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मैं ही पार्टी की अध्यक्ष हूं- सोनिया, क्या 'जी23' गांधी परिवार को चुनौती देंगे?

पार्टी के सारे महत्वपूर्ण निर्णय राहुल और प्रियंका ही ले रहे हैं जैसा कि हाल ही में पंजाब संकट से पता चलता है.

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सोनिया गांधी का कांग्रेस कार्यसमिति में यह दावा कि वह एक "पूर्णकालिक अध्यक्ष" हैं. इसके बाद हो सकता है कि गांधी परिवार के वफादारों और जी-23 नामक वरिष्ठ नेताओं के नेतृत्व वाले एक विद्रोही समूह के बीच टकराव टल गया हो, लेकिन यह किसी भी तरह से परेशान करने वाले मूल मुद्दे को हल नहीं करता है. इससे राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की भूमिका और जिम्मेदारियां क्या होंगी ये तय नहीं हो जाता.

2019 की चुनावी हार के बाद राहुल वायनाड से महज एक सांसद ही हैं. जबकि प्रियंका उत्तर प्रदेश की प्रभारी महासचिव.

फिर भी, दोनों भाई-बहन पार्टी के महत्वपूर्ण निर्णय ले रहे हैं जैसा कि हाल ही में पंजाब संकट से पता चलता है.

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यह प्रियंका ही थीं जिन्होंने नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त करने के लिए दबाव डाला. जिसके कारण अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और यह राहुल ही थे जिन्होंने चरणजीत सिंह चन्नी को अमरिंदर सिंह के स्थान पर इस उम्मीद में नियुक्त किया था कि दलित सिख कार्ड कांग्रेस को आगामी चुनावों में फायदा देगा.

इस बात का कोई सबूत नहीं है कि किसी भी फैसले में सोनिया गांधी का हाथ था या नहीं. फिर भी, बिना पलक झपकाए सोनिया गांधी ने सीडब्ल्यूसी से कहा कि वह 'पूर्णकालिक कांग्रेस अध्यक्ष' हैं

साथ ही सोनिया कोरोना महामारी और किसान आंदोलन जैसे मौजूदा मुद्दों पर सावधानीपूर्वक विरोध कर रही हैं.

सोनिया ने कहा कि "आप जानते हैं कि मैं प्रधानमंत्री के सामने इन मुद्दों को उठा रही हूं, जैसा कि डॉ मनमोहन सिंह जी और राहुल जी ने किया है ... मैं नियमित रूप से समान विचारधारा वाले राजनीतिक दलों के साथ बातचीत करती रही हूं. हमने राष्ट्रीय मुद्दों पर संयुक्त बयान जारी किए हैं और संसद में भी अपनी रणनीति का समन्वय किया है".

संकट में पार्टी और सोनिया का डिफेंस मोड  

हालांकि, सोनिया जो कहती हैं वह उतना मायने नहीं रखता. जबकि यह वह था जो उन्होंने नहीं कहा था जो बताता है कि कांग्रेस में नेतृत्व संकट खत्म नहीं हुआ है, यहां तक ​​​​कि सितंबर 2022 में एक नए अध्यक्ष के चुनाव में पार्टी के चुनावों के लिए एक कार्यक्रम की घोषणा की गई थी.

उदाहरण के लिए, सोनिया पार्टी के संगठनात्मक मामलों पर जरूरी सवालों को संबोधित करने से कतराती हैं. जी-23 समूह के नेता कपिल सिब्बल ने कुछ समय पहले यह सवाल किया था कि कांग्रेस में कौन निर्णय ले रहा है. तब सोनिया गांधी ने इस सवाल को टाल दिया था.

उन्होंने पार्टी में निर्णय लेने की प्रक्रिया पर कोई जोर नहीं डाला और इसमें अपने बच्चों के शामिल होने पर चुप रहीं.

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डिफेंसिव मोड में खेलना हमेशा से सोनिया गांधी की खूबी रही है और एक बार फिर इसने उनके लिए काम किया है.

उन्होंने निश्चित रूप से पार्टी के जी-23 और उसके मूक समर्थकों के आत्मविश्वास को कम कर दिया है.

जैसा कि एक वरिष्ठ नेता ने बाद में स्वीकार करते हुए कहा भी कि, "हम सोनिया गांधी का बहुत सम्मान करते हैं और हमने कभी उनसे सवाल भी नहीं किया. आखिरकार, हम ही हैं जिन्होंने राहुल के इस्तीफा देने के बाद उन्हें अध्यक्ष चुना है."

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सोनिया गांधी द्वारा अपना भाषण समाप्त करने के बाद कहने के लिए बहुत कम बचा था.

एक तरफ जहां अगस्त 2020 में पार्टी की बैठक में राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा ने उनकी हां में हां नहीं कहने वालों पर हमला किया तो वहीं इस बार सोनिया गांधी ने परिवार के चारों ओर एक सुरक्षा कवच लगा दिया और अगर कोई बागी हो तो उसका सामना करने के लिए खुद को सामने रखा.

यह कहने की जरूरत नहीं है कि किसी में भी उनसे पंगा लेने का साहस हो. बैठक हुई और ठीक से समाप्त हो गई.

समस्याएं और सवाल बने हुए हैं. सबसे बड़ा सवाल और भ्रम तो यह है कि राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष के रूप में वापसी करेंगे या नहीं.

दूसरी पहेली यह है कि आने वाले महीनों में 2024 के लोकसभा चुनावों में प्रियंका वाड्रा की क्या भूमिका होगी?

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प्रियंका हाल ही में वाराणसी में थीं, जहां पर वो हिंदुत्व का राग अलाप रही थीं जो मोदी से मेल खाता है. उन्होंने मंदिरों का दौरा किया, त्रिकुंड (माथे पर चंदन के लेप की तीन पंक्तियां) का खेल किया और एक रैली में तलवार लहराई, जिसकी शुरुआत दुर्गा की प्रार्थना के साथ की. उन्होंने यह भी घोषणा की कि वह नौ दिवसीय नवरात्रि उपवास कर रही हैं.

प्रियंका की यात्रा ने तुरंत उन अटकलों को हवा दे दी कि वह 2024 में वाराणसी में मोदी को चुनौती देने के लिए जमीन तैयार कर रही थीं.

पार्टी जिस तरह से काम कर रही है, उसका बचाव करते हुए उन्होंने अपने बच्चों के कदमों और फैसलों पर मुहर लगा दी है. G-23 के लिए अब अनुमान लगाने का समय आ गया है.

चुनाव का कार्यक्रम जारी कर दिया गया है. लेकिन जिस तरह से सोनिया गांधी ने खुद को पार्टी अध्यक्ष के रूप में पेश किया, यह संभावना नहीं है कि पार्टी में कोई भी गांधी परिवार के प्रभुत्व को गंभीरता से चुनौती देगा.

कांग्रेस को परिवार ही चलाने वाला है इस बात की चिंता हमेशा बनी रहने की संभावना है.

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