ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी (Ebrahim Raisi death) की हेलिकॉप्टर क्रैश में मौत हो गई. हादसा अजरबैजान सीमा के पास हुआ. इस हेलिकॉप्टर क्रैश में ईरानी विदेश मंत्री होसैन अमीर-अब्दुल्लाहियन की भी मौत हो गई. उपराष्ट्रपति मोहम्मद मोखबर ने ईरान के अंतरिम राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभाल लिया है. मौजूदा राष्ट्रपति के मृत्यु के बाद ईरान में निर्धारित 50 दिनों के भीतर चुनाव होने हैं.
ईरान के सामने क्या चुनौती है?
रईसी, एक पूर्व चीफ जस्टिस और एक कट्टर रूढ़िवादी मौलवी थे, जो सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई के करीबी माने जाते थे. उन्होंने अगस्त 2021 में मौजूदा राष्ट्रपति हसन रूहानी को हराने के बाद पदभार ग्रहण किया, जो ईरान की राजनीति में अधिक उदारवादी गुट का प्रतिनिधित्व करते थे.
लगभग 90 मिलियन की आबादी और 500 बिलियन डॉलर से कम GDP वाला ईरान एक प्रमुख हाइड्रोकार्बन उत्पादक है और एक बेहद कठिन समुद्री भूगौलिक क्षेत्र में स्थित है.
तेहरान अपने एंटी अमेरिका/इजरायल विरोधी वैचारिक रुझान के कारण 1979 से अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी प्रतिबंधों के अधीन रहा है और बाद में अपने परमाणु कार्यक्रम और अमेरिकी कानूनों के उल्लंघन में आतंकवाद से जुड़े अन्य अपराधों के कारण.
शिया पादरी को सत्ता में लाने वाली 1979 की ईरानी क्रांति से पहले ईरान की अधिकांश हवाई संपत्ति संयुक्त राज्य अमेरिका से अधिग्रहित की गई थी, जिसके बाद से विमानन क्षेत्र गंभीर रूप से प्रभावित हुआ.
वर्तमान में, ईरान को घरेलू, क्षेत्रीय और संयुक्त राज्य अमेरिका के संबंध में कई जटिल चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. 2017 में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ओबामा द्वारा किए गए परमाणु समझौते से मुकर जाने के बाद तेहरान में कट्टरपंथ और मजबूत हो गया.
COVID संकट, सीरिया और बाद में यूक्रेन में युद्ध, अब 7 अक्टूबर के हमास आतंकवादी हमले और गाजा में अटैक के बाद 2021 के मध्य से राष्ट्रपति रईसी के कार्यकाल में स्थितियां और खराब हो गईं. ईरान पर अपने राजनीतिक-धार्मिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए पश्चिम एशिया में आतंकवादी समूहों को पर्याप्त समर्थन देने का आरोप लगाया गया और H3 क्लस्टर - हमास, हिजबुल्लाह और हूती - इसका उदाहरण हैं.
भू-राजनीतिक प्लेयर के रूप में ईरान
सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई, जो धार्मिक राष्ट्र में सत्ता के शीर्ष पर हैं, उन्होंने लोगों को आश्वस्त किया है कि राष्ट्रपति रईसी की मृत्यु के बाद शासन के कामकाज में कोई व्यवधान नहीं होगा. यह उम्मीद है कि अनिवार्य 50-दिन की अवधि के भीतर रईसी की जगह एक कट्टरपंथी को राष्ट्रपति चुना जाएगा.
ईरान एक सभ्यतागत वंशावली वाला एक क्षेत्रीय दिग्गज है और इसे संयुक्त राज्य अमेरिका, इजरायल और सऊदी के नेतृत्व वाले सुन्नी गुट में कुछ इस्लामी राज्यों द्वारा एक प्रतिद्वंद्वी के रूप में स्थापित किया गया है.
ईरान के परमाणु कार्यक्रम और अमेरिका के यह सुनिश्चित करने के वैश्विक प्रयास कि तेहरान को बम न मिले, इसने मौजूदा कलह को और बढ़ा दिया है और अब नए राष्ट्रपति को विरासत में कांटेदार सत्ता मिलेगी.
2017 की शुरुआत में अमेरिकी डॉलर का कारोबार लगभग 32,000 ईरानी रियाल पर था जो अब 42,000 पर है और खाद्यान की कीमतें और आवास और स्वास्थ्य लागत बढ़ रही हैं. बेरोजगारी बड़े पैमाने पर है और युवा नागरिक- विशेष रूप से महिलाएं ज्यादतियों, विशेषकर नैतिक पुलिसिंग का विरोध कर रही हैं.
सर्वोच्च नेता खमेनेई का समर्थन करने वाले रूढ़िवादी गुट के लिए तत्काल प्राथमिकता होगी कि आसानी से सत्ता पर काबिज हो और ऐसी खबरें हैं कि 'वंशवाद' चलन में आ सकता है.
'एक बड़ी क्षति'
यह अनुमान लगाया जा रहा है कि अगले कुछ हफ्तों तक ईरानी घरेलू राजनीति में तीव्र गुटीय खींचतान की संभावना है, सर्वोच्च नेता के बेटे मोजतबा खामेनेई नए ईरानी राष्ट्रपति के दावेदार के रूप में उभर सकते हैं.
ईरान अपने राष्ट्रपति की मृत्यु पर शोक मना रहा है, जिसे कई ईरानी 'रहस्यमय' बता रहे हैं. वहीं, विदेश मंत्री होसैन अमीर-अब्दुल्लाहियन के असामयिक निधन से सबसे बड़ा नुकसान शासन और विदेश नीति के मामले को सुचारू रूप से चलाने को लेकर होगा.
वे एक अनुभवी और चतुर राजनयिक, जो ईरानी कट्टरपंथी गुट और रिवोल्यूशनरी गार्ड्स (आईआरजीसी) के करीबी थे, उन्होंने सऊदी अरब के साथ तेहरान के जटिल और अक्सर 'कांटेदार' संबंधों और बाहरी वार्ताकारों के साथ विवादित परमाणु वार्ता का भी नेतृत्व किया.
फिलिस्तीन और इजरायली युद्ध में आपसी कोई सहमति के संकेत नहीं है और अमेरिका राष्ट्रपति पद की दौड़ के आखिरी चरण में पहुंच गया है. फिर भी किसी भी स्थिति में, पश्चिम एशिया में कुछ समय के लिए चिंता और अनिश्चितता की स्थिति रहेगी.
ऐसी खबरें हैं कि 88 वर्षीय सऊदी राजा सलमान बिन अब्दुलअजीज का स्वास्थ्य नाजुक है और रियाद में वास्तविक उत्तराधिकारी जल्द ही घोषित हो जाएगा.
भारत-ईरान के संबंध पर क्या असर होगा?
रायसी के जाने से भारत-ईरान संबंधों पर कोई खास प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है, जो ईरान-अमेरिका द्विपक्षीय संबंधों में उतार-चढ़ाव के कारण बाधित हुआ है. वर्तमान में, चाबहार बंदरगाह, जिसकी कल्पना भारत-ईरान क्षेत्रीय विकास के प्रतीक के रूप में की गई थी, ईरान-अमेरिका के बीच उलझकर रह गया है.
दिल्ली में नई सरकार (मोदी के नेतृत्व वाली या अन्यथा) को राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की दुखद मौत के बाद आगे क्या होगा, इसके लिए तेहरान में नए नेतृत्व का और कुछ हद तक स्पष्टता के लिए अमेरिकी चुनावों के नतीजे को स्थिर करने और समीक्षा करने के लिए इंतजार करना होगा.
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