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India-UK FTA Deal: ऋषि सुनक का ‘अंदरूनी मामला’ कैसे राष्ट्रीय मामला बन गया?

UK मीडिया का कहना है कि भारत के साथ किसी भी सौदे में सबसे ज्यादा फायदा इंफोसिस या मूर्ति परिवार को होने वाला है.

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भारत 9 और 10 सितंबर 2023 को G20 शिखर सम्मेलन के लिए तैयार है. अब चूंकि चुनाव भी सर पर है तो राजधानी नई दिल्ली में कई लोगों के लिए यह एक बहुत बड़ा शोशा बनने वाला है. इस आयोजन का मतलब होगा, सड़कों पर रुकावटें और यातायात पर प्रतिबंध.

इस बीच, ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक (Rishi Sunak) को शिखर सम्मेलन के लिए भारत आने से पहले खुद से ही बनाई गई कुछ रुकावटों का सामना करना पड़ रहा है.

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15 अगस्त को कुछ हिंदू संगठनों ने ऋषि सुनक की तारीफ की कि वह कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के जीसस कॉलेज में भारतीय उपदेशक मोरारी बापू की राम कथा में भाग लेने पहुंचे. सुनक की हिंदू आस्था की सराहना की गई, लेकिन इस बार मामला कुछ अलग है. उनकी संपत्ति को लेकर विवाद खड़ा हो गया है.

ज्यादातर ब्रिटिश लोगों, यानी हर 10 में से 6 के लिए राजनीति में धर्म कोई मायने नहीं रखता. वह राजनेताओं को ईमानदारी और दौलत के लिहाज से आंकते हैं. पिछले कुछ सालों में कंजरवेटिव पार्टी ने इसका दुरुपयोग किया है, और इस वजह से मतदाताओं का गुस्सा भड़का है.

भारत-यूके एफटीए सौदा

लैंकेस्टर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर चक्रवर्ती राम-प्रसाद कहते हैं, "जहां तक एक हिंदू होने की बात है, मुझे यकीन नहीं है कि आने वाले वक्त में ब्रिटेन पर इसका कोई बड़ा प्रभाव होगा, न ही मुझे लगता है कि भारत के साथ रिश्तों पर कोई असर पड़ेगा."

वह आगाह करते हैं कि सुनक को किसी भी मायने में ऐसे प्रधानमंत्री के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए जो हिंदुत्व के नाम पर नीतियां बनाएगा. सुनक ऐसे व्यक्ति हैं जो अपनी अथाह संपत्ति के कारण शक्तिशाली हैं और यह उनकी संपत्ति ही है जिसने उन्हें गंभीर विवादों में घसीटा है.

एक बार फिर, ब्रिटेन की प्रथम महिला अक्षता मूर्ति का इंफोसिस पर स्वामित्व सवालों के घेरे में है, जबकि उनके पति ऋषि सुनक भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहे हैं. (मुक्त व्यापार समझौते के तहत दो देश या इससे अधिक देश आपस में होने वाले आयात निर्यात की पाबदियों में कमी लाते हैं या हटा देते हैं, जैसे - कस्टम्स, आदी) यूके की व्यापार सचिव केमी बडेनोच भले ही भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के "अंतिम चरण" में होने के बारे में जोर-शोर से बात कर रही हों लेकिन सरकार के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि सितंबर में ऋषि सुनक की भारत की पहली आधिकारिक यात्रा के दौरान इस समझौते की कोई उम्मीद नहीं है, हालांकि दोनों पक्ष काफी हद तक इसके लिए जोश से भरे हुए हैं.

दूसरी तरफ ब्रिटेन में प्रधानमंत्री सुनक के हितों के टकराव से जुड़े सवालों को नजरंदाज नहीं किया जा सकता.
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हितों का टकराव

बीते हफ्ते में लेबर और ऑल पार्टी हाउस ऑफ कॉमन्स बिजनेस और ट्रेड सिलेक्ट कमिटी ने सुनक से कहा कि वह अपनी पत्नी के वित्तीय हितों का और खुलासा करें, यह देखते हुए कि इंफोसिस को किसी भी समझौते से सबसे ज्यादा फायदा हो सकता है.

द गार्डियन के अनुसार, एक विशेषज्ञ ने कथित तौर पर कहा है कि सुनक को खुद को भारत के साथ हो रही व्यापार वार्ता से पूरी तरह अलग कर लेना चाहिए. सुनक जहां भी जाते हैं, हितों के टकराव के आरोप उनके पीछे-पीछे पहुंच जाते हैं.

यूके मीडिया की दलील है कि इंफोसिस के लिए यूके सबसे बड़ा मार्केट है. इसके ग्राहकों में ब्रिटिश सरकार तक शामिल है. इसीलिए व्यापार समझौते से सबसे ज्यादा मुनाफा उसे ही होगा और दूसरे शब्दों में कहें, तो मूर्ति परिवार ही सबसे ज्यादा फायदे में रहने वाला है.

कथित तौर पर सांसदों और व्यापार विशेषज्ञों ने उच्च सरकारी स्तर पर ‘पारदर्शिता’ को लेकर चिंता जताई है, चूंकि इंफोसिस में सुनक की पत्नी अक्षता मूर्ति की करीब £500 मिलियन की हिस्सेदारी है.

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वर्क वीजा में इंफोसिस का पेंच

वर्क वीजा का मुद्दा एफटीए में काफी अहम है, चूंकि भारत और अधिक छूट की मांग कर रहा है. हालांकि द ऑब्जर्वर के अनुसार, इंफोसिस (जिसका ब्रिटिश सरकार के साथ-साथ कई यूके कंपनियों के साथ अनुबंध है), "यूके वीजा व्यवस्था में बदलाव के जरिए अपने हजारों कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स के लिए यूके तक पहुंच को आसान बनाना चाहती है."

रिपोर्ट में कहा गया है: "मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत में भारत मांग कर रहा है कि आईटी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे क्षेत्रों में उसके वर्कर्स को और ज्यादा वीजा दिए जाएं. दूसरी तरफ यूके चाहता है कि स्कॉच व्हिस्की और कारों सहित कई दूसरे सामानों के भारत में निर्यात पर उच्च शुल्क में कटौती की जाए."

भारत के लिए सॉफ्टवेयर क्षेत्र उसका सबसे बड़ा निर्यात है. इंफोसिस और टाटा कंसल्टेंसी जैसी कंपनियां लंबे समय से यूके वर्क वीजा प्रणाली की निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी यूजर रही हैं.

बिजनेस और ट्रेड सिलक्ट कमिटी अध्यक्ष डैरेन जोन्स का कहना है, “जैसा कि प्रधानमंत्री को हाल ही में पता चला है, यह महत्वपूर्ण है कि वह किसी भी हित की घोषणा करें. मुझे उम्मीद है कि वह भारत व्यापार समझौते के संबंध में भी ऐसा करेंगे." ऑब्जर्वर के अनुसार, वार्ता और सुनक की भागीदारी को लेकर संवेदनशीलता इतनी अधिक है कि विदेश कार्यालय (एफसीडीओ) ने संभावित सौदे के मुद्दों की जांच के लिए इस ऑटम के महीनों में भारत की यात्रा आयोजित करने के खिलाफ जोन्स की कमेटी को कड़े शब्दों में चेतावनी दी है.

जोन्स का कहना है, "कमेटी को सरकार ने सलाह दी थी कि संवेदनशील व्यापार वार्ता के बजाय अगले साल भारत का दौरा करना बेहतर होगा."

कथित तौर पर, एफसीडीओ ने कमेटी को इशारा दिया है कि वह भारतीय अधिकारियों और व्यवसायियों के साथ सांसदों की बैठकें आयोजित करने में सहायता नहीं कर पाएगी. द ऑब्जर्वर के अनुसार, सांसदों और एफसीडीओ के बीच तनाव के संकेतों के बीच, कमेटी संसद के अगले सत्र के तुरंत बाद बैठक करेगी और इस बात पर चर्चा करेगी कि क्या इस दिशा में पहल करनी है.

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पत्नी की हिस्सेदारी के कारण सुनक विवादों में रहे

सुनक के लिए यह पहला विवाद नहीं है. मार्च में उनसे पूछा गया था कि क्या उन्होंने चाइल्डकेयर कंपनी में अपनी पत्नी के शेयरों की घोषणा की है. इस पर उनके प्रवक्ता ने कहा था कि प्रधानमंत्री ने नियमों का "पूरी तरह" पालन किया है.

हालांकि स्टैंडर्ड कमीश्नर ने अब पाया है कि सुनक ने कोरू किड्स में अक्षता मूर्ति के वित्तीय हितों की पूरी तरह से घोषणा नहीं की थी, जबकि उनको ऐसा करना चाहिए था.

सुनक सबसे अमीर सांसदों में से एक हैं, लेकिन इंफोसिस में उनकी पत्नी की हिस्सेदारी ने इस जोड़ी को 2022 में भी परेशानी में डाला था. तब यह पता चला था कि उनकी पत्नी नॉन-डोम (गैर अधिवासित) दर्जे का दावा कर रही थीं और इंफोसिस ने यूक्रेन पर आक्रमण के बावजूद रूस के साथ अपने संबंध जारी रखे थे.

कहा गया था कि सुनक ने अनजाने में संसद की आचार संहिता का उल्लंघन किया है. उन्होंने उस भूल को सुधार लिया है, लेकिन वीकेंड तक उन्होंने रजिस्टर में इंफोसिस में अपनी पत्नी की 0.94% हिस्सेदारी को सार्वजनिक नहीं किया था. सुनक से जुड़े कुछ दूसरे विवाद भी हैं, जैसे चांसलर ऑफ एक्सचेकर के तौर पर काम करते हुए उनके पास यूएस ग्रीन कार्ड होने की जानकारी भी मिली थी.

अब नए विवाद के जल्द दम तोड़ने की उम्मीद नहीं है क्योंकि अगले हफ्ते ग्रीष्मावकाश के बाद जब संसद फिर से बैठेगी, तो सवाल उठना तय है. इसकी उम्मीद भी नहीं है कि विपक्ष इस मुद्दे को अनदेखा कर देगा. मामला अंदरूनी है लेकिन यह सिर्फ उम्मीद की जा सकती है कि इसका असर भारत के साथ एफटीए पर नहीं पड़ेगा, जिसका सभी राजनीतिक दल समर्थन करते हैं. लेबर नेता कीर स्टार्मर यूके-भारत व्यापार समझौते को "व्यापक रणनीतिक साझेदारी की तरफ पहले कदम" के रूप में देखते हैं.

(नबनीता सरकार लंदन में स्थित एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. वह @sircarnabanita पर ट्वीट करती हैं. यह एक ओपनियन पीस है और इसमें व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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