जब मैं करीब 4 साल पहले यूक्रेन (Ukraine) गया तो उस समय डॉनबास इलाके में संघर्ष का माहौल कुछ-कुछ उबल रहा था. पर्यटक इससे दूर थे, इसलिए मेरे पास कीव के आकर्षण का लुत्फ उठाने के लिए पर्याप्त समय था. मैंने इतिहास और संस्कृति से भरपूर एक ऐसे देश को देखा, जहां किसी सोच में डूबे लगने वाले कारपेथियन पहाड़ों, असीम जंगल, घास के मैदान और खून और आंसुओं की अनवरत बाढ़ से सनी नदियों की बहुतायत है.
यह देश जबरदस्त मानवता वाले लोगों की रिहाइश है, जो करीब तीन हजार साल से लगातार युद्ध, हमले और शोषण को झेलते आए हैं. साल 1991 में सोवियत संघ से अलग हुआ यूक्रेन एक गौरवशाली देश था, जो सुनहरे गुंबद वाले चर्च और पारंपरिक ईसाईयत के रंगों में रंगा था.
आजादी के बाद यूक्रेनियों का मुश्किलों से सामना शुरू हो गया. मेरी गाइड यूलिया बताती हैं “ मेरे माता पिता की सभी बचत रूबल में थी. यह करेंसी जब क्रैश हुई तो सब खत्म हो गया. करीब एक साल से भी ज्यादा वक्त तक हमारे पास पर्याप्त खाना नहीं होता था. मैं कम्युनिस्टों और रूसियों से नफरत करती हूं. मॉस्को के अहंकारी लोग समझते हैं कि सिर्फ वो ही भाग्यवान हैं.’
अब 11 वीं सदी में चलते हैं
रूस को लेकर यूक्रेनियाईयों में दुर्भावना की शुरुआत 11वीं सदी से ही होती है. एक हजार साल से रिश्तों में खटास ने एक ही सांस्कृतिक जड़ों के होने के बाद भी दोनों पड़ोसी देशों के संबंध बिगाड़ दिए. साल 1019-1054 के दौरान यारस्लोव शासन के अधीन ‘किवीयाई रुस’ काफी विशाल था. कीव उस दौरान समृद्ध शहर था. इसकी तुलना में पेरिस भी फीका ही था. बुद्धिमान यारस्लाव ने अपने पांचों बेटों में बिना सोचे समझे इसका बंटवारा कर दिया और पांचों अपने सबसे बड़े भाई के संरक्षण में शासन करते थे. कीव पर ताजपोशी बड़े भाई की हुई.
साल गुजरने के बाद ये राजकुमार कीव से अपनी आजादी की मांग करने लगे. साल 1169 में यारस्लाव का महत्वाकांक्षी और ताकतवर परपोता (ग्रेट ग्रेट ग्रैंड सन ) एंड्रेई बोगोलिबुस्की, जो ब्लादिमीर-सुजदाल इलाके पर शासन करता था जो कि आज रूस कहलाता है , उसने कीव को अपनी ताकत से छीन लिया और दो दिन तक लूटपाट मचाता रहा.
वो कीव से सभी धार्मिक रिलिक्स अपनी राजधानी ब्लादिमीर ले गया. एंद्रेई अपने शासन क्षेत्र को बिल्कुल अलग पहचान देना चाहता था जो उसके वंशज कीवियन रुस से अलग हो. सुजडॉल-ब्लादिमीर आज के रूस की नींव बन गया. वहीं गैलिसिया-वोल्हिमिया जो आज का पश्चिमी यूक्रेन है वो आधुनिक यूक्रेन का आधार बना. तब से ही जार, कम्युनिस्ट शासक यूक्रेन की पहचान को मिटाना चाहते हैं और रूसी हार्टलैंड को बचाने के लिए बफर स्टेट बनाकर रखना चाहते हैं.
कैसे यूक्रेनी भाषा का गला घोंटा गया
एक के बाद एक जार के शासन में यूक्रेन पर सांस्कृतिक दमन चक्र चला और इससे यूक्रेनी भाषा के विकास को हतोत्साहित किया. यूक्रेनी भाषा के शेक्सपियर , तारस शेवचेनको को, जिन्होंने 1880 ईस्वी के मध्य में आधुनिक यूक्रेनी भाषा को कोडिफाई करने और साम्राज्यवादी रूस से अलग बनाने वाली जातीय राष्ट्रवाद की बात की, उन्हें रूस ने जेल में भेज दिया.
गुस्से से आगबबूला यूलिया ऐसा बताती हैं.
“ हमारे पास रूसियों को नापसंद करने के पर्याप्त ऐतिहासिक कारण हैं, हमारी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने की बजाय उन्होंने इसे मिटाना चाहा’यूलिया
आधुनिक काल में, दो विश्व युद्ध, स्टालिन जनित भयानक अकाल और चेर्नोबिल की तबाही ने यूक्रेनियाईयों में रूस को लेकर अलगाव पैदा कर दिया.
जमीन-किसान संघर्ष को एक करने की स्टालिन की मुहिम
यूक्रेनी काफी धार्मिक हैं. कम्युनिस्टों ने जब इसे अपने शासन में लिया तो उन्होंने सभी धार्मिक गतिविधि पर बैन लगा दिया, कई चर्च और मॉनेस्टरी को यह कहकर ढहा दिया गया कि उनका कोई ऐतिहासिक मूल्य नहीं है. बोल्शेविकों ने अधिकतर पवित्र चीजों को या तो बेच दिया या फिर यूक्रेनी जनता की भावना को चोट पहुंचाते हुए इसे मॉस्को और सेंट पीटसबर्ग ले गए.
1920 के आखिर में, रूसी क्रांति और लेनिन की मौत के बाद स्टालिन सोवियत यूनियन के निर्विवाद नेता बन गए. यूक्रेन के किसान गांवों से खदेड़े गए और उन्हें कंस्ट्रक्शन, डैम और पावर स्टेशन बनाने में झोंक दिया गया.
1929 के पतझड़ में स्टालिन ने जमीन से निजी स्वामित्व खत्म कर दिया. पुलिस अधिकारी और पार्टी के सदस्य गांव-गांव जाने लगे और किसानों को जमीन और जानवर छोड़ने और सामूहिक खेत अपनाने के लिए मजबूर किया गया.
धरपकड़ और संपत्ति जब्त किए जाने के डर से किसानों ने जानवरों तक को काट दिया. करीब 75000 विरोधी किसानों को साइबेरिया और कजाखस्तान भेज दिया गया. कुछ को तो जंगल ले जाकर मरने के लिए छोड़ दिया.
हजारों लोगों ने तो अपने खेत को छोड़कर शहरों का रुख कर लिया, वहां बेघर अनाथों की तरह रह रहे थे, जो कमजोर शरीर, फटे कपड़े और नंगे पांव आसानी से पहचाने जा सकते थे. सभी जगह पुलिस का पहरा रहता था. हालांकि सोवियत संघ के पास पर्याप्त भंडार था लेकिन भूखे यूक्रेन के लोगों को खाना देने की बजाए इसने अनाज पश्चिम में निर्यात कर पैसा कमाया. करीब 70 लाख लोग साल 1932 से 1934 के दौरान अकाल पीड़ित हो गए.
परिवार पर अकाल की दर्दनाक मार
यूलिया बताती हैं “मेरी दादी की बहन के दस बच्चे थे.वे इतने मजबूर हो गए कि किचन गार्डन में सब्जियों के अच्छे से पकने का भी इंतजार नहीं करते. वो उन्हें कच्चे ही खा जाते. यहां तक कि वो घास का सूप भी बनाकर पीते थे. उनके बच्चों में से 8 बेटियां भूख से मर गईं. गांव में कुत्ते, बिल्ली और पक्षियों को खाना आम बात थी.
मुझे बताया गया कि गांव में कुछ लोग इसलिए अफीम का नशा करने लगे कि वे इसकी नशीली बेहोशी में कुत्ते बिल्लियों को खा सकें. मेरी दादी की बहन बची जिंदगी में हर वक्त रोती रहती थीं. कभी कभी रोते-रोते उनका गला भर आता था. भूख से 9 बच्चों के मारे जाने की बात ने उनको बहुत रुलाया होगा.
गांव जला दिए, फैक्टरी तोड़ डालीं
कीव का होलोमोडोर मेमोरियल साल 2009 में खुला. स्टालिन के अत्याचार को यूक्रेन की राष्ट्रीय स्मृति में बनाए रखने के लिए मेमोरियल बनाया गया. रूस कैसे भूल सकता है कि जब नाजी जर्मनी ने जून 1941 में यूएसएसआर पर आक्रमण किया तो यूक्रेन भी उस हमले को भुगता. पूरा यूक्रेन और करीब 35 लाख रेड आर्मी जर्मनों के रहमों करम पर थे, जबकि पीछे हटते हुए रूस ने यूक्रेन को बर्बाद कर दिया.
पीछे हटते वक्त सब कुछ बर्बाद करने की नीति का पालन करते हुए उन्होंने कई गांव जला दिए, खेत तबाह कर दिए और 550 फैक्टरी तोड़ दीं और 35 लाख कुशल कामगारों को बर्बाद कर दिया.
द्वितीय विश्वयुद्ध से भी यूक्रेन बुरी तरह प्रभावित हुआ.. युद्ध से पहले सोवियत रिपब्लिक में रह रहे करीब चार करोड़ 17 लाख (41.7 मिलियन) आबादी में से 1945 में सिर्फ दो करोड़ चौहत्तर लाख (27.4 मिलियन) लोग जिंदा बचे. एक करोड चालीस लाख (14 मिलियन) लोग मारे गए.
युद्ध ने 720 यूक्रेनी शहरों, 28000 गांवों और 16,500 से ज्यादा इंडस्ट्रियल एंटरप्राइजेज, 18000 मेडिकल इंस्टीट्यूट, 33,000 स्कूल, यूनिवर्सिटी, कॉलेज और रिसर्च इंस्टीट्यूट और 33000 फार्म को बर्बाद कर दिया. फिर भी रूसी यूक्रेन के योगदान और कुर्बानी को मानते नहीं हैं. राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन अधिकारिक तौर पर कहते हैं कि सोवियत संघ, बिना यूक्रेन की मदद के भी द्वितीय विश्व युद्ध को जीत सकता था.
चेर्नोबिल और वर्कर डे परेड की यादें
26 अप्रैल 1986 को हुई चेर्नोबिल आपदा और इसका खराब प्रबंधन अभी भी यूक्रेन के लोगों को डराता है. चेर्नोबिल से 110 किलोमीटर दूर कीव बुरी तरह से प्रभावित हुआ. हादसे की खबर यूक्रेन से छिपाई गई. 1 मई को हवा ने अपनी दिशा बदल ली और रेडियो एक्टिव बादल 20 लाख आबादी वाले शहर कीव की तरफ आने लगे.
उस दिन इंटरनेशनल वर्कर डे परेड होनी थी. जिन यूक्रेनी अधिकारियों को खतरे के बारे में मालूम था, उन्होंने मॉस्को से अनुरोध किया कि कार्यक्रम रद्द किया जाए लेकिन मिखाइल गोर्वाचोव ने मना कर दिया. उन्होंने जोर दिया, शो जरूर चलना चाहिए. उन्हें दुनिया को दिखाना था कि सबकुछ कंट्रोल में है और रेडिएशन लीक से आबादी को कोई खतरा नहीं है.
यूक्रेन और बेलारूस की लाखों जनता पर रेडिएशन की मार पड़ी. डनिप्रो नदी पूरी तरह से प्रदूषित हो गई. इससे नदी पर आश्रित 30 करोड़ लोगों को पानी सप्लाई का सिस्टम बुरी तरह चरमरा गया. जंगल, दूध, फसल सभी जहरीले हो गए. प्रभावित इलाकों में रहने वाले बच्चों के बाल उड़ने लगे, किसी की भौहें तक साफ हो गईं.
बाद में जिन कई बच्चों का जन्म हुआ, उन पर तक इसका असर दिख रहा था. आधिकारिक तौर पर मौत का आंकड़ा सिर्फ 31 था लेकिन करीब 93000 तक मौतें रेडिएशन और जहर के असर से हुई. यूक्रेन के लोगों ने मॉस्को के साथ अपने रिश्ते पर सवाल खड़ने शुरू किए. गोर्बाचोव ने बाद में कहा कि ये चेर्नोबिल हादसा ही था जिसने सोवियत संघ को विघटन को करीब ला दिया.
कोई USSR में लौटना नहीं चाहता ..
एक बार सोवियत संघ की जकड़ से छूटने के बाद यूक्रेन के लोगों ने राष्ट्र निर्माण करना शुरू किया और अपने देश से सोवियत के अतीत को मिटाना शुरू कर दिया. 3,700 से ज्यादा लेनिन की मूर्तियां तोड़ी गईं. साल 2015 में एक कानून पास करके सभी कम्युनिस्ट प्रतीकों पर पाबंदी लगा दी गई. स्टालिन की डिजाइन को खत्म करने के लिए करोड़ों रुपए हेरिटेज होटल पर खर्च किए गए.
यूक्रेन की आबादी के 70 फीसदी पांरपरिक ईसाईयों ने यूक्रेन में पांरपरिक चर्च स्थापित करके खुद मॉस्को के असर से हटा लिया. जनवरी 2019 में इस्तांबुल के ऑर्थोडॉक्स चर्च के पोप the Ecumenical Patriarch ने यूक्रेन के चर्चों को मान्यता दे दी. इससे मॉस्को के साथ उनका चर्च का रिश्ता भी खत्म हो गया जो कि साल 1054 के बाद ईसाईयत में सबसे बड़ा अलगाव है. जब पूर्वी ऑर्थोडॉक्स चर्च और रोम के रास्ते जुदा हुए. यूक्रेन के राष्ट्रपति पेट्रो पोर्शनेको ने इसे बड़ी जीत बताया. "मॉस्को के दानवों पर ईश्वर-प्रेमी यूक्रेनी लोगों की महान जीत, बुराई पर अच्छाई की जीत, अंधेरे पर प्रकाश की जीत".
युवा यूक्रेन के लोग भ्रष्टाचार और मानवाधिकार के हनन वाले सोवियत संघ की विरासत से खुद को दूर रखना चाहते हैं और वो पश्चिमी यूरोप के साथ मिलने को बेताब हैं. वो ऐसा यूक्रेन चाहते हैं जहां लोकतंत्र का सम्मान, आजादी और कानून का शासन हो. कोई भी USSR में वापस नहीं जाना चाहता.
(अखिल बख्शी 'यूक्रेन: ए स्टोलन नेशन' किताब के लेखक हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो उनकाा समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)
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