जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) के राजौरी-पुंछ इलाके में एक के बाद एक ऑपरेशन और सुरक्षा बलों से मुठभेड़ में बढ़ती हताहतों की संख्या ने इलाके के सुरक्षा हालात में एक अजीब विरोधाभास को सामने ला दिया है.
ऐसा लगता है कि पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य में कुल मिलाकर उग्रवाद का ग्राफ तेजी से गिर रहा है. इस साल अब तक राज्य में कुल मौतों की गिनती 117 है, जो तीन दशकों में सबसे कम है.
पुलिस सूत्रों ने सप्ताहांत में द क्विंट को बताया कि साल 2023 में अब तक 63 आतंकवादी मारे गए हैं, जबकि पिछले साल 180 आतंकवादी मारे गए थे. इनमें से सिर्फ 21 स्थानीय थे, जो फिर एक रिकॉर्ड कमी है. बाहर से आए विदेशी घुसपैठियों में 42 पाकिस्तान से थे.
यह इस बात को सामने लाता है कि किस तरह उग्रवाद में स्थानीय हिस्सेदारी में भी काफी कमी आई है.
इन घटते आंकड़ों से BJP को फायदा होगा क्योंकि ऐसा ठोस सुधार उसके राजनीतिक दावे से मेल खाता है कि अनुच्छेद 370 के खात्मे से जम्मू-कश्मीर में हिंसा से छुटकारा पाने में मदद मिलेगी.
सुरक्षा के दावे में एक धब्बा है राजौरी-पुंछ बेल्ट
मगर इसके साथ ही, जम्मू के राजौरी-पुंछ इलाके में सुरक्षा बलों की मौतों के नतीजे में ऑपरेशन की बढ़ती गिनती ने बेचैनी बढ़ा दी है. यह गोलीबारी, जिसमें पीर पंजाल की ऊंची पहाड़ियों के पार, जंगलों और बीहड़ों की आड़ में आतंकवादी शामिल होते हैं, और फिर सुरक्षित ठिकानों से सर्च पार्टियों पर हमला करते हैं, उस नई रणनीति को दर्शाता है जिसे उन्होंने अपनाया है.
इन बदलावों ने इस सीमा इलाके को एक 'सुरक्षा समस्या' में तब्दील कर दिया है जो सरकार के सामान्य हालात के दावों के उलट तस्वीर पेश करते हैं. इस हफ्ते पुंछ के कालाकोट इलाके के बाजीमल में ऑपरेशन के दौरान हुई मौतों में दो कैप्टन सहित कम से कम पांच सैनिक शामिल थे. इस साल जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा संबंधी कुल मौतों में से 40 फीसद मौतें इन दो जिलों में हुई हैं.
शुक्रवार को सेना की उत्तरी कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने कहा कि 29 घंटे तक चली बाजीमल गोलीबारी के दौरान मारे गए दोनों आतंकवादी लंबे समय से इस इलाके में सक्रिय थे, और सुरक्षा बलों पर पिछले हमलों में भी शामिल थे.
उन्होंने कहा कि इस इलाके के कुछ आतंकवादी पाकिस्तानी सेना के रिटायर सैनिक थे, जो जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की मौजूदा स्थिति में एक नया आयाम जोड़ते हैं.
जनरल द्विवेदी के मुताबिक संभावना है कि 23 नवंबर के ऑपरेशन में सेना से भिड़ंत में शामिल आतंकवादियों को अफगानिस्तान में ट्रेनिंग दी गई थी, और “नागरिकों में डर पैदा करने और इलाके में अशांति फैलाने के लिए आतंकी हमले करने की योजना बना रहे थे.”
उन्होंने यह भी बताया कि आतंकवादी केंद्र शासित प्रदेश में होने वाले संसदीय चुनावों में खलल डालने की तैयारी कर रहे थे.
पुलिस सूत्रों ने द क्विंट को बताया कि शनिवार को राजौरी के बुद्धल इलाके में तीन और आतंकवादियों को देखा गया था, जिसके बाद इलाके में तलाशी अभियान शुरू किया गया. ऐसे में जम्मू-कश्मीर में लंबे समय से जारी सुरक्षा स्थिति के लिए इसका क्या मतलब है?
कश्मीर में सुरक्षा के हालात
कश्मीर घाटी से भी बड़ा राजौरी-पुंछ इलाका जंगलों और पहाड़ियों से घिरा है. यह इलाका पीर पंजाल की पर्वत श्रृंखला से सटा है, जो दक्षिण में कश्मीर से घिरा है. राजौरी-पुंछ की पहाड़ियां पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर से मिलती हैं. समतल कश्मीरी इलाके के मुकाबले यहां आमतौर पर सुरक्षा के लिए अनुकूल हालात नहीं हैं.
यह खासियत इस इलाके को नई उग्रवादी साजिशों के लिए संवेदनशील बनाती है. जम्मू-कश्मीर पुलिस के पूर्व महानिदेशक शेष पॉल वैद का कहना है, “यह भौगोलिक संरचना आतंकवादियों के लिए भारतीय सरहद में दाखिल होना आसान बनाती है, इसके अलावा खतरा महसूस होने पर वे या तो वापस लौट जाते हैं या कश्मीर की ओर भाग जाते हैं.”
सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि कश्मीर में भारी सुरक्षा बंदोबस्त आतंकवादियों को कम सुरक्षित इलाकों में हमले करने के लिए मजबूर कर रहा है.
इंस्टीट्यूट ऑफ कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट, नई दिल्ली के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अजय साहनी कहते हैं, “आतंकवादी इस स्थापित दलील से प्रेरित होते हैं कि उन्हें किसी न किसी तरह हमें नुकसान पहुंचाना है. पुंछ-राजौरी में तब तक कुछ भी नहीं चल रहा था जब तक कि सुरक्षा बल अनंतनाग, सोपोर या बारामुला जैसे उग्रवाद के पुराने मुख्य इलाकों पर पूरी तरह से कब्जा करने में कामयाब नहीं हो गए.”
सांप्रदायिक तनाव भड़का रहे हैं आतंकवादी
जनरल द्विवेदी ने शुक्रवार को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि स्थानीय लोगों से समर्थन की कमी के चलते पाकिस्तान इस इलाके में विदेशी आतंकवादियों को भेजने की कोशिश कर रहा है. उन्होंने कहा कि बाजीमल में सुरक्षा बलों के हाथों मारे गए आतंकवादी अच्छी तरह से प्रशिक्षित भाड़े के सैनिक थे. उन्होंने कहा, “इसलिए उन्हें खत्म करने में हमें कुछ समय लगा, लेकिन हमारे बहादुर सैनिकों ने अपनी जान की परवाह किए बिना इसे शानदार तरीके से अंजाम दिया.”
इसका मतलब यह है कि पुंछ-राजौरी इलाके में सैन्य बलों के लिए एक नया सुरक्षा संकट पैदा करने के लिए पाकिस्तान फिर से पुरानी रणनीति को बढ़ावा दे रहा है. वैद का कहना है,
“1990 के दशक के दौरान पाकिस्तानी सेना के नियमित फौजी भी हमारे यहां के आतंकवादी गुटों में शामिल थे. यह कोई नई बात नहीं है, लेकिन अब ऐसा लगता है कि इस सीमावर्ती इलाके को अस्थिर करना आतंकवादियों की समग्र रणनीति का हिस्सा है."
कहा जा सकता है कि यह ट्रेंड अक्टूबर 2021 में शुरू हुआ जब इस इलाके में अब तक की सबसे लंबी मुठभेड़ देखी गई, जिसके नतीजे में दो जूनियर कमीशंड ऑफिसर (JCO) सहित सेना के नौ जवान मारे गए.
तब से इस इलाके में बड़े पैमाने की ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जिन्होंने सुरक्षा चिंताओं को कई गुना बढ़ा दिया है.
इस साल की शुरुआत में आतंकवादियों ने राजौरी के ढांगरी गांव में सात नागरिकों को गोली मार दी थी. हमलों से सरकार विवादास्पद विलेज डिफेंस गार्ड (VDG) कार्यक्रम को फिर से शुरू करने को मजबूर हुई, जिसमें ग्रामीणों को हथियार और ट्रेनिंग देना शामिल है, ताकि वे ऐसे जानलेवा हमलों का सामना कर सकें.
पुलिस में ज्यादा स्थानीय लोगों की भर्ती की जाए
इस साल राजौरी और पुंछ के भिम्बर गली, भट्टा डूरियन, कंडी, नारला और बेहरोट इलाकों में ऐसे ही हमले देखे गए, जहां आतंकवादियों ने मुश्किल भौगोलिक बनावट का फायदा उठाया. ढांगरी हमला इस मायने में आतंकवादियों का मकसद हल करने वाला था कि इससे इलाके में सांप्रदायिक भावनाएं भड़कने का खतरा था.
जम्मू में रहने वाले संपादक और लेखक जफर चौधरी कहते हैं,
“राजौरी और पुंछ मुस्लिम बहुल इलाके हैं, लेकिन कश्मीर के उलट, जहां एक वर्ग तकरीबन बहुतायत में है, इस इलाके में कस्बों और गांवों में अल्पसंख्यक बराबर संख्या से बसे हुए हैं. इसलिए जब ऐसे हमले होते हैं तो सांप्रदायिक तनाव का खतरा बढ़ जाता है.”
लेकिन जफर चौधरी का यह भी कहना है कि इन इलाकों में ज्यादातर मुस्लिम निवासी ही सुरक्षा बलों के लिए खुफिया जानकारी के बुनियादी स्रोत हैं.
ऐसे कई मौके आए हैं जब सुरक्षा बलों ने आतंकियों को मदद पहुंचाने के आरोप में स्थानीय ग्रामीणों को गिरफ्तार किया है. इस साल की शुरुआत में नेशनल इनवेस्टिंग एजेंसी (NIA) ने ढांगरी हमले में शामिल आतंकवादियों को पनाह देने के आरोप में पुंछ के गुनसाई गांव के दो निवासियों निसार अहमद और मुश्ताक अहमद को गिरफ्तार किया था.
अप्रैल में अलग मामले में, जम्मू-कश्मीर पुलिस की स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप यूनिट्स ने 20 अप्रैल को भट्टा डूरियन इलाके के पास बलों पर घात लगाकर किए गए हमले में शामिल आतंकवादियों के साथ संबंध रखने के आरोप में जम्मू के बठिंडी इलाके के मरकज-उल-मारीफ मदरसे के एक मौलवी मंजूर को गिरफ्तार किया था.
हालांकि, सुरक्षा विशेषज्ञ भी इन्हें अपवाद के मामले मानते हैं जिसे आम रुझान नहीं कहा जा सकता है. शेष पॉल वैद का कहना है कि जम्मू-कश्मीर पुलिस को ज्यादा स्थानीय युवाओं को स्पेशल पुलिस ऑफिसर (SPO) के रूप में भर्ती करना चाहिए. वह कहते हैं, “स्थानीय लोगों को इलाके के बारे में ज्यादा जानकारी होती है, वे मौसम, रास्तों और इलाके की बनावट के बारे में जानते हैं. वे दुश्मन को उनके ठिकानों में ढूंढ निकालेंगे.’’
दूसरी जगह सुरक्षा बलों की कामयाबी का नतीजा है जम्मू में हमला
जनरल द्विवेदी ने पिछले हफ्ते कहा था कि बाजीमल इलाके में सक्रिय आतंकवादी की गिनती 25 तक हो सकती हैं, जिससे आशंका है कि और हमले हों.
“दोनों आतंकवादी (23 नवंबर को मुठभेड़ के दौरान मारे गए) पिछले एक साल से सक्रिय थे और हम उन्हें ढूंढ नहीं पा रहे थे. कोई उन्हें हथियार, गोला-बारूद और जानकारी भी मुहैया करा रहा था.’’
उन्होंने कहा था कि ये आतंकवादी उसी ग्रुप का हिस्सा थे जो ढांगरी में नागरिकों की हत्याओं के लिए जिम्मेदार था, साथ ही पिछले साल की शुरुआत में राजौरी शहर में अल्फा TCP के बाहर दो नागरिकों की हत्या के साथ-साथ कांडी में सुरक्षा बलों पर हमले के लिए भी जिम्मेदार था, जिसमें सेना के पांच जवान मारे गए.
उन्होंने कहा, “चूंकि राजौरी जिले में पुंछ एक हाई-वे के माध्यम से देश के बाकी हिस्सों से जुड़ा हुआ है, इसलिए वहां ज्यादा आतंकवादियों के ठिकाना बनाने की काफी संभावना है.”
हालांकि, जम्मू में बार-बार होने वाले हमलों को लेकर एक नजरिया यह भी है कि यह केंद्र शासित प्रदेश में दूसरी जगहों पर उग्रवाद विरोधी कामयाबी को दर्शाते हैं, यही वजह है कि आतंकवादी खुद को ऐसे इलाके में मजबूत कर रहे हैं, जहां पहुंचना बहुत कठिन होता है.
अजय साहनी कहते हैं, "यह सुरक्षा बलों की महत्वपूर्ण बढ़त की प्रतिक्रिया है जो गांवों और कस्बों में जाने में सक्षम हैं." निश्चित रूप से, हथियारों में बदलाव आया है और अब उनके पास बेहतर ट्रेनिंग है. प्रतिद्वंद्वी को सरप्राइज देने और इलाके में मजबूत पकड़ उनके पक्ष में है. लेकिन उन क्षेत्रों में बदलाव भी हो रहा है, जो हम समय-समय पर देखते हैं.
(शाकिर मीर एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका एक्स हैंडल @shakirmir है. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं. द क्विंट न तो इसका समर्थन करता है न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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