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"पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम आएगी"- PM मोदी के इस वादे पर कितना ऐतबार किया जाए?

बुरी तरह पलायन की मार झेल रहे उत्तराखंड को लेकर पीएम मोदी ने केदारनाथ में किए कई दावे

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उत्तराखंड (Uttarakhand) में पिछले कुछ दशकों से एक कहावत बड़े-बुजुर्गों के मुंह से सुनने को मिलती है कि- पहाड़ का पानी और जवानी, दोनों ही पहाड़ के काम नहीं आती है. अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने केदारनाथ धाम में दिए अपने भाषण में इस कहावत का जिक्र करते हुए वादा किया है कि, पहाड़ का पानी और जवानी दोनों ही उत्तराखंड के काम आएगी. इतना ही नहीं, पीएम मोदी ने यहां तक वादा किया है कि 21वीं सदी का तीसरा दशक उत्तराखंड का होने वाला है.

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लेकिन राज्य में चुनाव से करीब ठीक तीन महीने पीएम मोदी ने उत्तराखंड को लेकर ये जो वादे किए हैं, उन पर कितना ऐतबार किया जाए? क्योंकि उत्तराखंड की जनता ऐसे ही वादे दो दशकों से सुनती आ रही है. यहां तक कि पीएम मोदी ने भी 2017 चुनावों से ठीक पहले पलायन को पूरी तरह रोकने का वादा किया था, जिसकी उलट तस्वीर राज्य में दिख रही है. इसीलिए राज्य में ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए ऐतबार करना इतना आसान नहीं है.

पहाड़ की जवानी क्यों नहीं आती पहाड़ के काम?

सबसे पहले बात करते हैं उसी कहावत की, जिसका हमने ऊपर जिक्र किया था. पहाड़ों में ये कहावत क्यों कई दशकों से दोहराई जा रही है कि यहां का पानी और जवानी दोनों ही राज्य के काम नहीं आती है. उसका जवाब भी उन्हीं विकास के सपनों में है, जो पीएम मोदी ने 5 नवंबर को केदारनाथ में जनता को दिखाए हैं.

पानी की अगर बात करें तो इसे सिर्फ कहावत को पूरा करने के लिए जोड़ा गया है, क्योंकि उत्तराखंड में कई पवित्र नदियां बहती हैं और उनका पानी शहरों तक पीने के लिए पहुंचता है. लेकिन अगर जवानी की बात करें तो ये पलायन पर नेताओं के लिए एक तंज की तरह है. पहाड़ के नौजवान जैसे ही स्कूल पास कर निकलते हैं तो सबसे पहले उनके लिए बेहतर शिक्षा के विकल्प काफी कम होते हैं, ज्यादातर युवा पहाड़ों से शहरों की तरफ निकल जाते हैं.

इसके अलावा जब बात नौकरी की आती है तो पहाड़ी इलाकों में इसके शून्य अवसर दिखते हैं. इसीलिए युवाओं को मजबूरी में दिल्ली जैसे शहरों की धूल फांकनी पड़ती है. पहाड़ से निकले ज्यादातर युवाओं का जोश और उनकी पूरी क्षमता शहरों की कंपनियों, फैक्ट्रियों या फिर होटलों में सालों तक काम करते हुए निकल जाती है. आपने भी शहरों में पहाड़ के युवाओं को किसी न किसी होटल में काम करते हुए जरूर देखा होगा. इसीलिए कहा जाता है कि पहाड़ की जवानी राज्य के काम नहीं आती है.
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उत्तराखंड में विकास का महायज्ञ?

पीएम मोदी ने केदरनाथ में कहा कि, उत्तराखंड की सरकार आज विकास के महायज्ञ से जुड़ी है. लेकिन पीएम ने ये साफ नहीं किया कि वो कौन से विकास की बात कर रहे हैं? उत्तराखंड में विकास के नाम पर गांवों में सड़कें पहुंचाई जा रही है, लेकिन उन गांवों में अब गिने चुने ही लोग रह रहे हैं. ज्यादातर अपने पूरी परिवार के साथ पलायन कर चुके हैं. क्योंकि यहां मूलभूत सुविधाओं जैसे- शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की भारी कमी है. यानी असली विकास अब भी पहाड़ नहीं चढ़ पाया है.

पीएम मोदी ने भी अपने भाषण में सड़कों के निर्माण को ही असली विकास माना... उन्होंने चारों धामों को जोड़ने वाली ऑल वेदर रोड का जिक्र करते हुए सरकार की तारीफ की, जिस पर पर्यावरणविद लगातार चिंता जता रहे हैं. हाल ही में हुई प्राकृतिक आपदाओं के बाद ये चिंता और ज्यादा बढ़ी है.

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पीएम मोदी ने ये भी वादा किया कि पिछले 100 सालों में जितने लोग केदारनाथ दर्शन करने नहीं आए, उससे ज्यादा लोग अगले 10 साल में यहां पहुंचेंगे. उन्होंने लोगों से ये बात लिखकर रखने को भी कह डाला. साथ ही बताया कि केबल कार केदारनाथ तक पहुंचे, इसके लिए भी काम चल रहा है.

उत्तराखंड का होगा तीसरा दशक?

पीएम मोदी ने फिर से अपने ही अंदाज में वादा किया और इस बार भी इसे लिखकर रखने की सलाह देते हुए कहा- 21वीं शताब्दी का ये तीसरा दशक, ये उत्तराखंड का दशक है मेरे शब्द लिखकर रखिए. पीएम मोदी ने अपनी बात का यकीन दिलाने के लिए ये भी कह दिया कि वो पवित्र धरती से ये बात बोल रहे हैं.

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लेकिन सवाल ये है कि पिछले 21 सालों में उत्तराखंड में जो विकास नहीं हो पाया, वो इस दशक में होना कितना मुमकिन है? साथ ही पिछले चार सालों से राज्य में बीजेपी की ही सरकार है. पिछले चुनावों में पार्टी ने पलायन रोकने और रोजगार को लेकर जो वादे किए थे, उनमें से कुछ भी पूरा नहीं हुआ. बल्कि उल्टा पिछले कुछ सालों में पलायन की रफ्तार तेज हुई है.

आंकड़ों की अगर बात करें तो पिछले 10 सालों में उत्तराखंड के करीब 4 हजार गांव लगभग पूरी तरह खाली हो चुके हैं. साथ ही 6 हजार से ज्यादा गांव ऐसे हैं, जहां काफी कम ही लोग गांव में रह रहे हैं. पलायन आयोग की रिपोर्ट में साफ बताया गया है कि रोजगार और शिक्षा-स्वास्थ्य इसके सबसे बड़े कारण हैं.

अब इस हालात को देखते हुए पीएम मोदी ने पलायन को रोकने का जो वादा किया है, उसे वाकई में लिखकर रखने की जरूरत है. क्योंकि उत्तराखंड की महिलाएं और तमाम लोग ऐसे दावों को पिछले 21 सालों से हर चुनावी रैली में सुनते आए हैं. लेकिन हालात सुधरने की बजाय बदतर होते चले गए.

2017 में पलायन रोकने का किया था वादा

पीएम मोदी ने पिछले चुनावों से ठीक पहले भी कुछ ऐसा ही वादा किया था. पीएम मोदी ने 2017 में चुनाव से ठीक पहले उत्तराखंड के श्रीनगर में एक रैली के दौरान लोगों से कहा था कि, जब तक आप लोग कांग्रेस को नहीं हटाएंगे तब तक विकास नहीं होगा. पीएम मोदी ने तब वादा किया था कि पयर्टन के मामले में उत्तराखंड का विकास होगा. तब उन्होंने पलायन का जिक्र करते हुए कांग्रेस पर हमला बोला था और कहा था,

"उत्तराखंड के सीएम जरा जवाब दें कि कितने गांव खाली हो चुके हैं. किसी गांव में जाएं और पूछें कि क्या कोई नौजवान है, तो जवाब मिलता है कि वो रोजी रोटी कमाने बाहर गया है. हम ऐसा राज्य बनाएंगे कि यहां से किसी को जाने की जरूरत न पड़े. यहां के पानी में भी दम है, इसलिए यहां से पलायन नहीं हो सकता है."
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ऐसा नहीं है कि कांग्रेस या बीजेपी को राज्य में शासन करने का मौका जनता ने कम या ज्यादा दिया हो. दोनों ही बड़ी पार्टियों ने उत्तराखंड में 10-10 साल राज किया है, लेकिन राज्य की जनता, खासतौर पर पहाड़ के लोगों ने हमेशा खुद को ठगा हुआ ही महसूस किया. आलम ये है कि चुनाव आते ही नेता पहाड़ों की तरफ सैर के लिए निकलते हैं और जीत के बाद राजधानी देहरादून में बैठकर सत्ता का आनंद लिया जाता है. पहाड़ों की समस्याएं देहरादून की उन कोठियों तक नहीं पहुंच पाती हैं.

बीजेपी ने दो बार बदले मुख्यमंत्री

अब पीएम मोदी ने उत्तराखंड की जनता को जो सपने दिखाए हैं, वैसे ही सपने कई बार दिखाए जा चुके हैं और मुमकिन है कि आगे भी तमाम राजनीतिक दल ऐसे ही वादे लोगों से करें.

हालांकि हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते हैं कि अगर सरकार चाहे तो पांच साल में ही विकास कार्यों को जमीन पर उतार सकती है, लेकिन अब तक की कहानी से वादों पर यकीन करना लगातार मुश्किल होता जा रहा है.

मौजूदा बीजेपी सरकार के पिछले साढ़े चार साल कुछ ज्यादा ठीक नहीं रहे. जनता विरोधी फैसलों और भारी नाराजगी के चलते चार साल कुर्सी पर रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाना पड़ा, इसके बाद जब तीरथ सिंह को कमान सौंपी गई तो वो उम्मीदों पर खरा उतरने की बजाय बयानबाजी में लगे रहे. आखिरकार जोखिम उठात हुए तीसरे चेहरे यानी पुष्कर सिंह धामी पर दाव लगाया गया.
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अब करीब चार महीने के लिए मुख्यमंत्री बनाए गए धामी के पास चार साल का हिसाब नहीं है. क्योंकि हिसाब देने वाले को पहले ही हटाया जा चुका है. अब धामी इतने कम समय में सिर्फ लोगों को खुश करने का काम कर सकते हैं. अगले कुछ दिनों में अलग-अलग वर्गों की तमाम मांगों को या तो पूरा करने की कोशिश की जाएगी या फिर लोकलुभावन योजनाओं का ऐलान होगा. पीएम मोदी के भाषण में भी कुछ हद तक यही दिखा. जब केदारनाथ जैसे तीर्थ से पीएम ने बड़े दावे कर दिए हैं तो आने वाली चुनावी रैलियों में पीएम और नए सीएम की तरफ से उत्तराखंड के विकास के लिए ऐसे ही कई दावे सुनने को मिल सकते हैं.

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