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Nupur Sharma के खिलाफ एक्शन लेने में हुई देर? क्या 'कतर कांड' से बचा जा सकता था?

Nupur sharma Controversy: जब उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू कतर में तो भारत के राजदूत को तलब किया गया

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मुसलमानों के बीच कई मुद्दों को लेकर स्थायी विभाजन हैं जिसमें धार्मिक मुद्दे भी शामिल हैं. उनमें से कुछ पैगंबर मोहम्मद की मृत्यु के तुरंत बाद शुरू हुए और आज भी बने हुए हैं. इसके परिणामस्वरूप सांप्रदायिकता और अंतर-इस्लामिक हिंसा का जन्म हुआ. इन सबके बावजूद एक ऐसी भावना है जिससे सभी मुसलमान गहराई से जुड़े हुए हैं और वह उनको एकता के सूत्र में बांधती है. वह भावना है इस्लाम के पैगंबर के लिए एक गहरी श्रद्धा. पैगंबर मोहम्मद के लिए आक्रामक माने जाने वाले शब्दों और कार्यों को, चाहे गैर-मुस्लिमों द्वारा या मुसलमानों द्वारा, इस्लामी विश्वास के सभी सदस्यों द्वारा भड़काऊ और ईशनिंदा माना जाता है. वे (शब्द और कार्य) उन्हें कार्रवाई के लिए उकसाते हैं.

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भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की पूर्व राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा (Nupur Sharma) ने 26 मई को एक प्रमुख टीवी टॉक शो के दौरान आपत्तिजनक टिप्पणी की थी और उन्हें 5 जून की सुबह पार्टी से निलंबित कर दिया गया था. यह एक सही फैसला था, जैसा कि पार्टी सदस्य नवीन जिंदल को अपमानजनक ट्वीट के लिए निष्कासित किया गया था. प्रवक्ताओं के साथ-साथ राजनीतिक दलों के सदस्यों को भी दूसरों की संवेदनाओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए. उन्हें उनकी अभिव्यक्ति के लिए भी मापा जाना चाहिए.

स्नैपशॉट
  • बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा और पार्टी के पूर्व सदस्य नवीन जिंदल की हालिया टिप्पणियों की वजह से इस्लामी देशों में व्यापक प्रतिक्रिया या निंदा हुई है. दोनों सदस्यों को अब पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है.

  • 4 जून को उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू आधिकारिक यात्रा के लिए कतर पहुंचे. नूपुर शर्मा की टिप्पणियों और नायडू के कतर पहुंचने के बीच पूरे दस दिन बीत चुके थे. ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर विदेश मंत्रालय क्या कर रहा था?

  • शर्मा और जिंदल की टिप्पणियों ने इस्लामी आस्था के मूल में चाेट किया था, इस वजह से यह प्रतिक्रिया देखने को मिली.

  • भले ही पाकिस्तान भारत विरोधी आग भड़काना चाहे, भारत और इस्लामी दुनिया के लिए सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि आपस में संयम बरतें और इसे आगे न बढ़ने दें.

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डैमेज कंट्रोल

5 जून को पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और प्रभारी मुख्यालय अरुण सिंह द्वारा हस्ताक्षरित एक प्रेस विज्ञप्ति के जरिए बीजेपी ने कहा कि वह "किसी भी धर्म के किसी भी धार्मिक व्यक्तित्व के अपमान की कड़ी निंदा करती है". ये बिलकुल ठीक था. पार्टी ने दोहराया कि " किसी भी संप्रदाय या धर्म को नीचा दिखाना और उनका अपमान करना किसी भी विचारधारा के खिलाफ भी है." पार्टी ने इस बात पर भी जोर दिया कि "वह ऐसे लोगों या विचारों को बढ़ावा नहीं देती है." भारत के संविधान द्वारा गारंटीकृत अधिकारों को याद करते हुए, पार्टी ने "भारत को एक महान देश बनाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की जहां सभी समान हैं और हर कोई सम्मान के साथ रहता है, जहां सभी भारत की एकता और अखंडता के लिए प्रतिबद्ध हैं और जहां प्रगति और समृद्धि का फल सभी को मिलता है.

पार्टी ने अपने बयान में सभी धर्मों के सम्मान के महत्व जैसी सामान्य अवधारणाओं पर जोर दिया. लेकिन इसकी टाइमिंग बताती है कि यह सब खाड़ी देशों सहित दुनिया के इस्लामी वर्ग की भावनाओं को शांत करने के लिए किया जा रहा है, जोकि जो टीवी शो पर नूपुर शर्मा की टिप्पणी से आक्रोशित थे. 5 जून की सुबह बयान आया कि उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू 4 जून को आधिकारिक यात्रा के लिए कतर पहुंचे हैं. नायडू के वहां होने के बावजूद कतर सरकार ने भारत के राजदूत दीपक मित्तल को तलब किया, ये दिखाता है कि वहां शर्मा की टिप्पणी को लेकर किस तरह का माहौल था.

कतर के विदेश मंत्रालय के 5 जून के बयान में कहा गया है कि उसके विदेश राज्य मंत्री ने मित्तल को एक स्टेटमेंट सौंपा था.

कतर ने बीजेपी के बयान का स्वागत किया लेकिन उसने कहा कि वह "इस बात की उम्मीद कर रहा है कि इस पर सार्वजनिक तौर पर माफी मांगी जाए और भारत सरकार द्वारा तत्काल इन टिप्पणियों की निंदा की जाए."

कतर के द्वारा आगे यह भी कहा गया कि "ऐसी इस्‍लाम विरोधी टिप्‍पणियों पर सजा न देना मानवाधिकार की रक्षा के लिए गंभीर खतरा है और मुस्लिमों के प्रति पूर्वाग्रह बढ़ाकर उन्‍हें हाशिए पर डाल सकता है जिससे हिंसा और नफरत का चक्र शुरू हो जाएगा."

कतर ने इस पर जोर देते हुए कहा कि पैगंबर मोहम्मद का संदेश "शांति, समझ और सहिष्णुता और प्रकाश की एक पुंज (किरण) है जिसका दुनिया भर के मुसलमान अनुसरण करते हैं."

कतर की ओर से यह भी कहा गया कि उसने "सहिष्णुता, सह-अस्तित्व और सभी धर्मों और राष्ट्रीयताओं के सम्मान के मूल्यों" का समर्थन किया और दावा किया कि "ये मूल्य कतर की वैश्विक मित्रता को सबसे अलग करते हैं."

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'फ्रिंज' एलिमेंट और 'निहित स्वार्थ'

भारत में वर्तमान में हो रही वैचारिक बहस के संदर्भ में कतर के बयान में निहित ये शब्द विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं, "ये अपमानजनक रीमेक धार्मिक घृणा को बढ़ावा देंगे और दुनिया भर के दो अरब से अधिक मुसलमानों को नाराज करेंगे और भारत सहित दुनिया भर की सभ्यताओं के विकास में इस्लाम ने जो महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है उसकी अज्ञानता का स्पष्ट संकेत मिलता है."

कतर द्वारा एक्शन लिए जाने के बाद जबाव में दाेहा स्थित भारतीय दूतावास ने एक बयान जारी किया. कतर के विदेश मंत्रालय में राजदूत की बैठक के दौरान "भारत में लोगों द्वारा धार्मिक व्यक्तित्व को अपमानित करने वाले आपत्तिजनक ट्वीट्स" का उल्लेख किया गया था. भारतीय दूतावास की ओर से इस पर जोर देते हुए कहा गया कि ये ट्वीट "फ्रिंज एलिमेंट्स यानी कि अराजक तत्वों" द्वारा किए गए थे और ये (ट्वीट) "भारत सरकार के विचारों को प्रतिबिंबित नहीं करते" हैं.

दूतावास ने अपने बयान में यह भी कहा कि "अपमानजनक टिप्पणी करने वालों के खिलाफ पहले ही कड़ी कार्रवाई की जा चुकी है." और "संबंधित लोगों" द्वारा एक बयान भी जारी किया गया है जिसमें "सभी धर्मों के सम्मान पर जोर दिया गया है, किसी भी धार्मिक व्यक्तित्व का अपमान करने या किसी धर्म या संप्रदाय को अपमानित करने की निंदा की गई है."

बयान में यह भी कहा गया है कि "भारत-कतर संबंधों के खिलाफ काम करने वाले निहित स्वार्थी लोग इन अपमानजनक टिप्पणियों का उपयोग करके लोगों को उकसा रहे हैं." ध्यान देने वाली बात यह है कि ये स्टेटमेंट केवल ट्वीट्स पर लागू होता है, टॉक शो पर होने वाली टिप्पणियों पर नहीं.

इससे स्पष्ट तौर पर जिंदल को फ्रिंज तत्व कहा गया है और शर्मा को इस श्रेणी में नहीं रखा गया है. एक अनुभवी राजनयिक के तौर पर मित्तल इस बात से वाकिफ होंगे कि शायद ही बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता को फ्रिंज एलिमेंट कहा जा सकता है.

निहित स्वार्थी लोगों द्वारा द्विपक्षीय भारत-कतर संबंधों को चोट पहुंचाने की कोशिश की जा रही है, इस आरोप के सही होने की संभावना है. लेकिन तथ्य यह है कि इस टिप्पणी के खिलाफ गुस्सा या आक्रोश केवल कतर तक ही सीमित नहीं है.

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विदेश मंत्रालय क्या कर रहा था?

कतर की कार्रवाई के बाद कुवैत ने भी भारतीय राजदूत को तलब किया और लगभग कतर जैसा ही बयान जारी किया. इसके अलावा ईरान ने भी बीजेपी प्रवक्ताओं की टिप्पणियों की निंदा की. इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि निंदा के सुरों में पाकिस्तान भी शामिल हुआ अपना सुर मिलाया. राष्ट्रपति अल्वी ने ट्वीट किया कि अपने पवित्र पैगंबर के प्यार और सम्मान के लिए सभी मुसलमान अपनी जान कुर्बान कर सकते हैं. वहीं सऊदी अरब और बहरीन ने भी इस मामले पर नाराजगी जताई है.

शर्मा की टिप्पणियों और नायडू के कतर पहुंचने के बीच पूरे दस दिन बीत गए. इस दौरान सोशल मीडिया पर शर्मा के कमेंट्स की एक क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हो रही थी. इसको लेकर शर्मा ने शिकायत की कि उन्हें जान से मारने की धमकी मिलने लगी है. उसने यह भी कहा कि उसके परिवार के सदस्यों को धमकाया जा रहा है. स्वाभाविक तौर पर, ऐसी धमकियां व खतरे पूरी तरह से अस्वीकार्य हैं. अगर किसी भी भारतीय को कोई समस्या या शिकायत थी तो वह सही अदालत का रुख करता और कानूनी प्रणाली के माध्यम से इसके निवारण की मांग करता. मुंबई में एक मुस्लिम संगठन द्वारा भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज कर ऐसी कार्रवाई की गई है.

स्पष्ट है कि टीवी टॉक शो के कुछ ही दिनों के भीतर शर्मा की टिप्पणियों को दिखाने वाली सोशल मीडिया क्लिप अरब और मुस्लिम दुनिया के अन्य हिस्सों में प्रसारित होने लगीं. निश्चित तौर पर इसके लिए विदेश मंत्रालय को सूचित किया गया होगा और यह मामला विदेश मंत्री के संज्ञान में आया होगा.

ऐसे में सवाल यह उठता है कि नायडू की आगामी यात्रा के संदर्भ में विदेश मंत्रालय ने क्या कार्रवाई की या क्या सलाह दी? यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है क्योंकि उच्च स्तरीय द्विपक्षीय यात्रा के दौरान संभावित अपमान का अनुमान लगाना और इसे टालने के लिए जरूरी कदम उठाना स्टैंडर्ड डिप्लोमैटिक प्रैक्टिस है.

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आग में घी का काम कर सकता है पाकिस्तान

बीजेपी की तरफ से जो बयान या स्टेटमेंट आया है उसकी टाइमिंग यह दर्शाती है कि भारत-कतर के बीच इस बात को लेकर वाकई में चर्चा हुई कि इन टिप्पणियों से उत्पन्न स्थिति को कैसे संभाला जाए. जाहिर है, नायडू के दोहा पहुंचने से पहले वे किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे थे. अगर वे इस दौरे को किसी भी बाधा या काले बादलों से बचाना चाहते थे तो बीजेपी और कतर के बयान 4 जून (जिस दिन नायडू दोहा पहुंचे थे) से पहले आ गए होते. जाहिर तौर पर यह बेहतर व उत्तम विकल्प होता.

भारत द्वारा अपने (भारतीय) मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ कैसा व्यवहार किया जा रहा है इसको लेकर इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) लगातार अपनी चिंताएं व्यक्त करता आया है, वहीं सरकारों द्वारा लगातार उसके इन आराेपों का खंडन किया गया है. हालांकि पाकिस्तान के बार-बार उकसाने के बावजूद बड़ी संख्या में इस्लामी देशों ने भारत के साथ अपनी द्विपक्षीय वार्ता में इस मुद्दे को उठाने से परहेज किया है. स्पष्ट तौर पर वे मुसलमानों को प्रभावित करने वाले राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों और आस्था के प्रति दृष्टिकोण के बीच अंतर करते हैं. शर्मा और जिंदल की टिप्पणियां आस्था के मूल तक गईं इस वजह से ये प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं.

अब यह संभव है कि मोदी सरकार के खिलाफ पाकिस्तानी प्रचार तेज हो जाए और भारत में होने वाली वैचारिक होड़ पर इस्लामी दुनिया में ज्यादा सावधानी व बारीकी से नजर रखी जा सकती है.

आधिकारिक दृष्टिकोण को देखते हुए अब तक ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे कि बीजेपी पार्टी के एक पूर्व राष्ट्रीय प्रवक्ता ने टिप्पणी की थी, कतर की मांग के बावजूद सरकार को इसमें हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है. इसके अलावा, भारतीय मिशन उचित बयान जारी कर रहे हैं. हालांकि यह मुद्दा लगातार बना हुआ है और यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार इसे आगे कैसे बढ़ाएगी.

पाकिस्तान भले ही भारत विरोधी आग भड़काना चाहे, भारत और इस्लामी दुनिया के लिए सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि आपस में संयम बरतें और इसे आगे न बढ़ने दें.

(लेखक, विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव [वेस्ट] हैं. ट्विटर पर @VivekKatju के द्वारा उन तक पहुंचा जा सकता है. इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इनका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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