ADVERTISEMENTREMOVE AD

NEET 2024: NTA के सिस्टम पर भरोसा बहाल करने का सिर्फ एक तरीका- पूरी पारदर्शिता

NEET 2024 Controversy: 2017 के बाद से, हर साल NEET के किसी न किसी मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है.

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट यानी NEET और विवाद कभी भी एक-दूसरे से दूर नहीं रहे हैं. 2017 के बाद से, हर साल NEET के किसी न किसी मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है.

लेकिन इस साल जो विवाद सामने आया है वह NEET के बड़े घोटाले में तब्दील होने का खतरा पैदा कर रहा है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

स्थिति का फायदा उठाने के लिए राजनीतिक दल पहले ही मैदान में उतर गए हैं. परीक्षा देने वाले छात्रों के समर्थन में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन खुलकर सामने आ गया है.

NEET देश में हर साल आयोजित होने वाली सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक है. इसे राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (NTA) आयोजित करती है. इस साल लगभग 24,00,000 छात्र लगभग 1,09,000 सीटों को भरने के लिए कंपीट कर रहे थे.

मेडिकल की प्रवेश परीक्षा कई आरोपों से प्रभावित

इनमें से लगभग 60,000 सीटें सरकारी मेडिकल कॉलेजों में हैं और बाकी प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में हैं, जहां पढ़ाई बहुत महंगी है.

यही वजह है कि सरकारी कॉलेजों में सीटों के लिए मारा-मारी है. ऑफलाइन परीक्षा में छात्र ओएमआर शीट पर अपना जवाब भरते हैं. हर सही जवाब के लिए चार अंक दिए जाते हैं और प्रत्येक गलत जवाब के लिए एक अंक काट लिया जाता है.

इस वर्ष, शुरुआत से ही NEET विवादों में रहा. पहले पेपर लीक के आरोप लगे. दो अलग-अलग NCERT की किताबों में अलग-अलग बात लिखे होने के कारण बच्चों ने अलग-अलग जवाब लिखे. छात्रों ने जितने मार्क्स वास्तव में पाए और उन्हें रिजल्ट आने पर जो फाइनल मार्क्स दिए गए, उसमें विसंगती देखने को मिली. इन सबके बीच NTA ने विभिन्न अनियमितताओं के आरोपों का जो जवाब दिया उसमें पारदर्शिता का पूर्ण अभाव देखने को मिला.

कुछ एग्जाम सेंटर पर बच्चों को पूरा समय नहीं मिला. उसके बदले 1,563 छात्रों को ग्रेस मार्क्स दिए गए और इसकी वजह से सारी स्थिति खराब हो गई. साथ ही सेंटर्स पर ऐसा क्यों हुआ, इनकी वजहें बहुत स्पष्ट नहीं हैं.

पहले जारी की गई नियत तारीख से बहुत पहले रिजल्ट घोषित किया गया था. जब रिजल्ट सामने आया तो छात्र यह देखकर हैरान थे कि 67 छात्रों ने 720 में से 720 मार्क्स प्राप्त किए थे. यानी 67 छात्र टॉपर बने.

पिछले सालों में, अधिकतम 2-3 छात्रों को ही 720 में से 720 मार्क्स मिले थे.

नतीजतन, एक रैंक पर कई छात्र हो गए. समस्या यह भी है कि इन 67 छात्रों को भी उनकी पसंद के कॉलेज नहीं मिलेंगे, भले ही वे सभी टॉप रैंकिंग वाले AIIMS के लिए आवेदन करें क्योंकि संस्थान में केवल 47 सामान्य सीटें हैं.

NTA की अस्पष्ट सफाई किसी की मदद नहीं कर रही

लोगों को इस बात पर भी शक हुआ कि इन 67 टॉपर्स में से छह हरियाणा के एक ही एग्जाम सेंटर से थे.

पिछले सालों के ट्रेंड के अनुसार, 620 अंक प्राप्त करने वाले छात्र को सरकारी मेडिकल कॉलेज में सीट मिल जाती थी. हालांकि, इस साल उन बच्चों की रैंक लगभग 80,000 होगी, जो निश्चित रूप से सरकारी सीट के लिए पर्याप्त नहीं होगी.

इसके अलावा, कुछ छात्रों को 719 और 718 अंक दिए गए हैं. यह गणित के हिसाब से संभव ही नहीं है.

छात्र और माता-पिता सड़कों पर हैं और इसे 'बड़ा NTA घोटाला' बता रहे हैं. एनटीए ने एक प्रेस ब्रीफिंग में अस्पष्ट सफाई देकर मामले में कोई मदद नहीं की है. उन्होंने पूरी तरह से यह स्पष्ट नहीं किया है कि मार्क्स जिस तरह से दिए गए हैं, वो कैसे दिए गए हैं.

इतने अधिक अंक कैसे दिए गए, इसपर जवाब दिया गया कि इस साल प्रश्नपत्र आसान बनाए गए. NTA का यह जवाब छात्रों और उनके अभिभावकों को अच्छा नहीं लगा.

यहां तक ​​कि इस फिल्ड के कई एक्सपर्ट्स और कोचिंग सेंटरों के मेंटर्स ने भी इसे एक बहाना बनाकर खारिज कर दिया है. उनके अनुसार, प्रश्न पत्र में पिछले सालों की तरह ही कठिन था.

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि एनटीए इस बात का कोई जवाब देने में विफल रहा है कि उन्होंने 1,563 छात्रों को मनमाने ढंग से ग्रेस मार्क्स क्यों दिए. NTA के प्रॉस्पेक्टस के अनुसार ग्रेस मार्क्स देने का कोई प्रावधान नहीं होने से भौहें तन गई हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इस विवाद से बाहर निकलने का रास्ता क्या है?

आश्चर्य की बात नहीं है कि भारत के सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई हैं.

कथित पेपर लीक के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में परिणाम घोषित होने से बहुत पहले एक दायर की गई थी. ऐसी ही एक याचिका के जवाब में, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार, 11 जून को कहा कि 'परीक्षा की पवित्रता से समझौता किया गया है'. कोर्ट ने NTA और सरकार को एक नोटिस जारी किया.

दायर की गई एक और याचिका पर जल्द ही सुनवाई होने वाली है, जिसमें कोर्ट से परीक्षा रद्द करने की मांग की गई है. हालांकि, अभी तक शीर्ष अदालत ने काउंसलिंग पर रोक नहीं लगाई है.

यहां बड़ा सवाल यह उठता है कि इस गंदगी से निकलने का रास्ता क्या है?

इसका समाधान जल्द खोजना होगा क्योंकि डॉक्टर बनने का प्रयास कर रहे 1,00,000 से अधिक छात्रों का भविष्य अधर में लटका हुआ है.

सुझाव देने और सिफारिशें देने के लिए एक समिति का गठन पहले ही किया जा चुका है, जिसके प्रमुख यूपीएससी के पूर्व अध्यक्ष होंगे. उम्मीद है कि आने वाले सप्ताह में यह अपनी रिकमेंडेशन दे देगी.

शुरूआती संकेत कहते हैं कि दोबारा परीक्षा लेने की बात को पूरी तरह से खारिज नहीं किया गया है, लेकिन केवल उन 1,563 छात्रों की दोबारा परीक्षा कराना व्यावहारिक और विवेकपूर्ण हो सकता है, जिन्हें ग्रेस मार्क्स दिए गए हैं.

हालांकि, NTA द्वारा पूर्ण पारदर्शिता के साथ ही सिस्टम में लोगों का विश्वास बहाल किया जा सकता है.

(डॉ. अश्विनी सेतिया फरीदाबाद के ESIC मेडिकल कॉलेज में गैस्ट्रोएंटरोलॉजी में सहायक प्रोफेसर हैं, और नई दिल्ली में मेदांता इंस्टीट्यूट ऑफ डाइजेस्टिव एंड हेपेटोबिलरी साइंसेज में वरिष्ठ सलाहकार हैं. डॉ. सेतिया मेडिकल लॉ एंड एथिक्स में सलाहकार और परामर्शदाता भी हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×