रूस-यूक्रेन संकट (Russia-Ukraine crisis) को लेकर दुनिया के बड़े लीडर्स अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden), ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन (Boris Johnson), जर्मनी के चांसलर ओलाफ स्कोल्ज सभी कह रहे हैं कि पुतिन यूक्रेन पर बड़ा हमला करना चाहते हैं. पश्चिम के और भी राष्ट्र प्रमुख पुतिन (Putin) के विचारों को लेकर ऐसे ही दावे कर रहे हैं. ये सभी इस तरह से बयानबाजी कर रहे हैं मानो सभी ने पुतिन का दिमाग पढ़ लिया है कि वह आखिर चाहते क्या हैं. इस समय दुनिया के आगे यही बड़ा सवाल है कि पुतिन आखिर चाहते क्या हैं.
अभी पिछले बुधवार की ही बात है जब अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने दावा किया था कि रूस इस दिन यूक्रेन पर हमला करने वाला है. जैसे कि वे पुतिन की सारी योजना जानने के बाद ही यह उजागर कर रहे हों. लेकिन रूस ने ऐसा कुछ नहीं किया. इसकी बजाय खबरें आना शुरू हो गई कि रूस ने यूक्रेन की सरहद से अपने कुछ टैंक हटाने शुरू कर दिए हैं.
हमले की बात से मना करते हुए भी हमले की तैयारी करते रहने की पुतिन की इस रहस्यमयी साइलेंट प्लानिंग से सभी खीझे और सहमे हुए हैं. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने तो औपचारिक बयान देकर यह कहा तक भी है कि, 'मैं नहीं जानता कि रूस के राष्ट्रपति क्या चाहते हैं, उनके मन की बात जानने मैं उन्हें मुलाकात का प्रस्ताव देता हूं.'
तो सवाल उठता है कि पुतिन आखिर चाह क्या रहे हैं, क्या वे पीछे हटने का सोच रहे हैं? या फिर किसी विध्वंसक योजना को अंजाम देने की फिराक में हैं?
विगत मंगलवार को जर्मनी के चांसलर ओलाफ़ स्कोल्ज़ के साथ मॉस्को में एक प्रेस वार्ता के समय पुतिन ने कहा था कि रूस जंग नहीं चाहता. उसने बातचीत की पेशकश की है. लेकिन अभी विगत दिन ही हमने बॉर्डर पर रूस का शक्ति प्रदर्शन देखा, जब रूस ने अपनी तीन नई न्यूक्लियर मिसाइलों को लॉन्च किया.
हाइटेक हाइपरसोनिक, क्रूज और परमाणु बैलिस्टिक मिसाइलों के इस परमाणु अभ्यास को संचालित करने के निर्देश खुद पुतिन क्रेमलिन वॉररूम से दे रहे थे. उन्होंने अपनी इन वॉर मॅान्गरिंग तस्वीरों को प्रसारित भी करवाया. अब ऐसे में हम क्या समझें कि आखिर पुतिन सोच क्या रहे हैं.
जब विगत बुधवार को यूक्रेन पर हमला नहीं हुआ तो उस दिन क्रेमलिन की प्रवक्ता मारिया जाखारोवा ने अमेरिका और ब्रिटेन का मजाक उड़ाया और कहा कि “यह दिन इतिहास में एक ऐसे दिन के तौर पर याद रखा जाएगा, जब पश्चिमी जंग का प्रोपेगैंडा नाकाम, अपमानित और नष्ट हो गया, क्योंकि उस दिन एक भी गोली नहीं चली.”
अमेरिका कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाएगा?
अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने अब तक इस बात की पुष्टि नहीं की है कि रूसी सैनिक वापस लौट रहे हैं. यह ऐलान करने के बावजूद कि अमेरिका यूक्रेन में सैनिक नहीं भेजेगा, बाइडेन ने कहा कि यह अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा लेकिन “अमेरिका और हमारे सहयोगी, साथी डटकर जवाब देंगे.”
बाइडेन प्रशासन ने कहा है कि बेशक वह रूसी हमले से यूक्रेन को बचाने के लिए या हमला होने की स्थिति में वहां फंसे अमेरिकियों को बचाने के लिए सेना नहीं भेजेगा, लेकिन वह कड़े आर्थिक प्रतिबंध जरूर लगाएगा. हालांकि बहुतों का अंदाजा है कि ऐसा शायद ही हो.
अमेरिकी मिसाइलों से रूस को है डर
दूसरी तरफ पुतिन की ओर से बयान आया था कि रूस शांतिपूर्ण तरीके से अपना मकसद पूरा करेगा- वह नाटो के फैलाव को रोकना चाहता है और चाहता है कि वह पूर्वी यूरोप में अपनी मौजूदगी को कम करे.
लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि इसके लिए सिर्फ रूस की पहल काफी नहीं. उसे अमेरिकी मिसाइल सिस्टम्स की खास तौर से चिंता है. उनके रडार पोलैंड और रोमानिया में तैनात हैं. रूस को शक है कि इन मिसाइल सिस्टम्स के निशाने पर रूस है दूसरी तरफ अमेरिका का दावा है कि वे एंटी बैलिस्टिक मिसाइलें हैं और उन्हें ईरान की मिसाइलों के निपटने के लिए तैनात किया गया है.
रूस ने अब तक अमेरिका और नाटो के पिछले महीने भेजे लिखित प्रस्तावों का औपचारिक जवाब नहीं दिया है. उसने 10 पेज का नोट जरूर बनाया है लेकिन न तो उसे भेजा है और न ही उसे सार्वजनिक किया है.
वैसे कुछ दिन पहले अमेरिका के नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर जेक सुलिवन ने कहा था कि रूस “अब कभी भी हमला कर सकता है.” मंगलवार की टिप्पणियों से लगता है कि रूस ने सुलह करने का फैसला किया है. इसके बावजूद कि पश्चिमी देश दावा कर रहे हैं कि असल में, 1,30,000 सैनिकों के दस्ते की मदद करने के लिए अतिरिक्त टुकड़ियां आगे बढ़ रही हैं.
इरादा क्या है, वही बड़ी बात है
पश्चिमी खूफिया एजेंसियों का कहना है कि वे रूसी सेना के हमले की विस्तृत योजना से वाकिफ हैं. लेकिन यह कोई असामान्य बात नहीं. सेनाएं अचानक होने वाली घटनाओं के लिए तैयारियां करती ही हैं.
फिर रूस के लिए पश्चिम का हमला हमेशा से चिंता का सबब रहा है.
रूस की ताकत के बारे में हम जानते हैं. उसने यूक्रेन की सरहद पर सैन्य जमावड़ा किया है. लेकिन इस बात के बारे में भी सोचा जा चाहिए कि उसका इरादा क्या है. पश्चिम को उसके इरादे के बारे में कुछ नहीं पता. इसके बारे में सिर्फ एक शख्स जानता है- वह हैं व्लादिमिर पुतिन. अमेरिका का अनुमान है कि यूक्रेन बॉर्डर पर रूस ने 1.70 लाख से 1.90 लाख सैनिक तैनाती कर रखे हैं.
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन तो मानते हैं कि रूस 1945 के बाद से ही यूरोप में किसी बड़ी जंग की खुफिया तैयारी कर रहा है. बहुत संभव है कि पुतिन के समय में उसकी यह योजना का समय अब आ पहुंचा हो.
अब तक यह साफ हो जाना चाहिए कि यूक्रेन के सिर पर बंदूक तानकर पुतिन को बहुत फायदा होगा. लेकिन अगर यह बंदूक चल गई तो वह होगा, जिसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता. और इसका सबसे ज्यादा नुकसान भी रूस को होगा.
अब तक पुतिन ने कूटनीतिक खेल बहुत शातिराना तरीके से खेला है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन दिसंबर 2021 में पुतिन के साथ वर्चुअल समिट कर चुके हैं और एक और वार्ता का वादा भी है. कई यूरोपीय नेता, अभी चांसलर स्कोल्ज़ और इससे पहले फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों मॉस्को का दौरा कर चुके हैं. बुधवार को इटली के विदेश मंत्री क्रेमलिन में थे.
पुतिन को चीन का जबरदस्त समर्थन
पुतिन को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का जबरदस्त समर्थन हासिल है. इस महीने एक संयुक्त बयान में उन्होंने कहा था कि चीन “नाटो के फैलाव का विरोध करता है.” दोनों ने पश्चिम से कहा था कि उसे “शीत युद्ध की मानसिकता को छोड़ देना चाहिए” और दोनों देशों के बीच का रिश्ता “सीमाओं से परे” है.
बाइडेन प्रशासन के मुताबिक, चीन देखना चाहता है कि यूक्रेन में रूस की चुनौती पर अमेरिकी जवाब क्या होगा ताकि यह देखा जा सके कि ताइवान में ऐसे ही खतरे पर अमेरिका कैसी प्रतिक्रिया देगा.
पुतिन की कार्रवाई ने नाटो में विभाजन पैदा किया है. सोवियत संघ के मातहत रहने वाले देश और जो अब नाटो के सदस्य हैं, जैसे पोलैंड और बाल्टिक गणराज्य, वे चाहते हैं कि यूक्रेन भी उसका सदस्य बन जाए. लेकिन जर्मनी और फ्रांस जैसे बड़े देश इसे लेकर बहुत उत्साहित नहीं. यहां तक कि अमेरिका और ब्रिटेन, जिन्होंने हमले की चेतावनी दी थी, भी बड़े युद्ध को लेकर परेशान हैं.
रूस ने अपनी बात कह दी है
हमें ध्यान देना चाहिए कि जो बाइडेन और बोरिस जॉनसन जैसे पश्चिमी नेता जोकि जंग को लेकर हो-हल्ला मचा रहे हैं, अपने अपने देशों में उलझन में हैं और रूस की मुखालफत करना उनके लिए फायदे का सौदा है. बाइडेन अब तक अफगानिस्तान के झमेले से निकल नहीं पाए हैं. इसके अलावा वह कई घरेलू पचड़ों में भी फंसे हुए हैं जिससे उनकी छवि दागदार हो रही है. दूसरी तरफ ‘पार्टीगेट’ ने बोरिस जॉनसन की सियासी जिंदगी में तूफान मचाया हुआ है. हैरानी की बात नहीं कि वह यूक्रेन पर ऐसा कड़ा रुख अपनाए हुए हैं.
अगर पुतिन अभी पीछे हटते हैं तो भी वह विजेता बने रहेंगे. उन्होंने नाटो के भीतर मतभेदों को उजागर किया है और साथ ही नाटो के फैलाव की वजहों पर बहस छेड़ी है. उन्होंने पश्चिम को मजबूर किया है कि उन्हें संजीदगी से लिया जाए. रूस शुरू से ही इस बात की शिकायत करता रहा है कि नाटो पूरब की तरफ बढ़ रहा है लेकिन उसकी बात को अनदेखा किया गया है. लेकिन इस हरकत से शायद उसकी बात सुनी जाए.
(लेखक, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली के डिस्टिंग्विश्ड फेलो हैं. यह एक ओपनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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