महाराष्ट्र (Maharashtra) में विपक्षी गठबंधन, महाविकास अघाड़ी (MVA) में जहां पिछले दिनों सब कुछ ठीक लग रहा था, अब अजीब चीजें हो रही हैं.
इस सप्ताह की शुरुआत में, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) प्रमुख शरद पवार ने लोकसभा चुनाव के लिए शिवसेना (यूबीटी) द्वारा 16 उम्मीदवारों की अपनी पहली सूची की घोषणा करने के फैसले के बाद उद्धव ठाकरे की जल्दबाजी पर आश्चर्य जाहिर किया. इसमें वे सीटें भी शामिल थीं, जिन पर कांग्रेस ने दावा किया था.
साफ संकेत यह है कि यदि विपक्षी दल एकजुट होने में विफल रहे तो उन्हें अपनी-अपनी राह पर चलने के लिए तैयार रहना चाहिए. आगे का रास्ता जोखिम भरा है क्योंकि जो प्रतिद्वंद्वी है वो कोई सामान्य नहीं है और न ही उसकी पार्टी राजनीति की नैतिकता का पालन करती है.
एमवीए में कई विरोधाभास हैं लेकिन जिस चीज ने पार्टियों को एकजुट रखा, वह भारतीय जनता पार्टी (BJP) का लगातार बढ़ता खतरा है. बीजेपी द्वारा दो सबसे प्रमुख क्षेत्रीय दलों यानी, शिवसेना और एनसीपी को विभाजित करने के बाद यह कोई संयोग नहीं है कि 48 लोकसभा सीटों वाला महाराष्ट्र, एक भयंकर युद्ध का मैदान बन गया है.
उपमुख्यमंत्री (सीएम) देवेन्द्र फड़णवीस, जो सत्तारूढ़ गठबंधन में अहम भूमिका में है, उन्होंने हाल ही में दावा किया था कि कैसे उनकी पार्टी दोनों पार्टियों के बीच विभाजन कराकर विजयी रूप से सत्ता में आई. इसमें संदेश यह छुपा था कि आने वाले हफ्तों में, बीजेपी बड़ी जीत दर्ज करने जा रही है.
महाराष्ट्र में कांग्रेस की समस्या
ऐसे समय में जब, एमवीए में उद्धव की शिवसेना हावी है, अगर स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए कदम नहीं उठाए जाता है तो आक्रोश फैलेगा.
उद्धव शहरों और ग्रामीण इलाकों में प्रचार कर रहे हैं और उन्हें अच्छी खासी प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं. हालांकि, ज्यादातर विधायक सीएम एकनाथ शिंदे के साथ चले गए हैं, लेकिन अधिकांश आम शिवसैनिक उद्धव के साथ ही हैं.
चूंकि वह ठाकरे की विरासत के लिए लड़ रहे हैं, इसलिए बीजेपी ने उनके अलग हो चुके भतीजे राज ठाकरे, जो महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख हैं, को अपने साथ जोड़ लिया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने 'ऑपरेशन महाराष्ट्र' को उस दिन से प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया है, जिस दिन उद्धव ने 2019 में कांग्रेस और एनसीपी के साथ राज्य में सरकार बनाकर उन्हें झटका दे दिया था.
लेकिन महाराष्ट्र में कांग्रेस पार्टी के लिए समस्या कोई बड़ा नेता न होना है. आलाकमान तक पहुंच रखने वाले प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रमुख नाना पटोले जैसे नेता महत्वाकांक्षी हैं, लेकिन सक्षम नहीं हैं. न तो वे पार्टी को अपने साथ ले जा सकते हैं, न ही आम कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चलने वाले हैं.
हालांकि, पूर्व सीएम पृथ्वीराज चह्वाण को राज्य अभियान समिति का प्रमुख बनाया गया है, लेकिन अब दिल्ली में बैठे कांग्रेस नेतृत्व के साथ उनके अच्छे संबंध नहीं हैं. बालासाहेब थोराट वरिष्ठ होने के बावजूद, अपनी लिमिट जानते हैं. वह एक प्रमुख चीनी-सहकारी व्यापारी हैं. अशोक चह्वान बीजेपी में चले गए हैं. पूर्व मंत्री सतेज पाटिल को एक होनहार युवा नेता के रूप में देखा जाता है लेकिन विश्वजीत कदम पीछे दिख रहे हैं.
इसके अतिरिक्त, वर्षा गायकवाड़ ने सांगली जैसे मुंबई के कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में यूबीटी के मनमानी तरीकों के खिलाफ बात की है. थोराट ने कहा कि जब चर्चा समाप्त नहीं हुई थी तो शिवसेना (यूबीटी) को सांगली और मुंबई की सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा करने से बचना चाहिए था.
एक सुखद संभावना यह है कि 31 मार्च को देश की राजधानी में इंडिया ब्लॉक (Indian National Developmental Inclusive Alliance) की एक मेगा रैली होने वाली है, जिसमें शरद पवार और उद्धव के साथ-साथ शीर्ष कांग्रेस नेतृत्व भी शामिल होगा. इससे महाराष्ट्र में सीट बंटवारे को लेकर कुछ समस्याओं को सुलझाने में मदद मिल सकती है.
अगर एमवीए एकजुट रहने में विफल रहती है और लोकसभा सीटों के मामले में उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे सबसे बड़े राज्य में बीजेपी को हराने की बड़ी तस्वीर नहीं देखती है तो एमवीए के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं.
लेकिन क्या एनडीए के भीतर सब ठीक है?
दूसरी ओर, महाराष्ट्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) भी एकजुट नहीं है. डिप्टी सीएम अजीत पवार ने सप्ताह की शुरुआत में घोषणा की थी कि महायुति (जैसा कि महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ गठबंधन में बीजेपी और उसके सहयोगियों को कहा जाता है) 28 मार्च को एक संवाददाता सम्मेलन में संयुक्त रूप से अपने उम्मीदवारों की घोषणा करेगी. अभी तक ऐसी किसी मीटिंग की कोई खबर नहीं है.
बीजेपी के मजबूत समर्थन के साथ, अजित पवार अधिकांश NCP विधायकों की वफादारी हासिल करने में सफल रहे हैं और लोकसभा चुनाव में बारामती को सुप्रिया सुले से छीनने की फिराक में हैं. यह दूरगामी प्रभाव वाली 'करो या मरो' की लड़ाई है.
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अपनी पार्टी के आठ लोकसभा उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी है, लेकिन उन्हें इस बात का दुख है कि वह अपने बेटे डॉ. श्रीकांत शिंदे के लिए कुछ कर नहीं पा रहे हैं. बीजेपी उनके गृह क्षेत्र ठाणे जिले की सीट के लिए दवाब बना रही है, जहां से श्रीकांत मौजूदा एमपी हैं.
शिंदे और अजीत पवार जानते हैं कि बीजेपी एक महाशक्ति है और इसलिए, एक निश्चित बिंदु से परे किसी भी मुद्दे पर दवाब देने का कोई मतलब नहीं है. लेकिन उनकी पार्टियों में जिन लोगों को टिकट नहीं दिया जाएगा या कच्ची डील दी जाएगी, वे इतनी आसानी से हार नहीं मानेंगे.
महाराष्ट्र में 20 मई को समाप्त होने वाले पांच चरणों के मतदान के साथ आने वाले दिनों में सीट बंटवारे को लेकर प्रतिद्वंद्वी गठबंधनों में मंथन जारी रहना तय है. राज्य में बेहतर भूमिका हो, इसके लिए दोनों पक्षों को अपने और अपने सहयोगियों के लिए गठबंधन की समस्याओं को चतुराई, परिश्रम और सहनशीलता से निपटने की जरूरत है. कोई शॉर्टकट नहीं है.
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