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बीजेपी राज्य इकाइयों में असंतोष, PM मोदी को क्यों करनी चाहिए चिंता

Congress वाला रोग अब BJP में भी-उत्तर प्रदेश, बंगाल, त्रिपुरा और कर्नाटक राज्य इकाई में बढ़ती गुटबाजी और दलबदल

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राज्यों से भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बढ़ते आंतरिक मतभेद खुलकर सामने आ रहे हैं. यह अब तक कांग्रेस (Congress) की विशेषता रही है. जैसे-जैसे बीजेपी की शक्ति बढ़ रही है वैसे ही पार्टी को कई राज्यों में गुटबाजी का सामना करना पड़ रहा है और उसके लिए हर एक गुट को संतुष्ट रखना भी कठिन होता जा रहा है.

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जहां पंजाब और राजस्थान में कांग्रेस को अंदरूनी संकट का सामना करना पड़ रहा है वहीं बीजेपी के सामने कर्नाटक, त्रिपुरा, बंगाल और उत्तर प्रदेश में चुनौतियां बढ़ रही हैं. 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की पार्टी पर पकड़ मजबूत करने के बाद पहली बार बीजेपी को ऐसी परिस्थिति का सामना करना पड़ रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घटती लोकप्रियता

प्रधानमंत्री मोदी और कुछ मुख्यमंत्रियों की घटती पॉपुलैरिटी रेटिंग ने आंतरिक असहमतियों को तेज होने का मौका दिया है .हालांकि पीएम मोदी की पॉपुलैरिटी रेटिंग अभी भी विश्व में सबसे अधिक है तथा जब महामारी ने विकराल रूप लिया हो तब लोकप्रियता में कमी स्वभाविक है और वैश्विक स्तर पर ऐसा देखा जा रहा है.

लेकिन एक ऐसी पार्टी जो खुद के अनुशासन और सेवाभाव पर गर्व करती है ,उसके लिए आंतरिक कलहों का सामने आना बड़ी शर्मिंदगी की बात है क्योंकि यह उसके एक ‘अलग पार्टी’ होने के दावों की पोल खोलती है.

कर्नाटक में मौजूदा मुख्यमंत्री बीएस येदुरप्पा को हटाने की मांग बढ़ती जा रही है. त्रिपुरा में भी पार्टी विधायकों का एक गुट मुख्यमंत्री बिप्लव देव से नाखुश है. पश्चिम बंगाल में मुकुल रॉय के वापस TMC में 'घर वापसी' के बाद अलीपुरद्वार के बीजेपी जिलाध्यक्ष गंगा प्रसाद शर्मा भी टीएमसी में शामिल हो गए. ये वही जिला है, जहां बीजेपी ने सभी पांच सीटों पर कब्जा किया था. बताया जा रहा है कि कई और बीजेपी नेता भी टीएमसी में शामिल हो सकते हैं.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के कथित सत्तावादी और पक्षपातपूर्ण रवैये के कारण विधायकों के एक वर्ग के असंतोष के खबरों के बीच योगी ने हाल ही में दिल्ली में प्रधानमंत्री से मुलाकात की है.

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बीजेपी का 'अनुशासन' कल्चर शायद 'बाहरी' नेताओं को पसंद ना आए

कांग्रेस की अपेक्षा बीजेपी ज्यादा अनुशासित और कैडर आधारित पार्टी है. कांग्रेस से अलग यहां के कार्यकर्ता और नेता की प्रतिबद्धता उनके विचारधारा के प्रति मजबूत होती है. पार्टी ने अपने चार दशकों के इतिहास में बहुत कम फूट देखा है. उमा भारती और येदियुरप्पा ने अपनी पार्टी जरूर बनाई लेकिन वो वापस भी आ गए. दूसरी तरफ कई कांग्रेसी नेता पार्टी छोड़कर राज्य स्तर पर कद्दावर नेता बन गए हैं जैसे शरद पवार ,ममता बनर्जी और जगन मोहन रेड्डी.

इन सालों में बीजेपी ने उन क्षेत्रों में अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए दूसरे पार्टी के नेताओं का सहारा लिया है जहां वो मजबूत नहीं थी, खाता नहीं खोल पा रही थी या नॉर्थ-ईस्ट, बंगाल जैसे क्षेत्र जहां उसकी स्वीकृति नहीं थी. उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बंगाल और अन्य राज्यों में भी चुनाव के तुरंत पहले अपनी दावेदारी को मजबूत करने के लिए बीजेपी ने दूसरे दलों के नेताओं को अपने पाले में लाने का काम किया है.

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लेकिन इन नेताओं के बीजेपी में आने का कारण सत्ता प्राप्ति का लक्ष्य है ना की विचारधारा. जब उन्हें बीजेपी में आने का फायदा उनके अनुमान के अनुसार नहीं मिलता है तब वह परेशान करना शुरू कर देते हैं. पार्टी को बंगाल और त्रिपुरा राज्य बीजेपी इकाई में जिस संकट का सामना करना पड़ रहा है वह इसका सटीक उदाहरण है.'बाहरी' कहे जाने वाले यह नेता पार्टी के पुराने वफादारों में भी असंतोष पैदा करते हैं.

पार्टी का ‘कांग्रेसीकरण’, आलाकमान की संस्कृति, प्रधानमंत्री कार्यालय और मुख्यमंत्री कार्यालयों में पावर का कथित तौर पर केंद्रित होना कई नेताओं को असंतुष्ट कर रहा है.
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बीजेपी राज्य इकाइयों में बढ़ती भिड़ंत

विपक्ष भी बीजेपी के प्लेबुक से 'बगावत भड़काने' जैसा ट्रिक सीख रही है. TMC बीजेपी के विधायकों को सदन से इस्तीफा देने और दलबदल कानून के प्रावधानों से बचने के लिए TMC के टिकट पर फिर से निर्वाचित होने के लिए कह कर बीजेपी को उसी के खेल में हराने की धमकी दे रही है.

केंद्रीय नेतृत्व ने यह साफ कर दिया है कि कर्नाटक में येदुरप्पा मुख्यमंत्री पद पर बने रहेंगे. हालांकि सुलह के तौर पर कई बोर्ड के चेयरमैन बदले जा सकते हैं. बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व येदियुरप्पा का विरोध करने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि वो RSS की पृष्ठभूमि वाले पावरफुल लिंगायत नेता हैं. पहले भी वो पार्टी से अलग हो चुके हैं और पार्टी को 2013 राज्य चुनाव में नुकसान पहुंचा चुके हैं. 2023 में होने वाले राज्य चुनाव के पहले बिना परेशानी के किसी और हाथ में पावर ट्रांसफर की कवायद पार्टी के लिए बड़ी चुनौती है.
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बीजेपी ने त्रिपुरा में TMC से पैदा हुए संकट को तो फिलहाल टाल दिया है, लेकिन सरकार के लिए खतरा बना हुआ है. संदीप रॉय बर्मन के खेमे को आश्वासन दिया गया है कि मुख्यमंत्री द्वारा उनके शिकायतों का समाधान किया जाएगा. बर्मन खुद को मुख्यमंत्री से बड़ा और योग्य नेता मानते हैं. राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि यह केवल कुछ समय की बात है जब बर्मन मुकुल रॉय और TMC की मदद से बीजेपी विधायक दल में विभाजन के लिए अपनी साजिशें शुरू कर देंगे.

बंगाल में मुश्किलों को टाला नहीं जा सकता

हिंसा और डराने-धमकाने की राजनीति के कारण बंगाल में विपक्षी विधायक के रूप में बने रहना बहुत मुश्किल है .बीजेपी के लिए अपने नेतृत्व के साथ-साथ सपोर्ट बेस को बनाए रखना बहुत कठिन हो सकता है.

बंगाल में बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले 6 ‘दलबदलू’ और साथ ही मुकुल रॉय के कुछ अन्य करीबी पार्टी छोड़कर जा सकते हैं. रिपोर्टों के अनुसार दिलीप घोष खेमा भी सुवेंदु का समर्थन नहीं कर रहा और स्टेट प्रेसिडेंट के लिए कैबिनेट पद की कड़ी वकालत कर रहा है.
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जॉन बारला, सौमित्रा खान समेत बीजेपी के कुछ सांसद राज्य के बंटवारे और उत्तर बंगाल को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग कर रहे हैं. यह क्षेत्र पार्टी का गढ़ है क्योंकि हाल ही में संपन्न राज्य चुनाव में यहां उसे बंपर जीत मिली है. इससे राज्य बीजेपी इकाई (नॉर्थ VS साउथ )में गुटबाजी के और अधिक बढ़ने की संभावना है क्योंकि यह एक संवेदनशील मुद्दा है और इसे बैक-डोर से सत्ता हासिल करने के प्रयास के रूप में देखा जाएगा. इस तरह का कोई भी निर्णय TMC के इस आरोप को और मजबूत करेगा कि बीजेपी 'बंगाली पहचान' का प्रतिनिधित्व नहीं करती है और इससे पार्टी के नेताओं के पलायन को और तेजी मिलेगी.

तमाम राज्य इकाइयों में पार्टी अभी आग बुझाने में कामयाब रही है लेकिन यह संकट केंद्रीय नेतृत्व को चौकस रखेगी और आगामी चुनाव में उसके नतीजों को भी प्रभावित कर सकती है.

(लेखक एक स्वतंत्र राजनैतिक टिप्पणीकार हैं और @politicalbaaba पर ट्विट करते हैं. यह एक ओपनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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