भारत-चीन के बीच सीमा विवाद के बढ़ने के साथ सरकार ने आपातकालीन सैन्य खरीद को मंजूरी दे दी है. इसके मद्देनजर यह सवाल उठता है कि अगर भारतीय वायु सेना युद्ध के लिए तैयार है, जैसा कि चीफ ऑफ द एयर स्टाफ (सीएएस) ने दावा किया है, तो आकस्मिक खरीद का विकल्प क्यों चुना गया है?
सरकार ने हाल ही में सशस्त्र सेनाओं को यह अधिकार दिया है कि वे सैन्य उपकरणों की आपातकालीन खरीद के प्रस्ताव रख सकती हैं. ताकि हालिया सीमा विवाद के कारण उत्पन्न होने वाली सभी स्थितियों के लिए तैयार रहा जा सके. अभी पिछले ही हफ्ते इस सीमा संघर्ष के कारण 20 भारतीय सैनिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी.
आपातकालीन खरीद की जरूरत क्यों है?
कुछ साल पहले सरकार ने सैन्य बलों से कहा था कि उन्हें कम से कम 10 दिनों के गंभीर युद्ध के लिए सैन्य उपकरणों का स्टॉक तैयार रखना चाहिए जिसे आम भाषा में 10i जरूरतें कहा जाता है. अगर इन जरूरतों को पूरा किया गया था तो हथियारों और युद्ध की दूसरी सामग्री के लिए इतनी जल्दीबाजी क्यों है?
कोई भी देश कभी भी एक बार में सभी हथियारों और युद्ध सामग्री को इकट्ठा नहीं कर सकता- भले ही वह युद्ध की तैयारियों में कितनी भी बड़ी धनराशि क्यों न खर्च करता हो. इसका नतीजा यह होता है कि कम समय में स्टॉक बर्बाद हो जाता है, कई बार हथियार और युद्ध सामग्री प्रचलन में भी नहीं रहते- यानी पुराने पड़ जाते हैं.
इससे अच्छा यह होता है कि आप बैच में अपने स्टॉक को खरीदें. जब तक आपकी जेब में पैसा है, तब तक आप आसानी से हथियार खरीद सकते हैं.
इस प्रकार आप लगातार काफी समय तक खरीद कर सकते हैं- इस बीच आपके देश की अर्थव्यवस्था में दोबारा तेजी आ सकती है और आपके देश के उद्योगों को घरेलू स्तर पर इन हथियारों और युद्ध सामग्री को विकसित करने का मौका मिल सकता है.
भारतीय वायुसेना क्या खरीद सकती है?
आम तौर पर सैन्य सेवा के राजस्व बजट से ऐसी आपातकालीन खरीद की जाती है और इसके लिए वाइस चीफ्स को विशेष खरीद अधिकार प्राप्त होते हैं. वही तय करते हैं कि संभावित युद्ध के लिए मौजूदा जरूरतें क्या हैं.
इस बात की संभावना है कि भारतीय वायु सेना अपना स्टॉक बढ़ाने के लिए हथियारों और युद्ध सामग्री की खरीद करेगी.
जैसे मिसाइल, बम, रॉकेट्स, ‘डम्ब’ आयरन बमों के लिए स्ट्रैप ऑन गाइडेंस किट्स ताकि उन्हें ‘स्मार्ट’ बम में तब्दील किया जा सके और बड़ी संख्या में दूसरे छोटे आइटम्स- जिनमें से अधिकतर कंज्यूमेबल प्रकृति के हों. यह तय है कि इस शॉपिंग लिस्ट में वेपेन प्लेटफॉर्म्स और मशीनरी शामिल नहीं होगी. इसमें अतिरिक्त एसयू-30एस और मिग 29एस की प्रस्तावित खरीद भी शामिल नहीं होगी, हालांकि यह भी उतनी ही जरूरी है.
शॉपिंग लिस्ट में और क्या-क्या होगा?
अगर चीन के साथ तनाव को देखते हुए तुरत फुरत में खरीदारी की योजना बनाई गई है तो शॉपिंग लिस्ट में बम जरूर होंगे. हालांकि बम बनाने की देसी तकनीक विकसित की गई है, फिर भी युद्ध जैसी स्थिति के लिए यह पर्याप्त नहीं है.
100 से 500 किलो के बमों को इस लिस्ट में जरूर शामिल किया जाएगा, यानी वे जितनी मात्रा में उपलब्ध होंगे, इन्हें स्पैनिश एचएसएलडी (हाई स्पीड लो ड्रैग) बमों के साथ ऑगमेंट किया जाएगा. कल्पना कीजिए कि एक बार में एक एसयू-30 250 किलो क्लास के 28 बमों की वर्षा करेगा तो कितना विनाश होगा, यह भी सोचिए कि हर दिन हर बेस में कितने बमों की जरूरत होगी.
ये सभी बम ‘डम्ब’ श्रेणी मे आते हैं, रिलीज करने के बाद वे नॉर्मल ट्राजेक्टरी का पालन करते हैं और इन्हें गाइड नहीं किया जा सकता, इनमें गाइडेंस किट लगाई जाए तो आपके हाथ एक ऐसा गाइडेड हथियार आ जाता है जिसकी क्षमता अदम्य होती है. ये किट्स इनहाउस ‘सुदर्शन’ हो सकते हैं, या आयातित ‘पेववे’ या ‘ग्रिफिन’.
अधिकतर भारतीय लड़ाकू विमान इन बमों के अनुकूल हैं और इन्हें इज़राइली ‘लिटेनिंग’ की तरह डेज़िगनेटर पॉड की जरूरत नहीं पड़ती.
यूं वायुसेना की शॉपिंग लिस्ट में मशहूर क्रिस्टल मेज़ और स्पाइस जैसे ‘स्मार्ट’ बमों को जरूर जगह मिलेगी. इन्हें रूसी मूल के केएबी सीरिज़ के पेनेनट्रेशन हथियारों के साथ इस्तेमाल किया जाएगा. इससे भारतीय लड़ाकू विमानों के लिए सप्लाई रूट्स और ब्रिजेज़ को लक्ष्य बनाना आसान होगा और इसका उन्हें लाभ भी मिलेगा. इस श्रेणी को गाइडेड बम कहा जाता है लेकिन यह तकनीकी रूप से मिसाइल और बम के बीच की होती है- उसके हाइब्रिड डिजाइन को देखते हुए. अपनी अनुमान से जुड़ी छोटी सी त्रुटि और विनाशकारी क्षमता के कारण वे गाइडेंस किट वाले परंपरागत बमों से बेहतर माने जाते हैं.
एयर यू एयर मिसाइल के स्टॉक को बढ़ाया जाना चाहिए?
चीनी सेना के घुसपैठियों को भारतीय ठिकानों से दूर रखने के लिए यह जरूरी है कि एयर टू एयर मिसाइलों के स्टॉक को बढ़ाया जाए. यह भी देखना होगा कि किस प्रकार की मिसाइलों का ऑर्डर दिया जाए. मिराज
2000 और उसके अपग्रेडेड साथी टीई में अधिकतर मैजिक और माइका क्लास की मिसाइलों का इस्तेमाल किया जाता है. दूसरी तरफ रूसी प्लेटफॉर्म में आरवीवी एई, आर 77 और आर 27 ईआर/ईटी क्लास की मिसाइलों का इस्तेमाल होता है.
बेशक, इनमें से कुछ को भारतीय शॉपिंग लिस्ट में जगह जरूर मिलेगी.
घरेलू स्तर पर विकसित ‘अस्त्र’ के परिणाम देखने बाकी हैं और अगर इसे समय रहते एकीकृत किया गया तो इस श्रेणी की मिसाइलों के आयात का दबाव कुछ कम होगा.
इसके अलावा एंटी शिपिंग मिसाइलों और एसयू-30एस के लिए एंटी रेडिएशन मिसाइलों की खरीद भी की जा सकती है, जिन्हें क्रमशः जहाजों और रडार के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है.
यूं वायु सेना को कुछ अलग हटकर सोचना चाहिए
जगुआर के मैरिटाइम वर्जन में हारपून मिसाइलें इस्तेमाल होती हैं, और इसकी काफी बड़ी संख्या हमारे पास मौजूद है. अगर जरूरत पड़े तो इसे नौसेना से हासिल किया जा सकता है. जगुआर लैंड अटैक बहुत अधिक संख्या में इस लिस्ट में शामिल नहीं होंगे, अमेरिकन सेंसर फ्यूज्ड हथियार पहले ही खरीदे जा चुके हैं और इसकी उम्मीद बहुत कम है कि भारत को ये और अधिक संख्या में मिलने वाले हैं. ये एंटी आर्मर स्मार्ट बम हैं और इन्हें दुश्मन के ठिकानों पर गिराया जाता है. जगुआर में इस्तेमाल होने वाली दूसरी मिसाइलें सामान्य हैं और उनका जिक्र ऊपर किया जा चुका है.
इनके अतिरिक्त वायु सेना के कुछ चहेते हथियारों में एयरक्राफ्ट फ्रंट गन्स और कुछ अनगाइडेड रॉकेट्स शामिल हैं.
यूं भारतीय वायु सेना को कुछ अन्य दिशाओं में भी काम करना चाहिए- जैसे एयरक्राफ्ट्स पर सिस्टम्स को अपग्रेड करना और उनका एकीकरण. यह काम जितनी जल्दी किया जाएगा- सिस्टम्स उतने अधिक प्रभावी होंगे.
कारगिल युद्ध के दौरान ऐसा काम रातों रात किया गया था. मिग 23/27 के बोर्ड पर जीपीएस को फिट किया गया था. मिराज 2000 ऑनबोर्ड कंप्यूटर को टिंकर किया गया था ताकि ऐसे बमों को डिलिवर किया जा सके, जिन्हें मिराज ने पहले कभी कैरी नहीं किया था. बेशक, ऐसी नई सोच और प्रयोग से भारतीय वायु सेना को विपरीत परिस्थितियों को काबू करने में मदद मिलेगी.
(अमित रंजन गिरि भारतीय वायु सेना के सेवानिवृत्ति विंग कमांडर हैं. यह एक ओपनियन लेख है. ये लेखक के निजी विचार हैं. द क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है)
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