गिग और प्लेटफार्म वर्कर्स (Gig Workers) और उनके सामूहिक संगठन कई महत्वपूर्ण मुद्दों को सार्वजनिक चर्चा में प्रमुखता से आगे लाने में कामयाब रहे हैं.
इनमें एल्गोरिदम शामिल हैं जिनका उपयोग श्रमिकों के व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप खराब वेतन (कम मजदूरी) और काम करने की स्थिति (काम के लंबे और तनावपूर्ण घंटे), निगरानी (सर्विलांस) जोकि सामूहिक संगठन को प्रतिबंधित करती है और वर्कर्स के डेटा की सुरक्षा के बारे में चिंता का कारण बनती है.
बता दें कि, गिग वर्कर्स वो होते हैं जो स्वतंत्र रूप से ठेके पर काम करते हैं, जो काम के बदले पेमेंट के आधार पर काम करते हैं जैसे जोमैटो-स्विगि डिलिवरी बॉय, आदी.
भारत के अधिकांश अनौपचारिक श्रमिकों (इंफॉर्मल वर्कर्स) की तरह गिग और प्लेटफार्म वर्कर्स के पास भी ESI (कर्मचारी राज्य बीमा) और EPF (कर्मचारी भविष्य निधि) जैसे सामाजिक सुरक्षा (सोशल सिक्योरिटी) कार्यक्रमों तक पहुंच नहीं है.
ऐसा प्रतीत होता है कि राजस्थान विधानसभा में सोमवार 24 जुलाई को जिस विधेयक (राजस्थान प्लेटफार्म-बेस्ड गिग वर्कर्स (रजिस्ट्रेशन एंड वेलफेयर) विधेयक, 2023) को पारित किया गया है वह सामाजिक सुरक्षा कवरेज की इसी कमी पर फोकस्ड (केंद्रित) है.
गिग और प्लेटफार्म वर्कर्स के लिए श्रम सुरक्षा प्रदान करने के भारत में पहले प्रयास के रूप में, इस कानून की प्रशंसा के साथ साथ इसकी बारीकी से जांच की भी आवश्यकता है.
इस बिल में भी गिग वर्कर्स को पहले की तरह अब भी केवल 'पार्टनर्स' ही माना गया है
गिग वर्कर्स की हमेशा से ये मांग रही है कि उन्हें वर्कर/कर्मचारी का दर्जा मिले. वर्तमान में, अधिकांश एग्रीगेटर इस बात पर जोर देते हैं कि गिग श्रमिक, वर्कर्स नहीं बल्कि 'पार्टनर्स' हैं. इसे दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यहां नौकरी देने वाला और कर्मचारी के बीच जो संबंध होता है उसे नहीं माना जाता.
वर्तमान विधेयक भी गिग और प्लेटफार्म वर्कर्स को वैसे परिभाषित नहीं किया गया है जैसे नौकरी देने वाले नियोक्ता और कर्मचारी के बीच संबंध होता है. सामाजिक सुरक्षा संहिता (Code on Social Security), 2020 में लगभग वैसी ही भाषा का उपयोग किया गया है.
किसी को केवल वर्कर्स के रूप में परिभाषित करने का मतलब यह नहीं है कि उन्हें श्रम कानूनों के तहत अपने आप अधिकार मिल जाएंगे. वर्कर्स को स्पष्ट रूप से उनके अधिकारों को बताया जाना चाहिए.
वेलफेयर बोर्ड बनाने और एग्रीगेटर्स पर सेस (टैक्स) लगाने का विचार अच्छा निर्णय है
गिग वर्कर्स को लेकर राजस्थान में जो विधेयक पारित किया गया है वह मुख्य रूप से सामाजिक सुरक्षा पर केंद्रित है. इस बिल में गिग और प्लेटफार्म वर्कर्स के अधिकारों की ज्यादा बात नहीं है.
इस कानून का मूल कहीं और निहित है: विधेयक में यह कहा गया है कि "प्लेटफॉर्म-आधारित गिग वर्कर्स वेलफेयर सेस" लगाया जाएगा और एक वेलफेयर बोर्ड का गठन किया जाएगा, जो कि इसका प्रबंधन करेगा कि यह सेस कैसे एकत्रित और खर्च किया जा रहा है. सेस (उपकर) गिग वर्कर से संबंधित प्रत्येक लेनदेन पर लगेगा, यह एग्रीगेटर या नियोक्ता (employer) पर लगाया जाएगा, इसे उपभोक्ता या गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर से नहीं वसूला जाएगा.
सेस किस रेट (दर) से लगाया जाएगा, अभी तक इसको लेकर नोटिफिकेशन जारी नहीं किया गया है, हालांकि ऊपरी सीमा (अपर लिमिट) प्रत्येक लेनदेन के मूल्य का 2 फीसदी निर्धारित किया गया है. दिलचस्प बात यह है कि ये जो कानून है वह एक केंद्रीय लेनदेन सूचना और प्रबंधन प्रणाली (CTIMS : सेंट्रल ट्रांजैक्शन इंफॉर्मेशन एंड मैनेजमेंट सिस्टम) के माध्यम से इन लेनदेन को ट्रैक करने के लिए एक तंत्र स्थापित करता है. यह मायने रखता है क्योंकि गिग वर्कर को किए गए प्रत्येक भुगतान (पेमेंट) का रिकॉर्ड अब एग्रीगेटर के अलावा किसी अन्य यूनिट के पास भी उपलब्ध होगा.
जब पेमेंट की बात आती है तो मनमाने ढंग से कटौती और पारदर्शिता की कमी गिग वर्क के साथ एक प्रमुख मुद्दा या समस्या रही है. वर्तमान विधेयक भी इन मामलों पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाता है, और CTIMS को केवल प्लेटफार्म द्वारा लगाए गए कमीशन चार्ज, जो सेस लगाया गया है और जो GST काटा गया है, उसका रिकॉर्ड रखने तक सीमित करता है.
उपकर (सेस) की लागत को गिग वर्कर्स, या उपभोक्ताओं पर डालना (उदाहरण के लिए मूल्य निर्धारण बढ़ाकर) भी एक चिंता का विषय हो सकता है.
चूंकि अब ट्रांजैक्शन का रिकॉर्ड रखा जाएगा, इससे सिस्टम के दायरे को व्यापक बनाने और पेमेंट की पारदर्शिता पर सार्थक प्रावधान लाने की काफी संभावनाएं हैं.
विधेयक में यह प्रावधान है कि एकत्रित और खर्च किए गए वेलफेयर सेस का ब्योरा दिया जाएगा और CTIMS पर निरीक्षण (इंस्पेक्शन) के लिए उपलब्ध कराया जाएगा, जिससे फंड का दुरुपयोग करना ज्यादा चुनौतीपूर्ण या कठिन हो सकता है.
इससे जुड़ा एक मुद्दा यह है कि अभी तक इसकी कोई परिभाषा ही नहीं है कि किसी ट्रांजैक्शन की वास्तव में वैल्यू क्या है. चूंकि एग्रीगेटर नियमित तौर पर या अक्सर वर्कर्स के प्रदर्शन (परफॉर्मेंस) को मैनेज करने के लिए इंसेन्टिव पर निर्भर है, इसलिए इससे अस्पष्टता पैदा हो सकती है.
यूनिक आईडी का उपयोग करके बोर्ड गिग वर्कर्स का पंजीकरण करेगा, रजिस्ट्रेशन को ट्रांसफर किया जा सकेगा
इस विधेयक की सबसे महत्वपूर्ण बात - राजस्थान प्लेटफार्म बेस्ड गिग वर्कर्स वेलफेयर बोर्ड है, जिसे कई तरह के काम दिए गए हैं. 'राजस्थान प्लेटफार्म बेस्ड गिग वर्कर्स सोशल सिक्योरिटी और वेलफेयर फंड' (जिसमें सेस का भुगतान जाएगा) का उपयोग और प्रबंधन करने के अलावा, बोर्ड के पास CTIMS को मेंटेन करने, गिग वर्कर्स, एग्रीगेटर्स और प्राथमिक नियोक्ताओं के डेटाबेस को रजिस्टर करने और उसे मेंटेन रखने की भी जिम्मेदारी है. संबंधित विभागों के सरकारी अधिकारियों और अध्यक्ष, श्रम मंत्री के अलावा बोर्ड में एग्रीगेटर्स और गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स दोनों के पांच-पांच प्रतिनिधि होंगे.
विधेयक में यह भी प्रावधान है कि बोर्ड के कुल सदस्यों में से एक तिहाई महिलाएं होनी चाहिए.
बोर्ड में सिविल सोसायटी के दो सदस्य को भी शामिल करने का प्रावधान है, लेकिन विधेयक में इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि उनकी पृष्ठभूमि क्या होगी. ऐसे फोरम में जिसमें कार्यों की इतनी विस्तृत श्रृंखला है, उसमें इन व्यक्तियों को श्रम कानून के साथ कुछ अनुभव होना आवश्यक है, यह उपयोगी होगा. इसके साथ ही आदर्श रूप से श्रमिकों, एग्रीगेटर्स और राज्य के हितों को संतुलित करना चाहिए.
बोर्ड यह भी सुनिश्चित करेगा कि एग्रीगेटर का एप सेस (उपकर) कटौती मैकेनिज्म के साथ एकीकृत (इंटीग्रेटेड) हो. चूंकि विधेयक किसी विशिष्ट सामाजिक सुरक्षा योजना को लागू नहीं करता है, लेकिन यह बोर्ड को ऐसा करने में सक्षम बनाता है, इसलिए यह बोर्ड ही है जो गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स के लिए एक सामाजिक सुरक्षा योजना तैयार करेगा और अधिसूचित करेगा.
एग्रीगेटर का कर्तव्य है कि वह अपने साथ जुड़े सभी प्लेटफॉर्म-बेस्ड वर्कर्स का डेटाबेस बोर्ड को उस स्थिति में प्रदान करे जब प्रत्येक प्लेटफॉर्म-बेस्ड गिग वर्कर रजिस्टर होता है और उसके लिए एक विशिष्ट आईडी (यूनिक आईडी) बनती है. बोर्ड के साथ यह रजिस्ट्रेशन हमेशा के लिए वैध है : जोकि यह दर्शाता है कि भले ही गिग वर्कर आगे चलकर किसी विशेष प्लेटफॉर्म या एग्रीगेटर से जुड़ा न हो, लेकिन उस वर्कर का रजिस्ट्रेशन इनवैलिड (अमान्य या अवैध) नहीं किया जाएगा.
हालांकि, राज्य सरकार द्वारा बोर्ड में श्रमिकों के प्रतिनिधियों को नामित (नॉमिनेट) किया जाएगा, न कि किसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से जिसमें गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स, या गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स के किसी भी प्रकार के सामूहिक संगठन शामिल हों.
भले ही राज्य द्वारा नामांकित व्यक्ति उत्कृष्ट हो, लेकिन सामूहिक संगठन (जैसे कि किसी यूनियन) द्वारा बोर्ड में प्रतिनिधित्व करने के लिए किसी व्यक्ति को चुना जाना अच्छा कार्य हो सकता है.
श्रमिक समूहों की भूमिका का कोई उल्लेख विधेयक में नहीं है
विधेयक में ऐसा कोई तरीका या सिस्टम नहीं बताया गया है जिसके जरिए श्रमिकों का समूह बोर्ड के कार्यों में सार्थक रूप से हिस्सा ले सके. एक प्रावधान है जो यह बताता है कि बोर्ड को ऐसी पंजीकृत यूनियनों के साथ जुड़ना चाहिए जो गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स के साथ काम करती हैं और 'नियमित' परामर्श (बिना यह बताए कि ये परामर्श कितनी बार होने चाहिए) आयोजित करते हैं.
इसके अलावा, इस बात का भी कोई संकेत नहीं है कि किन मुद्दों पर इस तरह के परामर्श की आवश्यकता है. इसका मतलब यह है कि ऐसे मुद्दों में यूनियनों को शामिल करने के लिए कोई अनिवार्य प्रावधान नहीं है जो श्रमिकों के अधिकारों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकते हैं.
कानून के तहत कोई कार्रवाई या दावा शुरू करने के लिए किसी गिग वर्कर की ओर से कार्य करने के लिए बोर्ड किसी व्यक्ति को नामांकित भी कर सकता है. फिर से, यहां यूनियनों या संगठनों के लिए कोई भूमिका सपष्ट नहीं है.
ऐसा प्रतीत होता है कि विधेयक में श्रमिकों की शिकायतों को सुनने या एड्रेस करने का एकमात्र तरीका यह है कि गिग वर्कर ऐसे काम के लिए सीधे राज्य सरकार द्वारा नामित अधिकारी से संपर्क कर सकता है, यहां सफल न होने पर वे (वर्कर) 'अपीलीय प्राधिकारी' (वेलफेयर बोर्ड के सदस्य सचिव जो श्रम विभाग के प्रभारी सचिव हैं) के समक्ष अपील कर सकते हैं.
शिकायत का निवारण कैसे किया जाएगा?
विधेयक में शिकायत निवारण की प्रक्रिया निर्धारित नहीं की गई है. इसका मतलब यह है कि जांच शुरू करने या किसी याचिका का निपटारा करने के लिए कोई समयसीमा निर्धारित नहीं है. गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स ने एप्स के साथ जो समस्याएं (मनमाने ढंग से कटौती करना, ऑर्डर को एलोकेट न करना, आईडी ब्लॉक करना, आदि) बताई हैं, इन्हें और शिकायत निवारण तंत्र की अविश्वसनीयता के इतिहास को देखते हुए, इस तरह का प्रावधान नाममात्र का प्रतीत होता है.
अधिनियम में एग्रीगेटर्स और 'प्राथमिक नियोक्ताओं' को अलग-अलग परिभाषित किया गया है (प्राथमिक नियोक्ता वह है जो सीधे गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को नियुक्त करता है) लेकिन उनके कर्तव्य और देनदारियां काफी हद तक समान हैं.
यदि एग्रीगेटर या प्राथमिक नियोक्ता उपकर (सेस) का भुगतान करने में विफल रहता है, तो ऐसी स्थिति में उन्हें 10 हजार रुपये से 50 लाख रुपये तक का जुर्माना देना होगा.
यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि यदि डिफॉल्टर जुर्माना नहीं चुकाता है, तो सरकार इसे राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 में निर्धारित किसी भी तरीके से वसूल कर सकती है, जिसमें उनकी संपत्तियों की कुर्की या जब्ती भी शामिल है.
श्रमिकों के योगदान के बारे में क्या है?
विधेयक में प्रावधान है कि प्लेटफॉर्म-बेस्ड गिग वर्कर्स को उनके द्वारा किए गए योगदान के आधार पर सामान्य और विशिष्ट सामाजिक सुरक्षा योजनाओं (बोर्ड द्वारा तैयार की जाने वाली) तक पहुंच प्राप्त होगी, हालांकि यह योगदान कितना होना चाहिए, इसकी कोई ऊपरी या निचली सीमा नहीं है, या इसे कैसे एकत्र किया जाना है, इसके बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं दी गई है.
प्रावधान की जो भाषा है उससे यह भी प्रतीत होता है कि योगदान के अभाव में, गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर को बोर्ड द्वारा तैयार किए गए सामाजिक सुरक्षा उपायों या नीतियों तक पहुंच नहीं होगी. ऐसे में जब बोर्ड एक सामाजिक सुरक्षा योजना तैयार करेगा तो इन मुद्दों पर ध्यान देना होगा.
मजदूरी या वेतन की कम दर और आय की अनिश्चितता को देखते हुए, वर्कर्स के योगदान (contributions) को कम रखा जाना चाहिए. योजना को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वर्कर से कंट्रीब्यूशन एकत्र करने की व्यवस्था एग्रीगेटर या नियोक्ता को गिग कार्यकर्ता पर किसी भी लागत का बोझ डालने या मजदूरी को और कम करने में सक्षम नहीं बनाती है.
क्या यह विधेयक गिग वर्कर्स के रोजगार की कमियों को दूर करता है?
विधेयक को उसी रूप में लिया जाना चाहिए जैसे वह है : यानी कि गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स के लिए न्यूनतम मात्रा में सामाजिक सुरक्षा का प्रावधान, जो किसी भी महत्वपूर्ण तरीके से गिग कार्य की स्थितियों को विनियमित (रेग्युलेट) करने का प्रयास नहीं करता है.
अपने कामकाज में श्रमिक संगठनों को किसी भी सार्थक तरीके से शामिल न करके इसने गिग वर्कर्स की सामूहिक कार्रवाई को मजबूत करने का अवसर भी गंवा दिया.
हालांकि, गिग वर्क से संबंधित किसी भी कानूनी सुरक्षा के अभाव में, श्रमिक प्रतिनिधित्व वाले एक बोर्ड की देखरेख या प्रबंधन में एग्रीगेटर्स से लगाए गए उपकर (सेस) की स्थापना, काफी महत्वपूर्ण है.
(जसून चेलट, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के सेंटर फॉर लेबर स्टडीज में रिसर्चर हैं. यह एक ओपीनियन पीस है, इसमें व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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