गलवान सीमा विवाद हिंसा (Galwan Border Row) में मारे गए चीनी सैनिकों की संख्या कितनी थी? हाल के रिपोर्ट्स के मुताबिक वहां की सरकार द्वारा स्वीकार किए गए आंकड़ों की तुलना में यह कम से कम दस गुना अधिक थी. ऐसा ही उदाहरण देखना हो तो आप नजर पश्चिम की ओर घुमाइए.
ऐसा लगता है कि पाकिस्तान और चीन के बीच संबंध जितना सोचा गया था, उससे कहीं अधिक मजबूत है. जहां एक तरफ चीन गलवान 'हीरो' को ओलंपिक खेलों में मशालवाहक बनाता है वहीं प्रधान मंत्री इमरान खान (Imran Khan) चुपचाप तथ्यों को दरकिनार कर मारे गए सैनिकों की सराहना करते हैं.
दो अलग-अलग घटनाओं में बलूच आतंकवादियों ने अपने उत्पीड़कों पर हमला किया है. लेकिन पाकिस्तान न केवल मारे गए सैनिकों की संख्या पर खुद अलग-अलग आंकड़े दे रहा है, बल्कि गंभीर हमलों की कहानी कहते स्पष्ट जमीनी रिपोर्टों से नजर भी चुरा रहा है.
पाकिस्तानी सेना पर हुआ घातक हमला, लेकिन इसमें कितने मारे गए?
2 फरवरी को पंजगुर और नुश्की में पाकिस्तानी सुरक्षा बलों के कैंप पर दोहरे हमले लॉन्च किए गए थे. बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) ने न केवल इन हमलों की जिम्मेदारी ली, बल्कि यह भी घोषित किया कि उसकी मजीद ब्रिगेड ने 30 घंटे से अधिक समय तक पंजगुर को अपने कब्जे में रखा था.
पाकिस्तान के गृह मंत्री शेख राशिद ने जल्द ही चार सैनिकों के शहीद होने की बात कहकर फैंसी फुटवर्क से शुरूआत की. लेकिन दूसरी तरफ बलूचिस्तान सरकार के एक सलाहकार ने कहा कि हमले में 12 सुरक्षाकर्मी मारे गए हैं और 23 जवान घायल हुए हैं.
बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) और मीडिया दोनों ने बताया किया कि नुश्की ऑपरेशन में 20 घंटे से अधिक का समय लगा, जिसमें विद्रोहियों ने सौ पाकिस्तानी सैनिकों और अधिकारियों के मारे जाने का दावा किया.
यह देखते हुए कि मीडिया रिपोर्ट के अनुसार उग्रवादियों ने विस्फोटकों से लदे वाहनों का इस्तेमाल किया और पाकिस्तानी वायु सेना ने जवाबी वायु शक्ति का भारी इस्तेमाल किया, हमारे पास यह स्वीकार करने का कारण है कि मरने वाले सैनिकों की कुल संख्या इंटर सर्विसेज पब्लिक रिलेशन (ISPR) प्रमुख की तुलना में BLA के दावे के अधिक करीब थी.
इस दौरान ट्विटर न केवल पाकिस्तानी सेना के ऑपरेशन के हैशटैग से बल्कि #BalochistanisnotPakistan (बलूचिस्तान पाकिस्तान नहीं है) से भी भरा हुआ था. हमारे सामने स्पष्ट विभाजन था, एक खेमा BLA की प्रशंसा कर रहा था और वहीं दूसरा पाकिस्तानी सेना की.
बलूचिस्तान और हिंसा
इस तरह के ऑपरेशन के लिए सैनिकों को कहीं से भी दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए या उनकी निंदा नहीं की जानी चाहिए. दरअसल बलूच लिबरेशन आर्मी के हमले में मारे गए एक युवा पाकिस्तानी कैप्टन की तस्वीर दुःख पैदा करती है- जो अपने ही देशवासियों के खिलाफ लड़ने हुए मारा गया, कम से कम इस्लामाबाद के भूगोल की भावना के अनुसार.
हमलों की जिम्मेदारी लेने वाली बलूच लिबरेशन आर्मी 'पंजाबी' सेना को विदेशी के रूप में देखती है, और वास्तव में वह पाकिस्तान की स्थापना के बाद से ही आजादी के लिए लड़ी है. बलूच लोगों को किस तरह से बरगलाया गया और पाकिस्तानी राज्य में शामिल होने के लिए धकेला गया, इसका इतिहास कई जगह बताया गया है.
लेकिन स्पष्ट है कि बलूचिस्तान के लोगों के बीच, जिनके कबीले अतीत में एक-दूसरे से लड़े हैं, अब एक मजबूत जातीय पहचान है और वह पाकिस्तानी सेना द्वारा शुरू किए गए विभिन्न अभियानों से मजबूत हुई है. आसान शब्दों में कहे तो वे जितना अधिक लड़ते हैं, वे उतने ही मजबूत होते जाते हैं. इसके अलावा अस्तित्व का सवाल भी है.
अब की जब ग्वादर में चीनियों के पास मछली पकड़ने की समृद्ध भूमि के बड़े हिस्से पर कब्जा है, समान रूप से समृद्ध अचल संपत्ति है और पाकिस्तानी सुरक्षा बल हजारों बलूच युवाओं को उठाकर उन्हें 'गायब' कर रहे हैं- बलूच लोगों के पास बहुत कम विकल्प बचा है.
पाकिस्तान की नजर सिर्फ भारत-अफगानिस्तान पर
अकाट्य सत्य की तरह एक बार फिर पाकिस्तानी सरकार ने इस सब के लिए भारत और अफगानिस्तान को दोषी ठहराते हुए, हैंडलर्स और आतंकवादियों के बीच संबंध पाए जाने का दावा किया है. लेकिन यहां एक समस्या है. अनिश्चित नेतृत्व के साथ BLA न केवल अस्पष्ट है, बल्कि इसने अतीत में अपने कैडरों द्वारा हमलों के दावों को नाकारा है, जिसमें जून 2020 कराची स्टॉक एक्सचेंज भी शामिल है.
हाल के दिनों में अपने सीमावर्ती क्षेत्रों में पाकिस्तान ईरान समर्थित समूहों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करता रहा है, जबकि दोनों सुरक्षा बलों के बीच लगातार झड़प होती रही है. इस्लामाबाद द्वारा ईरान और अफगानिस्तान के साथ लगे अपने बॉर्डर पर कटीलें तार लगाने के बावजूद बलूच विद्रोहियों का ऑपरेशन जारी है.
विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि इस्लामाबाद द्वारा बलूच विद्रोहियों को ईराीनी गतिविधियों से जोड़ने के बाद, UAE बलूच असंतुष्टों को भगाने के लिए कदम उठा रहा है.
हालांकि इस बीच इस्लामाबाद यह उल्लेख नहीं करता है कि जैश उल अदल जैसे समूह उसकी शह पर ईरानी सुरक्षा बलों के ऊपर बार-बार हमला करते रहे हैं, जिसके कारण तेहरान को अपने बॉर्डर गार्ड को मुक्त करने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक करनी पड़ी है.
तथ्य यह भी है कि अमेरिका के द्वारा अफगानिस्तान को छोड़ने के बाद पाकिस्तान में बलूच हमलों में निश्चित रूप से वृद्धि हुई है. तालिबान या तो सक्षम नहीं हैं या उनके खिलाफ कार्रवाई करने को तैयार हैं.
पाकिस्तान के लिए बलूचिस्तान समस्या जल्द खत्म होने वाली नहीं
संक्षेप में कहें तो ऐसा लगता है कि इस्लामाबाद के अपने तमाम कारनामे इसके खिलाफ हो गए हैं- जैसा कि पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री ने एक बार कहा था. तब हिलेरी क्लिंटन ने अपनी पाकिस्तानी समकक्ष हिना रब्बानी खार को चेतावनी दी थी कि आप अपने घर में सांप पाल कर उनसे केवल आपके पड़ोसियों को काटने की उम्मीद कर सकती हैं.
ऐसा नहीं है कि बलूच को किसी भी तरीके से सांप के कैटेगोरी में रखा जा सकता है. बात सिर्फ इतनी है कि उन्हें बहुत बार काटा गया है, और आस-पास ऐसे पड़ोसी भी हैं जो जानते हैं कि वे कैसा महसूस करते हैं. यह चिंताजनक है कि ईरान के साथ संबंध जोड़े जाने से बलूच मुद्दे मानवाधिकारों के हनन के रूप में सबके सामने आने की बजाय उन्हें नुकसान हो सकता है.
(डॉ तारा कर्था इंस्टीट्यूट ऑफ पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट स्टडीज (आईपीसीएस) में एक विशिष्ट फेलो हैं. उनका ट्विटर हैंडल @kartha_tara है. यह एक ओपिनियन पीस है और यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है. )
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