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सिक्किम की बाढ़ एक चेतावनी, हिमालय में मंडरा रहा GLOFs का खतरा

हिमनद झीलों के अधिक होने के कारण, सिक्किम ऐसी आपदाओं के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील है.

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सिक्किम के दक्षिण ल्होनक झील पर बुधवार, 4 अक्टूबर को बादल फटने से तीस्ता नदी में अचानक बाढ़ आ गई, जिससे कम से कम 21 लोगों की मौत हो गई. जबकि 103 अन्य लापता हो गए और उत्तरी सिक्किम में बड़े पैमाने पर जनहानि हुई.

उफनती नदी ने डिक्चु, सिंगतम और रंगपो जैसे तीस्ता बेसिन के शहरों को जलमग्न कर दिया और चुंगथांग बांध से पानी छोड़े जाने से बाढ़ और भी बदतर हो गई.

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नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन (NHPC) के स्वामित्व वाले तीस्ता-V और तीस्ता-VI जलविद्युत स्टेशन भी अचानक आई बाढ़ से प्रभावित हुए और उन्हें बंद करना पड़ा.

दरअसल, पूर्वी हिमालय का हिस्सा होने और कंचनजंगा और दार्जिलिंग गनीस जैसी भूवैज्ञानिक संरचनाओं से चिह्नित भूभाग होने के कारण, ऐसी आपदाओं की स्थिति में सिक्किम की भौगोलिक स्थिति को देखना महत्वपूर्ण है.

क्षेत्र में मुख्य जल निकासी प्रणालियां तीस्ता, रंगपो छू और दिक छू नदियां हैं. सिक्किम के हाई लैटिट्यूड वाले ग्लेशियर क्षेत्रों में 5,200 मीटर की ऊंचाई पर दक्षिण ल्होनक झील सहित कई हिमनद झीलें हैं.

हिमनदों के पीछे हटने और हिमनद झील विस्फोट, बाढ़ (जीएलओएफ) के बढ़ते खतरे के कारण, पिछले रिपोर्टों में ये चेतावनी दी गई है कि दक्षिण ल्होनक झील एक दिन टूट सकती है, जिससे नीचे की ओर बस्तियों को खतरा हो सकता है.

सिक्किम की विनाशकारी बाढ़ के पीछे संभावित कारक क्या रहे?

हाल ही में, सिक्किम में आई बाढ़ से प्रश्न उठ रहे हैं कि आखिरकार ये आपदा आई कैसे, क्या परिस्थितियां बनी?

हालांकि, विस्तृत वैज्ञानिक जानकारी बाढ़ के वास्तविक कारण का खुलासा करेगी. लेकिन, प्रथम दृष्टया, ऐसा लगता है कि यह त्रासदी अत्यधिक वर्षा और उत्तरी सिक्किम में दक्षिण ल्होनक झील में GLOF की घटना के कारण हुई होगी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने ऐसा दावा किया है.

GLOF एक खतरनाक प्रकार की प्राकृतिक घटना है, जो अक्सर उच्च पर्वतीय क्षेत्रों, विशेष रूप से हिमालय में होती है. हिमनद झीलों से अचानक पानी का निकलना, जो आम तौर पर बढ़ते तापमान के कारण ग्लेशियरों के पिघलने पर होता है. इन विनाशकारी आपदाओं का कारण बनता है.

भले ही वैज्ञानिक सक्रिय रूप से वास्तविक कारण की जांच कर रहे हों. लेकिन, ऊपरी हिस्सों में लगातार बर्फबारी और निचले क्षेत्रों में बारिश के कारण तैनाती और राहत प्रयासों में गंभीर कठिनाइयां पैदा हुईं.

हिमनद झीलों के अपने विशाल नेटवर्क के कारण, हिमालय पर्वतमाला के भीतर स्थित सिक्किम, विशेष रूप से ऐसी आपदाओं के प्रति संवेदनशील है. NDMA की रिपोर्ट के अनुसार, रिमोट सेंसिंग के माध्यम से अनुमानित 7,500 ऐसी झीलों में से लगभग 10 प्रतिशत सिक्किम में पाई जाती हैं, जिनमें से लगभग 25 को खतरनाक बताया गया है. खतरा और भी बढ़ गया है क्योंकि यह क्षेत्र स्थानीय भारी वर्षा की घटनाओं के लिए जाना जाता है.

इस बात की भी जांच की जा रही है कि क्या नेपाल में हाल ही में आया भूकंप दक्षिण ल्होनक झील के फटने का कारण था? झील में परिवर्तन होना, इस तथ्य से पता चलता है कि यह 168 हेक्टेयर से बढ़कर केवल 60 हेक्टेयर रह गई. इतनी मात्रा में पानी बह जाने को, साधारण बादल फटने से समझा नहीं जा सकता है.

हिमालय में GLOFs का मंडराता खतरा

हिमालय क्षेत्र में रह रहे लोग GLOF के व्यापक प्रभावों के कारण खतरे में है. GLOF के कुछ महत्वपूर्ण कारणों में, जैसे ग्लेशियरों का तेजी से पीछे हटना, अस्थिर मोराइन बांध जो हिमनद झीलों को रोकते हैं, और तापमान परिवर्तन जो इन प्राकृतिक जलाशयों के भीतर दबाव अंतर का कारण बनते हैं.

जब GLOF होता है तो भारी मात्रा में पानी, चट्टानें और मलबा नीचे की ओर अचानक छोड़े जाने से विनाशकारी बाढ़ आती है.

हिमालय क्षेत्र अपने उच्च जनसंख्या घनत्व, अपर्याप्त आपदा बुनियादी ढांचे और आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभावों के प्रति संवेदनशीलता के कारण GLOF के खतरे को और बढ़ा देता है.

इस संवेदनशील क्षेत्र में जीवन और आजीविका की रक्षा के लिए, इस खतरे से निपटने के लिए एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है, जिसमें निगरानी, ​​प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, बुनियादी ढांचे का विकास और जलवायु परिवर्तन शमन शामिल है. हिमालय में कुशल आपदा प्रबंधन के लिए GLOF के निरंतर खतरों को समझना आवश्यक है.

जब कोई GLOF घटना घटती है, तो इससे भारी मात्रा में पानी, चट्टानें और मलबा निकलता है, जो अचानक बड़ी मात्रा में होता है और विनाशकारी बाढ़ का कारण बनता है. कई महत्वपूर्ण कारकों के कारण, हिमालयी क्षेत्र विशेष रूप से GLOF के विनाशकारी प्रभावों के प्रति संवेदनशील है.
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स्नैपशॉट
  • सबसे पहले, लाखों लोग घाटियों और नदी के किनारे रहते हैं, जिससे इस क्षेत्र में जनसंख्या घनत्व अधिक है. यह उन्हें GLOF के प्रति बेहद संवेदनशील बनाता है, जिससे जान-माल की भयानक क्षति हो सकती है.

  • दूसरा, हिमालय अक्सर आपदा की तैयारी और प्रतिक्रिया के लिए खराब बुनियादी ढांचे से जूझता है, जिससे GLOF के प्रभाव को कम करना और प्रभावित समुदायों को तुरंत मदद करना अधिक कठिन हो जाता है.

  • तीसरा, आर्थिक प्रभाव गंभीर हैं, क्योंकि GLOF में फसलों को बर्बाद करने, महत्वपूर्ण परिवहन प्रणालियों में हस्तक्षेप करने और प्रमुख बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाने की क्षमता है, जिससे स्थानीय समुदायों और पूरे देशों को भारी वित्तीय नुकसान हो सकता है. इसके अलावा, क्योंकि ये बाढ़ें हिमानी गाद, कचरा और प्रदूषकों को नीचे की ओर ले जाती हैं, वे पारिस्थितिकी तंत्र और पानी की गुणवत्ता को नुकसान पहुंचाती हैं.

हिमालय में GLOF के खतरे को कैसे कम किया जा सकता है?

नीति निर्माताओं को इस महत्वपूर्ण मुद्दे के समाधान के लिए GLOF के हानिकारक प्रभावों को कम करने के लिए कई उपाय लागू करने चाहिए.

  • पहला कदम व्यापक GLOG निगरानी और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली बनाना और लागू करना है, जो सैटेलाइट इमेज और रिमोट सेंसिंग जैसे अत्याधुनिक उपकरणों से लैस हो. ये उपकरण हिमनद झीलों के स्वास्थ्य की निगरानी कर सकते हैं और निचले प्रवाह में लोगों को समय पर अलर्ट भेज सकते हैं ताकि वे तैयार हो सकें और आवश्यकतानुसार निकल सकें.

  • दूसरा, ग्लेशियर के पिघलने को कम करने के लिए स्थायी ग्लेशियर संरक्षण और जलवायु परिवर्तन शमन उपायों को प्राथमिकता देना आवश्यक है, जो GLOF का एक प्रमुख कारण है. इस लिहाज से वनरोपण और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को विकसित करने जैसे कार्यक्रम महत्वपूर्ण हैं.

  • तीसरा, पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल बुनियादी ढांचे का निर्माण और आपदा तैयारी के उपायों को भी लागू किया जाना चाहिए, जिसमें सुदृढ़ नदी तट, बाढ़ प्रतिरोधी संरचनाएं, निकासी मार्ग और सार्वजनिक जागरूकता कार्यक्रम शामिल हैं.

हम इन नीतिगत उपायों को लागू करके, इस उच्च जोखिम वाले क्षेत्र में रहने वाले लोगों के जीवन और आजीविका की रक्षा करके हिमालय में GLOF के खतरे और प्रभावों को कम करने के लिए सामूहिक रूप से लड़ सकते हैं.

हिमालय क्षेत्र की वर्तमान स्थिति सक्रिय आपदा प्रबंधन और शमन तकनीकों की तत्काल आवश्यकता को उजागर करती है. जलवायु परिवर्तन और हिमनदों के पिघलने से कमजोर समुदायों पर कितना विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है, इसका स्पष्ट उदाहरण सिक्किम में आई बाढ़ है.

इस उच्च जोखिम वाले क्षेत्र में लोगों के जीवन और आजीविका की सुरक्षा के लिए, हमें वैज्ञानिक ज्ञान को व्यापक नीतियों और बुनियादी ढांचे के विकास के साथ जोड़ना होगा.

(अंजल प्रकाश भारती इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी, इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (ISB) में क्लिनिकल एसोसिएट प्रोफेसर (रिसर्च) हैं. यह लेख की राय है. ऊपर व्यक्त विचार लेखक के हैं. द क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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