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Ram Mandir: भारत को अल्पसंख्यकों पर ‘ज्ञान’ देने से पहले पाकिस्तान अपने अंदर झांके

अंतरराष्ट्रीय समुदाय चरमपंथी धार्मिक सोच को प्रोत्साहित करने के पाकिस्तान के अपने रिकॉर्ड से अच्छी तरह वाकिफ है.

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यह भारतीय सोच में पाकिस्तान (Pakistan) के कम होते प्रभाव का संकेत है कि भारतीय मीडिया ने 22 जनवरी को राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा (Ram Mandir Pran Pratishtha) पर पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय (Pakistan Foreign Ministry) और उस देश के मीडिया के बयानों को थोड़ी भी तरजीह नहीं दी.

विदेश मंत्रालय (MEA) ने अपने पाकिस्तानी समकक्ष के फिजूल बयान पर तीन दिन बाद जवाब दिया और कहा, "यह पाकिस्तान का झूठ फैलाने और भारत के खिलाफ दुष्प्रचार का नया हथकंडा है. पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान लंबे समय से आतंकवाद, संगठित अपराध और गैरकानूनी गतिविधियों का अड्डा रहा है."

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अयोध्या में राम मंदिर पर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया

राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने कुछ इस तरह से बयान जारी किया, "पाकिस्तान भारतीय शहर अयोध्या में बाबरी मस्जिद की जगह पर 'राम मंदिर' के निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा की निंदा करता है."

इस बयान में भारतीय न्यायपालिका की आलोचना की गई और इस बात पर भी जोर दिया गया कि मंदिर का निर्माण 'भारत में बढ़ते बहुसंख्यकवाद' और मुसलमानों के 'हाशिए पर' होने की ओर इशारा करते है.

पाकिस्तान ने कूटनीतिक तौर पर असाधारण भाषा का इस्तेमाल करते हुए यह दावा किया कि राम मंदिर "आने वाले समय में भारतीय लोकतंत्र के चेहरे पर धब्बा" की तरह बना रहेगा.

पाकिस्तान ने यह भी दोहराया कि वह अगस्त 2019 से कहता आ रहा है कि 'हिंदुत्व की बढ़ती लहर' धार्मिक सद्भाव और क्षेत्रीय शांति के लिए एक गंभीर खतरा है.'

पाकिस्तानी बयान में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से "भारत में बढ़ते इस्लामोफोबिया, अभद्र भाषा और हेट क्राइम का संज्ञान लेने" का आह्वान किया गया. पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र से भारत की इस्लामी विरासत की हिफाजत के लिए कदम उठाने का भी आह्वान किया.

आखिर में पाकिस्तान ने भारत से "मुसलमानों और उनकी इबादद करने वाली जगहों सहित धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने" का आह्वान किया.

पाक की निंदा का नहीं पड़ा कोई असर

दुनिया का कोई भी महत्वपूर्ण देश राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा पर पाकिस्तान की आलोचना को तव्वजो नहीं देगा. उनके लिए यह मुद्दा भारत का आंतिरिक मामले के अंतर्गत आता है.

हालांकि अंतरराष्ट्रीय लिबरल मीडिया के एक धड़े ने भारत की भविष्य की राजनीतिक दिशा के लिए राम मंदिर के होने वाले असर पर टिप्पणी की है, लेकिन इन टिप्पणियों का पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय या वहां की मीडिया से कोई सरोकार नहीं है.

अंतरराष्ट्रीय समुदाय अच्छी तरह जानता है कि चरमपंथी सोच को शह देने और 'जिहाद' की आड़ में आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला पाकिस्तान दूसरे देशों पर उंगली उठाने की स्थिति में भी नहीं है.

फैक्ट यह है कि पाकिस्तान का मूलभूत सिद्धांत दो-राष्ट्र सिद्धांत (Two Nation Theory) ने अंग्रेजों के जाने पर गैर-सांप्रदायिक राष्ट्रयता के गठन और भारत को 'एकजुट' छोड़ने की संभावनाओं को खत्म कर दिया था.
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पाकिस्तान में धार्मिक चरमपंथ की प्रचार

मुस्लिम लीग और ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के एक धड़े ने इस विचार को बढ़ावा दिया कि हिंदू और मुसलमान न केवल अलग-अलग बल्कि 'परस्‍पर विरोधी' भी हैं जो एक देश में शांति से नहीं रह सकते थे. इस वजह से मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने मार्च 1940 में लाहौर में एक अलग देश पाकिस्तान की मांग की थी.

इसके बाद जिन्ना और उनके ब्रिटिश सहयोगियों ने भारत की एकता को बनाए रखने की हर कोशिश को बेकार करने की ठान ली. इसके बाद पाकिस्तान बना और उसने 1956 में एक इस्लामी संविधान बनाया और अपनाया.

उस संविधान और उसके बाद के संविधान ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के खिलाफ खुले तौर पर भेदभाव किया है.

धार्मिक भावना पनपने के साथ-साथ ये भी खतरा रहता है कि वहां धर्म के नाम पर सरकार चलाई जाने लगती है. इसके अलावा धर्म के नाम पर चलने वाली सरकार या व्यवस्था ज्यादा से ज्यादा चरमपंथी बन जाते हैं. पाकिस्तान में भी ऐसा ही हुआ है.

पाकिस्तान में इन घटनाक्रमों को उकसावा देने वाले जनरल मुहम्मद जिया-उल-हक थे. उन्होंने साल 1977 में तख्तापलट किया और 1980 के दशक की शुरुआत में निजाम-ए-मुस्तफा की शुरुआत की. निजाम-ए-मुस्तफा के आपराधिक कानूनों में शरिया कानून की झलक मिलती थी.

मसलन सजा के तौर पर सार्वजनिक रूप से कोड़े मारने की शुरुआत की गई. इससे भी बुरी बात यह है कि जिया-उल-हक ने ईशनिंदा कानून में बदलाव करते हुए उन लोगों के लिए मौत की सजा अनिवार्य कर दी, जिन्हें इस्लाम के पैगंबर और इस्लामी मान्यताओं का अपमान करने के लिए दोषी ठहराया गया था.

इन कानूनों के तहत हजारों लोगों पर झूठे आरोप मढ़ दिए गए. झूठे आरोपों की वजह से अल्पसंख्यकों को भीड़ द्वारा हत्या करने के कई मामसे सामने आने लगे या फिर उनकी संपत्तियों का तबाह कर दिया जाने लगा.
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पाकिस्तान का क्रूर ईशनिंदा कानून अल्पसंख्यकों को करता है टारगेट

एक सबसे गंभीर मामला एक श्रीलंकाई एग्जीक्यूटिव प्रियंथा कुमारा का था. वह एक पाकिस्तानी फर्म में काम कर रही थीं. 2021 में उन्हें ईशनिंदा के झूठे आरोप में कंपनी के कामगारों ने पीटा और जला दिया.

इससे पहले 2011 में पाकिस्तान के पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सलमान तासीर को उनके अंगरक्षक मुमताज कादरी ने मार डाला था, क्योंकि तासीर एक गरीब ईसाई महिला से मिले थे जिस पर ईशनिंदा का झूठा आरोप लगाया गया था.

कादरी का मानना था कि तासीर ने गैर-इस्लामी काम किया है. जब कादरी को अदालत में पेश किया गया तो वकीलों ने उस पर गुलाब की पंखुड़ियां बरसाईं. आखिरकार कादरी पर मुकदमा चलाया गया और उसे हत्या का दोषी पाया गया और 2016 में फांसी दे दी गई.

इस जघन्य अपराध के लिए निंदा किए जाने के बजाय मुमताज कादरी आज भी पाकिस्तान में कई लोगों के लिए एक नायक की तरह है और इस्लामाबाद से केवल 25 किलोमीटर दूर उसकी कब्र लाखों पाकिस्तानियों के लिए तीर्थस्थल की तरह बन गई है.

किसी भी राजनीतिक पार्टी या सेना ने कादरी की आलोचना नहीं की. वो भी उस व्यक्ति की हत्या के लिए जिसके रक्षा की जिम्मेदारी खुद उस पर थी.

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अल्पसंख्यकों के साथ पाकिस्तान के व्यवहार में पाखंड

पाकिस्तान खुद इस्लामी आस्था के नाम पर धार्मिक चरमपंथ के बढ़ते दबदबे से गुजर रहा है. ऐसी स्थिति में धार्मिक अल्पसंख्यकों हिंदुओं और ईसाइयों दोनों की स्थिति दयनीय है.

सिंध में युवा हिंदू लड़कियों को अगवा किए जाने की घटनाएं आम हैं. उन लड़कियों को इस्लाम धर्म कबूल कराया जाता है और शादी के लिए मजबूर किया जाता है. इन मामलों पर प्रशासन मौन है और कुछ नहीं कर रहा है.

सिख समुदाय इकलौता अल्पसंख्यक है जिसे पाकिस्तान कुछ महत्व देता है. ऐसा करने की वजह भारतीय सिखों के बीच भारतीय सरकार या भारत के प्रति अलगाव की भावना पैदा करना है.

हालांकि ये साफ है कि पाकिस्तान को इस कायराना मकसद में कामयाबी मिलने के कोई आसार नहीं है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि वह अपनी कोशिशें बंद कर देगा.

दरअसल, राम मंदिर पर दिए गए पाकिस्तान के बयान के आखिरी वाक्य में सभी अल्पसंख्यकों का जिक्र है. ऐसा करने के पीछे का मकसद पश्चिम के ईसाई समूहों का समर्थन हासिल करना है, वहीं सिखों के नाम लिए बगैर उसे भी शामिल करना है.

जबकि पाकिस्तान वर्तमान में अपने घरेलू राजनीतिक मुद्दों में मशरूफ है. पाकिस्तान में 8 फरवरी को चुनाव होने हैं और देश की अर्थव्यवस्था ICU में है. ऐसे में भारतीय अधिकारियों को इसका ख्याल रखना होगा कि भारत के खिलाफ वहां (पाकिस्तान) राम मंदिर का इस्तेमाल चुनाव प्रचार के दौरान न हो.

(लेखक विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव (पश्चिम) हैं. उनका ट्विटर हैंडिल @VivekKatju है. यह एक ओपिनियन पीस है, और इसमें व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए ज़िम्मेदार है.)

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