पीएम नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया है कि वो सोच रहे हैं कि इस रविवार फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब समेत सभी सोशल मीडिया अकाउंट छोड़ दें. अब इन प्लेटफॉर्म पर उनके करोड़ों फॉलोवर्स को समझ नहीं आ रहा है कि आखिर पीएम इतना बड़ा कदम उठाने की बात क्यों कर रहे हैं? आखिर जिस ट्विटर पर मोदी बड़े-बड़े ऐलान करते हैं, जहां उनके करोडों चाहने वाले हैं जो उनके पोस्ट को लाइक और शेयर करते हैं, उसे पीएम मोदी क्यों छोड़ना चाहना चाहते हैं? और ऐसा हुआ तो इसके बाद संवाद का जरिया क्या होगा?
कारणों को तलाशने से पहले ये ध्यान रखना जरूरी है कि अभी पीएम ने सोशल मीडिया छोड़ने की
पक्की बात नहीं की है. अभी वो सोच रहे हैं. यानी अगले एक हफ्ते में वो देख सकते हैं कि उनके चाहने वाले, उनके समर्थक, पार्टी के नेता, विरोधी, पब्लिक उनके सोशल मीडिया छोड़ने के विचार पर क्या विचार देती हैं.
तो ये भी संभव है कि एक हफ्ते बाद पीएम मोदी भारी पब्लिक डिमांड पर सोशल मीडिया छोड़ने का विचार त्याग दें.
अब आते हैं कि मोदी क्यों सोशल मीडिया छोड़ना चाहते हैं. कुछ समय से सोशल मीडिया अफवाहों और नफरती बयानों, निजी आक्षेपों का जरिया बन चुका है. तो शायद पीएम एक बड़ा संदेश ये देना चाहते हैं कि देखो मैंने वो जगह ही छोड़ दी जिन्हें नफरती बयानों और अफवाहों का अड्डा बताया जा रहा है. इसको आप इन प्लेटफॉर्म्स पर फिर से पूरा नियंत्रण या अपना नेरेटिव सेट करने की कोशिश के तौर पर भी देख सकते हैं.
नमो ऐप तब भी होगा
अगर पीएम मोदी ने सोशल मीडिया को छोड़ा तो इतना तय है कि नमो ऐप को पूरजोर तरीके से बढ़ावा मिलेगा. इसके जरिए पीएम लोगों तक बड़ी तादाद में पहुंच बनाए रख सकते हैं. यानी ब्रांड मोदी सिर्फ वहीं मिलेगा. हालांकि ऐसी स्थिति में संचार एकतरफा ज्यादा रह जाएगा. एक पहलू ये भी है कि हाल फिलहाल एक विचारधारा को आगे बढ़ाने का सबसे बड़ा जरिया वॉट्सऐप बन चुका है. तो मोदी जी कोई बात कहें या उनकी पार्टी कोई संदेश अपने समर्थकों तक पहुंचाना चाहे तो
ये जरिया मौजूद रहेगा.
एक सच्चाई ये भी है कि जिन प्लेटफॉर्म के जरिए पीएम मोदी ने अपना नेरेटिव खूब चलाया और बढ़ाया, अब वही कंट्रोल से बाहर हो रहा है,इतना कि अब इससे बाहर निकलना ही बेहतर है. ट्विटर पर काउंटर नेरेटिव को ज्यादा तवज्जो मिल रही है. हाल फिलहाल पीएम मोदी के वीडियोज पहले की तरह यूट्यूब व्यूज नहीं आ रहे. फेसबुक पर भी पहले वाली बात नहीं रही. तो इस लिहाज से ये एक रणनीतिक चाल हो सकती है.
एक सच्चाई ये भी है कि इन तमाम प्लेटफॉर्म्स का नियंत्रण विदेशों में है. हालांकि इनमें से ज्यादार सरकार की बताई लाइन पर चलने को राजी हो जाती हैं लेकिन फिर भी यहां ये संभव नहीं कि यहां अपने से दीगर नेरेटिव वालों पर रोक लगाई जा सके. डेटा और प्राइवेसी के मुद्दों पर इन कंपनियों से सरकार की खटपट हुई है, तो पीएम के इस प्लान से ये कंपनियां दबाव में आएंगी.
ये सब तो भविष्य की बाते हैं लेकिन इतना जरूर है कि संसद का बजट सत्र दोबारा शुरू हुआ है, और पहले ही दिन दिल्ली में हिंसा का मुद्दा छाया रहा. इतना तो जरूर है कि पीएम के इस ट्वीट के बाद टीवी चैनलों के परदे से लेकर संसद तक अब चर्चा का विषय बदल जाएगा.
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)