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संसद में बीजेपी हो रही 'मुस्लिम मुक्त', क्या संदेश देना चाहती पार्टी?

BJP के 400 सांसदों और 1300 से ज्यादा विधायकों में से कोई भी मुस्लिम नहीं

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बीजेपी पर मुस्लिम विरोधी पार्टी होने का ठप्पा लगा हुआ है और बीजेपी इससे मुक्त भी होना नहीं चाहती, शायद यही वजह है कि बीजेपी ने अपने आप को संसद में पूरी तरह 'मुस्लिम मुक्त' बना लिया है. 10 जून को होने वाले राज्यसभा चुनाव (Rajyasabha Elections) के लिए बीजेपी के उम्मीदवारों में एक भी मुसलमान नहीं है. बीजेपी ने राज्यसभा में मौजूद अपने तीन मुस्लिम सांसदों में किसी को भी दोबारा मौका नहीं दिया. मोदी सरकार में एकमात्र मुस्लिम चेहरा अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी (Mukhtar Abbas Naqvi) का कार्यकाल 7 जुलाई 2022 को खत्म हो रहा है, लेकिन उससे एक दिन पहले ही उन्होंने केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.

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नकवी के अलावा पूर्व विदेश राज्य मंत्री और जाने-माने पत्रकार रहे एमजे अकबर के साथ ही बीजेपी प्रवक्ता सैयद जफर इस्लाम का भी राज्यसभा से पत्ता साफ कर दिया गया है. अब राज्यसभा में बीजेपी का एक भी मुस्लिम सांसद नहीं होगा. बीजेपी लोकसभा में तो 2014 में ही मुस्लिम मुक्त हो गई थी. अब वह राज्यसभा में भी इसी राह पर है. अब संसद में बीजेपी पूरी तरह 'मुस्लिम मुक्त' हो गई है.

बीजेपी का यह कदम संसद में मुसलमानों की राजनीतिक ताकत को पूरी तरह खत्म करने वाला माना जा रहा है. देश के राजनीतिक फलक पर बीजेपी के उभरने के बाद संसद और विधानसभा में मुसलमानों की नुमाइंदगी तेजी से घटी है. रिकॉर्ड बताते हैं कि सिर्फ संसद ही नहीं बल्कि बीजेपी ने तमाम राज्यों की विधानसभाओं में खुद को 'मुस्लिम मुक्त' कर रखा है

बीजेपी के 400 सांसदों और 1300 से ज्यादा विधायकों में एक भी मुसलमान नहीं

हाल ही में कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़े फख्र के साथ बीजेपी की ताकत का बखान किया था. उन्होंने बताया था कि बीजेपी की देश के 18 राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं. बीजेपी के पास दोनों सदनों में कुल मिलाकर 400 सांसद हैं. देश भर की के राज्यों की विधानसभाओं में 1300 से ज्यादा विधायक हैं. अगर संसद और विधानसभाओं में सांसदों और विधायकों की मौजूदगी किसी पार्टी की असली ताकत है तो यह कहना अनुचित नहीं होगा कि बीजेपी के बहुमत वाली देश की संसद और विधानसभाओं में मुसलमानों की ताकत पूरी तरह शून्य हो चुकी है.

बीजेपी के 400 सांसदों और 1300 से ज्यादा विधायकों में एक भी मुसलमान नहीं है. संसद और विधानसभाओं में मुसलमानों की नुमाइंदगी के सवाल पर बीजेपी के बड़े-बड़े नेताओं की ज़ुबान सिर जाती है. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या यही 'सबका साथ, सबका विकास' है? ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर बीजेपी को संसद में पूरी तरह 'मुस्लिम मुक्त' करके 'सबका साथ, सबका विकास' का नारा देने वाले पीएम मोदी आख़िर क्या संदेश देना चाहते हैं?

लिहाज का पर्दा भी हटा दिया पीएम मोदी ने

2014 में केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद बीजेपी का मुस्लिम विरोधी रूप और भी खुलकर सामने आया है. हर लोकसभा और विधानसभा चुनाव के वक्त बीजेपी से पूछा जाता है कि उसने कितने मुसलमानों को टिकट दिया? तो उस पर बीजेपी के नेताओं के तर्क बड़े बचकाना होते हैं.

लोक दिखावे के लिए बीजेपी लोकसभा में तो 2-4 टिकट देती रही है. इक्का-दुक्का लोगों को राज्यसभा भी भेजती रही है लेकिन अब उसने लिहाज का यह पर्दा भी पूरी तरह हटा दिया है.

क्या बीजेपी यह साबित करना चाहती है कि मुसलमान विधानसभा और लोकसभा में भेजे जाने लायक नहीं हैं. मोदी समेत बीजेपी के कई बड़े नेता कई मौके पर कह चुके हैं कि बीजेपी मुसलमानों को लोकसभा और विधानसभा का टिकट इसलिए नहीं देती कि उनके जीतने की संभावनाएं बहुत कम होती हैं. बीजेपी नेता यह भी दावा करता है कि बीजेपी की सरकारों में जनकल्याणकारी योजनाओं में हिस्सेदारी देने के मामले में धर्म के आधार पर मुसलमानों के साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं बरता जाता.

क्या होगा मुख्तार अब्बास नकवी का?

राज्यसभा से पत्ता साफ होने के बाद मोदी सरकार में एकमात्र मुस्लिम चेहरा अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी के भविष्य को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं. उनका राज्यसभा कार्यकाल 7 जुलाई को खत्म हो रहा है. उन्हें रामपुर लोकसभा सीट से भी टिकट नहीं मिला. ऐसी सूरत में उन्हें संगठन में बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है.

आगे चलकर किसी राज्य का राज्यपाल भी बनाया जा सकता है. उनकी जगह बीजेपी अल्पसंख्यक मामलों का मंत्री किसे बनाएगी? इसे लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. क्योंकि संसद के दोनों सदनों में ही उसके पास कोई मुस्लिम सांसद नहीं है. लिहाजा ऐसे में सिख, बौद्ध, जैन या ईसाई समुदाय से किसी को उनकी जगह मंत्री बनाया सकता है.

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क्या किसी प्रबुद्ध मुस्लिम को मनोनीत करेगी बीजेपी?

बीजेपी प्रवक्ता सैय्यद जफर इस्लाम का कार्यकाल चार जुलाई और एम जे अकबर का 29 जून को समाप्त हो गया.

अभी राष्ट्रपति की ओर से मनोनयन की श्रेणी में सात जगह खाली हैं. लेकिन इस श्रेणी में इन दोनों का ही राज्यसभा में वापसी करना नामुमकिन है. जफर इस्लाम तो इस श्रेणी के लिए किसी भी तरह से उपयुक्त नहीं हैं. एमजे अकबर वरिष्ठ पत्रकार होने के नाते इस श्रेणी में आ सकते थे. लेकिन कई महिला पत्रकारों की तरफ से उन पर लगे यौन शोषण के गंभीर आरोपों के चलते इस श्रेणी में उनका मनोनयन होगा, ऐसा नहीं लगता. इन्हीं आरोपों के चलते पूर्व विदेश राज्य मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था.

ऐसे में सवाल है कि क्या बीजेपी किसी प्रबुद्ध मुस्लिम चेहरे को मनोनयन के रास्ते राज्यसभा लाएगी? राज्यसभा में मुसलमानों की नुमाइंदगी का संदेश देने के मकसद से बीजेपी या कदम उठा भी सकती है. हालांकि इसकी संभावनाएं भी कम ही लगती हैं.

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लोकसभा में पहले से है बीजेपी 'मुस्लिम मुक्त'

लोकसभा में बीजेपी का पहले से ही 'मुस्लिम मुक्त' है. पिछले दो लोकसभा के चुनाव में उसका एक भी मुस्लिम सांसद नहीं जीता. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने छह मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे. लेकिन वे सभी हार गए थे.

पिछली बार बीजेपी ने लोकसभा चुनाव जीतने की क्षमता रखने वाले सैयद शाहनवाज हुसैन को टिकट नहीं दिया था. वो बिहार की भागलपुर सीट से 2006 में उपचुनाव और 2009 में आम चुनाव जीते थे. इसी सीट से 2014 में हुए चुनाव हार गए थे. 2019 में बीजेपी ने वह सीट बंटवारे में जनता दल यूनाइटेड को दे दी थी. शाहनवाज हुसैन 1999 में किशनगंज से चुनाव जीते थे लेकिन 2004 में हार गए थे.

मौजूदा लोकसभा में एनडीए में केवल एक मुस्लिम सांसद है. खगड़िया से महबूब अली कैसर LJP के टिकट पर जीत कर आए हैं. पिछली लोकसभा में भी वह एनडीए की तरफ से अकेले मुस्लिम सांसद थे. पिछली बार उन्हें हज कमेटी का चेयरमैन बनाया गया था.

तीन दशकों में पहली बार संसद में बीजेपी का कोई मुस्लिम सांसद नहीं

तीन दशकों में यह पहला मौका है जब संसद के दोनों सदनों में से किसी में भी बीजेपी का एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है. 1989 के बाद से लगातार एक न एक सदन में बीजेपी का एक मुस्लिम सांसद जरूर रहा है. 1998 से 2009 तक हर लोकसभा चुनाव में बीजेपी का एक सदस्य जीतता रहा है. 1984 के लोकसभा चुनाव में तो बीजेपी महज 2 सीटों पर सिमट गई थी.

लेकिन 1989 में हुए चुनाव में बीजेपी को 86 सीटें मिली थीं. इनमें से मध्यप्रदेश की बैतूल सीट से मोहम्मद आरिफ बेग बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीते थे. बीजेपी के टिकट पर जीतने वाले वह पहले मुस्लिम सांसद थे.

उनके बाद बीजेपी के टिकट पर मुख्तार अब्बास नकवी और सैयद शाहनवाज हुसैन लोकसभा का चुनाव जीते हैं. आरिफ बेग 1991 तक लोकसभा में बीजेपी के सदस्य रहे.1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने किसी मुसलमान को लोकसभा का टिकट नहीं दिया था.

1998 से 2009 तक हर लोकसभा में रहा एक मुस्लिम सांसद

1998 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 2 मुसलमानों को टिकट दिया था. उत्तर प्रदेश की रामपुर सीट से मुख्तार अब्बास नकवी को और बिहार के किशनगंज सीट से सैयद शाहनवाज हुसैन को. शाहनवाज हुसैन हार गए थे. मुख्तार अब्बास नकवी जीत कर लोकसभा में पहुंचे थे. वाजपेई के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में वह सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री बने थे. 1999 का चुनाव नकवी हार गए थे. लेकिन इस बार सैयद शाहनवाज हुसैन किशनगढ़ से जीतकर लोकसभा पहुंचे थे. वाजपेई सरकार में वह मंत्री बने.

हालांकि 2004 में शाहनवाज हुसैन किशनगढ़ सीट से चुनाव हार गए थे लेकिन 2006 के उपचुनाव में वह बिहार के भागलपुर सीट से जीत कर आए और 2009 में भी उन्होंने इस सीट पर दोबारा जीत दर्ज की लेकिन 2014 में वह चुनाव हार गए थे. इस तरह 1998 से 2009 तक बनी हर लोकसभा में बीजेपी का एक मुस्लिम सांसद मौजूद रहा था. 2014 में बीजेपी के मुस्लिम सांसद की मौजूदगी का सिलसिला टूटा तो अब 2022 में राज्यसभा में यह सिलसिला टूट गया है.

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बीजेपी ने अब तक 5 मुस्लिमों को भेजा राज्यसभा

बीजेपी ने 1990 में सिकंदर बख्त को राज्यसभा भेजा था. बीजेपी की तरफ से राज्यसभा में भेजे गए पहले मुस्लिम सदस्य थे. 1996 में उन्हें दोबारा राज्यसभा भेजा गया. 2002 तक उन्होंने के दो कार्यकाल पूरे किए. 2002 राज्यसभा से रिटायर होने के बाद उन्हें केरल का राज्यपाल बनाया गया था. सिकंदर बख्त के बाद 2002 में मुख्तार अब्बास नकवी को झारखंड से राज्यसभा भेजा गया.

2010 में नकवी को दूसरी बार उत्तर प्रदेश से राज्यसभा भेजा गया और 2016 में तीसरी बार फिर झारखंड से राज्यसभा भेजा गया.

इसके अलावा एक और नाम हैं. नजमा हेपतुल्ला. साल 2004 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नजमा कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुईं. बाद में उन्हें भी राज्यसभा भेजा गया. 2016 में मणिपुर के राज्यपाल बनने तक वो राज्यसभा की सदस्य रहीं. इस बीच 2014 से 16 तक वह मोदी सरकार में अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री भी रहीं.

एमजे अकबर पत्रकारिता छोड़कर 2014 में बीजेपी में शामिल हुए थे. 2016 में उन्हें राज्यसभा भेजा गया और विदेश राज्य मंत्री भी बनाया गया. लेकिन 'मी टू अभियान' के तहत कई महिला पत्रकारों के उन पर यौन शोषण का आरोप लगाने के बाद उन्हें मंत्री पद छोड़ना पड़ा था. सैयद जफर इस्लाम को भी करीब 2 साल पहले राज्यसभा भेजा गया था. इन दोनों का ही अब राज्यसभा से पत्ता साफ हो चुका है.

1990 में सिकंदर बख्त से लेकर अब बीजेपी प्रवक्ता सैयद जफर इस्लाम तक अपने कुल 5 नेताओं को बीजेपी ने राज्यसभा भेजा है. तीन दशकों तक लगातार राज्यसभा में कोई ना कोई बीजेपी का मुस्लिम सदस्य रहा है. लेकिन अब यह सिलसिला टूट गया है.

अब अहम सवाल यह है कि 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास' नारे को अपनी सरकार का मूल मंत्र बनाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौर में बीजेपी संसद में पूरी तरह 'मुस्लिम मुक्त' रहेगी या फिर पार्टी की तरफ से देश की दूसरी सबसे बड़ी धार्मिक आबादी की नुमाइंदगी करने वाला कोई संसद के किसी सदन का मुंह भी देखेगा? इस सवाल का जवाब ढूंढना है इसलिए भी जरूरी है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश में मुसलमानों के साथ हो रहे हैं बर्ताव को लेकर काफी चर्चा हो रही है और इसे देश की छवि पर बट्टा लग रहा है.

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