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लोकसभा चुनाव: दूसरे चरण में कम मतदान से बढ़ी पार्टियों की चिंता, किन सीटों पर लो वोटिंग?

Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 के दूसरे चरण में वोटिंग पर्सेंट 65.4% रहा जबकि 2019 में यह आंकड़ा 70.1% था.

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Lok Sabha Elections 2024: 2024 के लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में 88 सीटों पर वोट डाले गए. पहले चरण की तरह ही दूसरे चरण में भी वोटिंग पर्सेंट 2019 की तुलना में कम हो गया है. चुनाव आयोग (ECI) ने पहले चरण के बाद वोटिंग पर्सेंट में सुधार के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए थे. बीजेपी ने भी स्थिति का जायजा लेने के लिए एक बैठक आयोजित की थी. इसके बावजूद ऐसा हुआ.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चुनावी भाषणों में कांग्रेस पर सरकार बनने पर संपत्ति छीनने, विरासत टैक्स लगाने और संप्रदायिक नफरत को बढ़ावा देने का आरोप लगाकर और ईसीआई ने नोटिस जारी करके ठंडे पड़े चुनावी अभियान को गर्म कर दिया. लेकिन इससे वोटिंग पर्सेंट में कोई सुधार नहीं हुआ.

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लोकसभा चुनाव 2024 के दूसरे चरण में वोटिंग पर्सेंट 65.4 प्रतिशत (प्रोविजनल) रहा जबकि 2019 में यह आंकडा 70.1 प्रतिशत था. छत्तीसगढ़ को छोड़कर सभी 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मतदान में गिरावट आई है.

88 सीटों में से 76 सीटों पर मतदान में गिरावट आई है. तीन पर वही स्थिति रही और नौ सीटों पर मतदान में सुधार हुआ है. 2019 में एनडीए की जीती 52 सीटों, इंडिया ब्लॉक की जीती 23 सीटों और अन्य के पास मौजूद एक सीट पर मतदान में कमी आई है.

सबसे कम मतदान (49 प्रतिशत से लेकर 56 प्रतिशत तक) मथुरा, रीवा, गाजियाबाद, भागलपुर, बेंगलुरु दक्षिण, गौतम बुद्ध नगर, बेंगलुरु सेंट्रल, बेंगलुरु उत्तर, बांका और बुलंदशहर में दर्ज किया गया.

मतदान में सबसे बड़ी गिरावट (11 प्रतिशत से लेकर 14 प्रतिशत तक) पथानामथिट्टा, मथुरा, खजुराहो, रीवा और एर्नाकुलम में दर्ज की गई.

कम मतदान के कारणों और चुनावी नतीजों पर उसका क्या प्रभाव पड़ सकता है, इस बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है. याद रहे कि मतदान और चुनावी नतीजों के बीच कोई स्पष्ट संबंध नहीं है. वैसे चिलचिलाती गर्मी, विपक्ष और सत्तारूढ़ दल- दोनों के मतदाताओं में उत्साह की कमी, युवा/पहली बार के मतदाताओं में जोश की कमी और शहरी उदासीनता वोटिंग में इस गिरावट के कुछ कारण हो सकते हैं.

पथानामथिट्टा में 2019 में तो 74.3 प्रतिशत वोटिंग हुई थी. लेकिन हाई-प्रोफाइल त्रिकोणीय मुकाबले के बावजूद 2024 में यह आंकड़ा 60.9 प्रतिशत तक गिर गया है. यहां इस बार केरल के पूर्व सीएम एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी कांग्रेस छोड़कर बीजेपी के उम्मीदवार हैं. जो सीपीएम/सीपीआई शेष भारत में कांग्रेस की सहयोगी है, वो राज्य में उसके खिलाफ है, ऐसे में लगता है कि मतदाता भ्रमित हो गए. इसके साथ ही वोटर्स का माइग्रेशन भी कम वोटिंग का एक वजह हो सकता है.

मथुरा में 2019 में 61.1 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था. यहां से एकबार फिर बॉलीवुड अभिनेत्री हेमा मालिनी को बीजेपी ने उम्मीदवार बनाया. इसके बावजूद 2024 में वोटिंग पर्सेंट गिरकर 49.3 प्रतिशत हो गया है. ऐसी खबरें थीं कि लोग चाहते थे कि बीजेपी यहां उम्मीदवार बदले.

जाट इस निर्वाचन क्षेत्र की मतदान आबादी का लगभग 35 प्रतिशत हैं. आरएलडी के साथ गठबंधन के बावजूद बीजेपी का समर्थन करने के लिए वे बड़ी संख्या में सामने नहीं आ रहे हैं. जाटों का एक वर्ग INDIA गठबंधन छोड़कर एनडीए की ओर जाने के जयंत चौधरी के फैसले का समर्थन नहीं करता दिख रहा है.

खजुराहो में 2019 में 68.3 प्रतिशत मतदान हुआ था. यहां से इसबार राज्य बीजेपी अध्यक्ष वी.डी. शर्मा मैदान में हैं. इसके बावजूद 2024 में मतदान गिरकर 56.9 प्रतिशत हो गया है. कांग्रेस ने गठबंधन में एसपी को टिकट दिया था जिसके उम्मीदवार का नामांकन चुनाव आयोग ने रद्द कर दिया था. कोई उम्मीदवार नहीं होने पर कांग्रेस और एसपी ने एआईएफबी उम्मीदवार को समर्थन दिया. हो सकता है कि इससे इंडिया ब्लॉक के समर्थकों का उत्साह कम हो गया हो, जिससे वोटिंग में गिरावट आई हो.

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रीवा में 2019 में 60.4 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था लेकिन 2024 में यह आंकड़ा गिरकर 49.4 प्रतिशत हो गया है. सीट पर महिलाओं के मतदान में 10 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है जो एक रहस्य बना हुआ है. बीजेपी ने यहां दो बार के सांसद को दोहराया है, जिससे कैडर में कुछ निराशा हुई होगी क्योंकि मध्य प्रदेश में कई सांसदों को बदला गया था लेकिन रीवा में नहीं.

इसके अलावा यहां कांग्रेस उम्मीदवार, एक महिला, पहले बीजेपी विधायक थीं. जिससे दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच भ्रम पैदा हो गया होगा. वोटिंग के दिन तापमान भी बहुत ज्यादा, 42 डिग्री था.

एर्नाकुलम में 2019 में 77.6 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था लेकिन 2024 में यह गिरकर 66.9 प्रतिशत हो गया है. इसके लिए भीषण गर्मी, ईवीएम में देरी, युवाओं का प्रवास और रिपोर्ट के अनुसार अल्पसंख्यकों के मतदान प्रतिशत में गिरावट को जिम्मेदार ठहराया गया है.

बिहार के बांका में केवल 53.9 प्रतिशत मतदान हुआ. इसकी वजह शायद मतदाताओं के कुछ वर्ग में राजनीतिक प्रक्रिया में विश्वास की कमी हैं. संभवत: जेडीयू के एनडीए और महागठबंधन के बीच लगातार फ्लिप-फ्लॉप से ​​निराश हैं.

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बेंगलुरु के शहरी निर्वाचन क्षेत्र की सीटों- उत्तर, मध्य, दक्षिण - ने अपने नाम के प्रदर्शन अनुसार ही कम मतदान किया (50% के रेंज में). यह राज्य के औसत लगभग 68 प्रतिशत से 15 प्रतिशत कम था. केवल बेंगलुरु ग्रामीण क्षेत्र में कांग्रेस के डीके सुरेश और बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के दामाद डॉ. सीएन मंजूनाथ के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा देखी जा रही है, जहां भारी मतदान हुआ.

शहरी उदासीनता का एक कारण और हो सकता है. पीने के पानी की कमी का सामना कर रहे शहर के मतदाता बुनियादी नागरिक मुद्दों को हल करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और राजनीतिक दलों/नेताओं की क्षमता की कमी से निराश हो सकते हैं. साथ ही लॉन्ग विकेंड ने भी कम मतदान में योगदान दिया.

अन्य शहरी सीट, जैसे गाजियाबाद (49.7 प्रतिशत) और गौतम बुद्ध नगर (53.2 प्रतिशत) उन भी शीर्ष 10 सीटों में शामिल हैं, जहां सबसे कम मतदान हुआ. ऐसा पहले चरण में चेन्नई में देखा गया था. ऐसा लग रहा है कि शहरी भारतीय मतदाता चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने की परवाह नहीं करते हैं, या नागरिकों से जुड़े मुद्दों को हल करने में सिस्टम की अक्षमता से तंग आ चुके हैं, या शासन में सार्वजनिक भागीदारी के निम्न स्तर से निराश हैं.

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कई मतदान केंद्रों में, लोगों को चिलचिलाती गर्मी से राहत देने के लिए मतदान केंद्रों को कवर करने वाले टेंट और पर्याप्त पीने के पानी की व्यवस्था नहीं की गई थी, जबकि चुनाव आयोग ने ऐसा करने को कहा था.

दुनिया के सबसे बड़े चुनावों के बचे हुए चरणों में वोटरों की उच्च भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग, राजनीतिक दलों और नागरिक समाज को तत्काल जरूरी कदम उठाने की जरूरत है.

(अमिताभ तिवारी एक स्वतंत्र राजनीतिक टिप्पणीकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @politicalbaaba है. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)

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