झारखंड (Jharkhand) की सभी 14 सीटों पर जीत का दावा करती रही बीजेपी लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Elections) के रण में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती, लेकिन चुनावों की तारीख नजदीक आने के साथ ही उसकी बेचैनियां भी कायम हैं.
इन बेचैनियों की एक मुख्य वजह है- आदिवासियों के लिए रिजर्व सीटों पर बीजेपी की चुनौतियां. 2014 और 2019 के चुनावों में मोदी लहर के बाद भी झारखंड में आदिवासियों के लिए दो-दो रिजर्व सीटों पर बीजेपी की हार हो गई थी.
बनते-बिगड़ते समीकरणों में एक सवाल मौजूं है कि 14 सीटों पर जीतने के दावे करती रही बीजेपी क्या आदिवासियों के लिए रिजर्व सभी सीटों को फतह कर सकेगी. इसके अलावा, कुछ अनारक्षित सीटों पर भी बीजेपी को इस बार सीधी चुनौतियां मिलती दिख रही हैं.
अलग- अलग इलाकों के दौरे और वोटरों का मिजाज भांपने के दौरान मालूम भी होता रहा है कि जेएमएम कैडर और आदिवासियों की गोलबंदी उन सामान्य (अनारक्षित) सीटों पर भी समीकरणों को प्रभावित कर सकता है, जहां आदिवासी वोटर भी एक फैक्टर हैं.
13 मई से वोटिंग
झारखंड में लोकसभा की 14 में से पांच सीटें- सिंहभूम, खूंटी, लोहरदगा, राजमहल, दुमका आदिवासियों के लिए और पलामू की सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व है. बाकी आठ सामान्य (अनारक्षित) वर्ग की सीटें हैं.
प्रदेश में चौथे चरण से चुनावों की शुरूआत हो रही है. 13 मई को होने वाले चुनाव में झारखंड की चार सीटों पर चुनाव होना है. इनमें सिंहभूम, खूंटी, लोहरदगा और पलामू सीट के लिए वोट डाले जाएंगे.
इसके बाद पांचवें चरण में 20 मई को चतरा, कोडरमा, हजारीबाग और छठे चरण में 25 मई को गिरिडीह, धनबाद, रांची, जमशेदपुर सीट के लिए वोट डाले जाएंगे. ये सभी सामान्य सीटें हैं. जबकि सातवें और आखिरी चरण में एक जून को संथाल परगना की तीन सीटें- दुमका, राजमहल और गोड्डा के लिए वोट डाले जाएंगे.
इस बार के चुनावों में एक तस्वीर यह भी उभरती दिख रही है, सामान्य वर्ग की सीटों पर भी बीजेपी को इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवारों से चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, जहां 2019 के चुनावों में उसने शानदार जीत दर्ज की थी.
2019 के चुनाव में हजारीबाग, कोडरमा, रांची, चतरा, गोड्डा, धनबाद, जमशेदपुर में बीजेपी ने बड़े अंतर से जीत दर्ज कर विपक्षी गठबंधन को सकते में डाला था. इसी तरह बीजेपी की सहयोगी AJSU पार्टी ने गिरिडीह की सीट पर जेएमएम को लगभग ढाई लाख वोटों से हराया था.
बीजेपी का भरोसा
2019 की तरह ही इस बार भी बीजेपी को बड़ा भरोसा है कि नरेंद्र मोदी के प्रभाव का उसे सीधा लाभ मिलेगा. नरेंद्र मोदी ने झारखंड में रोड शो और रैलियां भी शुरू है. 2019 के चुनाव में बीजेपी ने बड़ी जीत के साथ अकेले 51 प्रतिशत वोट शेयर दर्ज किये थे, उससे भी पार्टी के रणनीतिकारों की उम्मीदें कायम हैं.
जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस का वोट शेयर 27 प्रतिशत ही था. बीजेपी की उम्मीदें इस बात पर भी है कि पिछले लोकसभा चुनाव में राज्य की 81 विधानसभा सीटों में से 57 पर उसने बढ़त ली थी.
लोकसभा चुनावों को लेकर बीजेपी यहां बहुत पहले से तैयारियां करती रही है. और उम्मीदवारों की घोषणा भी उसने पहले की है. पार्टी के रणनीतिकार एक- एक सीट की समीक्षा के साथ लगातार अलग- अलग- अलग कार्यक्रम करते रहे हैं.
जेएमएम का भरोसा
इधर सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा हर हाल में बीजेपी को पीछे धकेलने की कवायद में जुटा है. जेएमएम की सीधी नजर आदिवासियों के लिए सुरक्षित सीटों पर है. इसी तरह खूंटी और लोहरदगा में कांग्रेस की बीजेपी से आमने-सामने की टक्कर होती दिख रही है.
हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद जेएमएम ने पंद्रह फरवरी से ‘न्याया यात्रा’ आंदोलन शुरू किया था और इसी यात्रा के जरिए आदिवासियों में गोलबंदी की मुहिम छेड़ी गई थी, उसका असर भी चुनावों में होता दिख रहा है.
जेएमएम और कांग्रेस को भी इसका भरोसा है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में बुरी तरह मात खाने के कुछ ही महीने बाद झारखंड विधानसभा चुनाव में उसने बीजेपी को करारी शिकस्त दी थी. तब झारखंड में आदिवासियों के लिए सुरक्षित विधानसभा की 28 सीटों में से 26 पर बीजेपी और कांग्रेस ने कब्जा जमा लिया था. बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने में ये समीकरण महत्वपूर्ण साबित हुए थे.
हेमंत सोरेन की गैरमौजूदगी (जेल जाने के बाद) उनकी पत्नी कल्पना सोरेन के सामने आने और कम समय में ही प्रभावी चेहरा के तौर पर उभरने से भी जेएमएम कैडर और समर्थकों को गोलबंद होने का मौका दे दिया है.
कोल्हान में जबरदस्त खींचतान
सिंहभूम के चुनावी सफर में पहला मौका है, जब दो आदिवासी महिला आमने- सामने हैं. 2019 में कांग्रेस के टिकट से जीत हासिल करने वाली गीता कोड़ा इस बार बीजेपी की नाव पर सवार हैं. वहां जिस तरह के समीकरण और मोर्चाबंदी है, उसमें एक बात साफ तौर पर रेखांकित होती है कि गीता कोड़ा बीजेपी की नाव पर सवार होकर भी इत्मिनान नहीं है.
इंडिया ब्लॉक समर्थित जेएमएम की जोबा माझी से उनकी सीधी लड़ाई है. जोबा माझी मनोहरपुर से पांच बार की विधायक हैं.
सिंहभूम संसदीय क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं. इनमें पांच पर जेएमएम और एकपर कांग्रेस का कब्जा है. झारखंड के मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन सरायकेला विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं और यह सीट भी सिंहभूम संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है. जाहिर तौर पर मुख्यमंत्री और जेएमएम के विधायकों के लिए यह चुनाव नाक का सवाल बना है.
तीन मई को नरेंद्र मोदी ने गीता कोड़ा के समर्थन में चाईबासा में रैली की थी. इसके बाद सात मई को राहुल गांधी ने जोबा मांझी के समर्थन में चाईबासा में ही रैली की. इन रैलियों के भी मायने निकाले जा रहे हैं. राहुल गांधी ने रैली के जरिए आदिवासियों के जज्बात उभारने की पूरी कोशिशें की.
उधर पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा अपनी पत्नी गीता कोड़ा की चुनावी कमान संभालते दिख रहे हैं. सिंहभूम की राजनीति में मधु कोड़ा एक धुरी रहे हैं.
दूसरी तरफ जेएमएम ग्रामीण क्षेत्रों में आदिवासी वोटों की गोलबंदी पर जोर देता दिख रहा है.
खूंटी में केंद्रीय मंत्री की चुनौती
खूंटी सीट पर देश भर की निगाहें टिकी हैं. यहां से जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा बीजेपी के उम्मीदवार हैं. वे केंद्र में कृषि मंत्री की भी जिम्मेदारी संभाल रहे. 2019 के चुनाव में अर्जुन मुंडा ने खूंटी में कांग्रेस के कालीचरण मुंडा को महज 1445 वोटों के अंतर से हराया था. वोटों के इसी महीन फासले के चलते इस बार के चुनाव में अर्जुन मुंडा रणनीतिक मोर्चे पर सतर्क और सजग है.
उधर कांग्रेस के कालीचरण मुंडा 2019 में हुई हार की कसक मिटाने में कोई दांव खाली जाने नहीं देना चाहते.
खूंटी में मुंडा आदिवासी और ईसाई वोटों का समीकरण जीत- हार के समीकरण के लिए महबत्वपूर्ण माना जाता है. इसके बाद गैर आदिवासी वोट भी एक अहम फैक्टर है.
कालीचरण मुंडा ईसाई और मुंडा आदिवासी वोटों की गोलबंदी में एड़ी- चोटी का जोर लगाए हुए हैं. जंगल- पहाड़ वाले इलाके में भी कालीचरण मुंडा आदिवासियों को अपने पक्ष में करने के प्रयास में जुटे हैं. शहरी इलाके में गैर आदिवासी वोटों को बीजेपी अपने पाले में करने की कोशिशें करती दिख रही है.
इस संसदीय क्षेत्र में आदिवासियों के बहुतेरे सवाल हैं. जज्बात हैं. मुश्किले हैं. चुनावों में समर्थन के सवाल पर गांवों- टोलों में सामूहिक निर्णय लेने का भी रिवाज है. जेएमएम और कांग्रेस वहां तक पहुंचने में जुटी है.
पूर्व मंत्री एनोस एक्का की झारखंड पार्टी ने भी उम्मीदवार खड़ा किया है. जेपी का दम भी इस बार परखा जाना है.
इसी तरह लोहरदगा संसदीय क्षेत्र में लगातार तीन बार से मामूली वोटों से चुनाव हार रही कांग्रेस के सामने कब्जा जमाने और बीजेपी के लिए सीट बचाने की चुनौती है. 2019 के चुनाव में बीजेपी के सुदर्शन भगत ने कांग्रेस के उम्मीदवार सुखदेव भगत को 10,263 वोटों के अंतर से हराया था.
इस बार बीजेपी ने यहां चेहरा बदलते हुए राज्य सभा के पूर्व सांसद समीर उरांव को मैदान में उतारा है. कांग्रेस से सुखदेव भगत मैदान में हैं. जेएमएम के विधायक चमरा लिंडा बगावत कर निर्दलीय मैदान में उतरे हुए हैं. वे किसका खेल बनायेंगे और किसका बिगाड़ेंगे, इस पर सबकी नजरें टिकी हैं. दरअसल चमरा लिंडा का भी अपना जनाधार रहा है. नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी की रैलियों के बाद बीजेपी और कांग्रेस में हवाओं का रुख अपने पक्ष में करने के प्रयास जारी है.
कोडरमा और हजारीबाग
कोडरमा में केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री और बीजेपी की उम्मीदवार अन्नपूर्णा देवी का सीधा मुकाबला इंडिया ब्लॉक समर्थित CPI(ML) के उम्मीदवार विनोद सिंह से होता दिख रहा है. 2019 के चुनाव से ठीक पहले अन्नपूर्णा देवी RJD छोड़ कर बीजेपी में शामिल हुई थीं. तब उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड विकास मोर्चा के उम्मीदवार बाबूलाल मरांडी को 4,55,600 वोटों से हराया था. अब बाबूलाल मरांडी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष क साथ पार्टी के चुनावी खेवनहार भी है.
अन्नपूर्णा देवी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे विनोद सिंह बगोदर से तीन टर्म के विधायक हैं. विनोद सिंह जेएमएम और कांग्रेस के सहयोग से वोटों की गोलबंदी करने में जुटे हैं. बगोदर विधानसभा क्षेत्र कोडरमा संसदीय क्षेत्र का ही हिस्सा है.
उधर अन्नपूर्णा देवी कोडरमा विधानसभा क्षेत्र से पूर्व में चार बार विधायक भी रही हैं. पिछले दो चुनावों से बीजेपी की नीरा यादव विधायक हैं. कोडरमा में बीजेपी का अपना वोट बैंक भी है.
कोडरमा में कुशवाहा, यादव, मुस्लिम, अनुसिचत जाति वोटों का फैक्टर नतीजे को प्रभावित करने में अहम फैक्टर माना जाता है. इन समीकरणों को लेकर चुनावी बिसात बिछायी जा रही है.
विनोद सिंह जन सवालों और मुद्दों पर सड़क से सदन तक संघर्ष करते रहे हैं और हमेशा जमीन से जुड़े रहे हैं. उनकी पहुंच गांव- गांव में रही है. इसका लाभ उन्हें मिल सकता है.
बीजेपी के लिए सबसे सेफ सीट मानी जाती रही हजीराबाग में भी इस बार तस्वीर बदली हुई है. बीजेपी ने जयंत सिन्हा की जगह हजारीबाग सदर के विधायक मनीष जायसवाल को उम्मीदवार बनाया है. 2019 में जयंत सिन्हा ने कांग्रेस के उम्मीदवार गोपाल साहू को 4,79,548 वोटों से हराया था.
जयंत सिन्हा के चुनाव नहीं लड़ने से उनके पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने कांग्रेस उम्मीदवार जेपी पटेल के समर्थन में चुनावी मोर्चा संभाल लिया है.
पिछले महीने एक प्रेस कांफ्रेस में उन्होंने कहा था, “हजारीबाग को 40 साल मैंने जिया है. अब मेरी जितनी भी ताकत बची है उसे जेपी पटेल को जिताने में लगाऊंगा.“
2019 में जेपी पटेल ने मांडू से विधानसभा का चुनाव जीता था. इस बार लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हो गए.
हजारीबाग में कुर्मी, सुकियार, कुशवाहा, मुस्लिम वोटों का समीकरण प्रभावी है. इसके साथ ही वैश्य समुदाय और अगड़ी जातियों का वोट भी फैक्टर है. जेपी पटेल कुर्मी और जबकि मनीष जायसवाल वैश्य समुदाय से आते हैं. वोटों के समीकरणों पर दरक लगाने और संभालने की जिस तरह की कवायद चल रही है उसमें कोडरमा और हजारीबाग में इस बार एकतरफा की बजाय आमने- सामने की लड़ाई दिख रही है.
राजमहल और दुमका में दिलचस्प मुकाबला
आदिवासियों के लिए सुरक्षित संताल परगना की दुमका और राजमहल सीट पर इस बार मुकाबला कहीं ज्यादा दिलचस्प है. 2014 और 2019 के चुनावों में जेएमएम के विजय हांसदा राजमहल की सीट पर जीत दर्ज कर बीजेपी को कड़ी चुनौती पेश कर चुके हैं. मोदी लहर में दो- दो बार बीजेपी को यहां मिली हार उसे अब तक खटकती रही है.
इस बार जेएमएम ने फिर से विजय हांसदा को मैदान में उतारा है. उधर बीजेपी ने पार्टी छोड़ चुके ताला मरांडी की वापसी कराते हुए राजमहल से उम्मीदवार बनाया है.
इस बीच बोरियो सीट से जेएमएम विधायक लोबिन हेंब्रम ने बगावत का रुख अख्तियार करते हुए राजमहल संसदीय क्षेत्र से निर्दलीय नामांकन दाखिल कर दिया है. वे पिछले कई महीनों से दल से नाराज चल रहे हैं. बोरियो राजमहल संसदीय क्षेत्र का ही हिस्सा है. राजमहल संसदीय क्षेत्र में ही बरेहट आता है, जहां से हेमंत सोरेन विधायक हैं.
बीजेपी लोबिन हेंब्रम के मैदान में आने का लाभ उठाने की जुगत में है, तो जेएमएम के सामने लोबिन के खतरे से बचने की चुनौती है. हालांकि जेएमएम अपने वोट बैंक को इंटैक्ट रखने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा.
सीता सोरेन बीजेपी के टिकट पर लड़ रहीं चुनाव
इसी तरह दुमका में भी चुनावी ताना- बाना सिरे से इस बार बदला हुआ है. जेएमएम छोड़ बीजेपी में शामिल हुईं, शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन बीजेपी से चुनाव लड़ रही हैं. सोरेन परिवार में यह पहली दफा है जब परिवार का किसी सदस्य ने राजनीति में अलग राह पकड़ी है.
सीता सोरेन के खिलाफ जेएमएम ने नलिन सोरेन को मैदान में उतारा है. नलिन सोरेन शिकारीपाड़ा से सात टर्म के विधायक हैं. जबकि सीता सोरेन जामा से तीन बार विधानमसभा चुनाव जीती हैं.
ये दोनों विधानसभा क्षेत्र दुमका संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है. जेएमएम के लिए यह चुनाव उसकी प्रतिष्ठा से जुड़ा है. साथ ही सीता सोरेन के लिए भी अग्नि परीक्षा से कम नहीं.
इससे पहले इस सीट से शिबू सोरेन के नाम आठ बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड रहा है. दुमका को शिबू सोरेन की कर्मस्थली भी मानी जाती है. शिबू सोरेन के छोटे पुत्र बसंत सोरेन अभी दुमका से विधायक हैं और चंपाई सोरेन सरकार में मंत्री भी. बसंत सोरेन जेएमएम उम्मीदवार नलिन सोरेन के समर्थन में मैदान संभाले हैं.
दुमका संसदीय क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं. इनमें पांच पर पांच पर जेएमएम कांग्रेस और एक पर बीजेपी का कब्जा है. 2019 के चुनाव में बीजेपी के सुनील सोरेन ने शिबू सोरेन को 47 हजार 590 वोटों के अंतर से हराया था. इससे पहले 2014 के चुनाव में सुनील सोरेन जेएमएम के शिबू सोरेन के हाथों 39 हजार 30 वोटों से हार गए थे.
इस बार बीजेपी ने सांसद सुनील सोरेन का नाम उम्मीदवारों की पहली सूची में जारी कर दिया था. सीता सोरेन के बीजेपी में शामिल होने के बाद सुनील सोरेन का टिकट वापस लेते हुए सीता सोरेन को उम्मीदवार के तौर पर पेश किया गया.
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