ADVERTISEMENTREMOVE AD

प्रिय PM मोदी, GDP तो 2019 चुनाव अभियान का ग्रॉस इकनॉमिक जुमला है

2018 में विकास दर 7.4 फीसदी रहने का अनुमान है, जो दुनिया में हमारे आकार वाली किसी भी अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक है

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

मैं एक हैरान करने वाला आर्थिक सपना देख रहा था....

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने "दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे महत्वाकांक्षी हेल्थकेयर इंश्योरेंस स्कीम" लॉन्च कर दी थी, जिसे बड़े गर्व के साथ मोदीकेयर का नाम दिया गया था. इस स्कीम के तहत भारत के सभी 26 करोड़ घरों/परिवारों को हर साल इलाज पर हुए 5 लाख तक के खर्च का भुगतान किया जाना था. इस ऐलान पर दी जा रही बधाइयों का शोर अभी संसद में चल ही रहा था कि अचानक देश में एक महामारी फैल गई. किसी साइंस फिक्शन फिल्म की तरह देशभर में 26 करोड़ भारतीय बीमार पड़ गए, यानी हरेक परिवार में एक-एक.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

मोदी ने अपना सुपरमैन वाला लबादा पहना और उड़ते हुए सारे देश में घूमने लगे, ताकि हर मरीज को 5 लाख रुपये जरूर मिल जाएं. दुर्भाग्य से सभी 26 करोड़ बीमार लोगों की मौत हो गई, लेकिन भारतीय अस्पतालों की आमदनी में सीधे-सीधे 130 लाख करोड़ रुपये का इजाफा हो गया.

देश का जो ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट यानी GDP, पिछले साल 170 लाख करोड़ था, वो एक ही बार में बढ़कर 300 लाख करोड़ रुपये की हैरान करने वाली ऊंचाई पर जा पहुंचा.

तभी मैं सपने के दूसरे सीक्वेंस में जा पहुंचा....

प्रधानमंत्री मोदी एक जाने-पहचाने स्टेडियम में नजर आ रहे थे, जो कुछ न्यूयॉर्क के मैडिसन स्क्वॉयर गार्डन जैसा और थोड़ा लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल जैसा दिख रहा था. वो एक मंत्रमुग्ध करने वाला भाषण दे रहे थे:

मेरे सवा सौ करोड़ हिंदुस्तानियों ने तो कमाल कर दिया. यूनिवर्स के बिग बैंग के बाद जबसे ये धरती बनी है, तब से आज तक, किसी भी देश ने एक साल में GDP में पचहत्तर प्रतिशत का इजाफा नहीं किया है. लेकिन मेरे देशवासियों ने एक साथ बीमार होकर, एक साथ अपनी जान की कुर्बानी देकर, ये यूनिवर्सल रिकॉर्ड बना दिया है. उन सबको शत-शत प्रणाम !

सपने अविश्वसनीय तेजी के साथ बदल सकते हैं...

आप पलक झपकाए बिना ही एक असंभव स्थिति से दूसरी असंभव स्थिति में पहुंच सकते हैं... तो मैं भी हिचकोले खाता एक गुजरे जमाने में जा पहुंचा. वो 18 मार्च 1968 की तारीख थी, जब सीनेटर बॉबी कैनेडी यूनिवर्सिटी ऑफ कैनसस में अपना ऐतिहासिक भाषण दे रहे थे :

"हमारे ग्रॉस नेशनल प्रोडक्ट में वायु प्रदूषण और सिगरेट के विज्ञापनों का भी योगदान होता है, और उन एंबुलेंस का भी, जो हमारे राजमार्गों पर मौत का तांडव मचने के बाद उसे फिर से चालू करने के काम आती हैं. बम बनाने में इस्तेमाल होने वाली पेट्रोलियम जेली और मिसाइलों के सिरों पर लगाए जाने वाले परमाणु बमों को भी इसमें जगह दी जाती है.....इसमें चार्ल्स व्हिटमैन और रिचर्ड स्पेक जैसे नरसंहार करने वाले खूनी दरिंदों की राइफल और छुरे के लिए भी जगह है और उन टीवी कार्यक्रमों के लिए भी, जो हमारे बच्चों को खिलौने बेचने के लिए हिंसा को महिमामंडित करते हैं. लेकिन उनकी शिक्षा के स्तर या खेलकूद के आनंद के लिए इसमें कोई जगह नहीं है. हमारी कविताओं का सौंदर्य या विवाह की मजबूती इसमें शामिल नहीं हैं और न ही सार्वजनिक बहसों में झलकने वाली हमारी समझदारी या हमारे सरकारी अधिकारियों की ईमानदारी के लिए इसमें कोई स्थान है. इसमें न तो हमारे हास्यबोध को शामिल किया जाता है और न ही हमारे साहस, विवेक या सीखने की क्षमता को. अपने देश के प्रति हमारे प्रेम और समर्पण की भी इसमें कोई गणना नहीं होती. संक्षेप में कहें, तो इसमें हमारे जीवन को सचमुच में समृद्ध बनाने वाली चीजों के अलावा, बाकी तमाम चीजों को जोड़ा जाता है."

मेरे सपने में मोदी और कैनेडी के भाषणों पर बजी तालियों की गड़गड़हाट आपस में गड्डमड्ड होकर और भी तेज हो गई. और जैसा कि अक्सर होता है, नींद में सुनाई दे रहा वो शोर, धीरे-धीरे टीवी से आती तालियों की असली गड़गड़ाहट में घुल-मिल गया...मेरी आंख खुली और मैं नींद की दुनिया से असली दुनिया में आ पहुंचा....

ADVERTISEMENTREMOVE AD

मोदी की मनभावन, चमकदार GDP

इस असली दुनिया में प्रधानमंत्री मोदी साक्षात मौजूद थे, अपना एक और नाटकीय भाषण देते हुए. मौका था मंगलवार (26 जून 2018) को मुंबई में हो रही एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट बैंक की सालाना आम बैठक का :

2018 में हमारी विकास दर 7.4 फीसदी रहने का अनुमान है, जो दुनिया में हमारे आकार वाली किसी भी अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक है. तेल की बढ़ती कीमतों के बावजूद महंगाई दर तय सीमा के भीतर है. सरकार फिस्कल कंसॉलिडेशन यानी राजकोषीय घाटे को काबू में रखने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है.
अंतरराष्ट्रीय कारोबार की दृष्टि से भी हमारी अर्थव्यवस्था बेहद मजबूत स्थिति में है. हमारे 400 अरब डॉलर से ज्यादा के विदेशी मुद्रा भंडार किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पर्याप्त हैं. देश में सीधा विदेशी निवेश यानी FDI भी लगातार बढ़ रहा है, जो पिछले चार साल में 222 अरब डॉलर से अधिक रहा है.
  • जैसा कि उनका स्वभाव है, मोदी ने उम्मीद जगाने वाली सभी बातें तो चुन-चुनकर पेश कीं, लेकिन अर्थव्यवस्था की कमजोरियो को उजागर करने वाले तमाम तथ्यों को अनकहा ही छोड़ दिया, मसलन :
  • बैड लोन (चुकाए नहीं जा रहे कर्ज) 10.3 लाख करोड़ रुपये यानी 11.6 फीसदी तक जा पहुंचे हैं. मार्च 2019 तक इनका अनुपात और भी बढ़कर 12.2 फीसदी पर पहुंचने की आशंका है. बैंकरप्सी यानी दिवाला निकलने वाली कंपनियों के जो 701 मामले निपटारे के लिए लाए गए हैं, उनमें अब तक सिर्फ 176 का ही निपटारा हुआ है.
  • बड़ी कंपनियों को दिए जाने वाले कर्जों में साल-दर-साल के आधार पर महज 1 फीसदी का इजाफा हुआ है. ये इस बात का संकेत है कि GDP में 7.4 फीसदी की विकास दर के बावजूद औद्योगिक विकास में मंदी का रुझान बना हुआ है.
  • ब्याज दरें आसमान को छू रही हैं. 10 साल के ट्रेजरी बिल्स की ब्याज दर 8 फीसदी पर है और AAA-रेटिंग रखने वालों को 8.5 फीसदी या उससे भी ऊंची दरों पर लोन लेना पड़ रहा है. इन ऊंची ब्याज दरों में प्राइवेट इनवेस्टमेंट के रफ्तार पकड़ने का कोई शुभ संकेत नहीं छिपा है. जबकि आर्थिक विकास की निरंतरता को बनाए रखने के लिए ऐसा होना बेहद जरूरी है.
  • करेंट अकाउंट डेफिसिट (CAD) जो सरप्लस की हालत में पहुंच गया था, एक बार फिर से 2.5 फीसदी के घाटे में है. डॉलर के मुकाबले रुपये में एतिहासिक गिरावट देखी जा रही है. एक डॉलर का मूल्य 69 रुपये के बांध को भी तोड़ चुका है. विदेशी निवेशक सिर्फ मौजूदा कैलेंडर वर्ष के दौरान ही डेट/इक्विटी मार्केट से रिकॉर्ड 7 अरब डॉलर की निकासी कर चुके हैं.
  • सरकार "फैंटम डिसइनवेस्टमेंट" यानी विनिवेश के नाम पर छलावा कर रही है. उसने ONGC को मजबूर किया कि वो HPCL को 35 हजार करोड़ रुपये में खरीद ले, जबकि दोनों ही कंपनियां सरकारी हैं. यानी HPCL के विनिवेश से सरकार को कोई वास्तविक आमदनी हुई ही नहीं. सिर्फ विनिवेश के नाम पर दिखाई गई सारी रकम सरकार की एक जेब से निकलकर उसी की दूसरी जेब में चली गई. बिलकुल ऐसी ही दिखावटी योजना, IDBI बैंक को री-कैपिटलाइज करके उसकी खस्ताहाल बैलेंस शीट में नई जान फूंकने के लिए भी रची जा रही है, इस योजना में सारा बोझ LIC पर डाला जाना है. एक भी खरीदार नहीं मिलने की वजह से एयर इंडिया को बेचने की कोशिशें तो शर्मनाक रूप से फेल हो ही चुकी हैं.
  • लगता है, मानो कोई झाड़-फूंक या टोना-टोटका चल रहा हो....आप चाहें तो इसे "बैंड-एड इकनॉमिक्स" भी कह सकते हैं.

आप जैसे ही इन कड़वी सच्चाइयों पर गौर फरमाना शुरू करेंगे, आपको GDP पर मोदी के जोशीले भाषण का खुशनुमा गुलाबी रंग, गुस्से और खतरे के लाल रंग में बदलता दिखने लगेगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

बमबारी से तबाह शहर और GDP का उछाल

ऊपर दी गई दलीलों से आप अब तक ये समझ गए होंगे कि GDP किसी देश की आर्थिक सेहत का सही और सटीक पैमाना नहीं है. ये एक ऐसा पैमाना है, जिसमें हमेशा "बेहतर" की बजाय "ज्यादा" पर जोर रहता है.

अगर अस्पतालों में ज्यादा मरीजों की मौत हो जाए तो GDP में इजाफा हो जाता है, लेकिन अगर सभी स्वस्थ रहें और कभी डॉक्टर के पास जाने की नौबत ही न आए, तो GDP में गिरावट आने लगती है. अगर एक कार जरूरत से ज्यादा पेट्रोल/डीजल खर्च करके प्रदूषण बढ़ाती है तो GDP में वृद्धि होती है, लेकिन अगर उसका इंजन कम तेल में बेहतर माइलेज देता है, तो GDP में कमी आने लगती है. ये पैमाना ऐसा ही उल्टा-पुल्टा है !

अब मैं आपको इस बारे में सबसे चौंकाने वाले और अकाट्य आंकड़े बताता हूं. क्या आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वो कौन से पांच साल रहे होंगे, जब अमेरिका के GDP ने 75 फीसदी, ब्रिटेन के GDP ने 27 फीसदी और जर्मनी के GDP ने 21 फीसदी से ज्यादा की छलांग लगाई थी? ये वक्त था सन 1938 से 1943 का, जब दूसरे विश्व युद्ध के दौरान तबाही के क्रूरतम दौर ने धरती को अपनी चपेट में लिया हुआ था. दसियों लाख लोग मारे गए थे, बमबारी ने शहरों को मलबों के ढेर में बदल दिया था, समंदर में जहाज डुबोए जा रहे थे, विमान क्रैश हो रहे थे.... लेकिन अगर GDP ही सब कुछ है, तब तो इन हालात में जश्न मनाना चाहिए, क्योंकि युद्ध में शामिल देशों के GDP तेजी से बढ़ रहे थे (साथ ही उनका खून में सना झूठा घमंड भी).

चलते-चलते: मुझे गलत न समझें. मैं GDP ग्रोथ का विरोधी बिलकुल भी नहीं हूं. मैं तो मानता हूं कि GDP ग्रोथ का ज्यादातर हिस्सा आमतौर पर लोगों के जीवन स्तर में वास्तविक सुधार आने का ही संकेत होता है. दरअसल मैं GDP में तेजी से सुधार लाए जाने का बड़ा समर्थक हूं. लेकिन ये बात भी उतनी ही सच है कि प्रधानमंत्री मोदी 2019 में सत्ता में वापसी करने के लिए समृद्धि का जो हसीन सपना दिखा रहे हैं, वो असल में "ग्रॉस इकनॉमिक जुमला" साबित हो सकता है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×