कोविड-19 महामारी के दौर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ के चौथे एपिसोड में जो सबसे प्रमुख बात थी, वह निस्संदेह इस बात पर उनका जोर देना था कि “जिसने भारतीय क्षेत्र पर बुरी नजर डाली है उसे माकूल जवाब दिया गया है.”
भारतीय नागरिकों को दिए गये इस भरोसे से निश्चित रूप से इस आशय का संदेश गया कि पीएम मोदी के लिए अभी यह अध्याय खत्म हो चुका है जिसकी शुरुआत पूर्वी लद्दाख में 5 मई को या संभव है कि इससे पहले से भी, झड़प की घटनाओं से हुई थी. और, जो 15-16 जून की रात हिंसक झड़प तक जारी रही. इसमें भारत और चीन दोनों सैन्य टुकड़ियों को नुकसान हुआ.
अपने रेडियो संबोधन में प्रधानमंत्री ने ये संदेश देने की कोशिश की कि चूंकि बीजिंग को 'करारा जवाब' दिया जा चुका है, इसलिए आगे किसी कार्रवाई की आवश्यकता नहीं है.
पीएम का चीन,भारतीय सेना और विपक्ष को संदेश
बेशक मोदी एक चेतावनी भी साथ-साथ दे रहे थे : “भारत जानता है कि मित्रता कैसे बनाए रखनी है, लेकिन यह किसी की आंखों में आखें डालकर भी देख सकता है, प्रतिशोध ले सकता है और समुचित जवाबी कार्रवाई भी कर सकता है.”
प्रधानमंत्री ने भारतीय सेना में कुर्बानी देने वाले बहादुर जवानों की भी तारीफ की, जिन्होंने “यह दिखाया कि वे किसी भी सूरत में भारत माता की मिट्टी पर आंच नहीं आने देंगे.”
प्रधानमंत्री की ओर से ये कड़े शब्द कहे गये और समर्थकों को यह संदेश देने की कोशिश की गयी कि उन्होंने ‘कार्रवाई’ की है. यह संदेश इसलिए जारी किया गया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके सख्त नेता वाली छवि पर ‘नकारा’ होने का दाग न लगे, जिस बारे में कुछ विपक्षी खासकर उनके प्रमुख विरोधी राहुल गांधी और सेना से रिटायर हो चुके कुछ वरिष्ठ अफसर कह रहे हैं.
मोदी ने आगे बढ़ाया ‘चीनी उत्पादों का बहिष्कार’ अभियान
प्रधानमंत्री के अनुसार लद्दाख का मोर्चा ‘सेटल’ हुआ मान लिया गया है लेकिन मोदी ने संकेतों में एक तरह से ‘चीनी वस्तुओं के बहिष्कार’ के अभियान को आगे बढ़ा दिया. उन्होंने ‘वोकल फॉर लोकल’ अभियान के साथ इसका ताना-बाना बुना, जिसका आगाज उन्होंने पहली बार 12 मई को राष्ट्र के नाम संबोधन में किया था.
इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि अब तक मोदी ने लद्दाख में चीन की बढ़ती आक्रामकता के जवाब में ‘बदला लेने’ जैसी भाषा का सहारा नहीं लिया है. ऐसी भाषा का इस्तेमाल आम तौर पर पाकिस्तान के साथ, जैसा सितंबर 2016 और फरवरी 2019 में भारतीय धरती पर आतंकी हमलों के बाद, उन्होंने किया था.
मोदी ने जिस तरह से चीन पर बात की उससे लगता है कि नई दिल्ली के पास चीनी घुसपैठ का जवाब देने के लिए कम विकल्प हैं. निश्चित रूप से भारत के खिलाफ पाकिस्तान के आतंकवाद को बढ़ावा देने के मामले से ये अलग प्रतिक्रिया है.
अपने सामने सीमित तरह के उपलब्ध विकल्पों को देखते हुए मोदी ने राष्ट्रवादी भावनाओं को अपने साथ जोड़ने पर ध्यान दिया है. एक रणनीति के तौर पर उन्होंने न सिर्फ दिवंगत जवानों के बलिदान को याद किया बल्कि उन्होंने उनमें से एक शहीद के पिता के जवाब भी लिए, “उन्होंने कहा कि अब भी वे अपने पोतों को भारतीय सीमा की सुरक्षा के लिए भेजेंगे.”
लोगों का उत्साह बढ़ाने के लिए ऐसे संकल्प को मोदी ने विस्तार से बताया, “हममें से हर एक पर यह बात लागू होती है. हमारा लक्ष्य और प्रयास एक ही दिशा में होने चाहिए. हमें कोशिश करनी चाहिए कि देश और सीमा को सुरक्षित रखने की क्षमता बढ़े.” और फिर एक राजनीतिक स्पिन देखने को मिला, जिसके केंद्र में आत्मनिर्भरता का विचार है, जिस बारे में विस्तार से अब तक कुछ भी नहीं कहा गया है और अब भी अस्पष्टता है. प्रधानमंत्री ने एक ऐसे आत्मनिर्भर भारत की वकालत की जो “सही मायने में गहरी भावना के साथ हमारे शहीदों के प्रति श्रद्धांजलि होगी.”
मोदी ने तर्क दिया कि इस लक्ष्य को असम से पत्र लिखने वाली महिला की पहल से महसूस किया जा सकता है. उन्होंने खुलासा किया कि महिला ने प्रधानमंत्री को लिखा कि “पूर्वी लद्दाख में जो कुछ हुआ उसे देखते हुए उसने एक प्रतिज्ञा ली और वह प्रतिज्ञा है कि वह केवल ‘लोकल’ चीजें खरीदा करेंगी... और लोकल की रक्षा के लिए वह ‘वोकल’ भी होंगी.” सरकार के उच्चतम स्तर से ‘बायकॉट चाइनीज’ अभियान की इससे अधिक स्पष्ट तरीके से वकालत नहीं की जा सकती थी.
प्रधानमंत्री ने संस्कृत का एक श्लोक उद्धृत करते हुए परोक्ष रूप से चीन के साथ संबंधों को लेकर नैतिक आयाम भी जोड़ा. बगैर नाम लेते हुए, मगर किन्हें यह बात कही जा रही है उसे बिल्कुल साफ करते हुए मोदी ने कहा, “एक व्यक्ति जो स्वभाव से धूर्त है, शिक्षा का इस्तेमाल विवाद को बढ़ाने में करता है, दंभ के लिए धन और दूसरों को परेशान करने के लिए ताकत का इस्तेमाल करता है.” दूसरी ओर भारत को एक सज्जन के रूप में दर्शाया, जिसके लिए “शिक्षा ज्ञान प्राप्त करने के लिए, धन दूसरों की मदद करने के लिए और ताकत रक्षा करने के लिए होता है.”
‘सदियों से आक्रमणकारी भारत पर हमला करते रहे’
मोदी लोगों को याद दिलाना नहीं भूले कि “सदियों से आक्रमणकारियों ने भारत पर हमले किए हैं” और भारत के ताने-बाने को तोड़ा है. इससे यह डर पैदा हुआ कि कहीं यह मिट न जाए और ‘देश की संस्कृति’ समाप्त न हो जाए.
आक्रमणकारियों का संदर्भ बेशक चीन है लेकिन उस मतलब को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, जिस बारे में अतीत में बीजेपी कहती रही है “1200 सालों की दासता”. अतीत का सुनहरा युग लौटाने से जोड़ कर पार्टी इसका इस्तेमाल करती रही है. इस युग को मुस्लिम राजाओं ने मध्यकालीन युग में खत्म कर दिया और इसे अपना घर बना लिया.
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मोदी देशभक्ति की भावना को आगे बढ़ाने की कोशिश कर सियासी स्कोर बनाना जारी रख रहे हैं. 22 मार्च से ही जब मोदी ने जनता कर्फ्यू का आह्वान किया, उन्होंने लगातार अपने हर कार्यक्रम से जन समर्थन को जोड़े रखने की कोशिश की है.
कई मौकों पर उन्होंने लोगों की इस बात के लिए सराहना की कि उन्होंने सामूहिक रूप से तालियां बजाईं, घंटियां बजाईं, शंख बजाए और दीए जलाए. आत्मनिर्भरता के अभियान को आगे बढ़ाने के लिए बायकाट चाइनीज प्रॉडक्ट्स अभियान को वर्तमान में आम लोगों के स्तर से थोड़ा ऊपर ले जाकर मोदी ने एक नया मोर्चा खोल दिया है ताकि लोगों को इस बात का संतोष हो कि उन्होंने उन लोगों को माकूल जवाब दिया है ‘जो घुसपैठिए हैं लेकिन घुसपैठ नहीं की है.‘
यही वह तरीका है जिससे मोदी ने सफलतापूर्वक अपने साथ और राष्ट्रीय अभियानों से जोड़ रखा है. ‘मन की बात’ में अलग-अलग तरीकों से जन समर्थन को सुरक्षित रखने का प्रधानमंत्री का उद्देश्य नजर आया.
लॉकडाउन के तुरंत बाद या फिर जब अर्थव्यवस्था नये सिरे से दोबारा खोली जा रही थी तब एक समझदार नेता के तौर पर मोदी निश्चित रूप से इस बात से अवगत होंगे कि उनके जनाधार में गिरावट आयी है .
(लेखक दिल्ली स्थित लेखक और पत्रकार हैं. उन्होंने ‘डेमोलिशन: इंडिया एट द क्रॉसरोड्स’ और ‘नरेंद्र मोदी: द मैन, द टाइम्स’ जैसी किताबें लिखी हैं. उनसे @NilanjanUdwin पर संपर्क किया जा सकता है.)
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