वीडियो एडिटर: पूर्णेंदू प्रीतम
वीडियो प्रोड्यूसर: कौशिकी कश्यप
अच्छी खबर ये है कि 2001 के मुकाबले अब कम मर्डर हो रहे हैं. आपसी रंजिशों की घटनाएं अब भी होती हैं लेकिन वो अब पहले की तुलना में कम हिंसक हैं. जायदाद पर बवाल के मामले अब भी होते हैं. लेकिन अब इन मामलों में किसी की जान चली जाए इस तरह के हादसे पूरे देश में कम हो रहे हैं. लेकिन इन सारी गुड न्यूज के बीच एक डरावना ट्रेंड दिख रहा है.
टाइम्स ऑफ इंडिया ने एक रिपोर्ट में बताया है कि 2001 से 2017 के बीच प्यार की वजह से मर्डर सबसे ज्यादा बढ़े हैं. 2001 के मुकाबले इस तरह के मामलों में 2017 में 28 परसेंट ज्यादा मर्डर के मामले सामने आए. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? जबाव जानने से पहले थोड़ा फ्लैशबैक में चलते हैं.
लड़के-लड़कियों में दिवार की वजह जाति व्यवस्था
बिहार के एक छोटे से कस्बे में बचपन के वो दिन. बहुत कुछ अजूबा लगता था. उसी में से एक अजूबा था अंग्रेजी के उपन्यासों में महिलाओं का चरित्र चित्रण. ये सोचकर बड़ा अजीब लगता था कि यूरोप और अमेरिका में 19वीं सदी में भी महिलाएं स्वच्छंद रुप के घूम सकती थीं, किसी से बात कर सकती थीं और शायद अपनी मर्जी से प्यार और शादी भी कर सकती थीं. ये सब अजूबा इसीलिए लगता था क्योंकि अपने आसपास ऐसा होता बिल्कुल नहीं दिखता था.
किसी लड़की ने सहज तरीके से किसी लड़के से बात भी कर ली तो कैरेक्टर सर्टिफिकेट बांटने वाले सर्टिफिकेट देने को तैयार रहते थे. आए दिन इस बात पर विवाद के बारे में सुनने को मिलता था कि उसके भाई ने किसी की बहन को चिट्ठी लिख दी. हमारा स्कूल को-एजुकेशन वाला था. लेकिन लड़के और लड़कियों में इतनी दूरी मानो एक दूसरे के लिए अछूत हों.
दिल्ली आया तो माहौल बदला हुआ था. बात करने में पहरेज नहीं था. लड़के-लड़कियां एक दूसरे से फ्लर्ट भी कर सकते थे और उस समय ये कूल भी माना जाता था. फिर भी समझ नहीं आया कि अपने बिहार में इतनी बंदिशें क्यों हैं?
इस मिस्ट्री का उत्तर मुझे तब मिला जब मैंने देश की जाति व्यवस्था के बारे में पढ़ाई की. पता चला कि जाति व्यवस्था के मूल में है रोटी और बेटी. किसके घर रोटी खाना है और किस परिवार में बेटी ब्याहना है. जाति व्यवस्था इसी से संचालित होती आई है. व्यवस्था के मूल में रोटी-बेटी को कंट्रोल करना था. शायद तथाकथित लव जिहाद पर हायतौबा भी उसी मानसिकता का एक्सटेंशन है. इस मानसिकता में महिलाओं पर कंट्रोल को इज्जत से जोड़कर देखा जाता है. इसीलिए प्यार का गला घोंटने को ऑनर (मेरे हिसाब से ये तो डिसऑनर होना चाहिए) किलिंग कहा जाता है.
जाति व्यवस्था कमजोर, लेकिन प्यार पर फिर भी हजारों पहरे
कई सालों में बाद बिहार समेत दूसरे राज्यों से खबरें आने लगीं जिससे एहसास होने लगा कि जाति व्यवस्था की ग्रिप थोड़ी ढीली पड़ने लगी है. शहरों में भी और शायद शहर के असर से गांवों में भी. बिहार-यूपी में भी और महाराष्ट्र-तमिलनाडु में भी.
जब इतना कुछ बदलने लगा है तो फिर इस तरह की घट़नाएं क्यों. टाइम्स ऑफ इंडिया के रिपोर्ट के मुताबिक मुताबिक 2001 के मुकाबले 2017 में 21 परसेंट कम मर्डर हुए. आपसी रंजिश की वजह से 4 परसेंट और जायदाद के झगड़े की वजह से इसी दौरान 12 परसेंट कम मर्डर हुए. लेकिन इन 16 सालों में प्यार की वजह से 28 परसेंट ज्यादा मर्डर हुए.
आंध्र प्रदेश, गुजरात, पंजाब और महाराष्ट्र में तो इन सालों में लव अफेयर किलर नंबर वन रहा. और उत्तर प्रदेश में नंबर दो.उत्तर प्रदेश को छोड़ दें तो बाकी राज्यों में शहरी आबादी खासी है और ये माना जा सकता है कि वहां जाति व्यवस्था कमजोर हुई होगी. फिर लव अफेयर किलर नंबर वन, काफी चौंकाने वाले आंकड़े हैं.
केरल-पश्चिम बंगाल में प्यार मारता नहीं है
मेरे खयाल से ये दो जेनेरेशन के बीच की लड़ाई है- एक तरफ रोटी-बेटी को कंट्रोल करने की सोच से पली-बढ़ी आबादी (शायद मेरे और उससे पहले के जेनेरेशन वाले) है दूसरी तरफ यंग जेनरेशन जो इस सोच से बिल्कुल ही सहमत नहीं है.
जहां नई पीढ़ी ने अपने मुकाम बना लिए हैं और इंडिया ग्रोथ स्टोरी में भागीदार बन गए हैं, वहां वो पुरानी पीढ़ी को खुलकर चुनौती दे रहे हैं. इसी वजह से प्यार के नाम पर इतने मर्डर हो रहे हैं. रोटी-बेटी को कंट्रोल करने की मानसिकता इसे आसानी से खत्म होने देना नहीं चाहते हैं. यंग जेनेरेशन ने तो ऐसी मानसिकता को अपने आसपास फटकने भी नहीं दिया. उनके लिए प्यार और शादी अपनी च्वाइस है. लड़कियां शादी-प्यार पर कंट्रोल के माहौल से बाहर आना चाहती हैं. इसी वजह से इस तरह के झगड़े पिछले 20 साल में तेजी से बढ़े हैं. पहले परंपरा के सामने सरेंडर होता था. अब उसकी जगह इसे बदलने की जिद ने ले ली है. इसीलिअ टकराव बढ़ी है.
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि देश में दो ऐसे राज्य हैं –केरल और पश्चिम बंगाल- जहां इस तरह के मर्डर सबसे कम होते हैं. और हमें पता है कि इन दो राज्यों में रोटी-बेटी को कंट्रोल करने की जिद काफी पहले से ही कमजोर पड़ने लगी थी. इसीलिए इन दो राज्यों में कम से कम शादी-प्यार के मामले में जेनेरेशन गैप इतनी गहरी नहीं है कि वहां इसकी वजह से कातिलाना हमले हों.
आजकल यह जेनेरेशन गैप आपको पूरे देश में नागरिकता कानून के खिलाफ सड़कों पर होने वाले प्रदर्शन में भी दिखेंगे.
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