इजरायल-हमास युद्ध (Israel Hamas War) की आग अब पूरे क्षेत्र को जलाने का खतरा पैदा कर रही है.
शनिवार, 13 अप्रैल की रात ईरान ने इजरायल (Israel Iran Tension) पर लगभग 350 ड्रोन और मिसाइलें लॉन्च की. भले ही इनमें से अधिकांश को मार गिराया गया, लेकिन कई मिसाइलों ने कुछ ईजरायली सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया.
दुनिया की सांस थमी है और उसे इंतजार है कि क्या इजरायल जवाबी कार्रवाई करेगा? या जैसा कि अमेरिका कह रहा है कि हमले से सफलतापूर्वक निपटने के बाद तेल अवीव को इसे अपनी जीत बतानी चाहिए और तेहरान के खिलाफ आगे की कार्रवाई से बचना चाहिए. जहां तक ईरान का सवाल है, संयुक्त राष्ट्र (UN) में उसके सैन्य मिशन ने घोषणा की कि उसकी सैन्य कार्रवाई खत्म हो गई है.
इससे पहले ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (IRGC) ने होर्मुज स्ट्रेट (Strait of Hormuz) में इजरायल से जुड़े कार्गो जहाज पर कब्जा कर लिया था.
इस कार्गो जहाज के चालक दल के 25 सदस्यों में से लगभग 17 भारत से हैं, और नई दिल्ली ने तत्काल उनकी हिरासत का मुद्दा तेहरान के सामने उठाया है. कुछ दिन पहले, ईरान ने तेल के लिए दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण शिपिंग मार्ग - होर्मुज स्ट्रेट को बंद करने की धमकी दी थी.
यह घटना दिखा रही है कि युद्ध किस तरह लहर पैदा कर रहा है जो हमारे तटों तक पहुंच रही हैं. भारत अपना अधिकांश तेल सऊदी अरब, इराक और संयुक्त अरब अमीरात से होर्मुज स्ट्रेट के रास्ते से प्राप्त करता है.
भारतीय नौसेना हुती के हमलों के खिलाफ अरब सागर में जहाजों की सुरक्षा में पहले से ही सक्रिय है. अब भारत ने अपने नागरिकों को ईरान या इजरायल की यात्रा न करने की सलाह दी है और हवाई मार्गों को डायवर्ट कर दिया गया है, जिससे यात्रा का समय बढ़ गया है.
ईरान पर हमला करने की इजरायल की सैन्य क्षमता और अमेरिका का समर्थन
इजरायल पर ईरान का हमला दरअसल जवाबी हमला है. 1 अप्रैल को दमिश्क में एक राजनयिक भवन पर हमला हुआ था जिसमें ब्रिगेडियर-जनरल मोहम्मद रजा जाहेदी और छह अन्य कुद्स फोर्स के अधिकारी मारे गए थे. यह फोर्स ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (IRGC) की पांच शाखाओं में से एक है जो विदेश में विशेष अभियानों और खुफिया जानकारी में विशेषज्ञता रखती है. अमेरिका ने IRGC को "आतंकवादी" संगठन के रूप में नामित किया है.
शनिवार की देर रात 185 ड्रोन, 36 क्रूज मिसाइलें और 110 सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइलें इजरायल पर दागी गईं. इनमें से अधिकांश ईरान से फायर की गयी थीं. हालांकि कुछ इराक और यमन से चलाई गयीं. हमले के पहले लहर में ड्रोन अटैक किया गया. इन्हें अमेरिका और इजरायल ने घंटों तक ट्रैक किया था क्योंकि उन्हें ईरान से इजरायल पहुंचने में समय लगा था. दूसरी लहर में क्रूज मिसाइलें और तीसरी में बैलिस्टिक मिसाइलें शामिल थीं.
इजरायल ने कहा कि उन्होंने हवाई हमले में से अधिकतर को मार गिराया है. अमेरिकी अधिकारियों के अनुसार, यूनाइटेड किंगडम, सऊदी अरब और जॉर्डन की तरह अमेरिकी सेना ने भी दर्जनों मिसाइलों और ड्रोनों को रोका था. एक्स (पहले ट्विटर) पर कई रिपोर्ट में कहा गया है कि ईरान ने इजरायल में रेमन एयर बेस पर सात और नेवातिम एयर बेस पर सात टारगेट हिट किये. हालांकि इससे होने वाले नुकसान का पता नहीं चला है.
ईरान की दागी गईं मिसाइलों ने इजरायल में टारगेट हिट किया है, यह तथ्य बताता है अबतक दोनों देशों के बीच जो परदे के पीछे से युद्ध (प्रॉक्सी वॉर) चल रहा था वो कई कदम आगे बढ़ चुका है. एक राजनयिक भवन पर हमला करने के लिए इजरायल के खिलाफ ईरान को सीधा जवाब देने की आवश्यकता थी.
इजरायल के लिए गाजा पर बमबारी करके उसे तबाह करने में बहुत कम या कोई समस्या नहीं हुई है. लेकिन ईरान के साथ सीधे टकराव का अंजाम कहीं अधिक खतरनाक हो सकता है. इजरायल के पास ईरान के खिलाफ इसी तरह का अभियान शुरू करने की सैन्य क्षमता नहीं है, और अधिक से अधिक, वह हवाई और कमांडो हमले शुरू कर सकता है.
लेकिन उसके सहयोगी अमेरिका के लिए चुनौती अलग है. जिस तरह उसे अफगानिस्तान से अपमान का घूंट पीकर निकलना पड़ा, उसके ठीक ढाई साल बाद वह फिर से खुद को दक्षिण-पश्चिम एशिया के युद्ध में घसीटता हुआ पा सकता है.
इजरायल-हमास युद्ध को शुरू हुए छह महीने गुजर चुके हैं. अब गाजा में इजरायली हमलों के लिए अमेरिका समर्थन शर्तों से बोझिल होता जा रहा है. लेकिन साथ ही वाशिंगटन ने यह सुनिश्चित किया है कि इस क्षेत्र में तथाकथित ईरानी प्रॉक्सी के हमलों का जवाब दिया जाए. अब अमेरिका ने ईरान के सीधे हमले को विफल करने में इजरायल का समर्थन करने के लिए त्वरित कार्रवाई की है.
अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन के अनुसार, अमेरिका ने पिछले सप्ताह इजरायल की रक्षा के लिए विमान और बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस डिस्ट्रॉयर का इस्तेमाल किया था. उन्होंने ईरान को दो शब्द में चेतावनी जारी की थी - मत करो - और कहा कि "अमेरिका इजरायल की रक्षा के लिए समर्पित है."
हालांकि, इसमें कोई संदेह नहीं है कि अमेरिका और उसके सहयोगी देश 1 अप्रैल को ईरान के राजनयिक भवन पर हमला करने के लिए इजरायल से खुश नहीं हैं. एक स्तर पर, इस हमले ने संकेत दिया है कि इजरायल अपने सहयोगी और संरक्षक, अमेरिका के नजरिए की कद्र नहीं करता. साथ ही दूसरे स्तर पर, इसने गाजा संघर्ष को बढ़ाने और व्यापक बनाने का जोखिम खड़ा किया है.
शनिवार को ईरानी हमले को काफी हद तक इजरायल ने विफल कर दिया. इसके बाद, राष्ट्रपति बाइडेन ने इजरायली प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से कहा कि अमेरिका इजरायल की जवाबी कार्रवाई का समर्थन नहीं करेगा या किसी भी आक्रामक हमले में भाग नहीं लेगा. अमेरिका को चिंता है कि ईरानी हमले की प्रतिक्रिया से विनाशकारी परिणामों के साथ एक बड़ा क्षेत्रीय युद्ध हो सकता है. यह नहीं भूलना चाहिए कि इजरायल के पास परमाणु हथियार हैं और ईरान परमाणु क्षमता हासिल करने के करीब है.
इजरायल, ईरान और अमेरिका इस तनाव को कैसे देखते हैं?
इजरायल और हमास के बीच जबसे युद्ध की शुरुआत हुई है, अमेरिका और ईरान बिना खुलकर सामने आए संघर्ष में हैं. लेकिन कोई भी देश पूरी तरह से ऐसा युद्ध नहीं चाहता है जिसके नतीजे अप्रत्याशित हों. परदे के पीछे के इस संघर्ष के एक भाग के रूप में, सीरिया, इराक और जॉर्डन में अमेरिकी सैन्य ठिकानों और संपत्तियों पर लगभग 200 हमले हुए हैं, जिसकी वजह से दर्जनों अमेरिकी जवान घायल हुए हैं. अमेरिकियों ने कड़ी जवाबी कार्रवाई करते हुए हवाई हमलों के जरिए 30 से अधिक आतंकवादियों को मार गिराया है.
अमेरिका के पास इराक में दर्जनों ठिकानों में लगभग 2500 कर्मचारी हैं. साथ ही सीरिया में उसके 800 और जॉर्डन में लगभग 200 कर्मचारी हैं. वे वहां इस्लामिक स्टेट और ईरान समर्थित समूहों के खिलाफ गुप्त अभियान चलाते हैं. अमेरिका इराक के अंदर दो एयरबेस, अल असद और अल हरीर से भी काम करते हैं. इन दोनों एयरबेस को भी आतंकवादी हमलों का सामना करना पड़ा है.
अमेरिका अब दक्षिण-पश्चिम एशियाई क्षेत्र में किसी दूसरे युद्ध में शामिल नहीं होना चाहेगा. अमेरिका को 2022 में अफगानिस्तान से बाहर होना पड़ा था और जनवरी में, इराकी सरकार ने संकेत दिया था कि वे इराक में बाकी बचे अमेरिकी सैनिकों की वापसी के लिए बातचीत करना चाहेंगे.
जहां तक ईरान का सवाल है, उसके पास अमेरिका से मुकाबला करने की क्षमता नहीं है, और चीन और रूस जैसे उसके दोस्त, उनके समर्थन में उदासीन दिखे हैं. ईरान की वायु सेना 1970 के दशक के पुराने अमेरिकी विमानों का उपयोग करती है और इसकी नौसेना मुख्य रूप से एक तटीय बल है. धार्मिक सरकार को आंतरिक अस्थिरता के बारे में भी चिंता करनी होगी जो हाल के सालों में खुलकर सामने आई है. इस समय युद्ध उसके लिए घातक हो सकता है.
इजराइल को कदम फूंक-फूंककर रखने की जरूरत है, जमीनी स्थिति को समझने की जरूरत है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि इजरायल अब ईरान को अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखता है. लेकिन वह अकेले इतने बड़े देश से नहीं निपट सकते, खासकर अगर तेहरान को परमाणु शक्ति मिल जाए.
लेकिन वर्तमान में जो इजरायल की सोच है, वह संभवतः नेतन्याहू के किसी भी तरह सत्ता में बने रहने के एकमात्र उद्देश्य से निर्देशित है. इजरायल पर "घातक खतरा" है, अगर नेतन्याहू ऐसा पेश करे तो उनके उद्देश्य को मदद मिलेगी. साथ ही यह गाजा युद्ध से पूरी दुनिया का ध्यान भटकाने में भी मदद करता है.
(लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली के प्रतिष्ठित फेलो हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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