ADVERTISEMENTREMOVE AD

भारत-चीन सीमा विवाद:हिमालय क्षेत्र में कम होती आबादी से चीन को कैसे मिल रही मदद?

भारत और भूटान की सीमा के नजदीक लगातार रणनीतिक तैयारी कर रहा है चीन

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

चीन (China) के भारतीय सीमा में घुसपैठ की खबरें पिछले कई सालों से लगातार सामने आती रही हैं. लेकिन पिछले दिनों अरुणाचल की कुछ सैटेलाइट इमेज सामने आईं, जिनमें दावा किया गया कि चीन ने यहां पूरे गांव बसा दिए हैं. ऐसी मीडिया रिपोर्ट्स तेजी से बढ़ती जा रही हैं, जिनमें दिखाया जा रहा है कि कैसे चीन भारतीय सीमा के नजदीक जियाओकांग (मॉडल) गांव बना रहा है. जहां हान और तिब्बतियों की बसावट है और ये अरुणाचल प्रदेश और भूटान के क्षेत्र में आते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

पेंटागन की ताजा रिपोर्ट में लोंगजू के पास एक ऐसे ही गांव के निर्माण की बात कही गई है, जिस पर भारत अपना दावा करता है. यानी भारत का कहना है कि ये इलाका हमारा है.

भारत मैकमोहन लाइन के उत्तर में कुछ इलाकों पर अपना दावा करता है. जहां भारत और चीन की सीमा बनाई जा रही थी. लेकिन चीन ने कभी भी इस लाइन को सीमा के तौर पर स्वीकार नहीं किया. जो फिलहाल लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) के रूप में मौजूद है. हालांकि भारतीय सेना और खुद चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने ये कहा है कि चीन ने मॉडल विलेज एलएसी के अपने इलाके में बनाए हैं.

0

भूटान में भी बन रहे चीनी गांव

अगर बात पड़ोसी देश भूटान की करें तो यहां हालात और भी ज्यादा खराब हैं. चीन ने यहां कई गांव बसाए हैं और भूटान के उस इलाके में ये गांव हैं, जिन पर चीन अपना दावा पेश करता है. भारत और चीन की तरह भूटान-चीन भी सीमा विवाद में लगातार उलझे हैं. चीन की पुरानी आदत है कि वो सीमा तमाम हिस्सों पर अपनी दावेदारी पेश कर देता है. भूटान के पश्चिमी हिस्से के कई इलाकों पर चीन अपना दावा करता है. जिसमें उत्तर में आने वाला डोकलाम भी शामिल है. इतना ही नहीं अब चीन ने पूर्वी भूटान के कुछ इलाके पर फिर से अपना नया दावा पेश कर दिया है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

एनडीटीवी ने नवंबर 2020 में पंगडा गांव को लेकर खुलासा किया था. ये गांव टोरसा/मोचु नदी के किनारे बसाया गया था. ये गांव भूटान के लगभग 2 किमी क्षेत्र में था. साथ ही इसमें एक सड़क भी नदी के किनारे बनी हुई दिखाई गई थी, जो भूटान के ही क्षेत्र में थी. लेकिन भूटान एक काफी छोटा देश है, जिसकी कुल आबादी सिर्फ 7.72 लाख लोगों की है. ये देश आकार में डेनमार्क की तरह दिखता है, लेकिन इसकी आबादी का 1/7वां हिस्सा है. यही कारण है कि सीमाओं पर उचित पुलिसबल की व्यवस्था नहीं है. साथ ही कम आबादी के चलते उसे ज्यादा बढ़ाया भी नहीं जा सकता है.

इसी तरह 2021 में ही रॉबर्ट बार्नेट ने बताया था कि, चीनी उत्तरी भूटान में भी इसी तरह के गांवों का निर्माण कर रहे हैं. इनमें से तीन पर पहले ही चीन का कब्जा हो चुका था और चौथा गांव बन रहा था. साथ ही यहां करीब 66 मील की सड़कें, एक छोटा हाइड्रोपावर स्टेशन और पांच सैन्य चौकियां भी मौजूद थीं.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

कुछ दिनों पहले एनडीटीवी ने सैटेलाइट इमेज जारी कर फिर रिपोर्ट किया कि चीन ने पश्चिमी भूटान के एक हिस्से में चार गांव बना दिए हैं. चीन इन पर अपना दावा कर रहा है. इन सभी गावों को करीब 1 साल में तैयार किया गया है.

लद्दाख इलाके में एक और परेशानी खड़ी हो गई है, 1980 के दशक में सुरक्षा बलों ने भारतीय चरवाहों को अपने जानवरों को इन इलाकों में ले जाने से रोक दिया. जब तक ये प्रतिबंध हटाए गए, तब तक चीन सीमा पर कई चारागाहों पर अपना कब्जा कर चुका था. खासतौर पर फुकचे और डेमचोक क्षेत्र में ये हुआ.

चीन की सीमा में मौजूद उनके सैनिक लगातार चरवाहों को परेशान करते हैं और लद्दाख और उत्तराखंड के बाराहोटी इलाके में चरागाहों में अपनी घुसपैठ करते रहते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

चीनी घुसपैठ के बाद गांवों से तेजी से हो रहा पलायन

चीनी घुसपैठ और चरवाहों को लगातार परेशान करने के बाद गांवों से लोग मैदानी इलाकों में पलायन करने पर मजबूर हैं. हाल ही में लद्दाख क्षेत्र में आने वाले चुशुल का प्रतिनिधित्व करने वाले कोंचोक स्टैनजिन ने रक्षा मंत्री से इसे लेकर शिकायत भी की थी. उन्होंने बताया था कि पूर्वी लद्दाख में हाल में जो कुछ भी हुआ उसके बाद सेना स्थानीय लोगों को कुछ चरागाहों तक पहुंचने से रोक रही है.

साल 2013 में राजदूत पी स्टोबदान, जो कि खुद एक लद्दाखी हैं, उन्होंने बताया था कि कैसे चीन ने 1984 से लेकर 2008 के बीच डेमचेक-कुयुल सेक्टर में करीब 45 किमी लंबे चरागाह पर अपना कब्जा कर लिया था. ये चुशुल, न्योमा, डुंगटी, कुयुल और लोमा गांव के चरवाहों के लिए अकेली शीतकालीन चारागाह भूमि थी. यहां सर्दियों में चरवाहे भेड़ों और याक को लाकर उनका पालन-पोषण करते थे.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

लेकिन 1993 के बाद से चीनियों ने भारतीय चरवाहों को उन क्षेत्रों को छोड़ने पर मजबूर कर दिया और यहां कंस्ट्रक्शन का काम शुरू किया गया. भारत और चीन के बीच चल रही इस जंग में सबसे ज्यादा असर लद्दाख के चांगपा खानाबदोशों की जिंदगी पर हुआ है. जो तिब्बत और लद्दाख में फैले चंगथांग पठार में रहते थे. इस तनाव ने पिछले कई सालों में उनकी जिंदगी जीने के पूरे तरीके को ही बदल दिया है.

पूरे हिमालयी क्षेत्र में भारतीय और तिब्बती इलाकों में आबादी लगातार कम हुई है. इस इलाके में जीवन काफी ज्यादा कठिन है और सीमा पार होने वाले व्यापार पर लगने वाले प्रतिबंध ने ऊन और चराई पर आधारित आजीविका को लगभग पूरी तरह खत्म कर दिया है. निचले हिमालयी क्षेत्रों से भी लोगों ने बच्चों की बेहतर शिक्षा और नौकरी की तलाश में मैदानी इलाकों का रुख किया है. जबकि यहां कई जनजातियों और जातीय समूहों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया है, जो यहां मौजूद समस्या से निपटने में कामयाब नहीं हुए हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
अब चीन की रणनीति ये है कि इस गैर आबादी वाले क्षेत्र में ज्यादा से अपना कब्जा जमाया जाए और लोगों को बसाया जाए. क्योंकि चीन जानता है कि सीमा पर सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सेना अकेली काफी नहीं है.

भारत को हिमालय क्षेत्र में विकास के लिए रणनीति की जरूरत

पिछले साल यानी 2020 अगस्त में तिब्बत को लेकर एक नेशनल फोरम में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन की तिब्बत नीति को लेकर अपना पक्ष रखा. जिसमें उन्होंने कहा कि, स्थिरता, पारिस्थितिकी (ईकोलॉजी) और सीमा क्षेत्र पर चकबंदी... काफी जरूरी है. उन्होंने कहा कि राष्ट्र पर शासन करने के लिए हमें सीमाओं पर शासन करना जरूरी है और इसके लिए हमें पहले तिब्बत को स्थिर करना होगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इसमें कोई भी दोराय नहीं है कि चीन तिब्बत में लगातार अपने बुनियादी ढांचे को बढ़ाने में जुटा है. हमारी सीमाओं पर जो मॉडल गांव बनाए जा रहे हैं वो इसका छोटा सा उदाहरण है. जबकि तिब्बत में चीनी सेना की ऐसी गतिविधियों की पूरी सीरीज चल रही है. चीनी सेना के लिए एयरबेस और मिलिट्री बेस तैयार करने की कोशिश हो रही है. जहां अब और ज्यादा एडवांस हथियारों की सप्लाई भी हो रही है.

डोकलाम में जो कुछ हुआ, उसके बाद से शी जिनपिंग खुद इस मुद्दे पर दिलचस्पी ले रहे हैं. जुलाई 2021 में, वो तिब्बत का दौरा करने वाले और अरुणाचल प्रदेश के विपरीत क्षेत्र में समय बिताने वाले पहले चीनी नेता बने, जहां उन्होंने भारतीय सीमा से केवल 15 किमी दूर ल्हासा को निंगची से जोड़ने वाली रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण रेलवे लाइन खोली.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

भारत ने भी बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं. लेकिन ये सब उसकी सैन्य स्थिति को बेहतर करन की तरफ उठाए गए कदम हैं. जरूरत फिलहाल इस बात की है कि एक व्यापक हिमालयी रणनीति को अपनाया जाए, जिसमें रोजगार, विकास और पर्वतीय क्षेत्रों की आबादी को किस तरह से बढ़ाया जाए, इन सब चीजों को बढ़ावा मिले.

अगर इस तरह की रणनीति को लेकर सोचा जाता है तो इसमें कई मंत्रालय और राज्य शामिल होंगे. इसीलिए ये जरूरी है कि खुद प्रधानमंत्री इसकी पहल करें .

(लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली के प्रतिष्ठित फेलो हैं. ये एक ओपिनियन पीस है और इसमें व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×