिस्तान यही कर रहे हैं.
सऊदी अरब और भारत के रिश्ते अहम हैं लेकिन पाकिस्तान को नजरअंदाज करना मुश्किल
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस का स्वागत करते हुए इमरान खान
(फोटो: इंस्टाग्राम)

यूएन सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य- रूस, फ़्रांस, ब्रिटेन और अमरीका इस बात पर सहमत हैं कि मसूद अजहर अन्तरराष्ट्रीय आतंकवादी है. इन पांच देशों ने वस्तुगत और तकनीकी आधार पर ऐसा किया है. यह संगठन पहले से ही आतंकवादी संगठन घोषित हो चुका है. फिर यह बात तो समझ से परे है कि उसका मुखिया मसूद अज़हर इस बात से वाकिफ नहीं होगा कि यह संगठन आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दे रहा है.

पाकिस्तान और चीन का पर्दाफाश करें भारतीय राजनयिक

भारतीय राजनयिकों को चाहिए कि वे इस प्रस्ताव के आधार पर पाकिस्तान और चीन का पर्दाफाश करें भले ही मूल रूप से वे जो भी चाहते हों. उन्हें चाहिए कि वे इसे बहुप्रचारित करें. कुछ पाकिस्तानी राजनयिकों को ख़ुद पर ज़रूरत से ज़्यादा भरोसा है. और यह ऐसा ही एक उदाहरण है.

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जुबेर ने भारतीय मीडिया से कहा कि भारत और पाकिस्तान में जो विवाद चल रहा है उसको देखकर उनको “तकलीफ़” होती है. ये दोनों ही ऐसे देश हैं जिनमें सऊदी अरब की काफी ज्यादा दिलचस्पी है. अगर एमबीएस का भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करने का मंसूबा रहा होगा, तो उन्हें यहशीघ्र पता लग गया कि उन्हें ऐसा करने का कोई प्रयास छोड़ देना चाहिए. इसलिए जुबेर ने स्पष्ट किया कि अगर दोनों देशों में से कोई नहीं चाहता तो फिर उनका देश इस तरह के मामले में बीच में नहीं पड़ना चाहता.

साफ है कि भारत में पैर रखते ही एमबीएस को यह पता चल गया. पाकिस्तान में सऊदी-पाकिस्तान संयुक्त बयान के अनुरूप उन्होंने भारत के साथ बातचीत करने के बारे में प्रधानमंत्री इमरान खान के प्रयासों की प्रशंसा की और करतारपुर गलियारे को खोले जाने को लेकर दोनों देशों के प्रयासों की चर्चा करते हुए इस बात पर जोर दिया कि इस क्षेत्र में शांति और स्थायित्व सुनिश्चित करने के लिए बातचीत जरूरी है ताकि दोनों देश अपने विवादों को सुलझा सकें”. इस तरह का रुख वास्तव में, पाकिस्तान के दृष्टिकोण को ही आगे बढ़ाता है.

पाक और सऊदी अरब के रिश्ते को समझे भारत

भारत में उन्होंने मई 2014 से प्रधानमंत्री मोदी के लगातार प्रयासों की प्रशंसा की. उन्होंने ख़ासकर पाकिस्तान के साथ दोस्ताना संबंधों को लेकर उनके निजी प्रयासों की प्रशंसा की. इस संदर्भ में दोनों ही पक्ष इस बात पर सहमत हुए कि भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापक स्तर पर वार्ता को दुबाराशुरू करने के लिए ज़रूरी माहौल बनाने की ज़रूरत है.यह एक ऐसी बात है जो भारतीय दृष्टिकोण का समर्थन करता है जो यह कहता रहा है कि बातचीत और आतंक दोनों साथ-साथ नहीं चल सकते और जब आतंकवाद बंद होगा तभी बातचीत के लिए आवश्यक माहौल बन सकता है.

भारत को चाहिए कि वह सऊदी अरब से अपना संबंध बनाए क्योंकि ऐसा करना उसके हित में है. हालांकि, उसे ऐसा करते हुए उसे सऊदी-पाकिस्तान संबंधों को नजरअन्दाज नहीं करना चाहिए. उसे यह ध्यान रखना चाहिए कि सऊदी अरब को भारत की भी जरूरत है.

ये आर्टिकल पहले द क्विंट पर पब्लिश हुआ है. इसे अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

In Saudi Outreach, India Shouldn’t Expect Too Much From a Pak Ally

(लेखक भारत के विदेश विभाग के (पश्चिम विंग) के सचिव रहे हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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