NEET (National Eligibility cum Entrance Test) पिछले कई सालों से सुर्खियों का हिस्सा बना हुआ है, यहां तक कि भारत में होने वाले चुनावों से अधिक नियतिम रूप से इस पर बात होती रही है. यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में कई सालों तक उलझा रहा है, कुछ फैसले आए और फिर उन्हें रिव्यू करने के बाद वापस ले लिया गया.
नीट-पीजी 2021 काउंसलिंग में देरी होने के बाद सरकार का ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिए जूनियर डॉक्टरों ने सामूहिक इस्तीफे की बात कही है.
दुर्भाग्य से हमें यह देखने को मिला कि शांतिपूर्व प्रदर्शन करने वाले डॉक्टरों के एक ग्रुप के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने अपने बल का प्रयोग किया. पुलिस को पता है कि डॉक्टर्स बलपूर्वक जवाबी कार्रवाई करने की स्थिति में नहीं हैं, क्योंकि 'चिकित्सक' कहे जाने वाले इस वर्ग का पहला एजेंडा किसी की लाइफ को बचाना और सार्वजनिक भलाई करना होता है और इसके बाद उनके लिए उनका व्यक्तिगत जीवन मायने रखता है.
सरकार के 'झूठे वादे'
पॉलिटिकल क्लास के लिए ये डॉक्टर्स अप्रासंगिक हैं, क्योंकि उनके पास किसानों जैसी ताकत नहीं है, जिन्होंने एक साल तक विरोध प्रदर्शन करते हुए अपना रास्ता खोल लिया. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के विभिन्न टीचिंग हॉस्पिटल्स के प्रभावित रेजिडेंट डॉक्टरों ने कहा कि उन्होंने स्ट्राइक फिर से शुरू की और उन्हें सड़क पर उतरने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि सरकार ने कोर्ट की सुनवाई में तेजी लाने का 'झूठा वादा' किया था.
देश के कुछ अन्य हिस्सों में रेजिडेंट डॉक्टर एक ही मुद्दे पर अलग-अलग वक्त पर स्ट्राइक पर चले गए हैं. कुछ राज्यों में रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन्स ऑल इंडिया कोटा में ईडब्ल्यूएस और ओबीसी रिजर्वेशन के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, जबकि अन्य काउंसलिंग में देरी होने की वजह से नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं.
गौरतलब है कि डॉक्टर स्ट्राइक पर जाकर बेहतर वेतन और बेहतर वर्क की मांग नहीं कर रहे हैं. उनका सिर्फ ये कहना है कि रेजिडेंट डॉक्टरों के बिना हेल्थ सर्विसेज को चलाना लगभग असंभव होगा, खासकर कोरोना महामारी के समय में. इसलिए उनकी भर्ती का गेटवे यानी नीट काउंसलिंग को खोलने की अनुमति दी जानी चाहिए.
मामले का महत्व और अर्जेंसी किसी पर नहीं खोनी चाहिए, कम से कम पॉवर और अथॉरिटी रखने वाली सभी एजेंसियों पर.
पहले, लॉकडाउन और COVID-19 के डेल्टा वेरिएंट के साथ दूसरी लहर के कारण एकेडमिक ईयर का अधिकांश हिस्सा पहले ही निकल गया और उसके बाद बचा वक्त पोस्ट ग्रेजुएट और पोस्ट-डॉक्टरेट कोर्स के विद्यार्थियों के हिस्से में चला गया, जो रेजिडेंट डॉक्टर भी हैं.
और अब NEET काउंसलिंग में पहले ही आठ महीने की देरी हो चुकी है, जिससे इन 45 हजार विद्यार्थियों के लिए एक और एकेडमिक ईयर अंधेरे में नजर आ रहा है.
बेड्स की उपलब्धता ही सब कुछ नहीं है
सभी स्टेकहोल्डर्स के लिए यह महसूस करना अनिवार्य है कि कोरोना महामारी अभी खत्म नहीं हुई है. वास्तव मे अत्यधिक ट्रांस्मिटेबल ओमिक्रॉन वेरिएंट के साथ COVID-19 की तीसरी लहर हमारे सामने ही है.
मीडिया में तस्वीरें दिख रही हैं कि मरीजों के लिए हेल्थ सुविधाओं को तैयार किया जा रहा है. लेकिन केवल बेड की उपलब्धता से मरीजों का इलाज नहीं हो सकता, यहां परो बेड की देखरेख करने वाले डॉक्टरों और मशीनें की सख्त जरूरत है.
मैन पॉवर की कमी के कारण पहले से ही हेल्थकेयर सर्विसेज चरमरा रही हैं. आने वाले कुछ हफ्तों से महीनों तक में मरीजों का एक बड़ा लोड भारत में हेल्थकेयर डिलीवरी सिस्टम की बैकबोन तोड़ने की संभावना है, जब तक कि कुछ बहुत ही जरूरी और तेज उपाय नहीं किए जाते हैं.
जिन सुझावों पर कार्रवाई की जा सकती है, उनमें आपदा प्रबंधन अधिनियम-2005(DMA) और महामारी रोग अधिनियम-1897 के प्रावधानों को संशोधन करना शामिल है, जो दोनों सरकार को व्यापक अधिकार देते हैं.
डीएमए, जिसे आपदाओं के प्रभावी प्रबंधन के लिए और उससे जुड़े मामलों के लिए प्रदान करने के उद्देश्य से बनाया गया था. इसका प्रयोग पहले भी महामारी से निपटने के लिए किया गया है. हालांकि, हमारे सामने आने वाले डिजास्टर से निपटने के लिए, एनईईटी काउंसलिंग में तेजी लाकर रेजिडेंट डॉक्टरों को इसमें शामिल करने से ज्यादा प्रभावी कुछ भी नहीं हो सकता है.
इस मुद्दे को हल करने का एक और तरीका देश भर में तत्काल NEET-PG काउंसलिंग के लिए एक अध्यादेश जारी करना हो सकता है, जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा कुछ मुद्दों पर अंतिम समाधान के लिए लंबित है.
सरकार और अन्य सभी स्टेकहोल्डर्स को इस पहेली को सुलझाने का रास्ता खोजने के लिए इच्छाशक्ति जुटानी चाहिए.
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