पिछले पांच सालों में मैंने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में ‘सरकार की बढ़ती दखलअंदाजी’ की कई बार आलोचना की है. यह प्रवृत्ति 5 जुलाई 2019 को, जिस दिन मोदी सरकार ने संसद में अपने दूसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश किया, अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गई. बजट सरकार की दखलअंदाजी से भरी पड़ी थी लेकिन मैं आपको सिर्फ सबसे निष्ठुर कदम की याद दिलाऊंगा: CSR (कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) के तहत स्वेच्छा से किए जाने वाले योगदान को आपराधिक जिम्मेदारी बना देना! गनीमत रही कि इसे जल्द ही हटा लिया गया, लेकिन इससे सरकार की मूल प्रवृत्ति का खुलासा हो चुका था.
जाहिर तौर पर, पांच जुलाई के बजट के बाद लोगों की भावना, बाजार और वित्तीय संकेत धड़ाम से गिर गए. चिंतित मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में अर्थव्यवस्था को बल देने की 'कोशिश' करते हुए कारोबारियों को 'वेल्थ क्रिएटर' बताया, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ. बाजार गिरते चले गए.
बड़े संकट की आहट भांपकर सरकार ने अपना ब्रह्मास्त्र चला दिया. सभी मौजूदा कंपनियों के लिए कॉरपोरेट टैक्स की दर में सीधे 10 परसेंटेज प्वाइंट की कटौती कर दी. वहीं ग्रीनफील्ड उत्पादक कंपनियों के लिए इसे 20 परसेंटेज प्वाइंट घटा दिया. यह बेचैनी में उठाया गया कदम था. मेरी नजर में ये हताशा में उठाया गया बेहद सकारात्मक कदम था (हालांकि इसे बेहतर तरीके से तैयार किया जा सकता था) ताकि लोगों का डर खत्म हो. इसके आधे-अधूरे नतीजे आए. बाजार में अचानक सुधार तो आ गया, लेकिन लोगों का मनोबल गिरा ही रहा. सरकार ने इसके बाद भी कई आधे-अधूरे फैसले लिए, जिनमें से कई फैसलों की मैंने भी अधूरे मन से तारीफ की और जिनके लिए मैंने एक हाथ से ताली बजाई.
अब मेरी खुशी की कल्पना कीजिए जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बुधवार (20 नवंबर, 2019) को 3 नई पहल का ऐलान किया, जिनका आखिरकार मैंने खुलकर और जोरदार स्वागत किया और दोनों हाथ से ताली बजाई.
- बीपीसीएल, कॉनकॉर और शिपिंग कॉरपोरेशन का निजीकरण (जी हां, विनिवेश नहीं)
- स्पेक्ट्रम शुल्क पर मोहलत, जिससे कि वित्तीय दबाव झेल रही टेलीकॉम कंपनियों को राहत मिली और एक ग्लोबल दिग्गज कंपनी के दिवालिया घोषित होने के कलंक से भारत बच गया.
- DHFL बोर्ड को भंग करना, जिससे कि यकीन बनना कि ILFS के दिवालिया होने जैसी स्थिति नहीं बनेगी.
आखिरकार, करीब पांच साल और छह महीने के लंबे इंतजार के बाद, मोदी-नॉमिक्स ने प्राइवेट कंपनियों और प्रतिस्पर्धात्मक बाजार पर भरोसा जताया. जी हां, फिर से ताली बजाइए और आखिर में ‘thumbs up’ ईमोजी लगाइए.
लेकिन जरा रुकिए. ये 'BABU-JAAL' क्या है?
अब मैं गंभीर हो जाने के लिए मजबूर हूं. और मोदी सरकार को हर जगह मौजूद रहने वाले, BABU-JAAL (नौकरशाही का मकड़जाल) से होने वाले खतरों के प्रति आगाह कर रहा हूं. इस विश्वासघाती BABU-JAAL को ऐसे समझ सकते हैं:
- पहला B BPCL; दूसरा B BSNL के लिए है
- JA, Jet Airways के लिए है
- L, ILFS और DHFL दोनों में मौजूद L है
आप उलझन में पड़ गए? समझ नहीं पा रहे? चलिए मैं आपको समझाता हूं. मुझे हमेशा से यह डर (आप इसे फोबिया भी कह सकते हैं) सताता रहा है कि जब भी कोई सरकार बाजार के फायदे की पॉलिसी लॉन्च करने का हौसला जुटाती है, भारत की नौकरशाही उसे अपने मकड़जाल में बुरी तरह जकड़कर तबाह कर देती है.
इसलिए मैं मोदी और सीतारमण जी को सतर्क करना चाहता हूं कि सावधान रहें. बाबुओं को बाधा डालने की इजाजत नहीं दीजिए.चूंकि पहले से बताना, पहले सावधान करना होता है, मैं आपको बताता हूं कि इस BABU-JAAL की साजिश अपना असर दिखा सकती है.
BPCL को HPCL/GSPC के रास्ते जाने पर मजबूर किया जा सकता है
BPCL का निजीकरण शायद प्रधानमंत्री मोदी की सबसे साहसिक बाजार-अनुकूल पहल है. एक ही झटके में करीब 10 बिलियन डॉलर उनके सरकारी खजाने में आ जाएंगे, जिससे मौजूदा बजट में सरकार ने करीब 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर के विनिवेश का जो लक्ष्य रखा है उसका आधे से ज्यादा हासिल हो जाएगा. वित्तीय क्षमता से कहीं अधिक, यह कदम विश्व के सामने भारत के मजबूत इरादे को स्पष्ट करता है: हम बड़े कदम उठाने और अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों तक ले जाने में सक्षम हैं. दुख की बात ये है कि हमेशा की तरह सरकार ने इन पहलों में ऐसी खामियां छोड़ रखी हैं जो पूरी कोशिश को बेकार कर सकती हैं.
- नुमालीगढ़ रिफाइनरी को BPCL से 'अलग कर' ऑयल इंडिया या इंडियन ऑयल जैसी दूसरी पब्लिक सेक्टर कंपनी को बेचना होगा. मुझे इस फैसले के पीछे की रणनीति से कोई परेशानी नहीं है, मतलब चीन से सटी पूर्वी सीमा पर भारतीय सेना को तेल की आपूर्ति का मामला अपने हाथ में लेना.. लेकिन, इस पूरी प्रक्रिया में लंबा वक्त लगेगा, क्योंकि इसमें पहले तो किसी थर्ड पार्टी से रिफाइनरी की कीमत तय की जाएगी, उसके बाद BPCL की बैलेंस शीट से इसे 'अलग' करने की प्रक्रिया से गुजरना होगा. मुझे शक है कि यह पूरी प्रक्रिया 31 मार्च, 2020 से पहले पूरी हो पाएगी. समझिए कहां-कहां अंधे कुएं हैं:
- अगर BPCL को इस वित्तीय वर्ष में नहीं बेचा गया तो सरकार 1.05 लाख करोड़ (15 बिलियन अमेरिकी डॉलर) विनिवेश के लक्ष्य से मीलों दूर रह जाएगी, जो कि बहुत बड़ी आर्थिक शर्मिंदगी साबित होगी. अब आपको अंदाजा हो रहा है यह BABU-JAAL कैसे फैलेगा? इसके बाद सरकार कहेगी ‘हम वित्तीय लक्ष्य को हासिल करने में किसी भी चूक को झेलने की हालत में नहीं हैं; और चूंकि BPCL को बेचने की प्रक्रिया पूरी करने में 31 मार्च से ज्यादा वक्त लगेगा, हमें पहले से आजमाया हुआ रास्ता अख्तियार करना होगा. हमें ठीक वैसा ही करना होगा जैसा HPCL और GSPC के साथ हुआ, जिसे जबरन ONGC के मत्थे मढ़ दिया गया. इस बार HPCL को IOC पर थोप देते हैं. हम विनिवेश के खाते में 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर दिखाने में कामयाब हो जाएंगे और वित्तीय लक्ष्य भी हासिल हो जाएगा, अंत में BPCL भी जनता के हाथों में रह जाएगी.’
फिर वही हुआ : एक बेहतरीन योजना, BABU-JAAL (नौकरशाही के मकड़जाल) में फंस कर रह गई.
इसलिए मोदी और सीतारमण जी मेरी गुजारिश है आप इनकी बेवकूफी के जाल में फंसने से बचिए. अगर वित्तीय लक्ष्य पूरा करने में कुछ कमी रह जाती है तो भी इस प्रक्रिया को अगले साल के लिए टाल दीजिए, लेकिन हर हाल में थर्ड पार्टी निजीकरण को सुनिश्चित कीजिए. इससे भले बजट थोड़ा खराब हो जाए लेकिन देश को बड़ा फायदा होगा. अगर हो सके तो फिलहाल BSNL-MTNL को दी जाने वाली 70,000 करोड़ रुपये की मदद को रोक दीजिए. खुलकर कहूं तो BPCL को बेचकर और BSNL-MTNL मर्जर के आत्मघाती फैसले को रोकने से देश का खजाना दोगुना हो जाएगा.
DHFL पर कुछ करने से पहले ILFS और जेट एयरवेज को याद कीजिए
मैं बहुत उत्साहित था जब RBI ने DHFL की बोर्ड को भंग कर दिया और इसकी देखरेख के लिए एक अनुभवी व्यक्ति को नियुक्त किया. मुझे लगा कि रेगुलेटर ने संपत्ति को बचाने का रास्ता निकाल लिया है, साथ ही गैर-जिम्मेदार मालिकों पर भी नकेल कस दिया गया है. लेकिन दुर्भाग्य से यहां भी मुझे BABU-JAAL के लक्षण दिख रहे हैं. मुझे डर है कि आगे इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कानून को लागू कर, कर्जदाताओं को कम पैसे लेने के लिए मजूबर किया जाएगा और क्रेडिट मार्केट की सेहत बिगड़ेगी. अंत में ILFS और जेट एयरवेज की तर्ज पर DHFL की दुकान भी बंद हो जाएगी.
मेरी मोदी और सीतारमण जी से गुजारिश है इस BABU-JAAL में ना फंसे; जो भी करने की जरूरत हो करें, जितनी भी मदद की दरकार हो करें, ताकि DHFL बच जाए. कृपया ILFS और जेट एयरवेज की बंदी के दौरान हुई बड़ी गलतियों को ना दोहराएं, जिससे उनकी संपत्ति भी बर्बाद हो गई और क्रेडिट बाजार को भी नुकसान हुआ. इस दोहरे झटके ने हमें लगभग मार ही डाला. अगर DHFL के साथ भी वैसा ही हुआ तो हम तीसरा झटका बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे.
अब बात वोडाफोन और एयरटेल को स्पेक्ट्रम शुल्क चुकाने में दी गई दो साल की मोहलत की. यह बहुत छोटी लेकिन स्वागत योग्य राहत है. हालांकि यहां भी BABU-JAAL साफ तौर पर नजर आता है. क्योंकि यहां भी समायोजित सकल राजस्व को ठीक से परिभाषित करने की कोई कोशिश नहीं की गई है, जो कि मेरी नजर में (सुप्रीम कोर्ट को पूरा सम्मान देते हुए) पूरी तरह दोषपूर्ण है. जरा फॉरेन एक्सचेंज पर स्पेक्ट्रम शुल्क की अदायगी के नफे-नुकसान के बारे में सोचिए. रुपये के मुकाबले डॉलर के उतार-चढ़ाव के साथ स्पेक्ट्रम देनदारी भी घटती-बढ़ती जाती है. क्या ये इससे ज्यादा धोखा देने वाला/ संदेहास्पद/अवास्तविक हो सकता है?
तो आखिर में मैं वही दोहराना चाहूंगा जिससे मैंने शुरुआत की थी: सरकार की सुधार वाली नीतियां सही लगती हैं- लेकिन इन्हें BABU-JAAL (नौकरशाही के मकड़जाल) से बचाने की जरूरत है.
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