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झारखंड में ‘ऑपरेशन लोटस’ की आशंकाओं के बीच हेमंत सोरेन ने बिछाई बिसात

Hemant Soren की सदस्यता गई तो क्या होगा? विधायकों को दिए गए निर्देश

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झारखंड (Jharkhand) के सीएम हेमंत सोरेन (Hemant Soren) और उनके भाई बसंत सोरेन की विधायकी रहेगी या जाएगी, इसका फैसला चुनाव आयोग के हाथ में है. क्योंकि सीएम हेमंत सोरेन पर पद पर रहते हुए लाभ लेने का मामला और बसंत सोरेन पर संपत्ति का सही ब्योरा न देने के आरोप की जांच केंद्रीय चुनाव आयोग कर रही है. बीते 18 अगस्त को आयोग में बहस पूरी हो चुकी है. अब फैसला आना है.

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इस बीच झारखंड में राजनीतिक हलचल एक बार फिर काफी बढ़ गई है. कांग्रेस ने अपने सभी विधायकों से राज्य में ही रहने को कहा है. साथ ही शुक्रवार 20 अगस्त को सत्ता पक्ष के सभी विधायकों की एक बैठक बुलाई गई. बैठक के बाद अधिकारिक तौर पर बताया गया कि सुखाड़ की स्थिति पर विधायकों संग सीएम ने बात की है. हालांकि ये नहीं बताया कि राजनीतिक सुखाड़ पर बात हुई या फिर वास्तविक सुखाड़ पर.

इधर बैठक में मौजूद एक विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर अंदरखाने का हाल बताया. उन्होंने कहा कि-

हेमंत सोरेन के चेहरे पर शिकन तो है. लेकिन हमलोगों के साथ चुनाव आयोग मामले को लेकर किसी स्थिति-परिस्थिति पर बात नहीं की गई. बस इतना कहा कि बीजेपी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रही है. हमें षड़यंत्र के प्रतिरोध में खड़ा रहना होगा. परसेप्शन के विरुद्ध लड़ना होगा.

सोरेन की विधायकी जाने पर क्या हो सकता है?

ऐसे में सवाल ये उठता है कि अगर सीएम हेमंत सोरेन की विधायकी जाती है तो क्या सरकार गिर जाएगी. जवाब है, ये सब निर्भर करता है कांग्रेस के विधायकों के साथ में बने रहने तक. जेएमएम के पास फिलहाल 30 विधायक हैं. वहीं कांग्रेस के पास 18 और आरजेडी के 1 विधायक सरकार में हैं.

कुल 81 विधानसभा सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए चाहिए 41 मत. ऐसे में यूपीए के पास फिलहाल 49 विधायक हैं. अगर दोनों भाईयों की विधायकी जाती भी है, तो भी सरकार बहुमत में रहेगी और हेमंत सोरेन सीएम बने रहेंगे.

क्योंकि उनके पास दो ऑप्शन होंगे.

  • पहला कि चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएं.

  • दूसरा अगर उपचुनाव की नौबत आती भी है तो भी उनके पास छह महीने का समय होगा. और बरहेट, जहां से हेमंत फिलवक्त विधायक हैं, वह उनके लिए सुरक्षित सीट है. उस सीट से उन्हें हराना, बीजेपी के लिए फिलहाल आसान तो नहीं दिख रहा.

ऐसे में एक सवाल ये भी बनता है कि क्या चुनाव आयोग हेमंत सोरेन के चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा सकती है.

झारखंड हाईकोर्ट के वकील रश्मि कात्यायन कहते हैं, ‘’यहां सेक्शन 9ए का मामला है. ऐसे में आयोग केवल उन्हें डिसक्वालिफाई कर सकती है. चुनाव लड़ने पर रोक नहीं लगा सकती है.’’

वहीं दुमका जहां से उनके भाई बसंत सोरेन विधायक हैं, वहां बीजेपी की प्रत्याशी और पूर्व मंत्री लुईस मरांडी लगातार दो बार चुनाव हार चुकी हैं.

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हेमंत सोरेन का पद पर रहते हुए लाभ लेने का मामला सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही चल रहा है. चुनाव आयोग के फैसले से पहले बीते 17 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट की इसी मामले की टिप्पणी पर गौर करना होगा. झारखंड हाईकोर्ट के वकील सोनल तिवारी के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि-

यहां एक और बात गौर करने लायक है. बीजेपी नेता बाबूलाल मरांडी की विधायकी जाएगी या रहेगी, ये मामला भी विधानसभा अध्यक्ष के पास है. क्योंकि 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में बाबूलाल अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा से चुनाव लड़ा था. उसमें उनके अलावा, प्रदीप यादव और बंधू तिर्की उनकी पार्टी से चुनाव जीते थे. चुनाव बाद उन्होंने अपनी पार्टी का विलय बीजेपी में कल लिया था. बाकि दोनों विधायक कांग्रेस में चले गए.

हालांकि केंद्रीय चुनाव आयोग ने बाबूलाल मरांडी की पार्टी का बीजेपी में विलय को मान्यता दे दी थी. लेकिन विधानसभा अध्यक्ष के कोर्ट में देखा जा रहा है कि एक तिहाई विधायक तो कांग्रेस में चले गए, ऐसे में बीजेपी में मर्जर को मान्यता दी जाए या नहीं. यही वजह है कि अभी तक झारखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष ही नहीं हैं. क्योंकि जब तक इस मामले में फैसला नहीं आएगा, अधिकारिक तौर पर उन्हें नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं मिल सकता.

आशांका ये जताई जा रही है कि अगर हेमंत सोरेन की विधायकी जाती है तो बाबूलाल मरांडी की भी विधायकी जाएगी. ऐसे में 26 सदस्यों वाली बीजेपी, 25 सदस्यों वाली हो जाएगी.

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कैसे सोरेन ने विरोधियों पर नकेल कसा

झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार बनने के छह महीने बाद शायद ही कोई दिन होगा, जिस दिन ये चर्चा न हुई हो कि ये सरकार गिरने वाली है. बीते 30 जुलाई को इसमें एक बड़ा मोड़ आया. जब कलकत्ता में कांग्रेस के तीन विधायक डॉ इरफान अंसारी, राजेश कच्छप और नमन विक्सल कोंगारी को लगभग 50 लाख रुपए कैश के साथ कोलकाता पुलिस के हत्थे चढ़ गए. हेमंत सोरेन को पहली सफलता यहां मिली.

इधर रांची में ये बात खुलकर सामने आ गई कि इसके पीछे असम के सीएम और बीजेपी नेता हेमंत बिस्व सरमा हैं. क्योंकि ये विधायक उन्हीं के संपर्क में थे. ये बात भी कांग्रेस के ही एक विधायक अनूप सिंह ने रांची में दर्ज एफआईआर में कही. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने भी कहा कि इन विधायकों की गतिविधियों की जानकारी उन्हें थी. सीएम ने यहां भी बीजेपी के प्लान को ध्वस्त किया.

इस घटना के ठीक अगले दिन यानी 31 जुलाई को झारखंड हाईकोर्ट के वकील राजीव कुमार को कोलकाता में ही पुलिस ने गिरफ्तार किया. ये वही राजीव कुमार हैं जिन्होंने सीएम हेमंत सोरेन के खिलाफ खनन पट्टा सहित कई अन्य मामलों में जनहित याचिका दायर किया था. इसके अलावा सीएम के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा के खिलाफ भी उन्होंने जनहित याचिका दायर की थी.

राजीव कुमार पर आरोप हैं कि वह एक केस को सेटलमेंट करने के एवज में 10 करोड़ रुपए, बंगाल के एक व्यवसाई से मांगे थे. इसी का पैसा लेने वह कोलकाता पहुंचे जहां उन्हें रंगेहाथों पकड़ा गया.

तीसरा दांव भी खेला गया. हालिया संपन्न हुए विधानसभा सत्र के बाद सत्तापक्ष के विधायकों की एक बैठक बुलाई गई थी. जिसमें हेमंत सोरेन के सामने पूरी कांग्रेस सरेंडर करती नजर आई. बैठक में मौजूद एक सूत्र के मुताबिक कांग्रेस कोटे से एक मंत्री जिनपर पार्टी को तोड़कर अलग पार्टी के नेतृत्व की जिम्मेदारी थी, उन्होंने सीएम से माफी मांगी.

हेमंत ने यहां भी एक दांव खेला, सत्र के दौरान इस बात की खूब जोर चर्चा थी कि मंत्रिमंडल में फेरबदल होना है. माफी मांगनेवाले मंत्री पर तलवार लटकनी तय बताई जा रही थी. लेकिन एहसान जताते हुए ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की गई. साथ ही सत्ता के गलियारे में मंत्रिमंडल के विस्तार की खबरें भी अब गुम हो चली हैं.

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आखिर ये बेचैनी क्यों

आखिर झारखंड में हेमंत सरकार गिराने की बेचैनी विपक्षी पार्टियों में क्यों है. गौर करें तो बीजेपी का बिहार में सरकार से बाहर होने पर वो झारखंड के चार पड़ोसी राज्यों में सत्ता से बाहर हो गई है. झारखंड 14 लोकसभा सीटों को मिलाकर इन पांच राज्यों में लोकसभा की 128 सीटें हैं. पश्चिम बंगाल में 42, बिहार में 40, ओडिशा में 21 और छत्तीसगढ़ में 11 सीटें हैं.

रांची के वरिष्ठ पत्रकार राज सिंह कहते हैं, ‘’बीजेपी हर हाल में चाहेगी कि वह झारखंड में सरकार में रहे. क्योंकि बाकि चारों राज्यों में फिलहाल उसके आने की कोई संभावना नहीं है. मतलब वो इन राज्यों में चुनाव से पहले सत्ता में आने की स्थिति में नहीं है. ऐसे में झारखंड ही एक ऐसा राज्य बचता है, जहां बीजेपी के प्रयासों के सफल होने की थोड़ी-बहुत संभावना है.’’

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