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जम्मू ड्रोन हमला: कितना बड़ा और कहां-कहां खतरा, हम कैसे दें जवाब?

नेवी के पूर्व टेस्ट पायलट कैप्टन केपी संजीव कुमार बता रहे हैं क्यों जम्मू ड्रोन हमला भविष्य के हमले की भविष्यवाणी है

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रविवार 27 जून को तड़के जम्मू एयरपोर्ट (Jammu Airport) में मौजूद एयरफोर्स बेस के टेक्निकल एरिया में दो कम तीव्रता के विस्फोट हुए. इंडियन एयरफोर्स के मीडिया कोऑर्डिनेशन सेंटर ने रविवार की सुबह ट्वीट किया कि "एक विस्फोट में इमारत की छत को मामूली नुकसान पहुंचा है जबकि दूसरा खुले क्षेत्र में फटा. किसी भी उपकरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है. सिविल एजेंसियों के साथ मिलकर जांच की प्रक्रिया जारी है".

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मीडिया रिपोर्टों में ऐसी खबरों की बाढ़ आ गई कि इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस(IED) को ड्रोन की मदद से गिराया गया था.हालांकि लिखे जाने तक इस बात की पुष्टि आधिकारिक सूत्रों की तरफ से नहीं की गई थी.

अगर यह सच है तो यह भारत में हाई-सिक्योरिटी से जुड़े महत्वपूर्ण रक्षा उपकरणों पर अपनी तरह का पहला ड्रोन हमला होगा. यह हमारे महत्वपूर्ण क्षेत्रों (VA), महत्वपूर्ण बिंदुओं (VP) और डिफेंस एंड सिक्योरिटी उपकरणों की सुरक्षा पर ड्रोन हमले के गंभीर प्रभाव का नया आयाम सामने लाता है.

AFS जम्मू एक 'अतिसंवेदनशील बेस' है-एक ऐसा रेड जोन जहां सुरक्षाकर्मियों को किसी भी 'अन-आईडेंटिफाइड फ्लाइंग ऑब्जेक्ट' या रीमोटली पायलेटेड एयरक्राफ्ट(RPA) को मार गिराने के लिए अधिकृत किया जा सकता है. इसके बावजूद यह घुसपैठ हो गई और यह घातक पेलोड अंदर पहुंच गया.

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ड्रोन अटैक कोई नई बात नहीं

हथियारों और जवाबी कार्यवाही के बीच की लड़ाई स्थायी है,जिसमें कोई संतुष्ट नहीं हो सकता. अपारंपरिक युद्ध या कम तीव्रता वाले संघर्षों में यह नया डेवलपमेंट ना तो अप्रत्याशित है और ना ही पहली दफा. 2015 के बाद से ही आतंकवादियों द्वारा कमर्शियल-ऑफ-द-सेल्फ(COTS) ड्रोन का इस्तेमाल IED विस्फोटकों की डिलीवरी के लिए किया जाता रहा है. यह सुरक्षा एजेंसियों के लिए नया खतरा है, जिसका प्रयोग आतंकियों ने उनको नुकसान पहुंचाने के लिए किया है.

सितंबर 2019 में यमन के हूती विद्रोहियों के द्वारा सऊदी अरब के दो प्रमुख तेल शोधन संयंत्र पर ड्रोन अटैक की याद अभी भी लोगों के जेहन में ताजी है.हूती विद्रोहियों ने कथित तौर पर सऊदी क्षेत्र के अंदर दस ड्रोन के साथ हमला किया था.

यमन और सऊदी अरब के बीच के 500 मील की दूरी को धता बताकर ड्रोन के माध्यम से इस अपारंपरिक युद्ध को अंजाम दिया गया.इस तरह के ड्रोन हमलों का सिलसिला हाल ही में जून 2021 तक जारी रहा जब सऊदी की राजधानी रियाद के अंदर एक और तेल संयत्र में आग लगा दी गई थी.
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एक अधिक पारंपरिक युद्ध के तौर पर इसका इस्तेमाल करते हुए अज़रबैजानी ड्रोनों ने नवंबर 2020 में आर्मीनियाई टैंकों, सैनिकों,तोपखानों और वायु रक्षा प्रणालियों को निशाना बनाते हुए आसमान से विनाश और मौतों की बारिश की. दिसंबर 2020 में फोर्ब्स पत्रिका में छपी विक्रम मित्तल की स्टोरी के मुताबिक स्पष्ट रुप से ड्रोन को अगले IED के रूप में अमेरिकी सेना पर हमले के लिए प्रयोग किया जाएगा.

इसलिए जम्मू में आतंकी तत्वों द्वारा किया गया ताजा हमला संवेदनशील क्षेत्रों में मौजूद कमांडरों के लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं है. अगर ड्रोन से पिज्जा की डिलीवरी हो सकती है तो IEDs की भी. हमले के मामले में यूजर्स को अपने ड्रोन लॉन्च के लिए अधिकारियों से किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं है.

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वो अपने हमले में 'कंप्लीट सरप्राइज' सुनिश्चित करने के लिए अपने टारगेट,प्लेटफार्म,टाइमिंग और हवाई मार्ग का चयन कर सकते हैं- जो अपारंपरिक युद्ध के मूलभूत पहलू हैं. विशेषज्ञ पिछले कुछ समय से इस तरह के हमले के बारे में गंभीर चेतावनी दे रहे थे. हालांकि इन चेतावनियों पर ध्यान नहीं दिया गया या उनपर तेजी से कदम नहीं उठाया गया. संभवतः ऐसा 'मानव रहित' हमलों के प्रति सर्विसेज की पारंपरिक उदासीनता के कारण है.

यह हमला जम्मू के दोहरे उपयोग वाले हवाई अड्डे के तकनीकी क्षेत्र में हुआ जहां सिर्फ वायुसेना के कुछ हेलीकॉप्टर मौजूद थे.हमले में कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ है. लेकिन यह हमला केवल भविष्य के हमले की भविष्यवाणी है .बहुत पहले से ऐसे हमले की आशंका व्यक्त की जा रही थी. जम्मू अटैक शायद आने वाले दिनों में और अधिक दुस्साहसी, प्रभावी और कम लागत वाले हमलों के लिए ट्रायल रन हो.
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हम कितने असुरक्षित हैं?

नेवी टेस्ट पायलट के तौर पर अपने अनुभवों और कुछ विशेषज्ञों से बात करने के बाद मैं इस तरह के ड्रोन-IED डिलीवरी के प्रति हमारी भेद्यता को 'बहुत अधिक' के रूप में आकूंगा. ऐसी उड़ने वाली वस्तुओं का पता लगाना कठिन होता है क्योंकि इनमें कोई ठोस विजुअल, रडार, इंफ्रारेड या आवाज नहीं होती. ऐसे हमले के लिए किसी इंफ्रास्ट्रक्चर या लॉन्च पैड की न्यूनतम या शून्य जरूरत होती है.

चाहे हम अपने चारों तरफ दीवारों को ऊंचा करते रहें, तारों में बिजली दौड़ाते रहें या उन्हें कंसर्टिना में लपेट दें, ऐसे हॉबी ड्रोन, जो बाजार में खुले तौर पर उपलब्ध हैं,इन तमाम उपायों को धता बताकर उन पर उड़ते हैं. IED को सिर्फ इतना शक्तिशाली होना है कि वह विस्फोट कर दे ,बाकी काम टारगेट पर मौजूद फ्यूल और पेलोड खुद कर देंगे.

सोशल मीडिया पर वायरल हो रही तस्वीरों से लगता है कि IED ने AFS जम्मू के एक इमारत की छत में छेद कर दिया है. यदि यह एयरक्राफ्ट को रखने वाला हैंगर होता या एयरक्राफ्ट खड़ा करने वाला व्यस्त टारमैक होता तो अंजाम कहीं ज्यादा होता.

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स्थानीय तौर पर भी कुछ डिफेंस बेस बहुत संवेदनशील हैं. भले ही उनके लिए पर्याप्त 'हाइ-थ्रेट' की धारणा नहीं हो. मेरे विचार से यह केवल 'कब' की बात है ना कि 'कैसे' की.

नवंबर 2010 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा मुंबई के छत्रपति शिवाजी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के सांताक्रुज में उतरे थे और फिर उन्हें एयर फोर्स वन से कोलाबा के नौसेना हेलीबेस INS शिकारा में उतारा गया था.

ठीक 2 साल पहले (मुंबई हमला, 26 नवंबर 2008) समुद्र के रास्ते पहुंचे पाकिस्तानी आतंकवादियों ने उसी स्थान के आसपास आतंक मचा रखा था. नौसेना हेलीबेस एक तरफ समुद्र से तो दूसरी तरफ ऊंची इमारतों और स्लम से घिरा हुआ है. VIP हेलीकॉप्टर लैंडिंग के दौरान समुद्री किनारे और शिकारा के पास के हर झोपड़ी-इमारत को पुलिस तथा विशेष बलों द्वारा 'सुरक्षित' किया गया था. तब 'सशस्त्र ड्रोन' को उतना खतरा नहीं माना गया था,कम से कम हमारी तरफ से.

11 साल बाद ऐसे संवेदनशील टारगेट के लिए ड्रोन के खतरे को नजरअंदाज करना नासमझी होगी. पश्चिमी समुद्री तट पर एक और हाई-सिक्योरिटी नौसैनिक हवाई अड्डा भी इसी तरह की स्थिति का सामना कर रहा है. बेस के चारों तरफ बिना रणनीति के डेवलपमेंट तथा अवैध इमारतें मौजूद हैं- इतना करीब कि कोई बिना स्प्रिन्गबोर्ड के इस बेस में लॉन्च कर दे. यह ड्रोन से लैस आतंकवादियों के लिए आसान टारगेट होगा.

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इनोवेशन और टेक्नोलॉजी पर भरोसा करना चाहिए

जब तक ठोस और समय पर खुफिया जानकारी उपलब्ध ना हो तब तक पारंपरिक बीट पेट्रोलिंग ऐसे खतरों के खिलाफ रक्षाहीन होते हैं. ड्रोन देखे जाने की स्थिति में OODA लूप बहुत छोटा होगा और उस पर पारंपरिक तरीकों से कार्यवाही मुश्किल है. ऐसे कई उदाहरण देशभर के बेस में मौजूद हैं. क्या हम तैयार हैं?

ड्रोन-IED हम लोग के प्रति संवेदनशीलता की जांच के लिए सभी VAs और VPs के एक गंभीर ऑडिट और इसके लिए आवश्यक डिफेंस मैकेनिज्म तैयार करने की आवश्यकता है. पूरी संभावना है कि रक्षा मंत्रालय के कुछ मुख्यालयों में इस तरह के अध्ययन और उनकी बड़ी-बड़ी रिपोर्टें धूल फांक रही होंगी. हम UAV को गंभीरता से नहीं लेते. क्या हमें आत्मसंतुष्टि से बाहर निकलने के लिए ऐसे उग्रवादी समूह के हमले की जरूरत है जो इंटरनेट से 'डू इट योरसेल्फ किट' डाउनलोड करके ऐसा करने के लिए तैयार बैठा है?

जम्मू हमले के मद्देनजर सुरक्षा प्रतिष्ठानों के एंटी-ड्रोन अभियान में शामिल होने की संभावना है. लगता तो यही है कि कोई बहुत बड़ी प्रतिक्रिया नहीं होने जा रही है या हमेशा की तरह सब वैसा ही चलता रहेगा.
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एक ऐसे कार्यवाही की सिफारिश की जाती है जो सतर्क लेकिन समयबद्ध हो, जो अनुकूल हो और जमीन पर सैनिकों को उतारने के बजाय टेक्नोलॉजी और इनोवेशन पर निर्भर करता हो. लेकिन पहले हमें खतरे को स्पष्ट और वर्तमान रूप में स्वीकार करना चाहिए. हमारे UAV स्कवाड्रनों में विषय के पर्याप्त विशेषज्ञ मौजूद हैं जो ऐसी चेतावनी दे रहे थें. उन्हें गंभीरता से लेने का समय आ गया है.

इस मामले में दुश्मन जरूरत के मुताबिक बदलने वाला और फुर्तीला है. उसके हाथ में ऐसा हथियार है जिसे चलाने के लिए उसे बेस कमांडर के मासिक वेतन के आधे से भी कम का खर्चा आता है और उसे कहीं बैठकर ऑपरेट किया जा सकता है.समय भी अभी उसके पक्ष में है.

(कैप्टन के पी संजीव कुमार नौसेना के एक पूर्व टेस्ट पायलट हैं और www.kaypius.com पर ब्लॉग और @realkaypius पर ट्विट करते हैं. वह 24 से अधिक प्रकार के फिक्स्ड और रोटेटरी विंग एयरक्राफ्ट उड़ा चुके हैं और उन्हें Bell 412 और AW139 हेलीकॉप्टरों पर दोहरी एटीपी रेटिंग मिली है. ये लेखक के निजी विचार हैं. द क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है)

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