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PM मोदी जी, डॉलर बॉन्ड दिला सकते हैं कोविड-19 आर्थिक संकट से राहत 

COVID काल के संकटों से निपटने के लिए डॉलर बॉन्ड की और ज्यादा जरूरत है

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सुबह 5 बजे. मेरा फोन बजा. वक्त इतना बेतुका था कि इसकी आवाज कर्कश लगने लगी. लेकिन मैं किसी तरह जागा और अपने NRI मित्र, जो कि न्यूयॉर्क में रहता है, का फोन उठाया.

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NRI (खुशी से): गुड मॉर्निंग! मैं तुम्हारी सरकार के प्रोत्साहन पैकेज से इतना कन्फ्यूज हो गया हूं कि तुम्हें कॉल करना पड़ रहा है. मोदी इसे 20 लाख करोड़ रुपये का बताते हैं, लेकिन चिदंबरम दावा करते हैं कि ये रकम इससे एक दहाई से भी कम हैं. मुझे बताओ, क्या मोदी ने गेंद बाउंड्री के बाहर उछालकर छक्का मारा है या मिड विकेट पर आराम से लपक लिए गए हैं?

COVID-19 काल से पहले की इन उपमाओं को समझने में मुझे थोड़ा वक्त लगा, जब भारत में, अब विलुप्त हो चुके खेल, क्रिकेट के लिए जुनून हुआ करता था. अब मैं अपने दोस्त को क्या बताऊं कि COVID-19 के बाद के डिजिटल युग में हम सब ऑनलाइन लूडो खेलने के आदी हो गए हैं.

मैं (अभी भी नींद में): देखो, क्योंकि तुम क्रिकेट की बात कर रहे हो, मुझे ये बताओ – अगर कोई बल्लेबाज एक ओवर में जैसे-तैसे एक-एक कर 6 रन बनाती है, और उसका कैप्टन पूरी भाव-भंगिमा दिखाते हुए ये दावा करता है कि उसने छक्का मार लिया है, तो तुम क्या कहोगे? वो सत्यवादी है?

NRI (कन्फ्यूज होकर): तकनीकी तौर पर तो ये सच है, लेकिन अंतरात्मा से कहें तो ये अर्धसत्य है.

मैं: वही, मेरे दोस्त, मोदी का 20 लाख करोड़ का प्रोत्साहन पैकेज भी है! ये कई तरह की गारंटी का मिश्रण है, जैसे कि 3 लाख करोड़ की गारंटी, आर्थिक मदद, कर वापसी, मुफ्त अनाज, एक लाख करोड़ रुपये की गारंटी देने की गारंटी, और कुछ हजार करोड़ रुपये का नकदी ट्रांसफर, ये सब मिलाकर हालांकि वो जादुई आंकड़ा बन जा रहा है.

NRI (और कन्फ्यूज होकर): तो चिदंबरम ठीक बोल रहे हैं? वास्तविक नकदी खर्च बेहद मामूली रकम है?

मैं (थोड़ा रुककर): देखो, तुम्हारे भूतपूर्व देश में सच्चाई कभी इतनी सरल भी नहीं होती है, मेरे दोस्त. क्योंकि गारंटी कोई कैश भले ना होती हो, लेकिन हमारी उलझी हुई बैंकिंग प्रणाली में ये कई बार कैश के बराबर ही होती है. मुझे जरा विस्तार से बताने दो. क्योंकि हमारे बैंक कंपनियों को कर्ज देने से डरते हैं, वो सरकार से 4 लाख करोड़ की अतिरिक्त सिक्योरिटी खरीद लेते हैं, मतलब वो वापस मोदी को पैसा लौटा देते हैं. लेकिन अब, क्योंकि मोदी ने गारंटी ली है कि बैंकों का नुकसान नहीं होगा, उन्हें सरकार की सिक्योरिटी से 4 लाख करोड़ रुपये निकालने और वो कैश कारोबारियों को देने की ताकत मिल गई है. क्या अब तुम्हें समझ में आया? मोदी ने सीधे तौर पर इन छोटी कंपनियों को कैश भले नहीं दिया हो, लेकिन जो गारंटी दी है उससे जो कैश बैंक मोदी को दे रहे थे, अब फैक्ट्रियों और दुकानों को देंगे. इसलिए इस तरीके से, वो दावा कर सकते हैं, और ये पूरी तरह जायज है, कि ‘मैंने डायरेक्ट कैश दिया है,’ इसके बावजूद कि उन्होंने ऐसा नहीं किया है. यह सब सिर्फ भारत में होता है.

NRI (मैं उसे देख नहीं सकता था, लेकिन मुझे पक्का यकीन है वो हामी में सिर हिला रहा था): अच्छा अच्छा, मैं समझ गया. छक्का छह रन ही होता है, चाहे वो एक-एक कर लो, या फिर मैदान से बाहर गेंद उछाल कर लो. लेकिन एक बात बताओ, मैंने यह भी पढ़ा है कि मोदी ने अमेरिकी खजाने में जमा 20 बिलियन डॉलर (1.50 लाख करोड़ रुपये) अप्रैल में बेच दिए? उन्होंने ऐसा क्यों किया?

मैं (अपनी कम-जानकारी छिपाने के अंदाज में): इस बारे में किसी को कुछ मालूम नहीं है, लेकिन कहा जा रहा है कि RBI ने इससे रुपया बॉन्ड खरीदे ताकि भारत में ब्याज दर कम रहे. इसके अलावा जो अतिरिक्त डॉलर थे उनको स्थानीय बाजार में बेच दिया ताकि रुपये की कीमत ना गिर जाए.

NRI (अब जब उसकी जानकारी से जुड़ी बात हो रही थी): ये क्या बकवास है? मोदी ने ये डॉलर बॉन्ड न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में क्यों नहीं बेचे? इससे भारत में ब्याज दर भी नीचे रहती, और रुपया भी मजबूत रहता, फिर अमेरिकी खजाने का स्टॉक भी उन्हें बेचना नहीं पड़ता. तुम हिंदुस्तानी भी ना %*&@*#, मैं क्या बोलूं...

अच्छा हुआ, इसी के साथ फोन कट गया. और मैं अपना फोन साइलेंट कर वापस सोने चला गया.

जरा मोदी 2.0 के पहले बजट को याद करते हैं

कहते हैं परेशान दिमाग नींद में भी ‘सोचता’ रहता है. इसलिए मैं उस सुबह दोबारा उठा तो एक सवाल मेरे दिमाग में कौंध रहा था:

क्यों, हां आखिर क्यों, मैडम सीतारमण ने 2019 के बजट में किए गए उस वादे को नहीं दोहराया जिसमें उन्होंने 10 बिलियन डॉलर के सरकारी बॉन्ड को अंतरराष्ट्रीय बाजार में जारी करने की बात कही थी? खास तौर पर अभी जब अमेरिका में ब्याज दर अप्रत्याशित तौर पर गिर चुकी है, इतिहास में पहली बार 10-ईयर ट्रेजरी 1 फीसदी से नीचे है! 

अगर आप क्रिकेट के उदाहरणों को बेधड़क इस्तेमाल के लिए मुझे माफ कर दें, तो मैं 6 जुलाई 2019 को, सीतारमण के पहले बजट के एक दिन बाद, लिखे उल्लास के अपने उन शब्दों को दोहराना चाहूंगा.

दुर्भाग्य से उनके साहसिक फैसले को जोखिम से डरने वाले सलाहकारों ने तुरंत ढेर कर दिया. बेहतर होगा उन आपत्तियों को हम एक-एक कर दोबारा समझने की कोशिश करें.

आपत्ति: डॉलर/रुपये की बदलती दरें लंबे समय में ‘असीमित’ लागत पैदा करेंगी.

जवाब: गलत. भविष्य में डॉलर की कीमत को देखते हुए 5 फीसदी प्रीमियम दर के भुगतान के बाद, हमारी लागत हमेशा नियंत्रित और गिनती किए जाने की स्थिति में होगी. हेज की गई ब्याज दर सरकार द्वारा स्थानीय बाजार से ली गई उधार की ब्याज दर से कुछ बेसिस प्वाइंट ज्यादा जरूर होगी, लेकिन विदेशी बाजार में घुसने के बाद कई ऐसी सकारात्मक बातें हैं जिससे इसकी भरपाई हो जाएगी, जिसमें ये भी शामिल है कि घरेलू बॉन्ड बाजार में निजी कर्जदारों को ज्यादा नकदी मिल जाती है.

आपत्ति: विदेशी बाजार में क्यों जाएं जब आप FPI (फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स) से घरेलू बाजार में ज्यादा उधार देने के लिए कह सकते हैं, यानी कि उन्हें ज्यादा रुपया बॉन्ड बेचे जाएं.

जवाब: ये एक बड़ी गलतफहमी है. क्योंकि जब विदेशी बाजार में सरकारी बॉन्ड जारी करते हैं, FPIs के अलावा (जो कि भारत में निवेश के लिए अधिकृत हैं) बिल्कुल नए तरीके के ऋणदाता आपके दायरे में होते हैं.

आपत्ति: विदेशी निवेशक मनमाने तरीके से हमारे बॉन्ड को डंप कर सकते हैं, जिससे रुपया खतरे में पड़ सकता है और ‘संक्रमण फैल’ सकता है.

जवाब: गलत. क्योंकि ये बॉन्ड डॉलर में दिखाए जाएंगे और कारोबार विदेशी एक्सचेंजों पर किया जाएगा, किसी भी ‘डंपिंग’ का रुपया या घरेलू बाजारों पर सीधा असर पर नहीं पड़ेगा. वास्तव में, जिस विकल्प की ऊपर वकालत की जा रही थी, कि FPI को रुपया बॉन्ड बेचे जाएं, उससे डंपिंग का खतरा जरूर पैदा होता है, जबकि इसके लिए गलत तरीके से डॉलर बॉन्ड को जिम्मेदार बताया जा रहा है.

आपत्ति: भय और भगदड़ के माहौल में भारत अंतरराष्ट्रीय गड़बड़ी से प्रभावित हो सकता है.

जवाब: इस डर की कोई वजह नहीं है. विदेशों में रहने वाले भारत के मेहनती बेटे-बेटियां सालाना करीब 70 बिलियन डॉलर देश में मौजूद अपने परिवार के सदस्यों को वापस भेजते हैं. NRIs ने सावधि जमा के रूप में अपनी मातृभूमि में 100 बिलियन डॉलर जमा कर रखा है. सबसे बड़ी बात ये कि भारत के पास 10 बिलियन डॉलर से करीब 49 गुना बड़ा (जो कि और बढ़ रहा है) विदेशी मुद्रा भंडार है. अगर इसके बावजूद हम जोखिम लेने से डरते हैं, तो हमें ये सब भूल जाना चाहिए (या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले लेनी चाहिए).

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साफ है, अगर 2019 में डॉलर बॉन्ड का कोई मतलब बनता था, तो आज COVID काल के संकट से निपटने के लिए इसकी और ज्यादा जरूरत है. और जब बाबू (नौकरशाह) आपत्ति जताते हुए ये कहें- ‘लेकिन पिछले साल तो आपने इस विचार को छोड़ दिया था’, तो मोदी और सीतारमण को पलटकर जवाब देना चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे जॉन मेनार्ड कीन्स ने दिया था:

‘जब तथ्य बदल जाते हैं, तो हम अपना विचार बदल लेते हैं. अब जाओ इसे करो.’

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