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कैसी आत्मनिर्भरता? लैपटॉप, टैबलेट के इंपोर्ट में लाइसेंसिंग से भारत को नुकसान होगा

भारत की कंप्यूटर डिवाइस इंडस्ट्री मेक इन इंडिया से ज्यादा ‘असेंबल इन इंडिया’ की तर्ज पर चलती है.

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भारत सरकार ने 3 अगस्त को एक चौंकाने वाला कदम उठाते हुए लैपटॉप, टैबलेट, ऑल-इन-वन पर्सनल कंप्यूटर और अल्ट्रा-स्मॉल फॉर्म फैक्टर कंप्यूटर्स और सर्वर के आयात को ‘प्रतिबंधित श्रेणी’ (Restricted Category) में डाल दिया. यानी अब इनका आयात केवल सही लाइसेंस (Licensing Imports of Laptops, Tablets) के तहत ही किया जा सकेगा. कुछ मामूली रियायतें दी गईं, लेकिन कंप्यूटर डिवाइसेज के सभी आयात पर तत्काल प्रभाव से सरकारी नियंत्रण लागू कर दिया गया. जबकि इन्हीं पर भारत की डिजिटल सेवाएं और निर्यात निर्भर हैं. इसके बाद चारों ओर हड़कंप मच गया, जो कि होना ही था.

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सरकार डिजिटलाइजेशन में रुकावट डालने वाला लाइसेंस राज ला रही है

सरकारी अधिकारियों और मंत्रियों ने सबसे पहले यह सुझाव थोपने की कोशिश की कि यह कंप्यूटर उपकरणों के निर्माण में मेक इन इंडिया (Make in India)– भारत को आत्मनिर्भर बनाने– के मकसद से किया गया है. फिर, उन्होंने सुरक्षा की दलील पेश की. इनमें से कोई भी दलील खास टिकाऊ साबित नहीं हुई.

अगले दिन 4 अगस्त को देर रात सरकार ने ‘लिबरल ट्रांजिशनल अरेंजमेंट’ (Liberal Transitional Arrangements) से कदम पीछे खींच लिए और अनिवार्य लाइसेंसिंग को 1 नवंबर तक के लिए टाल दिया. साथ ही ऐलान किया कि 31 अक्टूबर 2023 तक प्रतिबंधित आयात के सामानों को बिना लाइसेंस मंजूरी दी जाएगी. इसमें कोई शक नहीं है कि सरकार नए दौर के वैल्यू क्रिएटर, यानी डिजिटलाइजेशन में रुकावट डालने वाला लाइसेंस राज ला रही है.

क्या आयातित कंप्यूटर डिवाइसेज पर यह लाइसेंस राज भारत को आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने और इसके अनजाने सुरक्षा हितों को सुरक्षित करने के मकसद को पूरा कर पाएगा? या फिर यह भारत की डिजिटल इकोनॉमी और इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्सपोर्ट का खात्मा कर देगा?

ध्यान रहे कि भारत में फिलहाल 90 प्रतिशत डिवाइस आयात किए जाते हैं.

डिजिटल सर्विसेज इकनॉमी कंप्यूटर के आयात पर खड़ी है

भारत ने कंप्यूटर और इसमें इस्तेमाल होने आईटी हार्डवेयर कंपोनेंट और पार्ट्स, जैसे चिप्स, बैटरी, कैमरे वगैरह का आविष्कार नहीं किया. नतीजतन भारत कंप्यूटर उपकरणों का निर्माण नहीं करता है.

हमारे देश में कंप्यूटर हार्डवेयर मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री बहुत छोटी है. यह सेमीकंडक्टर चिप्स और दूसरे कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और पार्ट्स के आयात पर बहुत ज्यादा निर्भर है.

हमारी कंप्यूटर डिवाइस इंडस्ट्री मेक इन इंडिया से ज्यादा ‘असेंबल इन इंडिया’ की तर्ज पर चलती है. इसमें भी घरेलू स्तर पर हमारी बहुत महारथ नहीं हैं.

RBI के आंकड़े बताते हैं कि भारत को 2021-22 में सॉफ्टवेयर सर्विसेज के निर्यात से 122 बिलियन डॉलर का पेमेंट मिला.

2021-22 में भारत का स्वचालित/ऑटोमेटिक डेटा प्रोसेसिंग मशीनों और इकाइयों का कुल आयात केवल 11.63 बिलियन डॉलर था (विदेश व्यापार महानिदेशालय का आंकड़ा). आयातित उपकरणों पर पूरे खर्च से 10 गुना ज्यादा विदेशी मुद्रा सॉफ्टवेयर सर्विसेज के निर्यात से हासिल हुई.

प्रस्तावित पाबंदियों से सॉफ्टवेयर सर्विसेज के निर्यात को नुकसान होगा

भारत ने पिछले 25 सालों में अपने बनाए और दूसरे देशों से आयात किए कंप्यूटर डिवाइसेज का इस्तेमाल कर एक बड़ी कामयाब इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी सर्विस इंडस्ट्री खड़ी की है. और, हमने अपनी इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी सॉफ्टवेयर सर्विसेज का बड़े पैमाने पर निर्यात किया.

सॉफ्टवेयर सर्विसेज भारत की सेवा और कुल निर्यात की बुनियाद हैं. 2021-22 में कुल सेवाओं के निर्यात का 48 प्रतिशत सॉफ्टवेयर सर्विसेज था और हमारे गुड्स और सर्विसेज को मिलाकर कुल निर्यात का 18 प्रतिशत था. नीचे दी गई टेबल और चार्ट (भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों पर आधारित) भारत के निर्यात में सॉफ्टवेयर सर्विसेज की बड़ी भूमिका को दर्शाते हैं.

भारत की कंप्यूटर डिवाइस इंडस्ट्री मेक इन इंडिया से ज्यादा ‘असेंबल इन इंडिया’ की तर्ज पर चलती है.

भारत के निर्यात में सॉफ्टवेयर सर्विसेज की भूमिका.

(स्रोत: भारतीय रिजर्व बैंक)

भारत की कंप्यूटर डिवाइस इंडस्ट्री मेक इन इंडिया से ज्यादा ‘असेंबल इन इंडिया’ की तर्ज पर चलती है.

भारत के निर्यात में सॉफ्टवेयर सर्विसेज की भूमिका.

(स्रोत: भारतीय रिजर्व बैंक)

भारत की कंप्यूटर डिवाइस इंडस्ट्री मेक इन इंडिया से ज्यादा ‘असेंबल इन इंडिया’ की तर्ज पर चलती है.

भारत के निर्यात में सॉफ्टवेयर सर्विसेज की भूमिका.

(स्रोत: भारतीय रिजर्व बैंक)

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खुले आयात ने मुद्रास्फीति को कम रखा है

कंप्यूटर डिवाइसेज के खुले आयात पर प्रस्तावित पाबंदियां सॉफ्टवेयर सर्विसेज में भारत की बढ़त पर असर डालेंगी. पूरी संभावना है कि इससे सॉफ्टवेयर सर्विसेज के निर्यात को नुकसान होगा. हम सबसे बड़े निर्यात को क्यों नुकसान पहुंचाना चाहते हैं, जो इतनी विदेशी मुद्रा अर्जित कर हमें विदेशी मुद्रा के मोर्चे पर हकीकत में सबसे मजबूत सुरक्षा देता है?

घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स डिवाइस मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री अपने उत्पादों की कीमत ज्यादा नहीं बढ़ा रही है. ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि ऐसी डिवाइस के आयात पर कोई आयात शुल्क (वैश्विक इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी समझौते के तहत) नहीं है, बल्कि मुख्य रूप से ऐसा पूरी तरह से उदार और अप्रतिबंधित आयात व्यवस्था के चलते है.

इंडस्ट्री क्लासिफिकेशन– कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक और ऑप्टिकल प्रोडक्ट्स का निर्माण– का थोक मूल्य सूचकांक 2022-23 में 116.6 (आधार वर्ष 2011-12) था. इसमें HSN 8471 में शामिल किए गए सभी कंप्यूटर उपकरणों की मैन्फैक्चरिंग शामिल है.

इसका मतलब यह है कि इस वर्ग की वस्तुओं में थोक मुद्रास्फीति एक दशक से ज्यादा समय से केवल 1.45 प्रतिशत सालाना रही है. इसके उलट इस अवधि में कमोडिटीज और मैन्युफैक्चर्ड आइटम का थोक सूचकांक क्रमशः 152.5 (3.62 प्रतिशत की वार्षिक मुद्रास्फीति) और 142.6 (3.08 प्रतिशत की वार्षिक मुद्रास्फीति) रहा.

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मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स के सभी 22 वर्गों में कंप्यूटर डिवाइसेज में मुद्रास्फीति दूसरे नंबर पर सबसे कम रही है. सिर्फ लेदर प्रोडक्ट्स की मैन्युफैक्चरिंग में इससे कम मुद्रास्फीति दर्ज की गई.

सरकार ने 3 अगस्त को जैसे ही अनिवार्य लाइसेंसिंग अधिसूचना जारी की, कंप्यूटर डिवाइस के कुछ स्थानीय निर्माताओं के शेयर की कीमतें चढ़ने लगीं. कुछ बड़े आयातकों के शेयर की कीमतें भी थोड़ी बढ़ीं. जाहिर तौर पर, बाजार ने उनका काम बढ़ने और नतीजन लाभ की संभावनाओं में जोरदार बढ़ोत्तरी का हिसाब लगाना शुरू कर दिया था.

अधिसूचना में ऐसा नहीं कहा गया कि इसका मकसद चीन से कंप्यूटर डिवाइसेज के आयात पर रोक लगाना था. एंट्री 8471 के तहत आयातित लगभग 60 फीसद कंप्यूटर डिवाइसेज चीन से आते हैं.

इस बात की ज्यादा आशंका थी कि लाइसेंसिंग व्यवस्था के हिस्से के रूप में चीन से आयात को हतोत्साहित किया जाएगा. चूंकि कंप्यूटर डिवाइसेज के दूसरे सप्लायर्स की कीमतें चीनी आयात जैसी सस्ती नहीं हैं, ऐसे में उन हार्डवेयर उत्पादों की कीमतें बढ़ जाएंगी क्योंकि आयात ज्यादा कीमत वाली कंपनियों के पास चला जाएगा. कोई शक नहीं कि इससे कंप्यूटर डिवाइसेज में लगभग ना के बराबर मुद्रास्फीति के दौर को करारा झटका लगेगा.

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मेक इन इंडिया डिवाइसेज को बढ़ावा देना सही नीति नहीं

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MEITY) कंप्यूटर हार्डवेयर के घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए कई योजनाएं चलाता है. प्रोडक्शन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) स्कीम भारत में मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने वाली तात्कालिक योजनाएं हैं.

सरकार ने मार्च 2021 में आईटी हार्डवेयर के लिए 7,350 करोड़ रुपये की PLI योजना का ऐलान किया. यह योजना लैपटॉप, टैबलेट, ऑल-इन-वन पर्सनल कंप्यूटर और सर्वर (ये सभी आइटम एंट्री 8471 के तहत आते हैं) के हार्डवेयर सेगमेंट पर केंद्रित थी.

इस योजना में आधार वर्ष 2019-20 पर शुद्ध वृद्धिशील बिक्री/नेट इंक्रीमेंटल सेल पर चार साल (2021-22 से 2024-25) के लिए चार फीसद तक इन्सेंटिव देने का ऐलान किया गया. सरकार ने 14 कंपनियों को 1.6 लाख करोड़ रुपये (लगभग 20 अरब डॉलर) के आईटी हार्डवेयर उत्पादन के वादे पर इस PLI स्कीम के तहत मंजूरी दी.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 44 कंपनियों ने आवेदन किया है. जिसके भी आवेदन मंजूर होंगे, वो सिर्फ भारत में ही असेंबल करेंगी और यह बहुत आला दर्जे के डिवाइस नहीं होंगे, जिससे बहुत कम वैल्यू एडिशन होगा.

इस स्कीम से कुछ खास हासिल नहीं हुआ. 2022-23 में आठ PLI के लिए कुल 2,900 करोड़ रुपये जारी किए गए. आईटी हार्डवेयर PLI में बमुश्किल कोई धनराशि जारी की गई. योजना बहुत धीमी रफ्तार से चल रही है.

सरकार मई 2023 में 17,000 करोड़ रुपये के बढ़ाए गए बजट आवंटन के साथ आईटी हार्डवेयर के लिए PLI 2.0 स्कीम लेकर आई. इस योजना में इन्सेंटिव को करीब 5 फीसद और इसकी अवधि को छह वर्ष तक बढ़ा दिया. योजना लागू होने की विंडो पहले 31 जुलाई 2023 तक खोली गई और बाद में डेडलाइन 31 अगस्त 2023 तक के लिए स्थगित कर दी गई थी.

इन असेंबल्ड डिवाइसेज की उपलब्धता में कोई उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी होने में कई साल लगेंगे. विश्व स्तर पर कंप्यूटर डिवाइस का निर्माण अकेले चार-पांच कंपनियों के हाथ में नहीं है, जैसा कि स्मार्टफोन के मामले में है. कंप्यूटर डिवाइसेज के मामले में किसी Apple जैसे बड़ी कंपनी के वर्चस्व की उम्मीद नहीं है.

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सर्विसेज पर ध्यान दें, कंप्यूटर डिवाइस निर्माण पर नहीं

भारत कंप्यूटर उपकरण निर्माण, खासकर ज्यादातर डिजिटल हार्डवेयर मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में खास बढ़त नहीं रखता है. दूसरी तरफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी सर्विसेज के हर क्षेत्र में भारत को जबरदस्त बढ़त हासिल है.

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि भारत कुछ कंप्यूटर डिवाइसेज को असेंबल और निर्यात करके थोड़ी विदेशी मुद्रा बचा सकता है या नहीं.

अगर भारत चिप डिजाइनिंग, सॉफ्टवेयर-एज़-सर्विस जैसे दूसरे क्षेत्रों में विस्तार कर डिजिटल सर्विसेज के निर्यात को बढ़ाने के लिए इको-सिस्टम को और बेहतर बनाने पर ध्यान लगाता है, तो भारत आसानी से आईटी हार्डवेयर आयात की लागत का कई गुना ज्यादा हासिल कर सकता है. आइए हम वह करें जिसमें हम बेहतरीन हैं, न कि वह जिसमें हम कुछ खास नहीं हैं.

(लेखक भारत के आर्थिक मामलों के पूर्व सचिव और पूर्व वित्त सचिव हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और यहां लिखे विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो इसका समर्थन करता है न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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