इसमें कोई हैरानी की बात नहीं कि भारत और चीन के बीच हुई हिंसक झड़प से पाकिस्तान की सेना बहुत खुश होगी. जहां तक परमाणु संपन्न देश पाकिस्तान की बात है तो उनके लिए ये खुशखबरी होगी कि न्यूक्लियर आर्म्ड देश चीन, इस्लामाबाद के दुश्मन नंबर एक भारत को तकलीफ में डाले.
मैं तीनों देशों के परमाणु संपन्न होने पर इतना जोर इसलिए नहीं दे रहा हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि इन एटमी हथियारों का इस्तेमाल हो सकता है. बल्कि मैं ये बताना चाहता हूं कि भले ही टकराव का स्तर कम है लेकिन हथियारों से लैस इन देशों के बीच शांति कायम नहीं हुई तो ये एक दूसरे बहुत नुकसान पहुंचा सकते हैं.
भारत के लिए DSDBO रोड का इतना भू-सामरिक महत्व क्यों
जैसे मैंने देखा, लद्दाख में चीन का हालिया रुख दो वजहों से पैदा हुआ- पहली स्थानीय और दूसरी जियो पॉलिटिकल. ये दोनों ही वजह पाकिस्तान पर असर डालती हैं.
लद्दाख के चीनी सेना के कदम का एक कारण स्थानीय मुद्दा है. दरअसल, भारत ने यहां दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी (DSDBO) रोड बनाने का फैसला किया है. सामरिक दृष्टि से यह रोड प्रोजेक्ट भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. ये निर्माण ही चीन को खल रहा है.
- भारत के लिए DSDBO रोड बेहद अहम है. इसकी मदद से सशस्त्र सुरक्षा बलों, रसद और गोला-बारूद को सियाचिन रीजन तक सड़क मार्ग से पहुंचाने में आसानी होगी. सियाचिन भारत-पाकिस्तान के लिए जंग का मैदान रहा है.
लेकिन अगर चीन पेट्रोल प्वाइंट 14 (पीपी14) पर अधिकार बनाए रखता है तो DSDBO रोड उसके निशाने पर रहेगा. इससे चीन को भारत पर बड़ा रणनीतिक और ऑपरेशनल फायदा मिलेगा. चीनी सेना की मजबूत स्थिति के साथ चीन को DSDBO रोड को काटने में ज्यादा समय नहीं लगेगा.
भारत को बढ़ाने चाहिए फौज
मई 2020 के शुरुआत में चीन ने भारतीय इलाके पर कब्जा किया था. फिर सुलह की भी बात हुई लेकिन फिर ये खूनी झड़प हो गई. उसने सैन्य ताकत दिखाने के लिए गलवान घाटी में सेना की अतिरिक्त टुकड़ी भी बढ़ा दी. यही विवाद की मुख्य वजह है.
चीन के इस कदम का ये मतलब है कि भारतीय फौज को वहां अपनी मौजूदगी बढ़ानी होगी. तोपें, बख्तरबंद और एविएशन यूनिट्स लानी होंगी. अपने सैनिक बढ़ाने होंगे. ताकि एलएसी पर चीन कोई हरकत करे तो उसका जवाब दिया जा सके. - एक बात हमें नहीं भूलनी चाहिए कि भारत-चीन के बीच हालिया हिंसक झड़प में भारत को बड़ा नुकसान हुआ है. इससे पहले 1999 की कारगिल जंग में ऐसा हुआ था. इस जरूरी तैनाती से न सिर्फ भारत की सेना की ताकत यहां लगेगी बल्कि खजाने पर बोझ भी बढ़ेगा. इससे पाक अधिकृत कश्मीर पर फोकस करने में भी दिक्कत होगी. ये पाकिस्तान के लिए बेहद अच्छी खबर होगी.
CPEC और BRI की सुरक्षा
- कुल जमा बात ये कि इसमें कोई शक नहीं है कि भारत-चीन संघर्ष का बड़ा विजेता पाकिस्तान होगा. क्या पाकिस्तान को पूर्वाभास था कि चीन जो कदम उठाने जा रहा है और इतना बड़ा मुद्दा बन जाएगा, कहा नहीं जा सकता.
चीनी सेना की लद्दाख में दखल उसके चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) को संरक्षण प्रदान करता है. ये गिलगित-बाल्टिस्तान से होकर जाने वाले बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (BRI) पर भारत के विरोध को भी बेअसर करता है.
दूसरों शब्दों में कहें तो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर जाने वाले CPEC को लेकर भारत का विरोध का वजन अब चीन के लिए कम रह गया है. यह पाकिस्तान और रावलपिंडी में बैठे सैन्य अफसरों के लिए खुशखबरी की तरह है.
शाह के अक्साई चिन के हिस्से को वापस लेने के बयान से खफा चीन
चीन के कदम की दूसरी वजह थी- जियो पॉलिटिकल या यूं कहें वर्ल्ड पॉलिटिक्स. चीन और पाकिस्तान दोनों ने ही पीएम मोदी के 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से धारा 370 (इस धारा की वजह से भारत का हिस्सा होते हुए भी राज्य को ऑटोनाॅमस स्टेटस मिला था) हटाने के फैसले का विरोध किया. दोनों से राज्य का दर्जा छीनकर उन्हें केंद्र सरकार के अधीन यूनियन टेरिटरी बना दिया.
- जहां तक चीन (और पाकिस्तान) की बात है, जम्मू-कश्मीर एक विवादित इलाका है. चीन की लद्दाख में अपनी दिलचस्पी है, क्योंकि वो ऐतिहासिक कारणों का हवाले देकर इस पर दावा करता है.
लेकिन एक बात जो चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को बहुत खल रही है, वो है गृह मंत्री अमित शाह का अक्साई चिन को वापस लेने वाला बयान. ये इलाका कभी भारत का था, जिस पर चीन ने 62 की जंग में कब्जा कर लिया था.
चीन का लद्दाख में कदम से प्रधानमंत्री मोदी के जम्मू-कश्मीर को भारतीय संघ का हिस्सा बनाने के प्लान योजना का जवाब हो सकता है. भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर- जिसे यूएन सुरक्षा परिषद में कई बार विवादित माना गया है - की स्वायतत्ता छीनकर, इसे फिर से इंटरनेशनल रडार पर ला दिया है और अब चीन भी इस मामले में दखल दे रहा है. यही दो वजह हैं, जिससे पाकिस्तान बेहद खुश होगा.
पीएम मोदी के लिए संतुलन जरूरी
प्रधानमंत्री मोदी पर इस मामले में कुछ कार्रवाई करने का भारी दबाव होगा. खासकर तब, जब उन्होंने देश के सामने कहा- "हमारे जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा'.
- इस बयान के बाद भी, फिलहाल दोनों पक्षों की ओर से ऐसा नहीं लग रहा है कि वो झड़पों को आगे बढ़ाएंगे.
तथ्य ये है कि दोनों देशों के विदेश मंत्रालय लगातार संपर्क में हैं. पीएम मोदी भी जानते हैं कि चीन के साथ कोई सैन्य टकराव दोनों पक्षों के लिए अच्छा नहीं होगा. इसलिए इस मामले में उन्हें ऐसा संतुलन बनाना चाहिए, जिससे न तो तनाव बढ़े और न भारत झुकता दिखे.
पीएम मोदी ये भी अच्छी तरह से जानते हैं कि उन्होंने चीनी राष्ट्रपति के साथ बेहतर रिश्ते बनाने के लिए काफी मेहनत की है. लेकिन फिलहाल ये मेहनत बेकार नजर आ रही है. अक्टूबर 2019 में दोनों नेताओं ने "अनौपचारिक' मीटिंग की थी. वो इस बात पर सहमत थे कि 2020 का साल भारत-चीन के सांस्कृतिक और पीपुल टू पीपुल एक्सचेंज के नाम होगा. देखिए कैसे अचानक चीजें बदल जाती हैं.
CPEC और BRI की सुरक्षा
- कुल जमा बात ये कि इसमें कोई शक नहीं है कि भारत-चीन संघर्ष का बड़ा विजेता पाकिस्तान होगा. क्या पाकिस्तान को पूर्वाभास था कि चीन जो कदम उठाने जा रहा है और इतना बड़ा मुद्दा बन जाएगा, कहा नहीं जा सकता.
चीनी सेना की लद्दाख में दखल उसके चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) को संरक्षण प्रदान करता है. ये गिलगित-बाल्टिस्तान से होकर जाने वाले बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (BRI) पर भारत के विरोध को भी बेअसर करता है.
दूसरों शब्दों में कहें तो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर जाने वाले CPEC को लेकर भारत का विरोध का वजन अब चीन के लिए कम रह गया है. यह पाकिस्तान और रावलपिंडी में बैठे सैन्य अफसरों के लिए खुशखबरी की तरह है.
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