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आ गई पीएम मोदी की वो स्पीच, जिसका इंतजार बहुत लंबा खिंच गया 

20 लाख करोड़ के पैकेज का ऐलान, लेकिन इसमें कितने शून्य?

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आखिर पीएम मोदी का वो संबोधन आ ही गया, जिसका पूरे देश को इंतजार था. पीएम ने ऐलान किया कि नया-पुराना मिलाकर कोरोना लॉकडाउन से इकनॉमी को बचाने के लिए सरकार 20 लाख करोड़ का पैकेज दे रही है. इसे 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' का नाम दिया गया है. कोरोना-लॉकडाउन पर मोदी के चौथे संबोधन पर गौर करें तो समझ में आता है कि अब सरकार भी समझ गई है कि इंडस्ट्री की हालत बहुत खराब है और गरीब मजदूर तो एकदम त्राहिमाम की स्थिति में है. 18 मई के बाद लॉकडाउन कैसा होगा, पीएम ने इसके भी संकेत दिए हैं.

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20 लाख करोड़ का कोई नया पैकेज नहीं है

पीएम ने साफ कर दिया है कि 20 लाख करोड़ का कोई नया पैकेज नहीं आने जा रहा. इसमें निर्मला सीतारमन के पुराने ऐलान शामिल हैं, जिसमें उन्होंने गरीबों को मुफ्त अनाज और जनधन खातों में पैसा देने की बात कही थी. इसमें RBI का वो ऐलान भी शामिल है, जिसमें उसने NBFC, नाबार्ड और SIDBI आदि को राहत दी थी. पीएम मोदी ने कहा कि राहत पैकेज में देश के हर वर्ग के लिए कुछ न कुछ है और इसका ऐलान 13 मई से कई टुकड़ों में वित्त मंत्री करेंगी.

अभी ये देखना बाकी है कि किसे क्या मिलता है. एक सवाल ये भी है कि आखिर इतनी बड़ी रकम सरकार कहां से लाएगी, जिसका खजाना पहले से खाली है, जो हाल ही में रिजर्व बैंक के रिजर्व पैसे को लेने पर मजबूर हो गई थी.

इतना जरूर है कि ऐसे बड़े एलान की बड़ी सख्त जरूरत थी. इंडस्ट्री खोलने की इजाजत तो मिल गई थी, लेकिन इंडस्ट्री, खासकर छोटे उद्योग इस हालत में नहीं थे कि वो चल पाते. उनसे बिना ग्राहक स्टाफ को पेमेंट करने के लिए कहा गया था. फैक्ट्री खोलने के लिए दस शर्तें थीं, और हर शर्त को पूरा करने में पैसे खर्च होने थे. लिहाजा अगर उनकी माली हालत ठीक करने के लिए सरकार कुछ ठोस कर रही है तो इससे इंडस्ट्री और इकनॉमी दोनों को ताकत मिलेगी.

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लॉकडाउन 4 का ऐलान

पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि अब हम कोरोना से लड़ेंगे भी, बढ़ेंगे भी. संकेत साफ है कि अब सरकार को समझ में आ गया है कि पूरी तरह लॉकडाउन से अब काम चलने वाला नहीं. इंडस्ट्री और इकनॉमी की गाड़ी को रोककर हम कहीं नहीं पहुंचेंगे.

कोरोना के नए मामले रोज नए रिकॉर्ड बना रहे हैं. कोरोना के टोटल मामलों में हम जल्द ही चीन से आगे निकलने वाले हैं. तो एक तरफ तो लॉकडाउन का फायदा नहीं मिल रहा दूसरी तरफ एक बहुत बड़ी आबादी के लिए दो जून की रोटी जुटाना मुश्किल हो रहा है. तो संभव है कि 18 मई से देश में लॉकडाउन तो रहेगा लेकिन ज्यादा छूट के साथ. 

'लोकल के लिए वोकल बनिए'

पीएम मोदी के संबोधन के शुरुआती हिस्से में वसुधैव कुटम्बकम पर खासा जोर था. उन्होंने कहा कि भारत जब तरक्की करता है तो दुनिया समृद्ध होती है लेकिन भाषण के आखिर में उन्होंने जो बात कही वो दुनिया के कई देशों को पसंद नहीं आएगी. मोदी ने स्वदेशी अपनाने की अपील की.

आने वाले समय में इस पर बात जरूर होगी कि ग्लोबल विलेज वाली दुनिया में ये कितना संभव और तार्किक है. बाजार की रीत है- ग्राहक वही खरीदेगा जो उसे सस्ता, सुंदर और टिकाऊ नजर आएगा. वैसे भी जिन देशों ने अपने दरवाजे बंद किए, उन्हें नुकसान ही हुआ. अमेरिका इसका ताजा उदाहरण है. 

एक समस्या ये भी है कि लोकल प्रोडक्ट बना रही कंपनियां बुरी हालत में हैं. उनका कहना है कि लॉकडाउन में काम करने के लिए जितनी शर्तें हैं, उनसे कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन बहुत बढ़ गया है ऐसे में हमारा माल खरीदेगा कौन? पीएम मोदी ने अपने भाषण में डिमांड की बात की लेकिन इस वक्त इकनॉमी में डिमांड नहीं के बराबर है. लॉकडाउन तो है ही, लोगों की जेब में भी पैसा नहीं है. उम्मीद है कि राहत पैकेज इस दिशा में कुछ मदद करेगा कि बड़ी आबादी के पास क्रय शक्ति आएगी.

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5 पिलर पर खड़ी होगी भारत की आत्मनिर्भरता

  1. इकनॉमी - धीरे-धीरे बदलाव नहीं, तेज विकास
  2. इंफ्रा - जो आधुनिक भारत की पहचान बने
  3. सिस्टम - ऐसा जो 21वीं सदी के सपनों को साकार करने वाली टेक्नोलॉजी से सज्जित हो
  4. डेमोग्राफी - दुनिया का सबसे बड़ा विविधता भरा लोकतंत्र हमारी ताकत
  5. डिमांड -हमारे यहां डिमांड और सप्लाई चेन में जो ताकत है उसे इस्तेमाल करने की जरूरत

ये रोडमैप वाकई बहुत शानदार है. क्योंकि इन क्षेत्रों में हमारी हालत खराब है. सिस्टम से मजदूर से लेकर उसका मालिक तक परेशान हैं. विविधता वाले भारत को हाल फिलहाल बहुत ठेस पहुंचाई गई है. कोरोना महामारी के दौरान भी. और कोरोना के पहले से ही इकनॉमी में डिमांड लगातार गिर रही थी. अच्छी बात ये है कि टॉप लीडरशिप के लेवल पर इन चीजों की बात हो रही है. जमीन पर ये चीजें उतरें तो वाकई कमाल हो जाएगा

पीएम के संबोधन में गरीब मजदूर

अब तक के तीन संबोधनों में पीएम मोदी देशवासियों से गरीबों की मदद करने की अपील करते रहे. पहली बार उन्होंने कहा है कि सरकार इन्हें मदद देगी. खास बात है कि उन्होंने प्रवासी मजदूरों का भी नाम लिया है. रेहड़ी पटरी वालों का नाम लिया है.

इस बारे में इतना जरूर कहना होगा कि इस ऐलान में बड़ी देर हो गई. और अभी किसको, क्या मिलना है, इसपर भी सफाई आनी बाकी है. देश का गरीब मजदूर इस वक्त वाकई में बहुत खराब हालत में है. खाने के लाले पड़ गए हैं. अब बस यही उम्मीद है कि निर्मला सीतारमन कुछ ऐसे ऐलान करें, जिनसे इन गरीबों को वाकई में मदद मिले, वाकई में इनकी जेब में पैसा आए. 

पिछले ऐलान की एक सच्चाई ये है कि ज्यादातर गरीब परिवारों को जिस खाद्यान्न का वादा किया गया था, वो उनतक पहुंचा ही नहीं. सिर्फ गिनाने के लिए ऐलान किये गए तो उनकी दुश्वारियां जारी रहेंगी. जैसे लॉकडाउन में मनरेगा का मेहनताना बढ़ाने के ऐलान का कोई मतलब नहीं था. जब काम ही नहीं हो रहा तो दस पंद्रह रूपए ज्यादा मजदूरी बात बेमानी थी.

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ईज ऑफ डूइंग बढ़ाएंगे?

अच्छी बात ये है कि पीएम मोदी ने आत्मनिर्भर भारत अभियान में सिर्फ आर्थिक मदद की बात नहीं कही है. उन्होंने लैंड, लेबर , लिक्विडिटी, लॉज में मदद देने की बात कही है. लॉकडाउन की मुश्किल घड़ी में अगर इंडस्ट्री को पेचीदा नियमों और पेपरवर्क से राहत दी जाए तो बड़ी बात होगी. 'हमें थकना, हारना झुकना नहीं है', मोदी के हर संबोधन की तरह इससे भी जोश जगा है. आने वाले दिनों में निर्मला क्या ऐलान करती हैं, इसपर निर्भर करता है कि इस जोश में कबतक ताकत रहेगी. इसी पर निर्भर करेगा कि देर आए लेकिन दुरुस्त आए क्या?

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