फोन की स्क्रीन पर उबर कैब (Uber cab) को लोकेशन में आने तक ट्रैक किया जा सकता है. जैसे-जैसे कैब आइकन करीब आता जाता है, वैसे-वैसे एल्गोरिदम और लोगों के बीच का अंतर धुंधला होता जाता है. क्योंकि इस बात को अनदेखा करना काफी आसान होता है कि पहियों के पीछे एक इंसान, ड्राइवर, एक कर्मचारी बैठा है.
उबर, ओला, स्विगी, जोमैटो, अमेजॉन, बिग बास्केट, अर्बन कंपनी और इसी तरह की अन्य सेवाएं भारत के न केवल महानगरीय क्षेत्रों में बल्कि टियर II शहरों में भी में शहरी आबादी के बीच काफी प्रचलित हो गए हैं. ये कंपनियां प्लेटफॉर्म या डिजिटल इंटरफेस जैसे वेबसाइटों या स्मार्टफोन/कंप्यूटर एप्लिकेशन या ऐप के माध्यम से काम करती हैं.
गिग इकोनाॅमी में कंज्यूमर या उपभोक्ता प्लेटफार्म पर लॉग इन करते हैं और सर्विस प्रोवाइडर या फ्रीलांसर ऑनबोर्ड मौजूद रहते हैं. प्लेटफार्म में उपलब्ध सर्विस प्रोवाइडर्स काफी अलग-अलग होते हैं. ये कोडर, ग्राफिक डिजाइनर, साइकोलॉजिस्ट, कैब ड्राइवर या ब्यूटीशियन भी हो सकते हैं. वहीं "गिग वर्कर" उसे कहा जाता है जो इस प्रकार के अस्थायी कार्य करता है.
कंपनियों के लिए हर तरफ से फायदे की स्थिति
आज के दौर में 'गिग' (gig) वर्क की बात करें तो यह 'गिग' के मूल अर्थ की वास्तविकता से काफी दूर हो गया है. बता दें कि वन-टाइम जॉब या किसी प्रदर्शन में कलाकारों के उपयोग किए जाने के लिए एक अनौपचारिक शब्द के तौर पर मूलत: गिग शब्द का प्रयोग किय जाता है.
पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) की एक रिपोर्ट जोकि श्रमिकों के साक्षात्कार, परामर्श विशेषज्ञों, प्रकाशनों, अदालती फैसलों और यूनियनों के फैक्ट-फाइंडिंग इन्वेस्टिंग पर आधारित है, उसमें बताया गया है कि निचले स्तर के गिग श्रमिकों को फ्रीलांसरों के बजाय श्रमिकों के रूप में व्यवहार करना अधिक उपयुक्त है.
गिग इकॉनमी की व्यावसायिक रणनीति फ्रीलांसरों या श्रमिकों के एक विशाल पूल पर आधारित है जो सेवाओं की बदलती मांग से मेल खाते हैं.
श्रमिकों की लगातार बढ़ती संख्या के कारण, श्रमिक एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं और कम पारिश्रमिक पर काम करने को तैयार हो जाते हैं. ऐसे में कम पारिश्रमिकी वाला वर्कर सेवाओं की कम कीमत का आधार बन जाता है.
कम कीमतों में मिलने वाली सेवाओं की वजह से कंपनी को अपने प्रतिस्पर्धियों को कम करने और बाजार में अपना एकाधिकार बनाने में मदद मिलती है. चूंकि श्रमिकों को कंपनी का कर्मचारी नहीं बल्कि फ्रीलांसर माना जाता है, इसलिए मांग के मुताबिक जरूरत पड़ने पर उन्हें काम सौंपा जा सकता है.
जब काम की मांग कम रहती है तब भी ये वर्कर खुद को प्लेटफार्म में लॉग इन रख सकते हैं क्योंकि इस तरह के श्रमिकों को बनाए रखने के लिए कंपनी की अनिवार्य रूप से कोई कीमत नहीं होती है. इसके परिणामस्वरूप अधिक श्रमिक, कम लागत, कम कीमतों पर सेवाओं का प्रावधान, अधिक से अधिक उपभोक्ता और बाजार पर एकाधिकार करने की क्षमता के मामले में कंपनी के दृष्टिकोण से यह एक जीत की स्थिति होती है.
शुरुआत में ग्राहकों और कर्मचारियों, दोनों को महत्वपूर्ण प्रोत्साहन प्रदान करना एक सामान्य रणनीति होती है. ये प्रोत्साहन श्रमिकों के लिए उस समय कम होने लगते हैं जब किसी बिजनेस में कई सारे वर्कर्स 'फंस' जाते हैं. इस बात की पुष्टि सर्वे में शामिल लगभग सभी गिग वर्कर्स ने की है.
श्रम कानून और नियमन से बचना गिग इकॉनमी के बिजनेस मॉडल का एक और महत्वपूर्ण घटक है - एक जो इसके मूल में निहित है. ऐसे प्लेटफॉर्म स्थापित करने वाली कंपनियां कार्यस्थल के अंदर नियोक्ता या बॉस के समान अधिकार रखने के बावजूद खुद को केवल 'दलाल' या 'मैचमेकर' के रूप में प्रस्तुत करती हैं.
चूंकि कर्मचारी कथित तौर पर फ्रीलांसर हैं, इसलिए कंपनियां भी उनके प्रति सभी जिम्मेदारी और दायित्व से बचती हैं. श्रमिकों और कंपनियों के बीच कॉन्ट्रैक्ट एग्रीमेंट ऐसे बनाए जाते हैं जिससे कि श्रमिकों को अदालत में जाने से रोका जा सके. बिजनेस मॉडल का एक अन्य पहलू यह भी है कि कर्मचारियों की कमाई का एक प्रतिशत कंपनी द्वारा कमीशन के रूप में काटा जाता है.
बहुत अधिक दावों में फंस गए हैं श्रमिक
नौकरी पैदा करने और काम के लचीले घंटों के संबंध में लंबे-चौड़े दावे किए जाते हैं. जिससे साइड में कुछ पैसा कमाना आसान हो जाता है, या किसी अन्य नौकरी के दौरान ब्रेक भी मिल जाता है. यह अत्यधिक कुशल गिग वर्कर्स (कोडर, ग्राफिक डिजाइनर, आदि) के लिए सच साबित हो सकता है, लेकिन अगर हम ब्लू-कॉलर गिग वर्कर्स को देखें, जो स्किल लैडर के नीचे स्थित हैं, तो उसमें से अधिकतर कम वेतन वाले, अस्थिर और थकाऊ काम के पैटर्न में फंस गए हैं.
इन गिग श्रमिकों में से अधिकांश वर्कर लंबे दिनों, अवैतनिक श्रम और कम कमाई के चक्र में फंस गए हैं. श्रमिकों के साक्षात्कार के मुताबिक, वर्कर्स की अधिकता हो जाने की वजह से इनको (वर्कर्स को) डिलीवरी या ऑर्डर के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है. ऑर्डर्स का आवंटन किस आधार पर होता है वह इन श्रमिकों के समझ से परे है. किसी भी वर्क ऑर्डर या टास्क के दौरान यदि इन 'फ्रीलांस आंत्रप्रेन्योर' को इंतजार करना पड़ता है तो कार्य के दौरान होने वाले वेटिंग टाइम का कंपनियां किसी भी प्रकार से भुगतान नहीं करती हैं. भारत में उबर/ओला के ड्राइवर औसतन 25,000 रुपये से 30,000 रुपये प्रति माह कमाते हैं, जबकि स्विगी या जोमैटो के कर्मचारी 14,000 रुपये से 15,000 रुपये के बीच कमाते हैं. 2020 में किए गए एक सर्वे के मुताबिक लगभग 90% भारतीय गिग वर्कर्स COVID-19 महामारी के परिणामस्वरूप अपनी आय से हाथ ठो बैठे हैं. वहीं अगस्त 2020 तक, उनमें से 90% अपनी पूर्व-महामारी आय के 60% से कम कमा रहे थे.
ऐसा दावा किया जाता है कि गिग इकनॉमी श्रमिकों को अपने खाली समय के दौरान पूर्णकालिक काम करते हुए 'गिग' के साथ अतिरिक्त पैसा कमाने में सक्षम बनाती है. हालांकि, सर्वे के दौरान यह बात सामने आई कि अधिकांश गिग श्रमिकों के लिए यह उनकी आय का प्राथमिक स्रोत है.
कमाई की अस्थिरता को तब तक सहन किया जा सकता है जब तक कि कमाई किसी अन्य तरीके जैसे कि नियमित आय के साथ की जा रही हो. लेकिन जब कमाई का मुख्य स्रोत ही अनिश्चित और कम हो जाती है तब श्रमिक खुद को अत्यधिक अस्थिर और कमजोर स्थिति में पाता है.
अनिश्चित कमाई के शीर्ष पर, गिग श्रमिकों को काम से संबंधित सभी खर्चों को वहन करना पड़ता है. भले ही गिग वर्कर्स को फ्रीलांसर कहा जाता है, लेकिन उनके पास बहुत कम स्वायत्ता होती है. उनका उन भाड़ों या शुल्कों पर कोई नियंत्रण नहीं है, जोकि सेवा लेने वाले ग्राहकों से वसूली जाती हैं.
कंपनियों के साथ किया गया कॉन्ट्रैक्चुअल एग्रीमेंट उन्हें ग्राहकों के साथ एक स्वतंत्र सौदा करने से रोकता है.
जब प्रौद्योगिकी श्रमिकों के जीवन को नियंत्रित करती हैं
गिग वर्कर्स जो कार्य करते हैं उन पर उनका (वर्कर्स का) कोई नियंत्रण नहीं रहता है. मसलन वे किसी भी दिन कितना भी कार्य कर सकते हैं, जितने चाहे उतने घंटे काम कर सकते हैं. या जितना चाहे उतना शुल्क वसूल सकते हैं. इन पर उनका कोई नियंत्रण नहीं रहता है. उनके पास कोई निवारण तंत्र नहीं है, क्योंकि उन्हें श्रमिकों के रूप में वर्गीकृत ही नहीं किया गया है, जबकि उनसे उनके सभी कार्यों और उनके जीवन की कठिनाइयों के लिए जिम्मेदार होने की उम्मीद की जाती है.
प्रौद्योगिकी यानी कि टेक्नोलॉजी वर्कर्स (श्रमिकों) पर व्यापक नियंत्रण की अनुमति देती है. जब एक कर्मचारी (जैसे, एक उबेर ड्राइवर) एक प्लेटफॉर्म के साथ पंजीकरण करता है, तो कंपनी (प्लेटफॉर्म के माध्यम से) ढेर सारी जानकारी और कागजात की मांग करती है. इस प्रक्रिया को पूरा करने के बाद मॉनिटरिंग काफी तेजी से हो सकती है. जैसे ही ड्राइवर उबर एप में लॉग इन करता है, वह (मुख्य तौर पर पुरुष कर्मचारी) कई चीजों में नियंत्रण खो देता है जैसे कि उसे कहां जाना है, वह कितना किराया वसूल सकता है, दिन के दौरान वह कितनी सवारी ले सकता है, और यहां तक कि वह अपने काम करने के घंटे पर भी नियंत्रण खो देता है. इस तरह से कंपनी के दावों के विपरीत, ड्राइवर को अपनी कार्य परिस्थितियों को चुनने की स्वतंत्रता नहीं है.
अगर वह किसी भी कारण से सवारी से इनकार करता है (बहुत छोटा, बहुत जोखिम भरा, कम वेतन वाला काम, भीड़भाड़ वाला मार्ग, लंबे दिन के बाद घर से बहुत दूर जाने पर, आदि) तो उसे दंडित किया जा सकता है. जिस तरह से एल्गोरिथ्म लगातार निगरानी करती है वह किसी फैक्ट्री के सुपरवाइजर या बॉस की निगरानी के जैसी होती है और कभी-कभी तो यह इससे भी अधिक व्यापक और आक्रामक होती है.
गिग वर्कर्स 'उद्यमिता' के सभी जोखिमों और लागतों के लिए जिम्मेदार होते हैं. जोखिम सिर्फ कारों, कंप्यूटरों और अन्य उपकरणों की लागत तक ही सीमित नहीं है. समय पर डिलीवरी को पूरा करने की अत्यावश्यकता कभी-कभी यातायात नियमों को तोड़ना आवश्यक बना सकती है. दुर्घटना या गंभीर चोट की स्थिति में, कंपनी की भागीदारी न्यूनतम होती है. वहीं ग्राहक द्वारा यदि दुर्व्यवहार की स्थिति पैदा होती है तब श्रमिक या कर्मचारी को ही पूरा जोखिम उठाना पड़ता है.
आगे का रास्ता क्या है?
सितंबर 2021 में, IFAT (एक पंजीकृत संगठन और ट्रेड यूनियनों का संघ जो गिग वर्कर्स का प्रतिनिधित्व करता है) ने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए चार कंपनियों और भारत संघ के खिलाफ आदेश के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट 13 दिसंबर, 2021 को इस जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हुआ. कानूनी हस्तक्षेप पर यह कदम तब निकलकर सामने आया है जब दुनिया भर के गिग वर्कर्स ने कानूनी रूप से "फ्रीलांसर" के रूप में अपनी स्थिति का विरोध करने का प्रयास किया है. विभिन्न अदालतों (पेरिस, लंदन, एम्स्टर्डम आदि) ने हाल ही में कंपनियों के खिलाफ उबर वर्कर्स या इसी तरह के गिग/प्लेटफॉर्म वर्कर्स के दावों पर फैसला सुनाया है कि ये कर्मचारी कंपनियों के लिए "पर्मानेंट सबऑर्डिनेशन" के संबंध में हैं.
भारत में नए श्रम संहिताओं में से एक, सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 में 'गिग वर्कर' शब्द शामिल है. हालांकि, इसे "एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है जो पारंपरिक नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों के बाहर काम करता है ..." यह सीधे कंपनियों के इस दावे का समर्थन करता है कि उनके कर्मचारी कंपनी के 'कर्मचारी' नहीं हैं. ऐसे में जहां एक ओर सरकार कागज पर गिग श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होने का दावा करती है, वहीं दूसरी ओर उसने किसी भी तरह से कंपनियों को श्रमिकों के प्रति जवाबदेह नहीं बनाया है. उन्हें को नियोक्ताओं की मानक जिम्मेदारियों से मुक्त करके सरकार सक्रिय रूप से कंपनियों के साथ मिलकर गिग श्रमिकों के अधिकारों का उल्लंघन कर रही है.
सरकार और अदालतों को गिग श्रमिकों को "श्रमिक" के रूप में मान्यता देने और उन्हें श्रम अधिकार और सुरक्षा प्रदान करने के प्रयास करने चाहिए.
गिग वर्कर्स को कवर करने के लिए मोटर व्हीकल एग्रीगेटर्स गाइडलाइंस, 2020 (मोटर व्हीकल अमेंडमेंट एक्ट, 2019 के तहत) के कवरेज का विस्तार करना एक शुरुआती बिंदु की तरह हो सकता है.
सभी राज्य सरकारों को गिग वर्कर्स के लिए इस तरह की सुरक्षा का विस्तार और कार्यान्वयन करना चाहिए.
गिग वर्कर्स के प्रति कंपनियों की जवाबदेही तय करने और इसे सुनिश्चित करने के लिए स्पष्ट रूप से तंत्र स्थापित करने के लिए तत्काल उपाय किए जाने चाहिए, जिसमें गिग वर्कर्स के श्रम और लोकतांत्रिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए वास्तविक दंड शामिल हैं.
(लेखक, पीयूडीआर के सचिव हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)
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