ADVERTISEMENTREMOVE AD

पाकिस्तान में शाहबाज की ताजपोशीः शरीफ परिवार ने पाक की राजनीति में कैसे जड़ें जमाई?

नवाज शरीफ ने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भुट्टो की PPP– के साथ हाथ मिलाकर जीत के जश्न के बिना हालात को अपने पक्ष में मोड़ लिया है.

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

Pakistan Politics: कौन सोच सकता है कि चतुर नवाज शरीफ (Nawaz Sharif) का महान और अजेय पहलवान, ‘द ग्रेट गामा’ पहलवान के साथ कोई पारिवारिक रिश्ता भी हो सकता है? ये सच नहीं लगने वाली बात, तब सही साबित हुई, जब लोगों को पता चलता है कि नवाज शरीफ में नामवर रुस्तम-ए-हिंद का कोई DNA नहीं है, बल्कि इसके बजाय हकीकत यह है कि गामा पहलवान नवाज शरीफ की मरहूम बीवी कुलसुम नवाज शरीफ के नाना थे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

जहां तक नवाज के अपने जीन पूल का सवाल है, पाकिस्तान में ताकतवर शरीफ परिवार के कारोबारी ग्रुप के नाम इत्तेफाक (Ittefaq) या यूनिटी शब्द से एक बड़ा विरोधाभास जुड़ा है.

इत्तेफाक ग्रुप ने मुहम्मद शरीफ (नवाज और शहबाज के पिता) और छह दूसरे भाइयों के साथ शुरुआती सालों में बहुत अच्छी कारोबारी कामयाबी बढ़त हसिल की. बाद में उनकी सौ से ज्यादा संतानों के बीच कब्जे और लूट की स्वाभाविक लड़ाई में इत्तेफाक के साम्राज्य में फूट पड़ी और बंटवारा हो गया.

शरीफ परिवार पाकिस्तान की राजनीति में कैसे आगे बढ़ा?

इत्तेफाक के कारोबारी बंटवारे को एक तरफ छोड़ दें तो मुहम्मद शरीफ की संतानें निश्चित रूप से ज्यादा स्मार्ट थीं, और उन्होंने 80 के दशक के गंदे सियासी ‘सिस्टम’ में घुलना-मिलना शुरू कर दिया था.

लेकिन पाकिस्तान में राजनीति की मुश्किल जमीन पर कामयाबी की राह में शरीफ परिवार के सामने कड़ी चुनौतियां थीं, क्योंकि उनकी पारिवारिक साख में कुछ सामाजिक ‘खासियतें’ नदारद थीं– शरीफ परिवार कामयाब होने के लिए सिर्फ मौकों, संपर्कों और जोड़-तोड़ पर निर्भर था.

कश्मीरी मूल (अनंतनाग के बट) के नवाज शरीफ ने पाकिस्तान में दो मुख्य शक्ति केंद्रों पंजाब और पाकिस्तानी सेना का समर्थन हासिल करने के लिए ओढ़ी हुई पंजाबी पहचान और ‘सैन्य प्रतिष्ठान’ (हालांकि, शरीफ परिवार का किसी भी सैन्य परंपरा से कोई नाता नहीं था) से नजदीकी का सहारा लिया.

अपने नाम के आगे इज्जतदार संबोधन मियां जोड़ने से बहुसंख्यक धार्मिकता से नजदीकी से जुड़ गया– एक बिल्कुल सही जोड़ जिसने ‘कमतर’ शिया समुदाय से आगे भुट्टो खानदान के खिलाफ खड़ा होने का सुनहरा मौका दिया.

शरीफ बनाम भुट्टो: एक स्पष्ट विरोधाभास

पाकिस्तानी राजनीतिक परिदृश्य में हमेशा सामंती जमींदार परिवारों या वढेरों का कब्जा रहा है, जबकि शरीफ ‘नए पैसे’ वाले दिखावा पसंद नौसिखिए थे.

  • एक कट्टर प्रतिद्वंद्वी के तौर पर उन्होंने खुद को एक प्रतिरोधी मॉडल के रूप में ढाला. अगर भुट्टो शहरी और अभिजात्य थे, तो शरीफ अपनी जमीन से जुड़े थे और देश भर में उनकी लोकप्रियता थी. भुट्टो वामपंथी रुझान वाले थे, जबकि शरीफ दक्षिणपंथी रुझान वाले.

  • भुट्टो उदारवादी थे, शरीफ ने धार्मिक कट्टरता वाले देश में लोगों को जोड़ने के लिए ज्यादा रूढ़िवादी रास्ते को चुना. अगर भुट्टो का ‘सैन्य प्रतिष्ठान’ (जनरल अयूब, याह्या और जिया-उल-हक के साथ) के साथ लगातार टकराव रहा, तो शरीफ जिया-उल-हक के संरक्षण में फले-फूले.

  • शरीफ परिवार का शादियों का चुनाव एक खास ख्वाहिश को दर्शाता है, नवाज शरीफ की बेटी की शादी एक सैन्य अफसर कैप्टन सफदर अवान से हुई, और शहबाज शरीफ की शादी तहमीना दुर्रानी (‘माई फ्यूडल लॉर्ड’ की मशहूर लेखिका) से हुई.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

शहबाज ने हंटर-शर्ट्स और सजीले कपड़े पहनकर ब्राउन साहब वाली वेशभूषा अपनाई.

उनकी पार्टी का नाम पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (PML-N) है, जो अपने कामों और नाम में समानता की वजह से कायद-ए-आजम मुहम्मद अली जिन्ना की मुस्लिम लीग की याद दिलाती है. शरीफ अपनी देशी, सामाजिक और राजनीतिक कदमों से लगातार कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते गए.

नवाजः सबसे लंबे कार्यकाल वाले प्रधानमंत्री जो कभी भी अप्रासंगिक नहीं हुए

सबसे खास बात यह है कि शरिया पर आधारित जनरल जिया-उल-हक युग का उत्तराधिकारी रावलपिंडी के GHQ (सैन्य हेडक्वार्टर) का कोई दूसरा जनरल नहीं था, बल्कि एक मोटा थुलथुल कारोबारी नवाज शरीफ था, जो पंजाबी-पठान शेखीबाजों की बहुसंख्यक आबादी वाली धरती पर उनके उलट कारोबारी कश्मीरी अराइन मूल के परिवार से था.

शरीफ को अपने शासन में पूरे समय गैर-पेशेवर जनरलों, कट्टर मौलवियों, बेईमान नेताओं और विडंबनाओं के देश ‘पाकिस्तान’ जहां अनैतिकता को सामान्य मान लिया गया है, उस देश की बेलमाम महत्वाकांक्षाओं में संतुलन साधने के लिए काम करना पड़ा.

नवाज शरीफ सबसे बेहतरीन सर्वाइवर हैं. नवाज तीन कार्यकाल (1990-93, 1997-99 और 2013-17) के साथ 9 साल तक पाकिस्तान के सबसे लंबे समय तक पद पर रहने वाले प्रधानमंत्री हैं.

इसमें शाहिद खाकान अब्बासी और शहबाज शरीफ जैसे उनके वफादार नुमाइंदों का कुछ सालों का कार्यकाल शामिल नहीं हैं, जब कानूनी तकनीकी पाबंदियों के चलते नवाज शरीफ को औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री पद संभालने से रोक दिया गया था.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इमरान खान के खिलाफ नवाज का ‘इंतजाम’

आज, नवाज शरीफ ने पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी यानी भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) के साथ हाथ मिलाकर एक बार फिर अपनी राह आसान कर ली है, जिसका ‘इंतजाम’ पाकिस्तानी सेना ने अपने मौजूदा दुश्मन इमरान खान को सत्ता से बाहर रखने के लिए किया था.

अस्तित्व बचाने की कला में माहिर यह खांटी राजनेता जानता है कि भाई शहबाज शरीफ को प्रधानमंत्री पद पर बिठाने के लिए दुश्मनी भुला देना ही समझदारी है. वैसे किसी भी घरेलू पारिवारिक झगड़े का चांस न लेते हुए उन्होंने बड़ी चालाकी से अपनी बेटी मरियम नवाज को सबसे ज्यादा आबादी और असरदार हैसियत वाले राज्य पंजाब का मुख्यमंत्री भी बनवा दिया है.

फिलहाल पाकिस्तानी सेना के ‘सलेक्शन’ का लुत्फ उठा रहे नवाज को सेना के साथ मौजूदा संबंधों के टिकाऊपन पर यकीन करने के बारे में बेहतर पता होगा. 2018 में इसी ‘सैन्य प्रतिष्ठान’ ने गला कसने वाला जाल बिछाया और नवाज शरीफ की पार्टी को सत्ता से बाहर कर इमरान खान की अगुवाई वाली PTI का ‘सलेक्शन' (सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए) किया था.

मगर आत्ममुग्ध इमरान ने सेना के प्रति जरूरी एहसानमंदी को बेवकूफाना ढंग से ज़ाया कर दिया, जिसके नतीजे में उन्हें खुद सत्ता से बाहर होना पड़ा, और इसके बाद शरीफ और भुट्टो के कहीं ज्यादा बदनाम गठबंधन की सत्ता में वापसी हुई.

यह सब पिस्टल में सिर्फ एक कारतूस भर कर सिर में गोली मारने वाले रूसी रूलेट जैसे अजीब खेल की याद दिलाता है, और पाकिस्तानी राजनीति ऐसी है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

प्रधानमंत्री के रूप में शहबाज शरीफ का चुनाव एक बेहतर विकल्प क्यों है?

नवाज शरीफ निश्चित रूप से इमरान द्वारा जनता की वाहवाही लूटने के लिए की गई नाटकीय हरकतों के उलट पाकिस्तानी ‘सैन्य प्रतिष्ठान’ के निर्मम रवैये के बारे में ज्यादा तजुर्बेकार हैं, क्योंकि इतिहास ने नवाज को कुछ बड़े सबक दिए हैं. सबसे बड़ा सबक यह है कि नवाज को तीनों बार तब पद से हटाया गया, जब वह फौज की नजरों में गिर गए थे.

दूसरी बात, अपने सारे राजनीतिक तजुर्बों के बावजूद उन्होंने उन छह सेना प्रमुखों में से हर एक के मामले में बहुत बड़ी गलती की, जिन्हें उन्होंने उनकी वफादारी की गलत समझ के चलते चुना था (अक्सर दूसरे सीनियर दावेदारों को दरकिनार कर) यानी जनरल वहीद काकर, जहांगीर करामत, परवेज मुशर्रफ, परवेज कियानी, राहील शरीफ और कमर बाजवा. बाद में इनमें से हर एक खुद के एजेंडे वाला आदमी निकला!

नवाज शरीफ के आशीर्वाद से चुने गए मौजूदा सातवें सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर हैं– नवाज शरीफ को काम करने के लिए जो मैदान दिया गया है, उसके लिए ‘लक्ष्मण रेखा’ पहले से ही खींच दी गई लगती है.

नवाज के बजाय शहबाज शरीफ की औपचारिक रूप से नियुक्ति के ऐलान को जनरलों के साथ शहबाज के अच्छे कामकाजी समीकरण को देखते हुए एक सही फैसला माना जा सकता है, जो अतीत में नवाज के साथ निजी टकराव के समीकरण के उलट है.

इसके अलावा, उभरते सामाजिक-आर्थिक संकट को देखते हुए कुछ ‘कड़े फैसलों’ (जिनके जनता के बीच पसंद किए जाने की संभावना नहीं है) पर जोर देगा. इसके साथ ही गठबंधन सहयोगियों के साथ काम करने की स्वाभाविक दिक्कत और इसके साथ होने वाली खींचतान से नवाज को अलग रखा जाएगा, संरक्षित किया जाएगा, और अगर दिखावे के लिए चेहरों में फेरबदल की जरूरत होगी तो हमेशा एक बैकअप विकल्प बने रहेंगे.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

यह एक ऐसी व्यवस्था है जो नवाज, शहबाज, मरियम, भुट्टो (आसिफ अली जरदारी का राष्ट्रपति के रूप में लौटना निश्चित है) और सबसे ऊपर, सेना के लिए सही काम करेगा. नवाज असरदार ढंग से राजनीतिक और नागरिक बागडोर हाथ में रखेंगे, भले ही असल ताकत रावलपिंडी सैन्य मुख्यालय में निहित रहेगी.

(लेखक अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और पुडुचेरी के पूर्व उपराज्यपाल हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और यह लेखक के अपने विचार हैं. द क्विंट इनके लिए जिम्मेदार नहीं है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×