ADVERTISEMENTREMOVE AD

QUAD Vs चीन: अमेरिका की सख्ती, भारत के लिए दुविधा

टोक्यो शिखर सम्मेलन और इससे पहले हुई द्विपक्षीय बैठकों ने चीन के मुद्दे को फ्रंट पर ला दिया है.

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

जब से 2017 में इसे फिर से खड़ा किया गया, तब से क्वाड (QUAD) ने चीन के मुद्दे पर कभी भी छिपकर काम नहीं किया है. इसने खुद को लोकतांत्रिक देशों का एक समावेशी समूह घोषित किया है जिसका उद्देश्य समुद्र में नेविगेशन यानि जहाजों के खुलकर चलने की स्वतंत्रता की रक्षा करना, आर्थिक विकास को बढ़ावा देना और मानवीय राहत में भाग लेना है.

आप पसंद करें या नहीं. लेकिन मंगलवार को टोक्यो में QUAD शिखर सम्मेलन और इससे पहले हुई द्विपक्षीय बैठकों ने चीन के मुद्दे दुनिया में सबसे आगे कर दिया है. और आश्चर्य की बात नहीं है कि, यह एक अन्य प्रमुख मुद्दा - यूक्रेन पर रूसी आक्रमण का चीनी समर्थन और फिर ताइवान पर चीनी आक्रमण की आशंका के साथ आया है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

मेजबान, जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने शिखर सम्मेलन में अपनी शुरुआती टिप्पणी में ही माहौल सेट कर दिया कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने "कानून-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के शासन को जड़ से हिला दिया है". उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाओं को हमें किसी भी सूरत में इंडो-पैसिफिक में नहीं होने देना चाहिए.

वो ताइवान पर चीनी आक्रमण के खतरे की ओर इशारा कर रहे थे. इस महीने की शुरुआत में लंदन में, किशिदा ने चेतावनी दी थी कि ताइवान पर चीनी आक्रमण, जापान के अस्तित्व और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा होगा.

स्नैपशॉट

• टोक्यो में मंगलवार को हुआ क्वाड समिट और द्विपक्षीय बातचीत ने चीन के मुद्दे को दुनिया के सामने ला दिया है.

• इस बात की आशंका जताई जाती रही है कि रूस ने यूक्रेन के साथ जो कुछ किया वैसा ही कुछ बीजिंग ताइवान के साथ कर सकता है.

• लेकिन क्वाड का ये कड़ा रुख भारत के लिए दुविधा खड़ा कर सकता है. भारत चीन के खिलाफ किसी मिलिटरी ग्रुपिंग की कोशिश से बचता रहा है.

ताइवान पर बाइडेन का बयान

ताइवान पर टिप्पणी करते हुए जो बाइडेन ने यूक्रेन पर रूसी आक्रमण का जिक्र किया. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने रूसी हमले की निंदा की और एलान किया कि ये सिर्फ यूरोपीय मुद्दा नहीं है बल्कि वैश्विक मामला है. उन्होंने पुतिन का नाम लेकर पूरी दुनिया में मानवीय त्रासदी लाने के लिए उनकी निंदा की.

इससे एक दिन पहले ही, टोक्यो में बाइडेन ने ये कहकर पूरी दुनिया में सुर्खियां बनाई कि ताइवान को चीन के हमले से बचाने के लिए वो पूरी ताकत लगाना चाहेंगे. बाइडेन के इस बयान को ताइवान को लेकर अमेरिका की नीति में ज्यादा स्पष्टता के तौर पर देखा गया. क्योंकि अब तक अमेरिकी कानून के मुताबिक ताइवान की सुरक्षा के लिए अमेरिका प्रतिबद्ध था लेकिन इसमें ताइवान को किसी तरह की सैन्य ताकत देने या अमेरिकी फौज का ताइवान के बचाव के लिए इस्तेमाल की नीति से बचना था. लेकिन मंगलवार को बाइडेन ने फिर अपने बयान से पीछे हटते हुए दावा किया कि उन्होंने जो कुछ ताइवान के बचाव के लिए कहा है कि ‘वो अमेरिका की घोषित नीति से हटकर’ नहीं है.

ना तो प्रधानमंत्री मोदी और ना ही आस्ट्रेलिया के नव निर्वाचित प्रधानमंत्री एंथोनी अल्बानीज ने यूक्रेन पर रूसी आक्रमण का कोई जिक्र किया. दरअसल दोनों ने ही QUAD के घोषित एजेंडा क्लाइमेट चेंज, वैक्सीन, सप्लाई चैन की मजबूती और आर्थिक सहयोग बढ़ाने पर ज्यादा फोकस किया. साफ है कि इंडो-पैसिफिक यानि हिंद महासागर में सुरक्षा के मसले पर क्वाड के देश पूरी तरह से एकजुट नहीं है. फिर भी, जो संयुक्त बयान क्वाड ने जारी किया उसको बारीकी देखने पर पता चलता है कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण से उठी कुछ बुनियादी बातों पर सभी में सहमति है.

0

इंडो पैसिफिक सिर्फ दक्षिणी चीन सागर नहीं है

संयुक्त बयान ने यूक्रेन के मुद्दे को आगे बढ़ाया. समूह ने " किसी भी देश की एकतरफा कार्रवाई की प्रवृत्ति और यूक्रेन में दुखद संघर्ष " का सामना करने के लिए एकजुट रहने का कड़ा संकल्प लिया. इसने " मौजूदा मानवीय संकट" और इसका "इंडो-पैसिफिक के लिए मायने " का जिक्र किया. बयान में कहा गया है कि नेताओं ने "यूक्रेन संघर्ष पर सामूहिक रूप से चर्चा की और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने के महत्व पर सहमत हुए.

इस संदर्भ में बिना चीन का नाम लिए भी एक संदेश साझा बयान के जरिए दिया गया. क्वाड के नेताओं ने बयान में- इंडो पैसिफिक में शांति स्थिरता और समृद्धि के लिए "धमकी या ताकत का इस्तेमाल किए बगैर, शांति से सभी विवादों का समाधान, यथास्थिति बदलने के किसी भी एकतरफा कोशिश का विरोध, और नेविगेशन और ओवरफ्लाइट की स्वतंत्रता, का आह्वान किया गया.

जब हम क्वाड और फ्री एंड ओपन इंडो-पैसिफिक पॉलिसी के बारे में सोचते हैं, तो हम दक्षिण चीन सागर में नेविगेशन की स्वतंत्रता के बारे में सोचते हैं, लेकिन यह ताइवान की खाड़ी और ताइवान के आसपास के समुद्रों के लिए समान रूप से प्रासंगिक है.

मई की शुरुआत में, यूएस ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष, मार्क माइली ने दोहराया कि चीन की योजना 2027 तक ताइवान पर आक्रमण करने के लिए अपनी सैन्य क्षमताएं बढ़ाने की है. इसने जापान और अमेरिका में हड़कम्प मचा दिया है. इसके बाद जापान ने अपना रक्षा बजट दोगुना करने का फैसला किया. एक ऐसा अधिनियम लाया जिससे वो भारत को पछाड़कर दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा डिफेंस बजट वाला देश बन जाएगा. वहीं अमेरिकी कांग्रेस, ताइवान को हथियार खरीदने के लिए कई अरब डॉलर की वित्तीय सहायता देने की योजना पर विचार कर रही है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

भारत नहीं चाहता चीन विरोधी क्वाड

इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीनी सेना पीएलए ने यह मान लिया है कि अगर वो ताइवान पर कब्जा करने की कोशिश करेगा तो अमेरिका की तरफ से सच में हस्तक्षेप होगा. हालांकि अब तक अमेरिकी "रणनीतिक अस्पष्टता" की नीति ने अमेरिका और चीन में बातचीत की संभावनाएं बरकरार रखी हैं लेकिन खुले तौर पर अमेरिका का कहना कि वो ताइवान की रक्षा करेगा. ये इस क्षेत्र की स्ट्रैटेजिक डायनेमिक्स को बदल देगा और इसका अनुमान लगाना आसान नहीं रहेगा. कुछ लोग तर्क देंगे कि यह वास्तव में चीनी सैन्य कार्रवाई की संभावना को बढ़ाता है लेकिन ऐसे बयान क्वाड के कामकाज के लिए एक चुनौती है.

खासकर भारत, जो चीन विरोधी समूह के रूप में क्वाड के सैन्यीकरण करने के किसी भी कोशिश को लेकर उत्साहित नहीं रहा है, उसके लिए एक बड़ी दुविधा खड़ी होगी. प्रधानमंत्री ने जो अपनी शुरुआती टिप्पणी दी वो भी क्वाड के दूसरे नेताओं की तुलना में सबसे छोटी थी और इसमें क्वाड की प्रशंसा करने और इसके कामकाज की सराहना करने के अलावा और कोई बात नहीं की.

क्वाड का संयुक्त बयान भी मार्च 2021 के शिखर सम्मेलन में दिए गए बयान को भी दोहराता हुआ लगता है जिसमें COVID-19 से लड़ने, बुनियादी ढांचे के विकास, अंतरिक्ष में सहयोग, जलवायु परिवर्तन को कम करने, और साइबर सुरक्षा और महत्वपूर्ण और उभरती टेक्नोलोजी पर काम करने की बात कही गई थी. इन सब पर क्वाड ने काम करने के जो वादे किए वो अभी बहुत शुरुआती दौर में ही हैं.

क्वाड में एक महत्वपूर्ण नई पहल जो हुई वो है, इंडो-पैसिफिक पार्टनरशिप पर मैरिटाइम डोमेन अवेयरनेस.यह रियल टाइम में इंटीग्रेटेड मैरिटाइम डोमेन की तस्वीर बताएगा.

यह पैसिफिक आइलैंड्स यानि प्रशांत द्वीप समूह, दक्षिण पूर्व एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्र की निगरानी के लिए भागीदार देशों की क्षमता को भी बढ़ाएगा. हालांकि इसे मानवीय राहत में सहायता के साधन, तस्करी की ट्रैकिंग और गैरकानूनी तौर पर मछली मारने की गतिविधि को पकड़ने में मदद करेगा जो अक्सर चीनी जहाजी बेड़ों की करतूत होती है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

IPEF: फ्री ट्रेड एग्रीमेंट का खराब विकल्प?

शिखर सम्मेलन से एक दिन पहले, संयुक्त राज्य अमेरिका ने इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) की घोषणा की. अमेरिका ने कहा कि 13 इंडो-पैसिफिक देशों ने इस पर हस्ताक्षर किए. हालांकि आलोचक मानते हैं कि यह एक मुक्त व्यापार समझौते यानि फ्री ट्रेड एग्रीमेंट का खराब ऑप्शन है क्योंकि अमेरिका FTA से बचना चाहता है.

ओबामा प्रशासन ने इस क्षेत्र में अमेरिकी आर्थिक जुड़ाव को बढ़ाने के साधन के रूप में ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) पेश किया था. पर पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इस समझौते से बाहर हो गए. बचे हए देश, जिनमें जापान, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, वियतनाम, सिंगापुर और छह अन्य पैसिफिक देश हैं, ने संयुक्त रूप से ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (CPTPP) के लिए एक व्यापक और प्रगतिशील समझौता किया. लेकिन बाइडेन प्रशासन का इस संगठन में शामिल होने में दिलचस्पी नहीं थी इसलिए विकल्प के तौर पर IPEF को लेकर वो आए हैं.

इसे एक ऐसे प्रोग्राम की तरह पेश किया गया है जिससे बुनियादी ढांचा, सप्लाई चेन, क्लीन एनर्जी, और डिजिटल व्यापार जैसे मुद्दों से पर आपसी सहयोग बढाया जाए. इसमें श्रम और पर्यावरण के मानकों को बेहतर करने का महत्वाकांक्षी एजेंडा भी है. इसके प्रत्येक सदस्य को यह चुनने की अनुमति होगी कि वे उन चार क्षेत्रों में से किस क्षेत्र में डील करना चाहते हैं और इसे वो बिना किसी दूसरे देश से कमिटमेंट के भी कर सकते हैं.

IPEF कैसे काम करेगा यह देखना बाकी है. लेकिन अमेरिकियों का कहना है कि समझौता अमेरिकी कामगारों की जरूरतों पर केंद्रित है. यह स्पष्ट है कि वे एफटीए की तरह अपने पार्टिसिपेंट को बड़ा बाजार हासिल करने में या टैरिफ में रियायतें नहीं देंगे.

भारत अचानक उन 13 देशों की सूची में आ गया, जिन्होंने IPEF के लिए दस्तखत किया . लेकिन अमेरिका के साथ, इसे न तो सीपीटीपीपी और न ही क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) के साथ होने का गौरव प्राप्त है, जिसमें जापान, आसियान, चीन और ऑस्ट्रेलिया सहित अन्य देश शामिल हैं. संक्षेप में, एक ऐसी आर्थिक नीति जो इस क्षेत्र में चीनी वर्चस्व का मुकाबला करेगी वैसी नीति अभी बननी बाकी है. अमेरिका की तरफ से पहले जो भी पहल हुई थी, जैसे ब्लू डॉट नेटवर्क या बिल्ड बैक बेटर उनका नतीजा अब तक बहुत कुछ खास नहीं रहा है. ऐसे में अमेरिका की ‘फ्री एंड ओपन इंडो पैसिफिक पॉलिसी’ को फाइनेंशियल टाइम्स के एक QUOTE "ऑल गन्स एंड नो बटर" से सबसे अच्छी तरह से समझा जा सकता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

(लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली में एक विशिष्ट फेलो हैं. यह एक ओपिनियन आर्टिकल है और व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. द क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें